नई दिल्ली। वर्ष 2023 में अब तक सीएजी की 22 रिपोर्ट आ चुकी है। इनमें से कई ऑडिट रिपोर्टों का भारतीय मीडिया द्वारा संज्ञान लिया गया, और सरकार के संबंधित मंत्रालयों पर गंभीर आरोप भी लगाये गये। हालांकि मीडिया और विपक्षी पार्टियों ने जिस एक रिपोर्ट को सबसे अधिक हाईलाइट किया था, वह थी रिपोर्ट संख्या 19, भारतमाला रोड प्रोजेक्ट, जिसमें गुरुग्राम-मानेसर शहरी योजना के तहत एनएचएआई ने ईपीसी मोड पर 29 किमी लंबे राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण कार्य अनुमोदित 18.20 करोड़ रुपये प्रति किमी की जगह 250.77 करोड़ रुपये प्रति किमी की लागत से किया है। हालांकि, 264 पेज की इस रिपोर्ट का यह सिर्फ एक छोटा सा हिस्सा मात्र है, लेकिन चूंकि आंकड़े इतने अधिक विरोधाभासी और अविश्वसनीय थे, कि सिर्फ इसी मुद्दे पर कुछ दिन हंगामा हुआ, लेकिन अभी तक विपक्ष इस मुद्दे को प्रमुखता से नहीं उठा सका है।
सीएजी की ऐसी 22 रिपोर्ट जारी की जा चुकी हैं, लेकिन सिर्फ एनएचएआई में हुई अनियमितताओं को हाईलाइट करने के पीछे कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि यह मंत्रालय चूंकि नितिन गडकरी के पास है, और गडकरी मोदी मंत्रिमंडल में एकमात्र ऐसे नेता हैं जो अभी तक आत्मसमर्पण नहीं किये हैं। इसलिए 2014 के बाद आज सीएजी का कुछ खास राज्यों या खास विभागों पर विशेष जोर के पीछे की वजह को भी ध्यान में रखना आवश्यक होगा।
जनचौक ने अपने पाठकों को समय-समय पर सीएजी की रिपोर्ट और उसके माध्यम से वित्तीय अनियमितताओं की जानकारी साझा करने का प्रयास किया गया है। लेकिन आज कोलकाता से प्रकाशित होने वाले अंग्रेजी दैनिक ‘द टेलीग्राफ’ अखबार ने सीएजी की रिपोर्ट संख्या 21, ‘Financial audit of the Accounts of Union Government’ जिसका प्रकाशन 1 अगस्त, 2023 को ही हो गया था, को अपने पहले पेज की प्रमुख खबर बनाकर देश में चर्चा का विषय बना दिया है। सीएजी की इस रिपोर्ट पर पहली बार मीडिया का ध्यान क्यों गया और विपक्षी पार्टियों द्वारा क्या वास्तव में जिम्मेदार विपक्ष की भूमिका निभाई भी जा रही है या नहीं, को लेकर एक बड़ा सवाल आज खड़ा हो गया है। इसलिए हमारी कोशिश होगी कि अपने पाठकों के लिए हम सिलसिलेवार सीएजी की विभिन्न रिपोर्टों पर आवश्यक टिप्पणी कर, हिंदी भाषी प्रदेशों को इस जानकारी से परिचित करायें।
सीएजी रिपोर्ट के इस खुलासे के बाद विभिन्न हलकों से लगातार प्रतिक्रिया आ रही हैं। एक्स यूजर हरमीत कौर ने अपनी टिप्पणी में इसे काफी हद तक समेटा है, “2014 से पहले तक इसी सीएजी की रिपोर्ट को पवित्र समझा जाता था, लेकिन अब कोई भी मीडिया और अखबार इसे कवर नहीं कर रहा है, जिसमें अज्ञात रिपॉजिटरी में ‘कैश डायवर्जन’ धन के डायवर्जन और जानकारी का खुलासा न करने को लेकर केंद्र सरकार के खातों पर संदेह जताया गया है। केंद्र सरकार के खातों में कुछ न कुछ तो गड़बड़ है- और इस स्थिति को लंबे समय तक खराब रहने दिया गया है और गड़बड़ी को सुलझाने का कोई वास्तविक प्रयास नहीं किया गया है।
पिछले महीने, केंद्र के खातों के लेखा परीक्षक-नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने एक रिपोर्ट पेश की है, जिससे पता चलता है कि कैसे नरेंद्र मोदी सरकार और उसके वित्तीय प्रबंधकों द्वारा सार्वजनिक धन के गुप्त भंडार के रूप में कोने तलाश लिए हैं। धन को कुछ अच्छे काम के लिए वित्त पोषित कार्यक्रमों एवं संसद द्वारा अनुमोदित नकदी निधियों के उद्देश्यों से परे कर दिया गया है, जिसके बारे में सरकार सार्वजनिक रूप से कुछ भी खुलासा नहीं करना चाहती है। यहां तक कि वह सीएजी पर भी निशाना साध रही है, जिसने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की बहीखाता पद्धतियों को लेकर कई तीखी टिप्पणियां की हैं।
ऐसे तीन फंड्स हैं जिनमें सरकारी प्राप्तियां जमा की जाती हैं, और जहां से इसका निपटान किया जाता है: इसमें एक है, भारत की समेकित निधि (कंसोलिडेटेड फण्ड), जिसमें इसके सभी राजस्व, ऋण और ऋण वसूली से उत्पन्न प्राप्तियां शामिल हैं। दूसरा, एक छोटी आकस्मिक निधि है जो कुछ अप्रत्याशित खर्चों से निपटती है, जिसका मौजूदा कोष 30,000 करोड़ रुपये तक सीमित है। अंत में, सार्वजनिक खाता होता है जिसमें सरकार द्वारा ट्रस्ट में पैसा रखा जाता है। ये वे फंड होते हैं जिनका मालिकाना वास्तव में सरकार के पास नहीं होता, जैसे भविष्य निधि एवं लघु बचत संग्रह।
लेकिन अंतरिक्ष विभाग- जो सीधे प्रधानमंत्री के अधिकार क्षेत्र में आता है- में एक अकल्पनीय काम हुआ है। इसने बैंकों के 16 चालू खातों में 15494 करोड़ रुपये की राशि जमा की है। सीएजी ने “सार्वजनिक खाते की देनदारियों की सही तस्वीर” पेश न करने के लिए भी सरकार को फटकार लगाई है- और इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया है कि सरकार द्वारा अपने कर्ज के खाते में जहां 601 लाख करोड़ रुपये की देनदारियां दिखाई गई है, जबकि वास्तविक आंकड़ा 623 लाख करोड़ रुपये है इस हेराफेरी के जरिये सरकार अपनी छोटी बचत देनदारियों को छिपाकर देनदारी में 21,560 करोड़ रुपये कम दिखाया गया है।”
सीएजी की इस 142 पेज की रिपोर्ट में केंद्र सरकार के खातों (वित्त वर्ष 2021-22) की जांच की गई है सीएजी ने केंद्रीय वित्त के अवलोकन में बताया है कि वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक देश का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) स्थिर मूल्यों पर 1,47,35,515 करोड़ रुपये (आधार वर्ष 2011-12) था जिसे मौजूदा मूल्य पर 2,36,64,637 करोड़ रुपये आंका गया है। इस प्रकार वर्ष 2020-21 की तुलना में इन दोनों मामलों में क्रमशः 8.68 प्रतिशत और 19.51 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जीडीपी के इन आंकड़ों से प्रति व्यक्ति आय का निर्धारण किया जाता है और आजकल हम जीडीपी के आंकड़ों के सहारे ही खुद को विश्वगुरु बनने की राह में अग्रणी बता रहे हैं। लेकिन इस जीडीपी में देश के नागरिकों की हिस्सेदारी कितनी असमान है और जीडीपी की तुलना में केंद्र सरकार की कुल प्राप्तियां, विभिन्न योजनागत एवं गैर-योजनागत मद में बजट खर्च की पड़ताल से हमें जानकरी मिल सकती है कि देश की दशा-दिशा वास्तव में क्या है।
सीएजी की इस रिपोर्ट में ऐसे कई विषयों को छुआ गया है, और जहां-जहां पर ऑडिट रिपोर्ट में अनियमितताएं पाई गई हैं, उसे हाईलाइट किया गया है, जिससे संकेत मिलता है कि सरकार और उसके विभिन्न मंत्रालय कितनी लापरवाही बरत रहे हैं। आइये एक नजर उन बिंदुओं पर डालते हैं, जिनको सीएजी द्वारा विस्तार में जाने से पहले अपनी रिपोर्ट में ओवरव्यू किया गया है:
• वर्ष 2021-22 में कुल राजस्व व्यय (34,68,189 करोड़ रुपये) का सबसे बड़ा घटक ब्याज के भुगतान पर किया गया है, जो 8,28,253 करोड़ रुपये था यह कुल राजस्व व्यय के 23.88 प्रतिशत के बराबर है, और पिछले वर्ष की तुलना में इसमें 14.88 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिली है। आगामी वर्षों में केंद्र सरकार के कर्ज और ब्याज की राशि में और भी वृद्धि की संभावना है। 2014 के बाद सरकार के कर्ज में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिसे विभिन्न समाचारपत्रों द्वारा समय-समय पर प्रकाशित भी किया गया है, लेकिन सीएजी की रिपोर्ट भी यदि इसकी पुष्टि करती है तो कर्ज के भंवर में फंसे देश को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि उसकी विकासोन्मुख योजनाओं से देश का भला होने के बजाय बुरा ज्यादा हो रहा है, और पीएम, राष्ट्रपति और सांसदों के लिए किये जाने वाले भारी-भरकम खर्च (भूमिगत मार्ग, एयरक्राफ्ट, वाहन, विमान, नया संसद और निवास) एवं अन्य भत्तों के साथ-साथ गैर-जरुरी हजारों करोड़ रुपये की अनेकों परियोजनाओं के स्थान पर श्रम बहुल उद्योग-धंधों पर जोर देकर ही बड़े पैमाने पर देश की आम जनता के हाथों में धन मुहैया कराकर ही देश में बड़े पैमाने पर उद्योगों और उपभोक्ता वस्तुओं एवं एफएमसीजी सेक्टर में तेजी लाना संभव होगा।
• सीएजी की रिपोर्ट इस बात का भी खुलासा करती है कि सरकार के पास वर्ष 2021-22 में जमा होने वाले कुल कर संग्रह 27,09,315 करोड़ में उपकर (cess) संग्रह 4,78,680 करोड़ रुपये के साथ कुल टैक्स संग्रह में cess की भूमिका 17.67% के उच्च स्तर पर बनी हुई है। सरकार देश के नागरिकों से समय-समय पर विभिन्न आपदा, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में विशेष पहल के नाम पर उपकर (cess) लाद दिया करती रही है। इनमें से विभिन्न cess आज भी वसूले जा रहे हैं, लेकिन जिन मदों में उन्हें खर्च किया जाना चाहिए वह काम सरकार नहीं कर रही है और जनता से उपकर वसूल कर फंड को अन्य कार्यों में खर्च करना, फंड का दुरूपयोग करना ही नहीं बल्कि अपारदर्शी आर्थिक नीतियों पर चलना और एक प्रकार से विश्वास को भंग करना है।
• केंद्र सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान सब्सिडी पर व्यय 5,02,226 करोड़ रुपया किया गया, जो राजस्व व्यय का 14.48 प्रतिशत था लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि सीएजी ने अपनी जांच में पाया है कि पिछले वर्ष की तुलना में सब्सिडी पर इस वर्ष 33.47 प्रतिशत की रिकॉर्ड कमी आई है। ऐसे में मोदी सरकार फिर कल्याण किसका कर रही है, यह एक विचारणीय प्रश्न है।
• विभिन्न खातों एवं वित्तीय रिपोर्टिंग प्रथाओं की गुणवत्ता की जांच में सीएजी ने पाया है कि विभिन्न गारंटियों की वार्षिक समीक्षा करने पर पता चलता है कि गारंटी शुल्क की कम वसूली,कोई वसूली नहीं, दंडात्मक गारंटी शुल्क की प्राप्तियों का न होना, दस्तावेज़ीकरण/ गारंटियों के मुद्दों और implied (अंतर्निहित) गारंटियों की वसूली पर ध्यान नहीं दिया गया है।
• सीएजी के यूजीएफए वक्तव्य 11 की समीक्षा में पाया गया है कि केंद्र सरकार के द्वारा किये गये निवेश के विवरण से पता चलता है कि सार्वजनिक निगमों के इक्विटी शेयरों की संख्या से संबंधित जानकारियों और विभिन्न संस्थाओं के वार्षिक खातों के संदर्भ में शेयरहोल्डर्स के निवेश का प्रतिशत में आंकड़े बेमेल हैं इसमें बोनस शेयरों का गैर-लेखांकन (non-accounting) और शेयरधारकों के लाभांश के भुगतान में कमी इत्यादि खामियां उजागर होती हैं, जिसे टेलीग्राफ अखबार ने भी प्रमुखता से उठाया है।
• सस्पेंस खातों में सिर्फ शुद्ध बैलेंस को दर्शाया गया है जबकि बकाया राशि के लिए डेबिट और क्रेडिट बैलेंस के तौर पर अलग-अलग खुलासा नहीं किया गया है। परिणामस्वरूप, सस्पेंस अकाउंट (सिविल) के अंतर्गत 54.52 प्रतिशत और सार्वजनिक क्षेत्र के तहत आने वाले बैंकों में बैलेंस में 72.26 प्रतिशत तक का फर्क बना हुआ है। यदि इन राशियों को समायोजित नहीं किया जाता है, तो सस्पेंस खाते के तहत बैलेंस बढ़ता रह सकता है, और एकाउंट्स सरकारी प्राप्तियों एवं व्यय के बारे में भ्रामक तस्वीर पेश करते रहेंगे वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक उलटे बैलेंस के ऐसे 67 मामले थे, जिनमें से 45 मामले 5 वर्ष से भी अधिक पुराने हैं, और सबसे पुराना मामला तो 45 साल से अनसुलझा पड़ा है।
• वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों एवं अन्य संस्थाओं को दी गई 7,63,693 करोड़ रुपये की राशि बकाया बनी हुई है इनमें से 66,141 करोड़ रुपये की राशि कई वर्षों से या तो लंबित है या ब्याज के रूप में यह राशि बढ़ती जा रही है।
• वित्त वर्ष 2021-22 के लिए यूजीएफए में अतिरिक्त जानकारी का खुलासा करने हेतु कुल 258 फ़ुटनोट शामिल किए गए थे। हालाँकि, इन फ़ुटनोट्स में पूरी तस्वीर का खुलासा नहीं होता है, इससे केंद्र सरकार के वित्त की पूर्ण प्रकृति और समायोजन के निहितार्थ सहित उसके द्वारा इन विसंगतियों को दूर करने के लिए की गई कार्रवाई के बारे में खुलासा नहीं किया गया है। केंद्र सरकार के वित्त खातों में दिखने वाले इन आंकड़ों के संबंध में प्रकटीकरण/अतिरिक्त जानकारी के महत्व को ध्यान में रखते हुए, सीएजी की ओर से वित्त वर्ष 2022-23 के लिए यूजीएफए में ‘नोट्स टू अकाउंट्स’ को शामिल करने की सिफारिश की गई है।
• बजटीय प्रबंधन के तहत वित्त वर्ष 2021-22 के लिए विनियोग (Appropriation Accounts) खातों के तहत 101 मांगों के लिए कुल मिलाकर 1,24,36,009 करोड़ रुपये के प्रावधानों को मंजूरी दी गई थी, लेकिन इस पर कुल व्यय 7,64,721 करोड़ रुपये किया जा सका, और इन खातों में 1,16,71,288 करोड़ शेष बचे रह गये।
हालांकि, रिपोर्ट की गहराई में जाकर ही असली जड़ को पकड़ा जा सकता है, जिसे देखने पर पता चलता है कि सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कृषि बीमा जैसे विभिन्न मदों के लिए आवंटित बजट के मद में से बड़े हिस्से को खर्च ही नहीं किया है। केंद्र सरकार के खातों की वित्तीय ऑडिट की सीएजी की रिपोर्ट अभी जारी है, शेष अगले अंक में इसे जारी रखा जायेगा।