अग्नि आलोक

जलता सवाल : क्या नेहरू कम्युनिस्ट थे ?

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पुष्पा गुप्ता 

     _यह कुत्सित प्रचार  चलता है कि कम्युनिस्टों ने गलत इतिहास लिखा. तो क्या नेहरू कम्युनिस्ट थे इसीलिए उन्होंने जगह जगह उन्हें बैठाया और उल्टा सीधा इतिहास लिखवाया?_

          नेहरू रूसी क्रांति से प्रभावित थे , नेहरू को मॉडर्न नेशन स्टेट और मॉडर्न फिलॉसॉफिकल डिबेट्स का ज्ञान था , उन्होंने विश्व इतिहास का गहन अध्ययन किया था , उन्हें डेमोक्रेसी सेकुलरिज़्म ,  रिपब्लिक , rule of law का ज्ञान था इसलिए यह सब उनकी पोलिटी में दिखता है|

      _मगर इससे  क्या वह कम्युनिस्ट हो गए … वह बेसिकली लिबरल डेमोक्रेट थे | लिब्रेलिज़्म और  कम्युनिज़्म दो ध्रुव है and never the twain shall meet … इस तरह का सम्बंध है दोनों में |_

      नेहरू ने आजादी के फौरन बाद देश भर में चल रहे कम्युनिस्ट आंदोलनों को कैसे कुचला इसे ढूंढ कर पढ़ लेंगे तो नेहरू कितने कम्युनिस्ट थे यह पता चल जाएगा|

इंडिया में प्रिवेन्टिव डिटेंशन के पहले कैदी अपने समय के सर्वाधिक प्रतिष्ठित नेता A K गोपालन थे ….. जिनका केस सुप्रीम कोर्ट में गया , constitutional law के students इस केस को वेदमंत्र की भांति रटते है | इस केस पर कभी कोई मुद्दा उठा तो अलग से लिखूंगी| 

हां तो फिर वामियों को नेहरू जगह जगह क्यूं बैठा देंगे | असल मे इसमें वामतत्व प्रधान नही है मामला सीधा सीधा बौद्धिक संपदा है , यह सम्पदा जिसके पास थी उन्हें नेहरू ने धिक्कारा नही उसे appreciate किया | वह वामियों को नहीँ बुद्धिजीवियो का सम्मान कर रहे थे बस | 

     _वामपंथी क्यो इतना लिखते पढ़ते है यह उनसे पूछिए कि भाई क्यो बिलावजह मगज मारी करते रहते हो जब गाली ही खानी है | जब कम्युनिज़्म मर चुका है तब भी क्यो भला …..मुझे लगता है यह सनकी लोग है , क्योंकि  इनका गुरु कार्ल मार्क्स था दुनिया का सबसे बड़ा सनकी |_

       उसके सनक की सीमा तो यह थी कि उधर योरप के हर देश से भगाया जा रहा था अपनी जन्मभूमि जर्मनी से उसे तड़ीपार कर दिया गया था , लंदन में शरण लिए दिन रात लाइब्रेरी में बैठा रहता था मगर सनक का आलम ये कि जब इंडिया में पहला स्वतन्त्रता संग्राम हुआ तो वह दुनिया का इकलौता सनकी था कि वह इस संग्राम की एक एक दिन की live रिपोर्ट न्यूयॉर्क टाइम्स को भेज कर पब्लिश करवा रहा था | जो बाद में एक किताब की शक्ल में शाया हुई | 

   भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का दस्तावेजीकरण सबसे पहले पूरी दुनिया में किसी ने किया तो वह यही सनकी कम्युनिस्ट कार्ल मार्क्स था | न किसी अंग्रेज ने , न किसी हिन्दू  ने , न किसी मोमिन ने , किसी का इतिहासबोध ऐसा नही था कि इसका दस्तावेजीकरण करता |

      _आखिर मार्क्स को इससे मिलना भी क्या था , बस सनक थी पूरी दुनिया मे जो कुछ भी हो रहा है उसे लिखने पढ़ने जानने बूझने की._

      तो अब समझ मे आ गया होगा कि वामियों को लिखने पढ़ने का रोग कहां से लगा , यह उनकी genetic disease है भाई …. इसका कोई निदान नही है , ये लाइलाज मर्ज है| 

       _यही कारण है कि हर जगह जहां जहां बौद्धिक प्रोजेक्ट शुरू होगा तो वहां नींव में इनका ही पत्थर मिलेगा , उसे उखाड़ सको तो उखाड़ कर नई ईंट लगा कर नई इमारत बना लो._

        बस देखना कि नींव इतनी कमजोर न हो कि पृथ्वीराज मोहम्मद गोरी को ही मार दे और उसके गुलाम ऐबक से हार जाएं , फिर ऐबक को भी मारना पड़ेगा , रजिया को भी … लेकिन ये वो रजिया नही है जो गुंडों में फंस जाती है , ये छक्के छुड़ाने वाली रजिया थी ….. बच के रहना इससे वरना महावीरों को एक कनीज का शर्मसार होना पड़ेगा | 

          _बाई द वे सावरकर ने भी 1857 पर मोटी किताब लिखी है लेकिन आज का सच्चा हिन्दू उसमे से कभी कोई कोटेशन नही चिपकाता ….कभी कोई भक्त मिल जाये तो उससे पूछियेगा कि उस ध्वजा का रंग रूप क्या था जो पहले स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानियों ने उठाया था , उनका घोषणा पत्र किन किन भाषाओं मे था …..सब सावरकर ने ही लिखा है लेकिन ये उस सावरकर को कभी कोट नही करेंगे |_

      एक ठो ढंग का वही बुद्धिजीवी मिला था इन्हे वह भी इन्हें अपनी समग्रता में हजम नही होता | 

    _यही सब कारण है जो वामियों को इतिहास लिखना पड़ता है , नेहरू के विरोधी होने के बावजूद._

    {चेतना विकास मिशन)

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