ये मुकदमे सामान्य केस नहीं हैं। बेशक मुकदमे कंपनियों के खिलाफ हुए हैं जिन्हें मनुष्य चलाते हैं, लेकिन जिस डेटा ‘चोरी’ की बात की गई है उसका इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रशिक्षित करने में किया गया है। यानी आरोपित कंपनी चाह कर भी उस डेटा को वापस नहीं कर सकती है क्योंकि एआइ एक बार जो सीख चुका है उसे भुला नहीं सकता।
क्यादिमाग में घुस चुकी किसी बात के लिए मुकदमा हो सकता है? दिमाग चाहे मनुष्य का हो या मशीन का? अमेरिका में ऐसे तीन दिलचस्प मुकदमे हुए हैं। तीनों आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) कंपनियों के खिलाफ हैं। तकनीक की दुनिया का एक धड़ा इसे कानूनी रूप में देख रहा है, लेकिन एआइ को सामाजिक आयामों में समझने वाले लोग इसे सांस्कृतिक मसला मान रहे हैं। यह इंसान और इंसान की बनाई नकली मेधा के बीच की ऐसी सांस्कृतिक लड़ाई है जिसका इंसान के बनाए कानूनी तंत्र के पास कमोबेश सीमित समाधान है।
अमेरिका में एक मुकदमा चैट जीपीटी बनाने वाली कंपनी ओपेन एआइ के खिलाफ दो लेखकों ने किया है जिसमें माइक्रोसॉफ्ट को भी प्रतिवादी बनाया गया है। दूसरा मुकदमा कुछ कलाकारों ने चित्र बनाने वाले एआइ टूल स्टेबल डिफ्यूजन की निर्माता स्टेबिलिटी एआइ, डिवायंट आर्ट और मिडजर्नी के खिलाफ किया है। तीसरा कुछ अनाम लोगों ने ओपेन एआइ के खिलाफ किया है1 तीनों ही मुकदमों में आरोप है कि इन आरोपित कंपनियों ने कॉपीराइट सामग्री की ‘चोरी’ कर के एआइ टूल को प्रशिक्षित किया। इसके लिए मूल रचनाकारों की न तो सहमति ली गई और न ही उन्हें किसी किस्म की कोई भरपाई की गई।
ओपेन एआइ पर सन फ्रांसिस्को में पिछले हफ्ते मुकदमा दायर करने वाले लेखकों पॉल ट्रेम्बले और मोना अवाद का कहना है कि चैट जीपीटी ने हजारों किताबों से बिना सहमति के डेटा चुराया और इस तरह से लेखकों के कॉपीराइट का उल्लंघन किया है। चैट जीपीटी की मालिक कंपनी ओपेन एआइ में माइक्रोसॉफ्ट का पैसा लगा है। इसके संस्थापकों में ट्विटर के मालिक इलॉन मस्क भी शामिल हैं।
चैट जीपीटी पिछले साल नवंबर में आया था। कंप्यूटर के इतिहास में यह सबसे तेजी से बढ़ने वाला एप्लिकेशन बन गया जब जनवरी 2023 तक सयानी मात्र दो महीने में इसके सक्रिय उपयोगकर्ताओं की संख्या दस करोड़ को पार कर गई। जिन किताबों की चोरी का आरोप चैट जीपीटी पर लगा है, उनकी संख्या तीन लाख के आसपास बताई गई है।
इसके अलावा चैट जीपीटी पर अमेरिकी ग्राहकों की निजी सूचनाओं की चोरी का भी आरोप है, जिसका मुकदमा कैलिफोर्निया में बुधवार को दायर हुआ। कुल 157 पन्ने के मुकदमे में कहा गया है कि चैट जीपीटी का सीधे इस्तेमाल करने वाले लोगों के अलावा उन ग्राहकों की सूचनाएं भी चुराई गई हैं जो ऐसे एप्लिकेशन का इस्तेमाल करते हैं जिसमें चैट जीपीटी जुड़ा रहता है, जैसे स्नैपचैअ, स्ट्राइप, स्पॉटिफाइ, माइक्रोसॉफ्ट टीम्स और स्लैक। जिन लोगों का डेटा चैटबॉट को प्रशिक्षित करने के लिए चुराया गया है, मुकदमा उन लोगों को मुआवजा देने की बात करता है।
ये मुकदमे सामान्य केस नहीं हैं। बेशक मुकदमे कंपनियों के खिलाफ हुए हैं जिन्हें मनुष्य चलाते हैं, लेकिन जिस डेटा ‘चोरी’ की बात की गई है उसका इस्तेमाल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को प्रशिक्षित करने में किया गया है। यानी आरोपित कंपनी चाह कर भी उस डेटा को वापस नहीं कर सकती है क्योंकि एआइ एक बार जो सीख चुका है उसे भुला नहीं सकता।
अगर वादी पक्ष और उसके बताए पीडि़तों को मुआवजा मिल भी जाएगा तो उनका डेटा पूरी दुनिया में घूमता रहेगा, उसे खत्म करना या लौटाना संभव नहीं है। एआइ के दिमाग में वह घुस चुका है। यह ऐसे ही है जैसे एक बार किसी चीज को जानने के बाद मनुष्य चाह कर भी उसे आसानी से भुला नहीं पाता। यही समस्या एआइ के साथ भी है। इसीलिए पिछले दो साल से मशीन प्रशिक्षण के क्षेत्र में सबसे ताजा चिंता उसे भूलना सिखाने की है। इसे ‘मशीन अनलर्निंग’ कहते हैं।
गवर्नेंस का अच्छा मानक ठोस साक्ष्यों के आधार पर तैयार होता है। हम AI की मौजूदा दशा और दिशा के वस्तुपरक आकलन की जरूरत को महसूस करते हैं, ताकि नागरिकों और सरकारों को उसके नियमन और नीति का एक ठोस आधार दिया जा सके। साथ ही एक विश्लेषणात्मक प्रेक्षण AI के सामाजिक प्रभावों पर भी होना चाहिए- नौकरियों के खात्मे से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरों तक- जिससे AI के दुनिया में पैदा किए वास्तविक बदलावों को समझने की सलाहियत नीति-निर्माताओं को मिल सके। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अपने भीतर पुलिसिंग की क्षमता भी विकसित करनी होगी, जैसा वित्तीय संकट के क्षण में बड़े केंद्रीय बैंक करते हैं ताकि अस्थिर करने वाली संभावित घटनाओं की वे निगरानी कर सकें, उस पर प्रतिक्रिया दे सकें, जवाबदेही सुनिश्चित कर सकें और यहां तक कि अनुपालनात्मक कार्रवाइयों को भी अंजाम दे सकें।
यही कुछ सिफारिशें हैं जिन्हें हमने आगे बढ़ाया है। इन्हें बुनियादी ही समझा जाना चाहिए, न कि कोई सुरक्षा की छतरी। वास्तव में इससे भी आगे, ये सिफारिशें लोगों को एक न्योता हैं कि वे आगे आकर ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपनी राय रख सकें कि वे कैसा AI गवर्नेंस चाहते हैं।
AI को यदि अपनी वैश्विक संभावनाएं साकार करनी हैं, तो उसके विकास की प्रक्रिया में हम सब के बने रहने के लिए नए सुरक्षात्मक ढांचे और निगरानी प्रणालियां स्थापित करनी होंगी। AI के सुरक्षित, समतापूर्ण और जवाबदेह विकास में हर किसी की दावेदारी है। कुछ न करने का जोखिम भी स्पष्ट है। हम मानते हैं कि AI के वैश्विक राजकाज के मानक तय करना अनिवार्य है ताकि इस प्रौद्योगिकी द्वारा प्रत्येक देश, समुदाय और व्यक्तियों सहित आने वाली पीढि़यों के लिए पैदा की गई संभावनाओं की फसल काटी जा सके और जोखिमों को दूर किया जा सके।
इयान ब्रेमर, कार्मे आर्टिगास, जेम्स मानईका, और मारिएट श्चाके आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर संयुक्त राष्ट्र की उच्चस्तरीय परामर्शदात्री इकाई की कार्यकारी समिति के सदस्य हैं