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विरोधियों को ‘अर्बन नक्सल’ कहना मोदी की झल्लाहट

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– डॉ. दीपक पाचपोर

भाजपा की अपेक्षाओं के विरूद्ध कांग्रेस समेत विपक्ष की मजबूत होती स्थिति के अलावा ऐसे कई अन्य कारण हैं जिनके चलते मोदी की झल्लाहट अपने चरम पर है। जिन सभाओं में मोदी ने ये उद्गार प्रकट किये उन राज्यों में छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिजोरम के साथ ही इसी नवम्बर में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। मप्र व छग में कांग्रेस की जीत तयशुदा बताई जा रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की डिक्शनरी में विपक्ष के लिये जितने (अप)शब्द होंगे, शायद ही किसी अन्य नेता के पास उतने हो सकते हैं। मोदी केन्द्र पर जिन हथियारों के बलबूते केन्द्र की सत्ता पर आरुढ़ हुए हैं, उनमें एक बड़ा असलहा प्रतिपक्ष, खासकर कांग्रेस पर गैरजिम्मेदार तरीके से होने वाला हमला है। जो-जो आरोप लगाकर भारतीय जनता पार्टी ने केन्द्र तक अपनी पहुंच बनाई और दो मर्तबा सत्ता सम्भाली, मोदी उनमें से कोई भी साबित नहीं कर पाये- बावजूद इसके कि अब वे दूसरा कार्यकाल पूरा करने जा रहे हैं और देश लोकसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। मोदी का 9 वर्षों से अधिक का कार्यकाल केवल इसी काम में बीता है। इसके लिये उन्हें अवसरों और मंचों का भी भान नहीं रहता। संसद के भीतर कोई बयान देना हो या फिर राष्ट्रीय पर्वों को सम्बोधित करना हो, किसी भी विषय पर आयोजित सम्मेलन हो अथवा बैठक- मोदी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उनका एजेंडा हर मौकों पर एक सा होता है- विपक्ष को अपमानित करना एवं उसे नीचा दिखाना। चुनावी सभाओं में तो वे सारी हदें पार कर ही जाते हैं, क्योंकि ऐसे मंच तो उनके लिये सबसे माकूल व मुफ़ीद होते हैं। मोदी ने पद की प्रतिष्ठा तथा गरिमा को अपनी ज़ुबान से जितना गिराया है, लोकतांत्रिक मर्यादाओं के वह बिलकुल विपरीत व अशोभनीय है।

सोमवार को मोदीजी ने अपने उसी तेवर व तासीर का परिचय देते हुए कांग्रेस को ‘जंग लगी हुई पार्टी’ करार देते हुए कहा कि उसे अब अर्बन नक्सलियों को आऊटसोर्स कर दिया गया है। हाल ही में कांग्रेस के नेतृत्व में 28 दलों से मिलकर बने विपक्षी गठबन्धन ‘इंडिया’ को वे पहले ही ‘घमंडिया’ कहते रहे हैं। ऐसा वे चुनावी सभाओं में तो कहते ही आ रहे हैं, उनकी देखा-देखी और उनकी आंखों में चढ़ने के लिये उनके सहयोगी संसद के भीतर होने वाली चर्चा में भी इस शब्द का इस्तेमाल करने लगे हैं। इस सबसे एक कदम आगे बढ़ते हुए मोदी ने सोमवार को राजस्थान की राजधानी जयपुर एवं मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की रैलियों को सम्बोधित करते हुए नये तीर छोड़े। भोपाल में उन्होंने बताया कि हाल ही में नारी वंदन शक्ति अधिनियम के नाम से पारित महिला आरक्षण विधेयक को कांग्रेस व विपक्ष ने ‘खट्टे मन से समर्थन’ दिया है। वक्त आने पर वे इससे पीछे हट जायेंगे। उन्होंने कांग्रेस को अपने वादे न निभाने वाली पार्टी बताया और कहा कि इसके विपरीत ‘मोदी मतलब गारंटी’ है। जयपुर में उन्होंने कहा कि ‘कांग्रेस जंग लगा लोहा है जिसे अब कांग्रेसी नेता नहीं वरन कुछ अर्बन नक्सली चला रहे हैं।’

भाजपा की अपेक्षाओं के विरूद्ध कांग्रेस समेत विपक्ष की मजबूत होती स्थिति के अलावा ऐसे कई अन्य कारण हैं जिनके चलते मोदी की झल्लाहट अपने चरम पर है। जिन सभाओं में मोदी ने ये उद्गार प्रकट किये उन राज्यों में छत्तीसगढ़, तेलंगाना व मिजोरम के साथ ही इसी नवम्बर में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं। मप्र व छग में कांग्रेस की जीत तयशुदा बताई जा रही है, तो वहीं राजस्थान में दोनों दलों (कांग्रेस-भाजपा) के बीच कड़ा मुकाबला है। तेलंगाना में भाजपा को लड़ाई से बाहर बताया जा रहा है और वहां मुख्य मुठभेड़ कांग्रेस व भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की होगी।

चुनावी हार-जीत तो एक तरफ है लेकिन लोकतांत्रिक प्रणाली हर किसी को अपनी बात कहने और विरोधी दलों की मुद्दों पर आधारित आलोचना का हक देती है, परन्तु उसकी मर्यादा होती है। नौ साल तक देश का नेतृत्व करने के बाद भी मोदी अब तक यह नहीं जान पाये हैं कि इस शासन व्यवस्था में सरकार की आलोचना का हक सभी को होता है और सरकार के मुखिया होने के नाते उनका काम स्पष्टीकरण व जवाब देना होता है। इतना ही नहीं, अगर वे कोई बात कहते हैं तो उसे साबित करने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है। पीएम होने के नाते उन्हें ऐसी कोई भी बात नहीं कहनी चाहिये जो कि विधिसम्मत न हो या वह आधारहीन हो। सरकारी रिकार्ड में ‘अर्बन नक्सली’ जैसा कोई शब्द नहीं है। वैसे ही जिस प्रकार से ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ नहीं है। मोदी को बतलाना चाहिये कि ये विपक्ष में कौन नक्सली हैं जिन्हें ‘कांग्रेस ने अपने नारों और नीति के लिये आउटसोर्स कर दिया है’, जैसा कि उन्होंने इसी सभा में कहा है। अगर वे इन नक्सलियों को जानते हैं तो उन पर क्या कार्रवाई की गई है?

वैसे तो अब साफ हो चुका है कि मोदीजी के पास मुद्दों का अभाव होने से और आसन्न चुनावों में भाजपा की पराजय के डर से मोदी वे बातें कहने लगे हैं जो उनके समर्थक कब का बन्द कर चुके हैं। 2014 में जब मोदी पीएम बने थे, तो इस तरह की शब्दावली का खूब इस्तेमाल होता था। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, गरीबों-आदिवासी हितों की बात करने वालों और सबसे प्रमुखतया सरकार से सवाल करने वालों को बदनाम करने और उन्हें जेलों में डालने का रास्ता साफ करने के लिये अर्बन नक्सली, टुकड़े-टुकड़े गैंग, जिहादी आदि विशेषणों का प्रयोग किया जाने लगा जबकि सच्चाई यह है कि ऐसे आरोपों में न तो किसी व्यक्ति को अदालतों में पेश किया गया और न ही इस आधार पर किसी को सजा ही हो सकी है। हां, इसके नाम से उन्हें बदनाम अवश्य किया गया तथा अनेक लोगों को इसकी आड़ में बिना मुकदमा चलाये लम्बे समय तक जेलों में ज़रूर डाला गया है।

पार्टी स्तर पर तो इन दांव-पेंचों का इस्तेमाल फिर भी समझ में आता है लेकिन देश के शीर्ष नेता होने के नाते मोदीजी को वही कहना चाहिये जो वे साबित कर सकें और जो सार्वजनिक जीवन की मर्यादा के अनुकूल हो। हालांकि मोदीजी से यह आशा करना बेकार है क्योंकि पिछले 9 साल में वे अमर्यादित व्यवहार का भरपूर प्रदर्शन कर चुके हैं। शुचितापूर्ण आचरण की बार-बार दुहाई देने और स्वयं को लोकतांत्रिक बतलाने का आडम्बर रचने वाले मोदीजी अपने विरोधियों के लिये दीदी ओ दीदी, जर्सी गाय, कांग्रेस की विधवा, खूनी पंजा, 50 करोड़ की गर्ल फें्रड जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहे हैं। मोदी अपने पार्टी व संसद के सहयोगियों को भी यही आचरण व भाषावली अपनाने की प्रेरणा देते हैं। इसका हालिया दृष्टांत भरी लोकसभा में भाजपा सदस्य रमेश बिधूड़ी द्वारा बहुजन समाज पार्टी के दानिश अली के लिये मुल्ला, कटुवा, आतंकवादी जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने और बाहर देख लेने की धमकी देने के बाद भी बचकर निकल जाना है। यह जान लेना कितना कठिन है कि भाजपाईयों के मन में प्रतिपक्ष के लिये ऐसे घृणा भाव का स्रोत व प्रेरणा पुरुष कौन हो सकता है।

बहरहाल, मोदी की गिरती छवि और चुनावी असफलताओं (हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, घोसी आदि) तथा अगले साल के आम चुनावों में पराजय के डर से मोदीजी के मन में जो झल्लाहट भरी हुई है, उसी की प्रतिध्वनि कांग्रेस को घमंडिया, अर्बन नक्सली, टुकड़े-टुकड़े गैंग कहने के रूप में सुनाई पड़ रही है। फिर भी उन्हें जानना चाहिये कि देश का लोकतंत्र चुनावी हार-जीत या सत्ता पाने-गंवाने की प्रक्रिया से ऊपर व अधिक स्थायी प्रकृति का होता है। तीसरी बार पीएम बनने के चक्कर में उन्हें ऐसा कोई बर्ताव नहीं करना चाहिये जो लोकतांत्रिक रूप से अमर्यादित तो हो ही, उसे अशोभनीय भी कहा जाये। देश की कार्यपालिका के प्रमुख होने के अलावा उनका नैतिक कर्तव्य देश की श्रेष्ठ मर्यादाओं व मूल्यों का अनुपालन करना भी है ताकि देश का लोकतांत्रिक चरित्र बचा रहे। आखिर मोदी जी ही तो भारत को ‘लोकतंत्र की जननी’ कहते हैं।

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