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सीएएः क्या मोदी सरकार का चुनावी लाभ का मकसद…

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ओमप्रकाश मेहता

क्या नरेन्द्र भाई मोदी ने अपनी राजनीतिक दूरदर्शिता का परिचय देते हुए अपनी सरकार के दूसरे कार्यकाल के श्रीगणेश पर ही तीसरे कार्यकाल की इबारत लिख दी थी? यह सवाल आज इसलिए पूछा जा रहा है क्योंकि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्री देश भारत में सांसद द्वारा पारित नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) अब इक्यावन महीनों बाद लागू किया गया, जिसके माध्यम से मोदी ने अपनी अगली महाविजय की इबारत लिख दी,

अब पूरे देश में एक साथ इस कानून के लागू कर दिए जाने से पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बंगलादेश के उत्पीडन पीडित गैर मुस्लिम लाखों नागरिक जो पिछले दस वर्षों से शरणार्थी के रूप में भारत में रह रहे थे, उन्हें अब कानूनी रूप से भारतीय नागरिकता प्राप्त हो सकेगी। यद्यपि संसद द्वारा साढ़े चार साल पहले पारित इस कानून के इतनी देरी से एन-चुनाव के पूर्व लागू करने पर मोदी आलोचना के पात्र बन रहे है, किंतु ‘देर आए-दुरूस्त आए’ की तर्ज पर अब सही भी माना जा रहा है। जब यह कानून संसद ने पारित किया था तब यह दुष्प्रचार किया गया था कि उस कानून के लागू होने पर देश के मुसलमानों की नागरिकता छीन ली जाएगी, इस दुष्प्रचार में मात्र सिविल सोसायटी के लोग ही नहीं; बल्कि कई राजनीतिक दल भी शामिल थे,

वे जानबूझकर मुस्लिम समुदाय को अपनी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धी के खातिर भड़काना चाहते थे, जबकि इस कानून की, किसी की भी नागरिकता छीनने से कोई लेना-देना नही है। उल्टे नागरिकता हासिल करवाने का प्रावधान है। पिछले चार सालों से भी अधिक से जो लाखों शरणार्थी भारत में विस्थापित की जिन्दगी जी रहे थे, अब वे कानूनी रूप से भारत के नागरिक बन सकेगें। यह भी एक तथ्य है कि अफगानिस्तान हिन्दुओं से करीब-करीब खाली हो चुका है और पाकिस्तान व बंगलादेश में हिन्दू, सिख, जैन, पारसी आदि काफी उत्पीड़न के शिकार है। उनके सामने अपनी जान बचाने के लिए मजबूरी में मुस्लिम धर्म स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है, अब ये उत्पीड़न झेल रहे लोग भारत आकर यहां के कानूनी नागरिक बन सकेगें।


अब यदि इस कानून के इतिहास की बात करें तो संसद से यह कानून ग्यारह दिसम्बर 2019 को पारित हुआ था, अगले ही दिन इस पर राष्ट्रपति जी की मोहर भी लग गई थी, लेकिन उस समय इस कानून के विरोध में दिल्ली में दंगा भड़क गया था, इसलिए उस समय सरकार ने इसे लागू नही किया, फिर कोविड महामारी ने भी इसे लागू करने में अवरोध पैदा किया, हमारा कानून कहता है कि संसद द्वारा पारित कोई भी कानून राष्ट्रपति जी की मंजूरी के बाद छः माह के अंदर उसके नियम अधिसूचित हो जाना चाहिए, यदि ऐसा नहीं होता है तो संसद के दोनों सदनों की समय विस्तार संबंधी अनुमति लेनी होती है, इस कानून के नियमों को अधिसूचित करने में वर्ष 2020 से आठ बार गृह मंत्रालय ने संसदीय समितियों से नियमित अंतराल पर समय विस्तार लिया, तब अब कहीं जाकर इसे लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जा सकी।


यद्यपि केरल और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारें अभी भी इसका विरोध कर अपने राज्यों में इसे लागू नहीं करने की घोषणाऐं कर रही है, लेकिन कानून बन जाने के बाद इसे लागू करने की उनकी भी मबजूरी होगी, वैसे भी पाक, बंगलादेश व अफगानिस्तान के शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान इस कानून के तहत राज्यों को नहीं बल्कि केन्द्र सरकार के ही पास है ‘‘लॉनलाईन’’ बना दिया है और पोर्टल भी तैयार कर लिया है। पात्र विस्थापितों को पोर्टल पर ‘‘ऑनलाईन’’ नागरिकता के लिए आवेदन करना होगा। इस प्रकार इस कानून का सफर नौ दिसम्बर 2019 से शुरू हो गया और अब यह कानून बनकर हमारे सामने है।
अब इस कानून के तत्काल प्रभाव से लागू कर दिए जाने से राजनीतिक रूप से मोदी सरकार को कितना फायदा होगा या विरोधी दलों के स्वर कैसे रहेगें, यह तो भविष्य के गर्भ में है, किंतु यह तय है कि इस नागरिकता संशोधन कानून के पीछे मोदी सरकार का कोई तो चुनावी लाभ का मकसद होगा ही, तभी इसे आकस्मिक रूप से तुरंत-फुरत लागू किया गया?
अब इस कानून को लेकर प्रतिपक्षी दलों का अगला कौन सा कदम होगा, यह भी नागरिकों की एक उत्सुकता है। अब जो भी हो, पिछले कई वर्षों से बंगलदेश, पाकिस्तान या अफगानिस्तान से भारत आकर रहने वाले गैर मुस्लिम नागरिकों को तो कानूनी रूप से नागरिकता हासिल हो ही गई।

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