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कभी भी झूठ नहीं हो सकता मीठा

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी का चयन राजनैतिक विश्लेषकों हुआ। मैने उन्हें उनके घर जा कर बधाई दी।
सीतारामजी ने अपना पहला विश्लेषण मुझे सुनाया।
राजनीति धार्मिक होने के कारण उदारमना हो गई है। विश्व के सब से बड़े राजनैतिक दल की सह्रदयता स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रही है।
जिस दल ने सत्तर वर्षो तक कुछ किया ही नहीं उसी दल के राजनेताओं को अपने दल में सहर्ष स्वीकार कर उदारमना के गुण को व्यवहारिकता में बदला जा रहा है। यह प्रक्रिया इस उक्ति को ध्यान रखते हुए सम्पन्न की जा रही है कि, आदमी बुरा नहीं होता,दिन बुरे होतें हैं हालात बुरे होतें हैं।
मैने सीतारामजी से जिज्ञासा पूर्ण सवाल किया? एक बात बहुत ही आश्चर्यजनक है, देश के सभी राजनैतिक दल और तमाम राजनेता भ्रष्ट्राचार के घोर विरोधी होतें हैं,फिर भी घोटालें क्यों होतें हैं?
मैने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, सुना है कि, भगवान जब देता है,तब छप्पर फाड़ कर देता है?
सीतारामजी ने कहा यह कहावत राजनेताओं के लिए विपरीत तरीके से सिद्ध होती है।
प्रायः देखा गया है कि,जब कोई व्यक्ति राजनीति में प्रवेश करता है,तब वह भलेही छप्पर में रहता है। जैसे ही वह राजनीति में पूर्ण रूप से सक्रिय हो जाता है,और वह राजनीति का वास्तविक ज्ञान प्राप्त कर लेता है। तब उसका छप्पर आलीशान निवास में बदल जाता है।
साइकल पर चलने वाला बेशकीमती चार पहियां वाहन में बैठकर आवाजाही करता है।
राजनेता पर भगवान प्रसन्न होतें हैं। उसे जीवन का हर तरह सुख सुलभ रूप से उपलब्ध हो जाता है।
वह अपने आसपास आपने कार्यकर्ताओं को ठीक उसी तरह रखता है, जिस तरह फिल्मों में खलनायक अपने इर्दगिर्द अपने सुरक्षा कर्मियों को रखता है।
प्रायः फिल्मों में खलनायक सभी तरह के मादक पदार्थो और तमाम गैर कानूनी व्यापार में सक्रिय होता है। फिर भी फिल्मों में खलनायक का अभिनय करने वाले अभिनेता को चरित्र अभिनेता ही कहतें हैं।
राजनेता तो चरित्रवान ही होतें है।
अब तो धार्मिक आस्थावान भी हो गएं हैं। इनलोगों में अपने धर्म के प्रति इतनी आस्था जागृत हो गई है,सम्पूर्ण देश में इन्हें हर एक जगह अपने भगवान दृष्टिगोचर हो रहें हैं।
संस्कार, संस्कृति और राष्ट्रवाद का प्रशिक्षण देने वाली विशाल मातृ संस्था के प्रमुख ने उक्त दृष्टि भ्रम को तोड़ते हुए सलाह दी, हर जगह शिवलिंग खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है।
अपने देश में भागवत कथा सिर्फ सुनते हैं। कथा के सार की गहराई को समझने की कोशिश बहुत कम लोग ही करतें है।
भागवत कथा का आयोजन पूर्ण रूप से आस्थावान लोगों द्वारा किया जाता है। भागवत कथा के आयोजन का व्यय देश के धनकुबेर समाजसेवियों द्वार मुक्तहस्त से किया जाता है।
धार्मिक आयोजन पर किया जाने वाला व्यय सात्विक होता है।
इसलिए भागवत कथा या अन्य पौराणिक कथाओं पर होने वाले खर्च पर कोई सवाल उठता ही नहीं है।
सीतारामजी ने अपना विश्लेषण सुना ही रहे थे। उसी समय एक व्यक्ति उनके पास एक लिफाफा लेकर आया। लिफाफा खोल कर देखा तो उसमें एक पर्चा निकला। पर्चे में लिखा था,आप का चयन गलती से बतौर विश्लेषक रूप किया गया था।
सीतारामजी ने बहुत ही प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि मेरा विश्लेषक रूप जो चयन हुआ था। वह निरस्त हो गया है।
मैने उनकी खुशी को दुगना करते हुए कहा कि सच कितना भी कड़वा हो? झूठ कभी भी मीठा हो नहीं सकता है।
गम्भीर बीमारी के लिए कड़वी दवा ही कारगर सिद्ध होती है।
मैने कहा विश्लेषक तो विषय की शल्यक्रिया करता है।
सीतारामजी ने मुझे चुप रहने का ईशारा करते हुई,चर्चा को पूर्णविराम दिया।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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