Site icon अग्नि आलोक

संविधान, कानून और  न्यायपालिका को मिट्टी में मिलाते बुलडोजर और एनकाउंटर्स

Share

मुनेश त्यागी

      कल उत्तर प्रदेश पुलिस की एसटीएफ ने माफिया अतीक अहमद के बेटे असद और उसके शूटर गुलाम को झांसी में एनकाउंटर करके मार गिराया। पुलिस का कहना है कि ये दोनों अतीक को पुलिस काफिले पर हमला करके छुड़ाने के लिए बीते 3 दिनों से झांसी में साजिश रच रहे थे। सूचना मिलने पर एसटीएफ ने उनकी घेराबंदी की। उन दोनों ने भागने का प्रयास किया और पुलिस पर गोलियां बरसाईं, जिसके बाद जवाबी फायरिंग में यह दोनों मारे गए।

       इससे पहले 25 फरवरी 2023 को विधानसभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने बयान दिया था कि “माफिया कोई भी हो, सरकार की जीरो टॉलरेंस की नीति है, उन माफिया को मिट्टी में मिलाने का काम हमारी सरकार करेगी। पूरी मजबूती से उनसे निबटने का काम करेगी और माफिया को मिट्टी में मिला देगी।”

      इस एनकाउंटर के बाद यह मामला पूरे दिन मीडिया में छाया रहा। अधिकांश विपक्षी दलों ने पुलिस द्वारा किए जा रहे एनकाउंटर्स का विरोध किया है। पुलिस एनकाउंटर के बारे में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि झूठे एनकाउंटर करके भाजपा सरकार सच्चे मुद्दों से ध्यान भटका रही है। भाजपाई न्यायालय में विश्वास नहीं करते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस का न्यायिक प्रक्रिया में कोई विश्वास नहीं है। उनका कहना है कि इन सभी एनकाउंटर का विस्तार से इन्वेस्टिगेशन होना चाहिए और दोषियों को सख्त से सख्त सजा देनी चाहिए। सत्ता का मतलब यह नहीं है की कानूनी प्रक्रिया के बिना किसी को भी मार गिराया जाए।

      बीएसपी की सुप्रीमो मायावती ने कहा है कि इस एनकाउंटर को लेकर जनता में तरह-तरह की बातें चल रही है। उन्होंने उमेश पाल हत्याकांड के आरोपियों के साथ पुलिस मुठभेड़ पर सवाल खड़े करते हुए कहा है कि इसकी उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए। उनका कहना है कि लोगों को लगता है कि विकास दुबे कांड के दोहराये जाने की आशंका सच साबित हुई है।

       इस एनकाउंटर पर एआईएमआईएम के प्रमुख असिदुद्दीन ओवैसी ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहां है कि भाजपा संविधान का एनकाउंटर करना चाहती है। फिर अदालतों, सीआरपीसी, आईपीसी,  लोक अभियोजन और कानून के शासन की क्या जरूरत है? यदि आप गोली से ही इंसाफ करना चाहते हैं तो इन सब को बंद कर देना चाहिए।

     इस एनकाउंटर मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी उत्तर प्रदेश के सचिव हीरालाल यादव ने भी गंभीर ऐतराज जाहिर किया है। उन्होंने इस एनकाउंटर को हत्या की बताया है और उन्होंने मांग की है कि इस पूरे घटनाक्रम की न्यायिक जांच होनी चाहिए और दोषी पुलिसकर्मियों को अविलंब सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई करके सजा दी जानी चाहिए।

      इस सारे घटनाक्रम को देखकर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के 25 फरवरी 2023 को विधानसभा में दिए गए भाषण को देखकर लगता है कि उसने कानून के शासन और पूरी न्यायपालिका को धराशाई कर दिया है और उसने कानून की परवाह न करते हुए एनकाउंटर और बुलडोजर के माध्यम से कानून और पूरी न्यायपालिका को मिट्टी में मिला दिया है। इन दोनों को धराशाई कर दिया है।

       यहां पर सवाल उठता है कि आखिर मिट्टी में मिलाने का क्या मतलब है? क्या उन्हें कानून की और न्यायपालिका की कोई परवाह नहीं है? और क्या इन सारे एनकाउंटर में मारे गए लोगों के साथ न्याय किया गया है? अगर इनके खिलाफ मुकदमे लंबित है या कोई साजिश बना रहे थे तो पुलिस को उनके कारणों के पीछे जाकर इन को गिरफ्तार करना चाहिए था और कानून का सहारा लेकर, त्वरित न्यायिक प्रक्रिया का सहारा लेकर इनको सख्त कानूनी कार्रवाई करते हुए, दिन प्रतिदिन मुकदमा चलाते हुए, कानूनी दंड दिया जाना चाहिए था और इनके लिए न्यायालय से सश्रम आजीवन कारावास की मांग करनी चाहिए थी।

       इस सब को देख कर लगता है कि उत्तर प्रदेश शासन प्रशासन का कानूनी व्यवस्था और न्यायिक प्रक्रिया में विश्वास नहीं रह गया है। एक समुदाय के लोगों को चुन चुन कर मारा जाना, भाजपा की उसी नीति और सोच का परिणाम है जिसमें वह कहती है कि इस देश की समस्या के लिए मुसलमान जिम्मेदार हैं। इसीलिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पैदा करने के लिए और एक समुदाय का वोट हासिल करने के लिए, एक सम्प्रदाय विशेष के खिलाफ, इस अभियान का सहारा लिया जा रहा है।

       प्रदेश से पूरे माफियाओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के खिलाफ ऐसे ही एक्शन लेने चाहिएं। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में कुलदीप सेंगर उन्नाव के खिलाफ 28 मुकदमे हैं, बृजेश सिंह वाराणसी के खिलाफ 106 मुकदमे है, धनंजय सिंह जौनपुर के खिलाफ 40 मुकदमें हैं, राजा भैया प्रतापगढ़ के खिलाफ 31 मुकदमें हैं, डॉ उदयभान सिंह भदोही के खिलाफ 83 मुकदमें हैं, अशोक चंदेल हमीरपुर के खिलाफ 37 मुकदमें हैं, विनीत सिंह चंदौसी के खिलाफ 34 मुकदमे हैं, बृजभूषण सिंह गोंडा के खिलाफ 84 मुकदमें पिछले कई कई वर्षों से लंबित हैं। इनके खिलाफ समय से कोई कार्यवाही नहीं हो रही है। इस प्रकार यह बात सही है कि बीजेपी सरकार एक सोची समझी नीति के साथ काम कर रही है जिसमें वह हिंदू मुसलमान ध्रुवीकरण पैदा करके एक तबके को दोषी ठहराना चाहती है और इसी नीति के तहत ये एनकाउंटर जारी हैं।

    यहीं पर हम देख रहे हैं कि विशेषकर उत्तर प्रदेश सरकार पिछले दिनों से अपने विरोधियों को ठिकाने लगाने के लिए बुलडोजर का याद किया है। इसके अनुसार कथित आरोपियों के घरों  को गैरकानूनी रूप से ढ़हाया जा रहा है। हम सरकार से पूछना चाहते हैं कि जब लोगों द्वारा गैर कानूनी रूप से घर बनाए जा रहे थे तो तब सरकार का पूरा का पूरा आमला क्या कर रहा था? जब सरकारी अधिकारियों की नाक के नीचे इन घरों और बिल्डिंगों का निर्माण नहीं किया जा रहा था तब इन सरकारी अधिकारियों ने गैरकानूनी रूप से बनते हुए घरों को क्यों नहीं रोका? यहीं पर यह भी जरूरी है की सरकार ने बुलडोजर और एनकाउंटर करके अभी तक कुल कितने लोगों का एनकाउंटर किया है और कितने लोगों के घरों को बुलडोजर से ढहाया है, इसकी पूरी की पूरी सूची प्रदेश के सामने लानी चाहिए ताकि सरकार की द्वारा की गई इन गैर कानूनी हरकतों का जनता को पता चल सके और सरकार की नीतियों को लेकर जनता अपना निष्पक्ष मत बना सके।

     यहां पर स्पष्ट रूप से यह कहना जरूरी है कि हम किसी भी अपराधी को बचाने की वकालत नहीं कर रहे हैं, मगर किसी भी अपराधी को दंड देने के लिए हमारे यहां कानून का शासन है, स्वतंत्र न्यायपालिका है। पुलिस को ठोस सबूत  दाखिल करके, कानून के माध्यम से न्यायपालिका के द्वारा, अपराधियों को सजा दिलाई जाने की मजबूत और निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया अपनानी चाहिए। कानून के शासन में बुलडोजर चलाकर और एनकाउंटर करके आरोपियों को गैरकानूनी रूप से मौत के घाट उतारना, और उनके घरों को मनमाने ढंग से जमींदोज कर देना, एकदम कानून के शासन और न्यायपालिका की भावना के खिलाफ है।

     हमें यहां यहां  यह अहम बात भी याद रखने की जरूरत है कि नेशनल पुलिस कमिशन रिपोर्ट कहती है कि जेल में भेजे गए 60% कैदी, पुलिस ने मनमाने और गैर कानूनी रूप से जेल में भेजे जाते हैं। हम अदालतों में रोज देखते हैं कि जब मुलजिम अपना जमानत प्रार्थना पत्र अदालत में दाखिल करता है तो वह सबसे पहला सेंटेंस यही लिखता है कि उसे पुलिस द्वारा गैर कानूनी रूप से झूठे तौर पर फंसाया गया है और हमें यहीं पर 1987 में मेरठ के दंगों में मेरठ पुलिस और पीएसी द्वारा जनसंहार किए गए हाशिमपुरा और मलियाना हत्याकांड को भी याद रखने चाहिए। इन लोगों का एनकाउंटर करने वाले पुलिस के कितने लोगों के खिलाफ अभी तक एनकाउंटर किए गए हैं?

        हमारा कहना है कि हमारी जनता को, सरकार के इन कानून विरोधी, मनमाने और पक्षपाती रूप से किए जा रहे एनकाउंटर्स और बुलडोजर द्वारा घर गिराए जाने की कानून विरोधी हरकतों पर खुश नहीं होना चाहिए। इन सारे मामलों पर प्रदेश के उच्च न्यायालय और देश के सर्वोच्च न्यायालय को अपना स्वयं: संज्ञान लेना चाहिए, इस पर छानबीन करनी चाहिए और मनमाने और पक्षपाती एनकाउंटर के नाम पर की जा रही हत्याओं के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई करके दोषी पुलिस अधिकारियों को उदाहरणीय दंड देना चाहिए और सरकार द्वारा अपनाई गई, संविधान, कानून और न्यायपालिका को मिट्टी में मिलाते बुलडोजर और एनकाउंटर की मुहिम को परास्त करना चाहिए और इन पर तत्काल रोक लगानी चाहिए ताकि प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव, कानून के शासन और न्यायपालिका के प्रभुत्व का शासन कायम हो सके।

Exit mobile version