मोदी की गारंटी ऐसे ही पूरी नहीं होती। इसके लिए भाजपा और मोदी भक्त किस-किस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। वह नहीं देखते। साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ अपनाते हैं। ईवीएम में हेरफेर से लेकर मतों की हेराफेरी तक सब कुछ करते हैं। मोदी भक्त कहते हैं मोदी को जिताने के लिए कुछ भी करेगा।”कुछ चीजें मोदी से नहीं भी मुमकिन होती हैं। जैसे हर नागरिक के खाते मेें 15 लाख रुपये का वादा करते हैं, पर मुमकिन नहीं होता। हर वर्ष दो करोड़ बेरोजगारों को नौकरी देने का प्रोमिस करते हैं, पर मुमकिन नहीं हो पाता। महंगाई उन्हें कांग्रेस के शासनकाल में दिखती है।
राज वाल्मीकि
“भाई, भाजपा और मोदी जी ने धारा 370 हटाई है। लोकसभा चुनाव में उन्हें 370 सीटें तो उनकी इसी उपलब्धि के लिए मिल जानी चाहिए। और चाहिए क्या, उन्हें मिलेंगी ही। आखिर देश की प्रजा इतनी अहशान फरामोश तोड़े न है कि अपने राजा को इतनी सीटें भी न दे बल्कि इससे ज्यादा ही देगी।” चंदू चौरसिया की पान की दुकान पर पान की जुगाली करते हुए एक सज्जन कह रहे थे।
दूसरे सज्जन उनकी हां में हां मिलाते हुए बोले कि- “भाई लोकसभा चुनाव में अकेले भाजपा द्वारा 370 सीटों की गारंटी किसी ऐरे-गैरे की नहीं देश के प्रधानमंत्री मोदी जी की है। और मोदी है तो मुमकिन है। तीसरी बार भी वही प्रधानमंत्री बनेंगे, यह भी मोदी की गारंटी है। भई मोदी की गारंटी है तो मुमकिन है। और मुमकिन क्या तय मानिए कि वही प्रधानमंत्री बनेंगे। मोदी जी कह रहे हैं कि अर्थव्यवस्था में भारत विश्व में तीसरे नंबर पर होगा तो जरूर होगा। आखिर मोदी की गारंटी है।”
तीसरे सज्जन थोड़े से चिढ़ कर बोले- “मोदी की गारंटी ऐसे ही पूरी नहीं होती। इसके लिए भाजपा और मोदी भक्त किस-किस तरह के हथकंडे अपनाते हैं। वह नहीं देखते। साम, दाम, दंड, भेद सब कुछ अपनाते हैं। ईवीएम में हेरफेर से लेकर मतों की हेराफेरी तक सब कुछ करते हैं। मोदी भक्त कहते हैं मोदी को जिताने के लिए कुछ भी करेगा।”
“जो भी कहो, मोदी ने देश को देश की अर्थ व्यवस्था को बहुत ऊंचाई तक पहुंचाया है।”
“जरूर ऊंचाईयों तक पहुंचाया है, इतनी ऊंचाईयों तक कि मोदी सरकार के दस वर्ष के शासन काल में डॉलर के मुकाबले रुपया निरंतर नीचे गिरता जा रहा है। और गिरता जाएगा। आखिर मोदी है तो मुमकिन है।”
उपरोक्त वार्तालाप मैंने तब सुने जब मैं सुबह-सुबह दूध लेने दीपक डेयरी पर गया। बता दूं कि हमारे मोहल्ले के चौक पर जिसे आप जनता चौक या जनचौक कह सकते हैं वहीं पर दीपक डेयरी है। उसी के बगल में चंदू चौरसिया का ‘चौरसिया पान भंडार’ है। चंदू जी स्वभाव से बहुत बातूनी हैं। मोदी जी के परम भक्त हैं। अपने ग्राहकों से कोई न कोई मोदी की उपलब्धि को लेकर चर्चा छेड़ देते हैं।
चंदू जी के पान भंडार पर पान, बीड़ी, सिगरेट, गुटखा आदि के साथ मौजूदा दौर की राजनीतिक चर्चा फ्री मिलती है। वहां लोग जुट जाते हैं पान बीड़ी सिगरेट गुटखा खरीदते खाते हैं और चंदू द्वारा शुरू की गई चर्चा में शामिल हो जाते हैं।
चौरसिया पान भंडार के पास ही सर्दी से बचने के लिए कुछ लोग अलाव जला लेते हैं। हाथ सेंकते हैं और चंदू द्वारा छेड़े गए विषय पर अपनी-अपनी राय देने लगते हैं और चर्चा शुरू हो जाती है। मेरे जैसे लोग दीपक डेयरी से दूध लेकर उस चर्चा के प्रत्यक्षदर्शी गवाह बन जाते हैं।
एक अन्य सज्जन बोले- “भाई इतने कॉन्फिडेंस वाला आज तक देश को कोई अन्य प्रधानमंत्री नहीं मिला जो चुनाव से पहले ही खुद के जीतने की गारंटी देने लगे। और जीतने की ही नहीं बल्कि उसकी पार्टी की कितनी सीटें आएंगी और उसके गठबंधन की सीटें मिलाकर चार सौ पार के आंकड़े की गारंटी देता हो। लोकसभा चुनाव जैसे उसके घर की खेती हो।”
इस जनता चौक या कहें जनचौक पर सारे मोदी समर्थक ही नहीं होते कुछ लोकतंत्र समर्थक भी होते हैं।
एक सज्जन बोले- “भाई मोदी जी ने नए संसद भवन से सिंगोल युग की शुरूआत कर दी है। खुद काे राजा और जनता को प्रजा अघोषित रूप से घोषित कर दिया है। सब जानते हैं कि जहां राजा-प्रजा होते हैं वहां राजा ही सर्वोपरि होता है। प्रजा दासी होती है। राजा जो बोल देता है प्रजा उसका बिना सोचे-समझे निर्विरोध पालन करती है।..
.. राजा कहता है कि थाली बजाओ, प्रजा थाली बजाने लगती है। वह कहता है दीप जलाओ, वह दीप जलाने लगती है। वह कहता है रामज्योति के रूप फिर दीप जलाओ, प्रजा फिर दीप जलाने लगती है। देश अंग्रेजों का गुलाम रहा, पर प्रजा मोदी जी की गुलाम है।”
एक मोदी भक्त उनका विरोध करते हुए कहते हैं- “ऐसा नहीं है, प्रजा गुलाम नहीं मोदी-मुरीद है। उनकी उपलब्धियों की कायल है। अब देखिए पांच सौ साल तक रामलला बेघर रहे। मोदी जी ने उन्हें घर दिया और वह भी ऐसा-वैसा नहीं भव्य-दिव्य राम मंदिर। राम भी उनका अहसान मानते होंगे। उनके आभारी होंगे।..
.. अपना घर मिलने पर कितना सुकूं मिलता है, कितनी खुशी मिलती है, यह उन लोगों से पूछिए जिनका अपना घर नहीं है। अपना घर एक सपना है। रामलला को अपना घर मिलेगा यह मुमकिन नहीं लगता था। पर मोदी है तो मुमकिन है।”
“देखिए, कुछ चीजें मोदी से नहीं भी मुमकिन होती हैं। जैसे हर नागरिक के खाते मेें 15 लाख रुपये का वादा करते हैं, पर मुमकिन नहीं होता। हर वर्ष दो करोड़ बेरोजगारों को नौकरी देने का प्रोमिस करते हैं, पर मुमकिन नहीं हो पाता। महंगाई उन्हें कांग्रेस के शासनकाल में दिखती है।”
वे बाकायदा फिल्मी गानों का उल्लेख करते हैं कि ‘महंगाई मार गई, महंगाई डायन खाय जात है’ जैसे गाने कांग्रेस के शासनकाल में बने। वे देश की जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटका कर मंदिर पर केंद्र कर देते हैं। हुकूमत अपनी कमियां छुपाने के लिए उन पर दूसरे मुद्दों का पर्दा डाल देती है। मरहूम शायर मुनव्वर राणा शेर कह गय हैं कि –
तवायफ़ की तरह अपने ग़लत कामों के चेहरे पर
हुकूमत मंदिरो-मजिस्द का पर्दा डाल देती है
हुकूमत मुंह भराई के हुनर से खू़ब वाक़िफ़ है
ये हर कुत्ते के आगे शाही टुकड़ा डाल देती है।”
“जाने दीजिए यदि मोदी जी एकाध वादा पूरा नहीं कर पाए तो, पर मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं कि मोदी जैसा प्रधानमंत्री इस देश में न कभी हुआ और न कभी होगा। ये देश का सौभाग्य है कि उन्हें मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिला है। वे सनातन धर्म यानी हिंदू धर्म को देश का धर्म और भारत को हिंदू राष्ट्र बनाकर छोड़ेगे। फिर मुसलमान और अन्य अल्प संख्यक हम हिंदुओं की बराबरी नहीं कर पाएंगे।”
“अमां छोड़िए, भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इस देश का कोई धर्म नहीं है। चाहे कोई हिंदू हो या मुसलमान देश के हर नागरिक को देश का संविधान समान अधिकार देता है। यह देश जितना हिंदुओं का है उतना ही मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों का है। इस देश को आज़ाद कराने में सभी धर्मों के लोगों ने शहादत दी है।”
सभी का खून है यहां की मिट्टी में शामिल
किसी के बाप का हिंदोस्तान थोड़े है।
ऐसी बहसों के बीच लोगों को याद आता है कि मोदी, देश, हिंदू-मुसलमान अपनी जगह हैँ। पर अपनी रोजी-रोटी कमाना सबसे ज्यादा जरूरी है। और वे अपने-अपने काम के लिए वहां से खिसकने लगते हैं। जब वे किसी रेहड़ी वाले से फल-सब्जी खरीदते हैं या दुकान बाजार से कोई सामान खरीदते हैं तब कोई ध्यान नहीं देता कि खरीदने वाला या बेचने वाला हिंदू है या मुसलमान या किसी अन्य संप्रदाय का। मोदी भक्त है या मोदी विरोधी।
रोजमर्रा के काम बिना किसी का धर्म-संप्रदाय जाने चलते हैं। आमजन की जिंदगी ऐसे ही चलती है। पर ऐसे जनचौकों पर जहां लोग पान बीड़ी सिगरेट खरीदने आते हैं उनमें आज की राजनीति पर या राजनेताओं की नौटंकियों-तमाशों पर चर्चा करने की हम आदत देखते हैं। और चचा गालिब के शेर में थोड़ा परिवर्तन कर कहें तो बनाकर फकीरों का हम वेश गालिब तमाशा-ए-अहले सियासत देखते हैं।