अग्नि आलोक

नौकरशाहीः तटस्थ आकलन

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सरदार, मोदी और ऋषि सुनक का ससुर 

कनक तिवारी 

 27 अप्रैल 1948 को उपप्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री सरदार पटेल ने वरिष्ठ नौकरशाही की कायमी के लिए प्रधानमंत्री को लिखा था। 15 अक्टूबर 1948 को संविधान सभा को गृह मंत्रालय ने प्रस्तावों तथा प्रारूप संविधान की कंडिकाओं के साथ यही पत्र भेजा। मंत्रालय ने जोर देकर लिखा कि प्रावधानों को भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय पुलिस सेवा तथा अन्य अखिल भारतीय सेवाओं के लिए संविधान में शामिल किया जाए। 

         केन्द्र और राज्यों के लोकसेवकों का उल्लेख संविधान के भाग 14 में अनुच्छेद 308 और 323 के बीच है। इण्डियन सिविल सर्विस और इण्डियन पुलिस सर्विस के अलावा इण्डियन फाॅरेस्ट सर्विस, इण्डियन एजुकेशन सर्विस, इण्डियन एग्रिकल्चरल सर्विस, इण्डियन सर्विस आॅफ इंजीनियर्स, इण्डियन वेटरनरी सर्विस, इण्डियन फाॅरेस्ट इंजीनियरिंग सर्विस और इण्डियन मेडिकल सर्विस का गठन किया। सहमति बनी कि वरिष्ठ नौकरशाही को पूरी तौर पर मंत्रिपरिषद के बदले उनकी सेवा शर्तों आदि को विधायिका के ज़रिए तय करना लोकतंत्रीय आचरण होगा। 

 वल्लभभाई के गृह मंत्रालय को लोकसेवाओं का ढांचा खड़ा करने और संभावनाओं का आकाश बुनने मशक्कत करनी पड़ी। पटेल नौकरशाही की विश्वसनीयता, कर्तव्यपारायणता और देशभक्ति के संभावनाकार थे। सरदार ने चेतावनी बिखेरी कि वरिष्ठ प्रशासकों को लोकतंत्र में दलगत राजनीति के परे होना चाहिए। उनकी सेवा शर्तों को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए। अनन्तशयनम आयंगार ने सीधा विरोध तो नहीं किया। यह ज़रूर कहा कि संरक्षण उन मौज़ूदा अधिकारियों को क्यों दिया जा रहा है जिन्होंने अपने गुरूर में जनता के साथ बहुत अन्याय किया। सरदार पटेल ने जवाबदेही व्यक्त की कि ‘‘ऐसे अधिकारियों की देशभक्ति, निष्ठा, ईमानदारी और योग्यता का कोई विकल्प नहीं मिल सकता। सार्वजनिक रूप में उनका अपमान, निन्दा या आलोचना करना अपना और देश का अनिष्ट करना है। वल्लभभाई ने कहा ‘आप दक्ष अखिल भारतीय सेवा चाहते हैं तो आपको सलाह दूंगा सिविल सेवा के अधिकारियों को आजादी से अपनी बात कहने दीजिए। यदि यह नहीं अपनाना है तो संविधान का पालन मत कीजिए। इसके स्थान पर कांग्रेस संविधान लाइए अथवा कोई अन्य संविधान लाइए या आर. एस. एस. का संविधान लाइए।‘‘ 

         आज़ादी की लड़ाई के धाकड़ नेता मुख्यमंत्री अथवा केन्द्रीय मंत्री बन जाने पर नौकरशाही पर बेतरह भारी पड़े थे। विधानचंद्र राय, प्रतापसिंह कैरो, के. कामराज,     रविशंकर शुक्ल, मोरारजी देसाई, गोविन्दवल्लभ पंत, रफी अहमद किदवई, जगजीवनराम जैसे नेताओं के बाद मझोले दर्जे के नेताओं ने क़ब्जा जमाना शुरू किया। फिर भी द्वारिका प्रसाद मिश्र, प्रकाशचंद सेठी, अर्जुन सिंह और गोविन्द नारायण सिंह तथा छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी ऐसे कार्यपालिक प्रशासक रहे जिन्होंने नौकरशाही को नियंत्रित रखा। इसके बरक्स बहुत से नौकरशाह मंत्रियों को बरगलाते और उपेक्षित करते रहे। थक हारकर देश के कुछ वरिष्ठ सेवानिवृत्त नौकरशाहों ने पूर्व कैबिनेट सचिव टी. एस. आर. सुब्रमण्यिम की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर निर्देश मांगे कि नौकरशाही की नियुक्ति और कार्य संचालन के लिए सुनिश्चित मानदंड निर्धारित किए जाएं। उस फैसले की प्रशासनिक क्षेत्रों में उत्साही तथा अनुपातहीन प्रशंसा भी हुई। 

 आज कई नौकरशाह बिकाऊ हैं और मंत्री भी। वैश्वीकरण और निजीकरण के कारण प्रशासन अप्रत्यक्ष रूप से उद्योगपतियों के हाथों में आ गया है। सरकारी क्षेत्रों के अधिकारी रिटायर होकर निजी कारबारियों के यहां घटिया कामों के लिए भी नियुक्त हो जाते हैं। दुर्गाशक्ति नागपाल और अशोक खेमका जैसे बीसियों अधिकारी राजनेताओं और उनके इशारों पर नाचने वाले वरिष्ठ नौकरशाहों द्वारा प्रताड़ित किए जाते रहे हैं। 

        कई नौकरशाह बीच में नौकरी छोड़कर या रिटायर होकर पसंदीदा राजनीतिक सरगनिसेनी पर चढ़कर केन्द्रीय मंत्री तक बने। क्या नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा, बल्कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तक सेवाकाल में पसंदीदा पार्टियों के लिए सुविधाजनक नहीं रहे होंगे? अब नौकरशाह मंत्रियों की चाटुकारिता करते हैं। उसके बाद खुला खेल ये नौकरशाह अंगरेज बुद्धि के मानस पुत्र बनकर खेलते हैं। उनके लिए जीवन सदाबहार पिकनिक है। नौकरशाह फाइलों पर हस्ताक्षरों की चिड़िया बिठाते हैं कि भ्रष्टाचार का आरोप लगने पर मंत्री की गर्दन कटे और छोटे अधिकारियों बाबुओं तक के हाथ पांव। क्या मज़ाक है सेवानिवृत्त नौकरशाहों को राज्यपाल बना दिया जाता है। श्रेष्ठ नौकरशाही के तेवर क्रूरता की हद तक भी दिखाई पड़ते हैं। 

  आइ0ए0एस0 और आइ0पी0एस0 जैसी लोकसेवक संस्थाएं दुनिया के सबसे सभ्य, बड़े, लचीले लेकिन गरीब लोकतंत्र की जनता पर भारी हैं। गोरे अंगरेजों की जगह गेहुंए अंगरेजों ने ले ली है। ‘हुजूर‘ ‘मालिक‘ ‘साहब‘ ‘सर‘ के सम्बोधन सांप की तरह फन काढ़ते हैं। नौकरशाह की आंखों से गरीब जनता के लिए करुणा के बदले साहबी ठसक का तेजाब झरता है।     अल्पशिक्षित, गैरअनुभवी और भविष्य के लिए आशंकित मंत्रियों के लिए नौकरशाही के चेहरे पर उगता रहता व्यंग्य और विद्रूप साफ साफ पढ़ा जा सकता है। नौकरशाहों में अतिरिक्त आत्मविश्वास होता है। नागरिकों से दुव्यवहार करते वे अपने प्रशासनिक औजारों की चमक और धार के प्रति आश्वस्त होते हैं। 

        आदर्श नौकरशाही के बिना प्रशासन व्यवस्था नहीं हो सकती। शेषन ने हड़काया तो वोट छापने वाले नेता सकते में आ गए। मध्यप्रदेश के आर.सी.वी.पी. नरोन्हा ने यश कमाया। सतर्कता आयुक्त विट्ठल और मुख्य चुनाव आयुक्त जेम्स लिंगदोह अपवादी स्वर के कारण पहचाने गए। चरित्र इत्र है। उसकी खुशबू नथुनों नहीं, मन और यादों में रच बस जाती है। ईमानदार नौकरशाह याद रहते हैं।

        कॉरपोरेटी नारायण मूर्ति का सुझाव कि आइपीएस आइएएस को बिजनेस स्कूलों से लेना चाहिए। केंद्र सरकार की नियुक्ति की प्रक्रिया से नहीं। यह संविधान का अपमान है बल्कि संविधान की हत्या करने की कोशिश है। सरदार पटेल ने जो आइएएस आइपीएस आदि की व्यवस्था बनाई थी। और देश में जो संविधान ने वंचितों के लिए आरक्षण का प्रावधान बनाया है। इससे मौजूदा सरकार मुक्ति चाहती है। कारपोरेट की गुलाम सरकार ने नारायण मूर्ति को अपना मुखौटा बनाया है। मोदी की शतरंज में ढाई घर भी होता है। नारायण मूर्ति को दामाद के हारने का भी तो दुख होगा। प्रधानमंत्रीजी! नौकरशाही की संवैधानिक व्यवस्था सरदार पटेल ने दी है सब का विरोध उठाकर। पढ़िए संविधान सभा के भाषण। उनकी मूर्ति लगाने से क्या होता है? उनके नाम का स्टेडियम भी नहीं रहने देते! अब सरदार पटेल के विचारों से भी खेल रहे हैं। सरदार ने अपने दम पर यह व्यवस्था नहीं बनाई होती तो हिंदुस्तान की सरकार एक दिन नहीं चल पाती 

         मज़़ाक बना रहे हैं आप लोग।

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