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राज्य अराजकता के जश्न का एक शुभंकर बतौर सामने है बुलडोजर

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हर्ष मंदर

भारतीय राज्य अपने नागरिकों के एक हिस्से के खिलाफ खुली दुश्मनी के चलते बेखौफ अराजक हो गया है. 2019 के बाद से, बुलडोजर राज्य अराजकता के इस जश्न का एक शुभंकर बतौर सामने है. अब यह सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी की बातों और अमल दोनों में, खौफनाक ढंग से राज्य सत्ता के मजबूत और दंभी पक्षपातपूर्ण रवैए का प्रतीक है. इनका इस कदर इस्तेमाल देश के नागरिकों, विपक्ष और अदालतों के लिए चेतावनी है कि संवैधानिक शासन और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र, दोनों पर खतरा मंडरा रहा है.

बीजेपी-शासित कई राज्यों में आने वाली राज्य सरकारों ने ज्यादातर मुस्लिम नागरिकों को बुलडोजर से निशाना बनाया है, उनकी संपत्तियों को तबाह कर दिया है, संवैधानिक निष्पक्षता तो दूर, उचित कानूनी प्रक्रिया का शायद ही कोई दिखावा किया गया हो. माहौल आम तौर पर उत्सव जैसा होता है. इमारतों को बुलडोजरों से गिराते हुए, अक्सर दर्शक और टेलीविजन मीडिया खुशी मनाता है और चुने हुए नेता धार्मिक बदले की कार्रवाई बता इसकी सराहना करते हैं.

ऐसा लगता है कि बुलडोजर भेजने में अधिकारी संवैधानिक अधिकारों और कानून के शासन की अनिवार्यताओं से बेपरवाह हैं. आख़िरकार, किसी भी भारतीय क़ानून में ऐसा कोई क़ानून नहीं है जो राज्य को केवल अपराध के संदेह पर किसी व्यक्ति की संपत्ति को नष्ट करने का अधिकार देता हो. जैसा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश एपी शाह ने समाचार पोर्टल कोडा से पुष्टि की, “आपराधिक गतिविधि में महज कथित संलिप्तता कभी भी संपत्ति के विध्वंस का आधार नहीं हो सकती.” इसके अलावा, यह निष्कर्ष निकालने के लिए कि किसी व्यक्ति ने अपराध किया है, संविधान और कानून ने आरोपी के अधिकारों की रक्षा के लिए एक विस्तृत प्रक्रिया स्थापित की है. इसे भी लापरवाही से दरकिनार कर दिया गया है.

अराजक बुलडोजर “न्याय” का सहारा लेने के बावजूद, देश की न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका पर शायद ही कभी अंकुश लगाया गया हो. कुछ अवसरों पर, अदालतों ने विध्वंस पर रोक लगाई. लेकिन गंभीर क्षति होने के बाद ही. इस साल अगस्त में एक दुर्लभ उदाहरण में, हरियाणा के नूंह जिले में मुस्लिम नागरिकों की स्वामित्व वाली संपत्तियों के विध्वंस के चार दिन बाद पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के दो न्यायाधीशों ने पूछा कि क्या “राज्य द्वारा जातीय सफाए की कोई कवायद की जा रही है?” न्यायाधीशों ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा विध्वंस से पहले हुई सांप्रदायिक हिंसा की जांच पूरी करने से पहले ही गृहमंत्री ने घोषणा कर दी थी कि विध्वंस “इलाज” या इलाज का हिस्सा था.

लेकिन इस तरह की न्यायिक आवाजें, जो नैतिक और न्यायिक स्पष्टता को दर्शाती हैं, आज उच्च न्यायपालिका में अपवाद हैं, यहां तक कि उग्र बुलडोजर उन सरकारों के प्रतीक के रूप में वोट इकट्ठा कर रहे हैं जो भारत के मुसलमानों को सामूहिक सजा देने के लिए संविधान का माखौल उड़ाते हैं. सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के एक राजनीतिक शोधार्थी असीम अली ने टाइम मैगजीन से कहा, “यह एकमात्र उदाहरण है जब अदालत ने माना कि यह गलत है.”

बुलडोजर भारत के शासन परिदृश्य में हाल ही में शामिल नहीं हुए हैं, न ही उन्हें अभी निर्णायक शासन के प्रतीक के रूप में शामिल किया गया है. दशकों से, बुलडोजर शहरवासियों के लिए डर का एक स्थायी स्रोत रहा है- रेहड़ी-पटरी वाले और झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोग बहिष्कृत शहर प्रबंधन नीतियों और योजनाओं के चलते स्थायी अवैधता के क्षेत्र में हैं. इन वर्षों में, कई अदालती फैसलों ने झोपड़ी या फुटपाथ के निवासी या रेहड़ी-पटरी वालों को पर्याप्त नोटिस देने और जिंदा रहने के व्यावहारिक विकल्पों की स्थापना की ज्यादा मानवीय प्रक्रिया निर्धारित की है. इन आदेशों का पालन शायद ही कभी इसकी मूल भावना से किया जाता है, अक्षरश: तो बहुत ही कम किया जाता है. बुलडोजर न्याय के इस पुराने रूप के साथ मूलभूत समस्या यह है कि इसने शहर नियोजन की गहरी असमानताओं को उलट नहीं दिया है जो मेहनतकश गरीबों को वैध समावेशन से बाहर कर देती है. बुलडोजर के इस नए युग में जो बदलाव आया है, वह है बहिष्कारवादी नफरत की राजनीति के लिए बुलडोजर के लक्ष्य और वैचारिक तैनाती.

हिंदुत्व की राजनीति के हथियार बतौर बुलडोजर के आविष्कारक उत्तर प्रदेश के भगवाधारी मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट थे, जिन्हें आमतौर पर आदित्यनाथ के नाम से जाना जाता है. इसकी शुरुआत मुसलमानों से नहीं हुई. इसकी शुरुआत जुलाई 2020 में हुई, जब गैंगस्टर विकास दुबे ने उसे गिरफ्तार करने आए पुलिस वाहनों का रास्ता रोकने के लिए एक बुलडोजर का इस्तेमाल किया- इसके बाद हुई गोलीबारी में आठ पुलिस कर्मियों की हत्या कर दी गई. पुलिस बल के सदस्यों की हत्या का सार्वजनिक रूप से बदला लेने के लिए बिकरू गांव में दुबे के महलनुमा किलेबंद घर को बुलडोजर से नष्ट कर दिया गया जिसमें पुलिस के काफिले को अवरुद्ध करने वाला घर भी शामिल था. इस विध्वंस का चापलूस मीडिया ने सीधा प्रसारण किया और बाद में दुबे पुलिस के साथ न्यायेतर मुठभेड़ में मारा गया. आदित्यनाथ ने न्यायेतर गोलीबारी और बुलडोजर की बाजीगरी के दोहरे उपकरणों के साथ अपराध को नियंत्रित करने का विजयी श्रेय लिया.

बुलडोजर को बेहद लोकप्रिय प्रतीक बनने में बहुत कम समय लगा. यहां तक कि मुसलमानों की खिल्ली उड़ाने और उन्हें गालियां देने वाले नफरत भरे गीतों की एक नई शैली हिंदुत्व पॉप ने भी बुलडोजर को एक केंद्रीय उद्देश्य के रूप में समाहित कर लिया. बुलडोजर गीतों की धुन पर आदित्यनाथ ने चुनाव अभियानों के दौरान अपने मजबूत कार्यों का बखान किया. चुनावी रैलियों के दौरान उनकी बयानबाजी ने यह स्पष्ट कर दिया कि उनके बुलडोजरों का निशाना अब मुख्य रूप से मुसलमान होने वाले थे- अगर वे अपराधों के आरोपी थे, या प्रदर्शनकारी थे, या उनके प्रशासन द्वारा (लेकिन किसी भी अदालत द्वारा नहीं) उन्हें दंगाई माना जाता था. द वायर ने उनके सार्वजनिक रूप से उपलब्ध 2022 के चुनावी भाषणों में से केवल 34 का विश्लेषण किया और उनमें सीधे-सीधे नफरत भरे भाषण के कम से कम 100 उदाहरण पाए गए जिन्होंने भारतीय मुसलमानों को ताना मारा, कलंकित किया या धमकी दी. बीजेपी और आदित्यनाथ राज्य में 41 प्रतिशत के शानदार वोट शेयर के साथ लौटे और उनके विजय जुलूस में बीजेपी के झंडों से सजे बुलडोजरों के काफिले शामिल थे.

2022 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की जीत के मद्देनजर एक शख्स बुलडोजर बाबा का टैटू बनवाता हुआ. एएनआई फोटो

ऐसे चुनाव में, जहां बुलडोजर अनौपचारिक शुभंकर था, इन नफरती भाषणों ने यह संकेत दिया कि आगे क्या होने वाला है. यह सामूहिक दंड के रूप में मुसलमानों को, खासकर विरोध करने वालों को निशाना बनाने के लिए बुलडोज़रों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल था. 27 मई 2022 को, बीजेपी की राष्ट्रीय प्रवक्ता नुपुर शर्मा ने राष्ट्रीय टेलीविजन पर पैगंबर मोहम्मद का अपमान किया. अपमान के कारण उत्तर प्रदेश के कई शहरों में शुक्रवार की नमाज के बाद विरोध प्रदर्शन हुआ. इनमें से कुछ विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए, भीड़ ने पुलिस पर पथराव किया.

विरोध प्रदर्शन के अगले दिन राज्य प्रशासन ने प्रदर्शनकारियों के रूप में पहचाने गए मुसलमानों के घरों को ध्वस्त कर दिया. सहारनपुर में नगर निगम अधिकारियों ने भारी पुलिस तैनाती के साथ, दो लोगों, मुजम्मिल और अब्दुल वकार, के घरों के दरवाजे और सामने की दीवारों को गिरा दिया. इन पर पुलिस ने हिंसा में भाग लेने का आरोप लगाया था. इसे एक बार फिर बड़े पैमाने पर टेलीविजन पर प्रसारित किया गया. एक हफ्ते बाद कानपुर में मोहम्मद इश्तियाक का घर ढहा दिया गया. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त ने दावा किया कि उनके पास “विश्वास करने के कारण” हैं कि दंगाइयों के कथित नेता जफर हाशमी ने ध्वस्त घर में निवेश किया था.

आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार ने बुलडोजर की तस्वीर के साथ एक ट्वीट में मुसलमानों के लिए एक परोक्ष धमकी देते हुए यहां तक कह दिया कि हर शुक्रवार के बाद शनिवार आता है. प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह भी अपने ट्वीट में बराबर धमकी दे रहे थे, ‘जिनके घर बुलडोजर के साए में हों, वो दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकते.’

विरोध प्रदर्शन के तुरंत बाद प्रयागराज में वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के कार्यकर्ता जावेद मोहम्मद का घर तोड़ दिया गया. उनकी बेटी आफरीन फातिमा ने टेलीविजन पर लाइव देखा कि उनका 20 साल पुराना घर ध्वस्त हो रहा है, जबकि उनकी मां उसके पास चटाई पर बैठकर प्रार्थना कर रही थीं. उन्होंने टाइम मैगजीन में इसका भावपूर्ण विवरण लिखा. “क्या आपने कभी सोचा है कि अघोषित हिंदू राज्य भारत में मुस्लिम होना कैसा होता है?” वह पूछती हैं. “लगातार अपमानित होना, दोयम दर्जे का होते जाना और क्रूरता कैसी होती है? राज्य के द्वारा आपकी आत्मा को कुचल दिया जाना और आपके घरों को भी, कैसा होता है?

वह “भारत में ‘बुलडोजर न्याय’ के रूप में जाना जाने वाले अब-परिचित पैटर्न का जिक्र करती हैं. … सरकार मुसलमानों को विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने जैसे गंभीर ‘अपराधों’ से जोड़ती है, फिर उन्हें हिंसा के लिए दोषी ठहराती है और उनके घरों को नष्ट कर देती है.’ उनके घर को “अचानक ‘अवैध’ करार दे दिया गया भले ही हमने हमेशा सभी जरूरी करों का भुगतान किया हो और हमारी संपत्ति के सभी दस्तावेज ठीक हों.” वह अफसोस जताते हुए कहती हैं, “उन्होंने हमारे घर को नष्ट कर दिया और इसका सीधा प्रसारण किया. सत्तारूढ़ बीजेपी के मीडिया सहयोगियों ने मुसलमानों के लिए सामूहिक सजा के इस ताजातरीन तमाशे पर खुशी जताई.”

12 जून 2022 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में दंगों में भाग लेने के आरोपी एक मुस्लिम व्यक्ति के घर को बुलडोजर द्वारा ध्वस्त कर दिया गया. पैगंबर मोहम्मद पर बीजेपी नेताओं की टिप्पणियों के बाद दंगे भड़क उठे थे. रॉयटर्स/रितेश शुक्ला

हिंदुत्व के विजयवाद के शुभंकर के रूप में बुलडोजर की उन्मादी लोकप्रियता के चलते मध्य प्रदेश, गुजरात, असम और हरियाणा के अन्य बीजेपी मुख्यमंत्रियों और दिल्ली में जहां पुलिस को बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित किया जाता है, ने इसकी नकल की.

मार्च 2022 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, जिन्हें अक्सर मामा कहा जाता है, के आधिकारिक बंगले के बाहर बुलडोजरों की एक कतार खड़ी कर दी गई थी. इनके पीछे एक बड़े होर्डिंग पर नारा लिखा था, “बेटी की सुरक्षा में बनेगा जो रोड़ा, मामा का बुलडोजर बनेगा हथौड़ा.” उत्तर प्रदेश में राज्य की सीमा पर अपने समकक्ष की तरह कठोरता की प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए बेचैन, चौहान को जल्द ही “बुलडोजर मामा” उपनाम मिल गया.

यह उपाधि अच्छी कमाई गई थी. अगस्त 2022 में समाचार पोर्टल न्यूजलॉन्ड्री के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि बुलडोजरों ने राज्य के 52 जिलों में से लगभग हर एक में संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया था. नष्ट की गई 332 संपत्तियों में से 223 मुसलमानों की थीं, जबकि 94 हिंदुओं की थीं. आधिकारिक दावे कि जिन संपत्तियों को निशाना बनाया गया वह अपराधियों और माफियाओं की थीं, झूठे निकले, ज्यादातर संपत्ति सामान्य लोगों, गरीबों और मुसलमानों की थी.

अप्रैल 2022 में रामनवमी उत्सव के दौरान सांप्रदायिक झड़प के बाद संपत्तियों पर सबसे बड़ा हमला खरगोन में हुआ था. एक परिचित पैटर्न में, एक मस्जिद के सामने एक जुलूस लंबे समय तक रुका रहा, जिसमें भड़काउ गाने बजाए गए और मुसलमानों को गाली देते हुए हिंसक नारे लगाए गए. संयोग से, अपने नफरत भरे भाषणों से फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों को भड़काने के आरोपी बीजेपी नेता कपिल मिश्रा भी खरगोन में रामनवमी जुलूस का हिस्सा थे. किसी समय पत्थर फेंके गए और सांप्रदायिक झड़प हुई, दुकानों, घरों और कई वाहनों में तोड़फोड़ की गई और आग लगा दी गई. इंडियन एक्सप्रेस ने रिकॉर्ड किया है कि वीडियो से पुष्टि हुई है कि हिंदू भीड़ के सदस्यों ने मस्जिद पर पत्थर फेंके. दो दिन बाद, जिला अधिकारियों ने बुलडोजर भेजा जिसमें मुस्लिम निवासियों की स्वामित्व वाली 92 संपत्तियों को ध्वस्त कर दिया गया.

राज्य के अधिकारियों ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि ये न्यायेतर विध्वंस दंगों के लिए मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक प्रतिशोध के रूप में किया गया था. पुलिस उपमहानिरीक्षक तिलक सिंह ने बताया कि पथराव करने वाले लोगों के मकान ध्वस्त कर दिए गए. इंदौर के संभागीय आयुक्त पवन शर्मा ने भी यही बात कही. राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा यह घोषणा करने में आक्रामक थे कि जिन घरों से पत्थर आए थे उन्हें पत्थर बना दिया जाएगा. राज्य नेतृत्व ने झड़प को उकसाने वाली हिंदू भीड़ के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की.

मध्य प्रदेश में कई अन्य उदाहरणों में संपत्तियों को तब ध्वस्त कर दिया गया जब स्थानीय अधिकारियों ने, न कि किसी अदालत ने, यह फैसला किया कि इसका मालिक किसी अपराध का दोषी था, या कभी-कभी ये भी जरूरी नहीं था. उदाहरण के लिए, उज्जैन में एक वीडियो सामने आया जिसमें बताया गया कि तीन मुस्लिम युवकों ने एक धार्मिक जुलूस पर थूक दिया. उनमें से दो नाबालिग थे. युवकों ने आरोप से इनकार किया और कहा कि वे प्लास्टिक की बोतल से पानी पी रहे थे. लड़कों को हिरासत में लिया गया, वयस्क युवा को जेल भेज दिया गया और बाकी दोनों को बाल सुधार गृह भेज दिया गया. दो दिन बाद, एक लड़के के पिता के तीन मंजिला घर को बुलडोजर ने ढहा दिया. बुलडोजर के साथ अधिकारी एक दर्जन ढोलवाले और एक डीजे सिस्टम भी लाए थे और घर ढहते ही तेज संगीत बजने लगा.

गुजरात के तटीय शहर खंभात में 2022 की गर्मियों में राम नवमी के दौरान एक सांप्रदायिक झड़प हुई, जो खरगोन में हुई घटना से बहुत अलग नहीं थी. वीडियो में एक हजार से अधिक की भीड़ को एक दरगाह के सामने वाहनों पर लगे लाउडस्पीकरों से उन्मादी धुनों पर नाचते हुए दिखाया गया है, जिनमें ज्यादातर युवा हैं. विवाद छिड़ गया, पथराव हुआ और एक हिंदू दिहाड़ी मजदूर की हत्या कर दी गई. कुछ घंटों बाद, गुस्साई भीड़ ने कई मुस्लिम दुकानों और खोखों को जला दिया. पांच दिन बाद, बुलडोजरों ने खंभात में मुसलमानों के स्वामित्व वाले खोखों की एक लंबी कतार को ध्वस्त कर दिया. दो सप्ताह से भी कम समय के बाद शहर के मुख्य व्यापार- कीमती पत्थर एगेट के भंडारण के 17 गोदामों को बुलडोजर द्वारा नष्ट कर दिया गया. इन सभी पर मुसलमानों का स्वामित्व था. गिरफ्तारी और इस अतिरिक्त-कानूनी प्रतिशोध, दोनों ने हिंदुओं द्वारा उकसाए गए सांप्रदायिक संघर्ष के लिए लगभग विशेष रूप से मुसलमानों को लक्षित किया, जिसमें भीड़ ने मुस्लिम संपत्तियों को नष्ट कर दिया था.

बुलडोजरों को राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंचने में देर नहीं लगी. 2022 में, राम नवमी के कुछ दिनों बाद, हनुमान जयंती पर एक ऐसी ही सांप्रदायिक झड़प हुई, जब जहांगीरपुरी की एक अनौपचारिक मजदूर बस्ती में एक मस्जिद के बाहर एक धार्मिक जुलूस में मुस्लिम विरोधी नारे लगाए गए और गाने गाए गए. यहां एक बड़ी संख्या में बंगाली भाषी मुस्लिम आबादी रहती है. सात पुलिसकर्मियों समेत नौ लोग घायल हो गए. तीन दिन बाद बुलडोजरों का एक दस्ता आया और घरों और खोखों को नष्ट कर दिया, जिनमें ज्यादातर मुस्लिम निवासी थे, जबकि वे भयभीत होकर देख रहे थे. रमजान के पवित्र महीने में कई लोग रोजे से थे.

20 अप्रैल 2022 को दिल्ली के जहांगीरपुरी के एक आवासीय इलाके में एक कथित अवैध ढांचे को ध्वस्त करता एक बुलडोजर. यह विध्वंस 16 अप्रैल को हनुमान जयंती जुलूस के दौरान झड़पों के बाद अतिक्रमण विरोधी अभियान का हिस्सा था. विध्वंसों में मुख्य रूप से मुसलमानों को निशाना बनाया गया. मनी शर्मा/एएफपी/गैटी इमेजिस

बीजेपी के नेतृत्व वाले नगर निगम ने इस कार्रवाई के लिए 400 पुलिसकर्मियों की मांग की थी. जिस तरह से उन्हें निशाना बनाया गया, उससे मुस्लिम निवासी नाराज थे जबकि उनके हिंदू पड़ोसी इस कार्रवाई का बड़े पैमाने पर समर्थन कर रहे थे. वकील इस अभियान पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सुप्रीम कोर्ट ने डोजर्स पर रोक लगाने का आदेश दिया लेकिन तब जब गरीब निवासियों की कई संपत्तियां मलबे में तब्दील हो गईं. “वे ऐसा कैसे कर सकते हैं?” स्क्रॉल की रिपोर्ट के अनुसार, 40 वर्षीय अख्तानम रो पड़ीं, जिनका जन्म जहांगीरपुरी में हुआ था. यहां उनके माता-पिता काम की तलाश में हल्दिया से आए थे. “यह एकमात्र घर है जिसे मैंने अपने जीवन में कभी देखा है.”

कपिल मिश्रा ने इसका जवाब दिया. उन्होंने तंज कसते हुए कहा, ”पत्थर फेंकना है तो अवैध इमारत में मत रहो.” बीजेपी पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव ने एक ट्वीट किया, जिसे उन्होंने बाद में हटा दिया, इस आशय से कि जेसीबी- भारत में उपयोग किए जाने वाले ज्यादातर बुलडोजरों का ब्रिटिश ब्रांड- वास्तव में “जिहाद कंट्रोल बोर्ड” का संक्षिप्त रूप था.

सितंबर 2023 में विश्व नेताओं की जी20 सम्मेलन की तैयारी के लिए राष्ट्रीय राजधानी को “सौंदर्यीकरण” करने की तैयारी ने बुलडोजरों के शासन को एक और बढ़ावा दिया. इस बार निशाने पर सिर्फ मुसलमान नहीं थे. जैसा कि कोडा ने बताया, एक सदियों पुरानी मजार को ढहा दिया गया, देखभाल करने वाला रोते हुए बोला, “मुझे बताओ, फुटपाथ पहले आया या यह 400 साल पुरानी मजार?”

सामूहिक प्रतिशोध के रूप में विध्वंस हरियाणा के नूंह में अपने चरम पर पहुंच गया, जब अगस्त 2023 में चार दिनों में, 50 किलोमीटर तक फैले क्षेत्र में, बुलडोज़रों ने पांच सौ से बारह सौ पचास संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया, जिनमें से लगभग सभी मुसलमानों से संबंधित थीं. उस समय नूंह की मेरी यात्रा में बम धमाकों के बाद उपजे माहौल जैसे हालात थे.

जम्मू-कश्मीर के बाहर भारत के सबसे अधिक मुस्लिम बहुल जिलों में से एक नूंह के निवासियों में रोष और निराशा चरम पर थी और नीति आयोग ने 2017 में इसे देश के सबसे अविकसित जिले के रूप में पहचाना था. हाल के महीनों में तीन मुस्लिम पुरुषों की मौत हो गई. गौरक्षक समूहों द्वारा गौहत्या के आरोप में दो अलग-अलग घटनाओं में हत्या कर दी गई. इन समूहों के सदस्य खुलेआम घातक आधुनिक हथियार लेकर चलते थे और जानवरों को ले जा रहे लोगों को मारते-पीटते थे और गोली चलाते थे. अक्सर इन हमलों की लाइव-स्ट्रीमिंग करते थे. इन नवीनतम हत्याओं के बाद भी, जिसमें व्यापक वीडियो फुटेज में प्रमुख बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की दोषीता को दर्शाया गया है, नाम मात्र गिरफ्तारियां की गईं. मामला तब तूल पकड़ गया जब बजरंग दल नेता मोनू मानेसर, जिसे नूंह के ज्यादातर निवासी नफरती हत्याओं की ताजा कड़ियों के पीछे का मास्टरमाइंड मानते हैं, ने कामुक तानों से भरा एक वीडियो पोस्ट किया जिसमें घोषणा की गई कि वह और उसके साथी नूंह का दौरा करेंगे. हथियारों से लैस और आक्रामक गालियां देते हुए बजरंग दल के कार्यकर्ताओं से भरी बस जब नूंह पहुंची, तो युवकों के एक समूह ने उन पर पथराव कर दिया. इसके बाद हुई हाथापाई में कई जानें चली गईं.

बजरंग दल के लड़ाके बदला लेने के लिए भड़क उठे, जिसकी शुरुआत उसी रात पड़ोसी गुरुग्राम में एक युवा इमाम की हत्या से हुई. लेकिन प्रभावशाली किसान समूहों और पंचायतों के हिंदू-मुस्लिम एकता के शक्तिशाली आह्वान के चलते हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में उनके हिंसक प्रतिशोध का प्रसार अप्रत्याशित रूप से रुक गया.

तभी राज्य सरकार ने अपने बुलडोजरों का काफिला उतार दिया जिसने नूंह के मुस्लिम निवासियों से इतने बड़े पैमाने पर बदला लिया, जिसे पूरा करना किसी भी नागरिक मिलिशिया के लिए असंभव था. नूंह शहर में एक चार मंजिला होटल सहित कम से कम 30 स्थायी इमारतें ढहा दी गईं, कई मेडिकल स्टोर और वस्तुतः सैकड़ों छोटे खोखे और मरम्मत की दुकानें नष्ट हो गईं. स्क्रॉल के पत्रकारों के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि नूंह शहर से 50 किलोमीटर दूर के गांवों में भी तोड़फोड़ की गई. टौरू, नल्हड़, नगीना और फिरोजपुर झिरका गांवों में उन्हें एक समान पैटर्न मिला. तोड़ी गई लगभग सभी इमारतें मुसलमानों की थीं, उनमें से कई भूमिहीन और बहुत गरीब थे. कई घर सरकारी योजनाओं के तहत बनाए गए थे. वाहन मरम्मत गैरेज, फार्मेसियों, चिकित्सा प्रयोगशालाएं, किराना स्टोर, भोजनालय और बेकरियां भी नष्ट हो गईं.

पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय द्वारा यह पूछे जाने के बाद कि क्या यह जातीय सफाया नहीं है, बुलडोजर रुका. नूंह के निवासियों ने मुझे बताया कि इन चार दिनों में नूंह के बेहद गरीब मुस्लिम लोगों ने एक पीढ़ी में जो संपत्ति बनाई थी, उसे राज्य ने बिना किसी करुणा, बिना निष्पक्षता, यहां तक कि कानून और न्याय की प्रक्रिया का दिखावा किए बिना नष्ट कर दिया. अगर दंगाई भीड़ को इन चार दिनों के लिए खुली छूट दी गई होती, तो भी उनके द्वारा किया गया नुकसान कम ही होती. सही मायनों में, एक अराजक राज्य की हिंसा दंगाई भीड़ की हिंसा की जगह ले रही थी.

2022 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा व्यापक रूप से प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लेने और उनकी संपत्तियों को ध्वस्त करने के बाद, 12 व्यापक रूप से सम्मानित न्यायाधीशों और वकीलों ने भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना को हस्तक्षेप करने के लिए लिखा था. उन्होंने लिखा, “एक सत्तारूढ़ प्रशासन द्वारा इस तरह का क्रूर दमन, कानून के शासन को उलटना और नागरिकों के अधिकारों का उल्लंघन है, इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता. यह संविधान और राज्य द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का मजाक बनाता है… पुलिस और विकास प्राधिकरणों ने जिस समन्वित तरीके से कार्रवाई की है, उससे यह स्पष्ट निष्कर्ष निकलता है कि विध्वंस सामूहिक न्यायेतर दंड का एक रूप है जो राज्य की नीति के चलते है, जो अवैध है.

द हिंदू के एक संपादकीय में स्पष्ट रूप से जातीय सफाए के संकेत के रूप में नूंह विध्वंस की खासियत का समर्थन किया गया. “कुछ ही लोग अदालत से असहमत होंगे.” इसमें कहा गया है कि दंगों का इस्तेमाल “मुस्लिम घरों को ध्वस्त करने के बहाने” के रूप में नहीं किया जा सकता है. हिंदुस्तान टाइम्स ने संपादकीय में यह भी कहा कि जब उच्च न्यायालय ने “जातीय सफाए” की बात की तो इस पर “ईमानदारी और गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है.” द ट्रिब्यून के एक संपादकीय में यह भी कहा गया है कि “बुलडोजर न्याय कानून की उचित प्रक्रिया की अवहेलना और राज्य मशीनरी के प्रतिशोधपूर्ण उपयोग” का प्रतीक है जो न्याय वितरण प्रणाली को कमजोर करता है.

प्रयागराज विध्वंस के बाद एक बार फिर कई अखबारों के संपादकीय में बुलडोजर अभियान की स्पष्ट रूप से निंदा की गई थी. इंडियन एक्सप्रेस ने कहा कि “एक संवैधानिक लोकतंत्र में हंगामे पर बुलडोजर चलाने वाला राज्य अदालत पर अपनी नाक चढ़ा रहा है, डीएम और एसपी जज और जूरी की भूमिका निभा रहे हैं- और वफादार जल्लाद हैं.” टाइम्स ऑफ इंडिया ने अदालतों से ज्यादा निर्णायक सुरक्षा की मांग की. इसमें कहा गया है कि “बुनियादी अधिकारों का उल्लंघन व्यापक है” जबकि “न्याय के पहिए बुलडोजर की पटरियों से भी धीमी गति से चल रहे हैं.” विपक्षी राजनेता और प्रमुख वकील कपिल सिब्बल ने इंडियन एक्सप्रेस में लिखा कि आज बुलडोजर की “अवैध संरचनाओं से कोई प्रासंगिकता नहीं है… इसकी मेरी मान्यताओं, मेरे समुदाय, मेरे अस्तित्व, मेरे धर्म से कोई प्रासंगिकता नहीं है.” उन्होंने आगे कहा, “मैं जिस चीज के लिए खड़ा हूं, उसका महत्व कम करना, मेरे अस्तित्व का मजाक उड़ाना और मुझे असहनीय अहंकार से कुचलना है ताकि मैं लगातार डर में जीऊं.”

इन संपादकीयों ने बुलडोजर रथ पर लगाम लगाने के लिए कुछ नहीं किया है. इन सभी लक्षित विध्वंसों की निर्लज्ज गैरकानूनीता, जो बीजेपी सरकारों के सशक्त शासन का प्रतीक बन गई है, एक स्पष्ट सबक लेकर आती है. रटगर्स विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास के एसोसिएट प्रोफेसर ऑड्रे ट्रुश्के ने कोडा से कहा, “मुस्लिम घरों को अवैध रूप से नष्ट करने के लिए बुलडोजर का इस्तेमाल करके बीजेपी इस धार्मिक अल्पसंख्यक को एक स्पष्ट संदेश भेजती है: डरो.” उन्होंने कहा, यह उन तरीकों का प्रतीक है जिसमें “भारत की निरंकुशता में मुसलमानों के साथ तेजी से दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में व्यवहार किया जा रहा है.” इंटरनेशनल कमीशन ऑफ ज्यूरिस्ट्स की मंदिरा शर्मा ने कारवां को बताया कि मुसलमानों के बीच “डर पैदा करने” के लिए विध्वंस “मुस्लिम समुदाय को चुप कराने का एक और तरीका” है.

जून 2022 में संयुक्त राष्ट्र के तीन विशेष दूतों ने भारत सरकार को “भारत में मुस्लिम समुदायों और अन्य निम्न-आय समूहों के खिलाफ किए गए जबरन निष्कासन और मनमाने ढंग से घर विध्वंस” के बारे में अपनी “गंभीर चिंता” दर्ज करने के लिए पत्र लिखा था. उनका कहना है कि ये विध्वंस “विशिष्ट ‘दंडात्मक’ प्रकृति के हैं” और ऐसा प्रतीत होता है कि “अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय के खिलाफ सामूहिक दंड के रूप में किया गया है.”

ये दंडात्मक विध्वंस फिलिस्तीनी घरों के विध्वंस की प्रतिध्वनि करते हैं, जो बेंजामिन नेतन्याहू के नेतृत्व में तेजी से बढ़े हैं. 2014 में संयुक्त राष्ट्र के एक विशेष दूत ने कब्जे वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों के “दंडात्मक घरेलू विध्वंस” की निंदा करने के लिए इसी तरह की भाषा का इस्तेमाल किया था, इसे “सामूहिक दंड का कार्य” कहा गया था जो अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन करता है. कोडा से बात करते हुए दिल्ली में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के अंगशुमन चौधरी ने “हिंदू राष्ट्रवादी मोदी सरकार के तौर-तरीकों और इजरायली राज्य फिलिस्तीन में जिस तरह हरकत कर रहा है, के बीच अद्भुत समानता” को रेखांकित किया. उनका कहना है कि “जिस तरह इजराइल ने अलग-अलग फिलिस्तीनियों के खिलाफ प्रतिशोध के रूप में बुलडोजर का इस्तेमाल किया था, उसी तरह भारत उनका इस्तेमाल “डराने वाला प्रभाव पैदा करने और विरोध करने का साहस करने वाले मुसलमानों को सजा देने” के लिए करता है. अल जजीरा में एक अन्य लेख में, रोस्किल्डे विश्वविद्यालय के सोमदीप सेन ने नूंह और भारत में लक्षित विध्वंस के अन्य स्थलों में जो कुछ हुआ, उसके साथ फिलिस्तीनी इतिहास, विरासत और संस्कृति को परिदृश्य से मिटाने के उद्देश्य से इजरायली विध्वंस के साथ घनिष्ठ समानताएं पाईं, जिसे वह “देश में मुस्लिम उपस्थिति और विरासत के सभी सबूत मिटाने” के एक ठोस प्रयास” के रूप में देखते हैं.

इजरायली सेना ने 31 अक्टूबर 2022 को जरूरी निर्माण परमिट की कमी के आधार पर कब्जे वाले वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी शहर हेब्रोन में एक इमारत को ध्वस्त कर दिया. इजरायल नियमित रूप से पूर्वी यरुशलम और कब्जे वाले वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनियों के घरों को तोड़ देता है. उनके पास जरूरी निर्माण परमिट का अभाव है. संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के अनुसार, समस्या यह है कि ऐसे परमिट हासिल कर पाना “लगभग असंभव” है. हेजेम बादर/एएफपी/गैटी इमेजिस

कारवां के पिछले लेख में मानवविज्ञानी और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई अध्ययन के प्रोफेसर थॉमस ब्लॉम हेन्सन ने बुलडोजर को “हिंदू राष्ट्रवादी परियोजना में एक नए चरण” का प्रतीक माना था. उनका कहना है कि हिंदुओं का मानना है कि उन्हें मुस्लिम शासकों के अधीन सदियों तक पीड़ा झेलनी पड़ी, जिन्हें समान रूप से दमनकारी और कट्टरवादी चित्रित किया जाता है. उन्होंने कहा, बुलडोजर को इन कथित अन्यायों के लिए “प्रतिशोध का एक रूप, एक बदले की कल्पना” के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि बुलडोजर विरोधियों को डराने, अल्पसंख्यकों को अपमानित करने और इस तथ्य का जश्न मनाने के लिए चुनिंदा और बेशर्म दंभी से राज्य सत्ता के सशस्त्रीकरण का प्रतिनिधित्व करता है कि बीजेपी कमोबेश अपनी सत्ता का इस्तेमाल पूरी तरह से दंडमुक्ति के साथ करती है, जो कानून की जवाबदेही से परे है.”

स्क्रॉल में लिखते हुए गजाला जमील उज्जैन में धार्मिक जुलूस पर थूकने के आरोपी लड़के के पिता के घर को ध्वस्त करने के “स्याह जश्न” का जिक्र करती हैं. दुख की बात है कि यह कोई असामान्य घटना नहीं रह गई है. नूंह सहित कई विध्वंस स्थलों से, जिन लोगों की इमारतें मलबे में तब्दील हो गई थीं, उन्होंने बुलडोजरों द्वारा तबाह किए जाने पर लोगों के जयकारे लगाने और नाचने की बात कही.

मुस्लिम घरों को ढहाए जाने की नुमाइशी करना, जिम क्रो अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकी पुरुषों की सार्वजनिक हत्या की याद दिलाता है. कोडा से बात करते हुए, हैनसेन ने विध्वंस का जश्न मनाने वाली भीड़ की तुलना “अमेरिका के दक्षिण में लिंचिंग पर जयकार करने वाली भीड़ या उन सभी लोगों से की जिन्होंने यूरोप में यहूदी विरोधी नरसंहार का जश्न मनाया था.”

बुलडोजर न केवल उत्तर प्रदेश में बल्कि पूरे उत्तर भारत में एक तय आबादी के बीच एक बेहद लोकप्रिय प्रतीक के रूप में उभरा है. बीजेपी की चुनावी रैलियों और विजय जुलूसों में अब अक्सर बुलडोजर शामिल होते हैं, जिनके उभरे हुए ब्लेडों पर युवा नाचते हैं. नौजवान बुलडोजर प्रिंट की टी-शर्ट और टोपी पहनते हैं. कई लोग बुलडोजर टैटू के लिए लाइन में लगे हैं. फ्री प्रेस जर्नल ने बुलडोजर टैटू को युवा पुरुषों के बीच “सनक” के रूप में वर्णित किया. ये टैटू लखनऊ में भी इसी तरह “ट्रेंडिंग” में थे. बुलडोजर स्नैक्स और बुलडोजर गाने हैं, जो हिंदुत्व पॉप गानों के बढ़ते भंडार का हिस्सा हैं. ये मुसलमानों के खिलाफ घृणास्पद गीतों से भरपूर हैं. चुनावी सभाओं में लोग बड़े गर्व से खिलौना बुलडोजर लहराते हैं.

इसका लोकप्रिय प्रतीकवाद न्यू जर्सी तक भी फैला हुआ था, जहां भारतीय मूल के अमेरिकियों ने भारत की आजादी की पचहत्तरवीं वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित एक रैली में बुलडोजर की झांकी निकाली. भारतीय मुस्लिम और प्रगतिशील भारतीय समूहों दोनों ने गुस्से में विरोध प्रदर्शन किया और आयोजकों को माफी मांगने के लिए मजबूर होना पड़ा. न्यू जर्सी के सीनेटर कोरी बुकर और बॉब मेनेंडेज ने एक संयुक्त बयान जारी कर बुलडोजर को “भारत में मुसलमानों और अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ धमकी का प्रतीक” बताया. लेकिन भारत के भीतर इस तरह की कोई प्रतिक्रिया या माफी नहीं मांगी गई.

जिस बेबाकी और आवृत्ति के साथ बीजेपी सरकारें मुस्लिम नागरिकों की संपत्तियों को बुलडोजर से ढहा रही हैं, उससे पता चलता है कि भारत के लोकतंत्र में कितनी गहरी सड़ांध है. ऐसा करके, शासक राजनीतिक वर्ग खुले तौर पर संविधान और कानून दोनों की धज्जियां उड़ा रहा है. जैसा कि हमने देखा है, यह किसी भी कानूनी प्रक्रिया का दिखावा किए बिना एक अल्पसंख्यक धार्मिक पहचान के लोगों को दंगाइयों और अपराधियों के रूप में बदनाम करता है और फिर उनकी संपत्तियों को ध्वस्त करने का आदेश देता है. हालांकि देश में कोई भी कानून राज्य को किसी की संपत्तियों को नष्ट करने का अधिकार नहीं देता है. वास्तव में राज्य ने दंगाई भीड़ का व्यक्तित्व ग्रहण कर लिया है.

भारत की लोकतांत्रिक संस्थाओं का पतन, चौधरी ने जिसे “न्याय के मौलिक स्वरूप” कहा है, उसे प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए उच्च न्यायपालिका की अनिच्छा में भी परिलक्षित होता है, भले ही यह संविधान और कानून दोनों से बाहर हो. ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है जब उच्च न्यायपालिका ने सरकारी अधिकारियों को निजी संपत्तियों के अराजक और खुले तौर पर पक्षपातपूर्ण विनाश के लिए दंडित किया हो. मुझे अब तक ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिल पाया है, जिसमें किसी भी सरकारी प्राधिकारी को कानून द्वारा अनुमत सीमा से बाहर नागरिकों को नुकसान पहुंचाने और खुले सांप्रदायिक पक्षपात के लिए अदालतों द्वारा दंडित किया गया हो या यहां तक कि उसकी निंदा भी की गई हो.

उत्तर भारत के बड़े हिस्से में लक्षित बुलडोजर विध्वंस की घटनाएं नागरिक सेवाओं और पुलिस तंत्र के पतन का भी संकेत देती हैं, जिनके लिए संविधान की रक्षा करने का काम सबसे ऊपर रखा गया है. मुझे किसी ऐसे जिला मजिस्ट्रेट या पुलिस अधीक्षक का एक भी उदाहरण नहीं मिला, जिसने अल्पसंख्यक नागरिकों के स्वामित्व वाले घरों और संपत्तियों को गैरकानूनी तरीके से ध्वस्त करने से इनकार कर दिया हो. फिर पत्रकारों की एक ऐसी पंक्ति है जिन्होंने बिना सोचे-समझे इन विध्वंसों का जश्न मनाया. एक मामले में, एक पत्रकार वास्तव में अपने कैमरामैन के साथ एक बुलडोजर पर चढ़ गईं और खुशी-खुशी विध्वंस का लाइव प्रसारण किया.

आफरीन फातिमा, जिनके पिता का घर प्रयागराज में बुलडोजरों द्वारा ढहा दिया गया था, ने कहा कि बुलडोजर राज्य से दो संदेश लेकर आते हैं. उन्होंने कारवां को बताया, “एक बात हिंदू आबादी के लिए है कि हम मुसलमानों को उनकी जगह दिखा रहे हैं.” और दूसरी मुसलमानों के लिए एक चेतावनी है, “औकात में रहो,” और अगर तुम हल्ला या विरोध करोगे तो “हम तुम्हारे घर ढहा देंगे.” वह कहती हैं कि बुलडोजर के साथ बीजेपी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने “मुसलमानों के लिए जरा भी मानवता को पूरी तरह से मिटा कर” बड़ी हिंदू आबादी को नफरत और कट्टरता परोसने का एक तरीका अपनाया है. वह विध्वंसों को “हिंदू बहुसंख्यकों के लिए एक प्रकार की अफीम” के रूप में देखती हैं.

तो, शायद यह दाग आम नागरिक पर सबसे गहरा है जो अपने पड़ोसी की संपत्तियों के गैरकानूनी विध्वंस का जश्न मनाता है. ऐसा करके, वे उस विचार का उल्लंघन करते हैं जिसे बीआर आंबेडकर ने हमें याद दिलाया था कि भाईचारा ही संविधान की आत्मा है.

 लेखक, मानवाधिकार कार्यकर्ता और स्तंभकार हैं.

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