राकेश अचल
भारत में चुनावी राजनीति में लोग एक -दूसरे के छक्के छुड़ाने में लगे हैं उधर सात समंदर पार कनाडा भारतीयों के लिए दूसरा पाकिस्तान बनता नजर आ रहा है। भारत ने कनाडा के ब्रैम्पटन में एक हिंदू पूजा स्थल पर खालिस्तान समर्थकों की तरफ से हमला करने के घटनाक्रम ने भारत और कनाडा के आपसी रिश्तों को भयंकर झटका दिया है। कनाडा में 18 लाख भारतीय मूल के लोग और 1 लाख एनआरआई मौजूद हैं। ये दुनिया में सबसे बड़े भारतीय प्रवासी समूह में से एक है। कनाडा की पूरी आबादी में ये हिस्सेदारी करीब 3 प्रतिशत है।
भारत और कनाडा के रिश्तों में तनातनी की जड़ में खालिस्तानी तत्व हैं। दोनों देशों के प्रधानमंत्री हैं। भारत और कनाडा के आपसी संबंधों का मौजूदा दौर कई सवालों और चिंताओं को जन्म दे रहा है. हरदीप सिंह निज्जर की हत्या सुर्खियों में है, लेकिन दोनों देशों के ताल्लुक पेचीदगियों से भरे है। अच्छी बात ये है की इस समय भारतियों पर कनाडा में हुए ताजा हमले के मुद्दे पर हम सब एक हैं सोशल मीडिया पर जो वीडियो सामने आये हैं उसमें साफ तौर पर दिखता है कि हिंदू मंदिर के सामने पहले खालिस्तान समर्थकों की टोली गाड़ियों से आती है और खालिस्तानी झंडों के साथ वहां एकत्रित लोगों के साथ मारपीट करती है। वहां की पुलिस की बीच-बचाव करती दिखती है। कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने भी इस हमले मैंने से ही इंकार कर दिया है ,जबकि स्थानीय पुलिस ने इस मामले में दो-तीन लोगों की गिरफ्तारी की बात कही गई है।
पूजाघरों में इस तरह की घटनाएं सिहरन पैदा करतीं हैं । कनाडा में अगले वर्ष आम चुनाव है और कई लोगों भारत के साथ प्रधानमंत्री ट्रुडो की नीतियों को उनकी राजनीतिक महत्वांकाक्षा से जोड़ कर देखते हैं। टूडो की नजर भारत से अलग पृथक देश खालिस्तान बनाने का सपना पालने वाले खालिस्तानी संगठनों से जुड़े वोटरों पर है। ऐसे में भारतीय समुदाय पर या धार्मिक स्थलों पर उनका हमला बढ़ने की आशंका है। भारत और कनाडा के बीच फिलहाल जो कड़वाहट घुली है, उसे दोनों देशों के रिश्तों का सबसे निचला स्तर बताया जा रहा है और ये दौर दोनों देशों के मौजूदा नेतृत्व कि क्षमताओं पर भी प्रश्नचिन्ह खड़े करता है। ये समझने कि जरूरत है कि अचानक ऐसा क्या हुआ, जो भारत और कनाडा जैसे दो मित्रदेशों के रिश्ते इतने बुरे दौर में पहुंच गए ? क्या कनाडा में खालिस्तान समर्थक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में वाकई भारत सरकार का हाथ है और तीसरा, क्या ट्रूडो का बयान पूरी तरह घरेलू वोटबैंक की राजनीति से प्रेरित है।
भारत-कनाडा रिश्तों का इतिहास खट्टा-मीठा रहा है। ये बनते-बिगड़ते रहे है। अत्तीत में झांककर देखें तो कनाडा-भारत संबंध,कनाडा और भारत गणराज्य के बीच द्विपक्षीय संबंध हैं। माना जाता है कि लोकतंत्र के लिए आपसी प्रतिबद्धता, बहुलवाद और लोगों के बीच परस्पर संबंधों पर आधारित हैं।कांग्रेस के शासनकाल में 2009 तक भारत और कनाडा के बीच द्विपक्षीय व्यापार लगभग 4.14 बिलियन डालर का था। वर्षों पहले एयर इंडिया फ्लाइट 182 में हुए विस्फोट के बाद दोनों देशों के रिश्तों में जो कड़वाहट आई थी उसका असर दो दशकों रहा। आपको याद होगा कि 23 जून 1985… वो तारीख जब खालिस्तानियों ने एयर इंडिया की एक विमान को निशाना बनाया। इस विमान हादसे में 329 की हुई थी मौत, मरने वालों में 268 कनाडा के नागरिक थे। यह विमानन इतिहास में सबसे घातक आतंकवादी हमला था। खालिस्तानी आतंकियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए विमान पर हमला किया था। हमले के 39 साल पूरे होने के बाद भी कनाडा पुलिस हादसे की जांच नहीं कर पाई थी।
इस हमले से पहले भी भारत द्वारा 1974 में हुए परमाणु परीक्षण ने दोनों राष्ट्रों के बीच संबंधों में तल्खी पैदा हुई थी। कनाडा ने तब भारत पर कोलंबो योजना की शर्तों का उल्लंघन का आरोप लगया था ,हालाँकि 1990 के दशक के अंत में जाँ श्रेतियाँ और रोमियो लब्लैंक दोनों ने भारत की, पोखरण-2 परीक्षणों के बाद, संबंधों को एक बार फिर से अस्थायी रूप से रोक दिया गया था।मुझे याद है कि कनाडा के प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने 2012 में भारत का दौरा किया था। कनाडा और भारत बड़े पैमाने पर व्यापार करते हैं। भारत मुख्य रूप से कनाडा से दाल आयात करता है। उच्च शिक्षा के लिए भारतीय छात्रों के लिए कनाडा एक पसंदीदा स्थान है।इस बीच कनाडा में सिख आतंकवादियों द्वारा भारत विरोधी गतिविधियों में हुए इजाफे के दौरान कनाडा सरकार द्वारा अपेक्षित रोकथाम करने कथित कमी ने दोनों देशों के बीच तनाव पैदा कर दिया है
हाल के दशक में कनाडा ने नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान भारत में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघन की निंदा कर तनाव के नए बीज बोये । भारत ने इसके जवाब में कनाडा को झिड़की दी और साफ़ शब्दों में कहा कि कनाडा को अपने काम से काम रखना चाहिए और भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। पिछले साल 2023 में, जी-20 बैठक के बाद, कनाडा की ट्रूडो सरकार ने भारत पर एक कनाडाई सिख कार्यकर्ता, हरदीप सिंह निज्जर, जो खालिस्तान आंदोलन का हिस्सा था, की कनाडा में हत्या करने का आरोप लगाया। तब से अब तक रिश्तों में कड़वाहट इतनी बढ़ी कि दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को देश निकला तक दे दिया। अब स्थिति ये है कि कनाडा ने तमाम हदें लांघते हुए भारत के गृहमंत्री तक पर गंभीर आरोप लगा दिए है। मुमकिन है कि इन आरोपों को लेकर २५ नबंवर से शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में गहमागहमी रहे।
कनाडा और भारत के रिश्तों को समझने के लिए हमें बहुत पीछे जाना पडेगा ,इतने पीछे जहाँ कि भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू खड़े नजर आने लगें । नेहरू को सदैव गालियां देने वालों को शायद ये पता नहीं होगा कि भारत और कनाडा के रिश्तों की नीव में नेहरू ही हैं मोदी नहीं।इतिहास बताता है कि आजादी के बाद से लेकर 1960 के दशक में कनाडा-भारत संबंधों को भारतीय प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और दो वर्षों के दौरान सेवा करने वाले दो कनाडाई प्रधानमंत्रियों लुई सेंट लॉरेंट और लेस्टर बी पियर्सन के व्यक्तिगत संबंधों के कारण बढ़ावा मिला था। ये रिश्ते आज के पुतिन मोदी संबंधों जैसे कहे जा सकते है। इनकी तुलना नेतन्याहू और मोदी के निजी संबंधों से भी की जा सकती है।
संयुक्त राष्ट्र और राष्ट्रमंडल में कोरियाई युद्ध और स्वेज संकट जैसे विविध मुद्दों पर, भारत और कनाडा के बीच रुचि और प्रतिबद्धता का एक अनूठा उदाहरण है । । नेहरू के ही कार्यकाल में भारत के लिए कनाडा का सहायता कार्यक्रम 1951 में शुरू हुआ और कोलंबो योजना के तहत काफी बढ़ा। कनाडा ने भारत को खाद्य सहायता, परियोजना वित्तपोषण और तकनीकी सहायता प्रदान की। पिछले पांच दशकों में भारत, कनाडाई द्विपक्षीय सहायता का सबसे बड़ा प्राप्तकर्ता रहा है, जिसकी राशि 3.8 बिलियन से अधिक कनाडाई डॉलर है। नेहरू के कार्यकाल में ही 1960 के दशक में, कनाडा ने कोलंबो योजना के माध्यम से कुंडाह हाइड्रो-इलेक्ट्रिक पावर हाउसपरियोजना का समर्थन किया । लेकिन आज दोनों देशों के रिश्तों में इतनी कड़वाहट बढ़ गयी है कि इन्हें दूर करने में दशकों लग जायेंगे कम से कम मोदी और टूडो के रहते तो ये रिश्ते अब सुधरने वाले नहीं है। लौटकर मंदिर में श्रृद्धालुओं पर हुए ताजा हममले पर आते है। इन हमलों के खिलाफ पूरा भारत एक है । संसद में भी ये एकता दिखाई देना चाहिए।
दोनों देशों के बीच रिश्तों में कड़वाहट के बीच कनाडा के ब्रैम्पटन में हिन्दू मंदिर पर हमले को लेकर हम मोदी जी कि भूमिका से असहमत होते हुए भी उनके साथ खड़े हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेहद सख्त लहजे में उन्होंने कनाडा की जस्टिन ट्रूडो सरकार से कहा कि इस तरह के हमले बर्दाश्त नहीं है। हमारे हमारे राजनयिकों को डराने-धमकाने की कायरतापूर्ण कोशिशें भी उतनी ही भयावह है। भगवान से प्रार्थना है कि वो दोनों देशों की सरकारों को सद्बुद्धि दे ताकि कनाडा भारत के लिए दूसरा पाकिस्तना न साबित हो