मुनेश त्यागी
इलेक्टरल बॉन्ड इतिहास
का है सबसे बड़ा स्कैम,
दुनिया में मिट्टी में मिला
दी है भारत भर की फेम।
जब मानव इतिहास का अध्ययन करते हैं तो हम पाते हैं कि पूंजीवाद सामंतवादी व्यवस्था को तोड़कर आया था और उसने उम्मीद जगाई थी कि वह मनुष्य के साथ हो रहे शोषण और जुल्मों का खात्मा करेगा। इसी उम्मीद के साथ उस समय के शोषण और अन्याय को झेल रहे लोगों ने उस नई सोच का साथ दिया था।
फ्रेंच रिवॉल्यूशन के साथ पूंजीवादी व्यवस्था का आगाज हुआ, मगर कुछ दिन बाद ही मजदूर वर्ग की यह आशा धूमिल होने लगी क्योंकि उस समय अन्याय के शिकार और सताए गए लोगों के साथ इस व्यवस्था ने जो वादे किए थे, उसने उन्हें पूरा नहीं किया। उन्हें सही तरीके से वेतन का भुगतान नहीं किया, उनके कार्य के घंटे नियत नहीं किये, मजदूर और औरतों को समान वेतन नहीं दिया और उनके साथ हो रहे शोषण, अन्याय और जुल्म का खत्म नहीं किया।
पूंजीवादी व्यवस्था अपने साथ जनतंत्र को भी लेकर आई थी और उस समय जनतंत्र के बारे में कहा गया था कि यह जनता का, जनता द्वारा और जनता के लिए राज्य है और इस प्रकार डेमोक्रेसी पूरी दुनिया में देखते ही देखते छा गई। बहुत सारे देशों में सामंतवादी व्यवस्था का खात्मा किया गया और पूंजीवादी जनतंत्र के साथ, पूंजीवाद पूरी दुनिया में विस्तार करता रहा।
उसके बाद कार्ल मार्क्स और एंगेल्स ने पूंजीवादी व्यवस्था की कमियों का जायजा लिया, उसके शोषण और अन्याय की छानबीन की और उन्होंने पाया कि पूंजीवादी व्यवस्था, जनतंत्र के नाम पर एक छलावा है, एक बहकावा है, यह जनता की समस्याओं हल नहीं कर सकती और उन्होंने बताया की कैसे पूंजीपति लोग मजदूर वर्ग का शोषण करते हैं, उसकी मेहनत को हड़प जाते हैं और उसके द्वारा उत्पन्न की गई वस्तुओं की कीमत का सही भुगतान उन्हें नहीं करते।
इसलिए उन्होंने प्रस्थापित किया था कि पूंजीवादी व्यवस्था मानव समाज में शांति, अमन, न्याय और आपसी भाईचारा कायम नहीं कर सकती। इसलिए उन्होंने कहा था कि पूंजीवादी व्यवस्था को खत्म करके इसके स्थान पर समाजवादी व्यवस्था कायम की जानी चाहिए और मजदूरों और किसानों की सरकार बनायी जानी चाहिए। इन्हीं विचारों पर आधारित लेनिन ने रूस में क्रांति की और वहां पर पूंजीवाद का खात्मा करके समाजवादी व्यवस्था कायम की और दुनिया में पहली दफा है सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय की स्थापना की गई लोगों की मूलभूत समस्याओं जैसे रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार आदि का समाधान किया गया और उन्हें तमाम तरह के शोषण जुल्म और अन्याय से मुक्ति दिला दी गई।
इस प्रकार हमारी दुनिया में दो व्यवस्थाएं पूंजीवादी और समाजवादी लगातार काम करती रहीं और आज भी कर रही हैं। पूंजीवादी व्यवस्था के शासकों का कहना है कि पूंजीवादी व्यवस्था दुनिया की सबसे बढ़िया व्यवस्था है। यह मनुष्य की समस्त समस्याओं का समाधान कर सकती है। यह पूरी ईमानदारी, नैतिकता और न्याय पर आधारित है।
भारत में भी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूंजीवादी शासकों ने अपना जाल बिछाया, अपनी व्यवस्था को मजबूत किया और हमारे देश में भी पूंजीवादी व्यवस्था कायम कर दी गई। हमने देखा कि पूंजीवादी व्यवस्था के साथ कायम किए गए संविधान में जिन उद्देश्यों लक्षणों और सिद्धांतों का जिक्र किया गया था आज आजादी के 77 साल बाद भी उन उद्देश्यों लक्षण को पूरा नहीं किया गया है फिर भी लोग उम्मीद लगाए रहे कि पूंजीवादी जनतंत्र उनका कल्याण करेगा और वे लगातार इस पूंजीवादी जनतंत्र को पालते पोसते रहे।
भारत में इस पूंजीवादी व्यवस्था ने कभी भी संविधान के असली मूल्यों को जमीन पर नहीं उतरा। उसने जनता को किसानों और मजदूरों को, नौजवानों को, महिलाओं को और छात्रों को उनके वे हक और अधिकार प्रधान नहीं किये जिनकी घोषणा करके भारत में पूंजीवादी जनतंत्र कायम किया गया था।
हमारे देश में भी तीन तरह की विचारधाराए काम करती रहीं। एक कांग्रेस की विचारधारा, एक क्रांतिकारी वामपंथियों की विचारधारा और एक सांप्रदायिक ताकतों की विचारधारा। भारत की आजादी के दौरान भी पूंजीवादी ताकतें और सांप्रदायिकता ताकतें छुप छुप कर काम करती रहीं। इन सांप्रदायिक ताकतों ने कभी भी भारत की आजादी के आंदोलन का समर्थन नहीं किया। आजादी मिलने के बाद भी इन हिंदुत्ववादी सांप्रदायिक ताकतों ने कानून के शासन, संविधान और जनकल्याणकारी योजनाओं का समर्थन और पालन नहीं किया।
हां सत्ता में बड़े रहने के लिए ये इस जनतंत्र की, इस संविधान की दुहाई देते रहे, मगर इनका असली मकसद कभी भी जनता का जनतंत्र कायम करने का नहीं रहा। कभी भी शोषण और अन्याय को खत्म करने की बात इन्होंने नहीं की और ये हमेशा पूंजीवादी लूट और उनकी शासन व्यवस्था का समर्थन करते रहे। इन्होंने कभी भी किसान और मजदूरों की कल्याणकारी नीतियों का सहयोग और समर्थन नहीं किया।
भारत की तमाम पूंजीवादी पार्टियां हमेशा ही पूंजीवादी दर्शन को और पूंजीवादी जनतंत्र को खाद पानी देती रहीं, उसे आगे बढ़ाती रहीं। कांग्रेस ने भी कमोबेश यही किया। वह भी बिरला टाटा और उस समय के बड़े पूंजीपतियों की हिमायत करती रही, उनकी पूंजी को बढ़ाती रही, उनके साम्राज्य को कायम करती रही। यह बात जरूर है कि उसने संविधान में लिखित जन कल्याणकारी मूल्य और नीतियों का पालन किया जनता को सस्ती शिक्षा और स्वास्थ्य का इंतजाम किया। मगर संविधान में लिखित संपूर्ण नीतियों और कार्यक्रम को कभी भी अमल में नहीं लाया गया और उन्हें धरती पर नहीं उतारा गया।
यही काम पिछले 10 सालों से भारत की सांप्रदायिकता ताकतें, मोदी और उनकी सरकार के नेतृत्व में कर रही हैं। मोदी सरकार जो नारे देकर आई थी, जो सबका साथ सबका विकास करने की बात कह कर आई थी, वे नारे उसने धरती पर नहीं उतरे। उसने आम जनता का, किसानों मजदूरों का, छात्रों का, नौजवानों का, महिलाओं का, गरीबों का कोई कल्याण नहीं किया और वह नारे तो जन कल्याण के देती रही, जन विकास के देती रही, मगर उसने जन विकास नहीं, केवल चंद पूंजीपतियों का ही विकास किया है।
अब इलेक्टोरल बांड ने पूंजीवादी जनतंत्र की पूरी पोल खोल दी है, पूरी दुनिया के सामने इसका भंडाफोड़ कर दिया है। इस तथाकथित पूंजीवादी जनतांत्रिक व्यवस्था ने आज दिखा दिया है कि वह किसी भी कीमत पर पूंजीपतियों के धन का साम्राज्य बढ़ाने का काम कर रही है और उसने उनकी दौलत को बढ़ाने के लिए सब प्रकार की मर्यादाओं और नैतिकता का खात्मा कर दिया है, उसने भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं तोड़ दी हैं और उसने दिखा दिया है कि भ्रष्टाचार करके वह पूंजीपतियों से पैसा लेगी और उसके बाद पूरे देश की संपत्ति इन पूंजीपतियों के हवाले कर देगी। यहां पर यह कहना समुचित होगा कि,,,,
,,,,,इलेक्टोरल बांड खुलासे ने साबित कर दिया है कि इस लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था के रग रग में भ्रष्टाचार भरा पड़ा है।”
पूंजीपतियों से चंदे के रूप में पैसा लेकर शासक पार्टी क्या-क्या कर सकती है, वह इलेक्टोरल बॉन्ड के भ्रष्टाचार ने पूरी दुनिया के सामने साबित कर दिया है। सरकार को पैसा देकर पूंजी पतियों ने जनतंत्र के विचार को और जनतांत्रिक व्यवस्था को सबसे ज्यादा और सबसे बड़ा नुकसान पहुंचाया है। उसने पूंजीवादी जनतंत्र की अपूर्णीय क्षति की है और इस प्रकार हम देख रहे हैं कि पूंजीवादी व्यवस्था अपनी शासकों को चंदा देगी, पैसा देगी और इनके जर खरीद ये शासक भ्रष्टाचार करके सब मूल्यों को रौंद देंगे, संविधान, जनतंत्र और कानून के शासन और न्याय के विचारों की पूरी तरह से हत्या कर देंगें, उसकी बलि चढ़ा देंगे। हम यहां पर जोर देकर कहेंगे कि,,,
,,,,अब तो हमारी बात मान लीजिए कि भ्रष्टाचार इस जनविरोधी पूंजीवादी व्यवस्था की प्राण-वायु है।””
इस प्रकार आज हम देख रहे हैं कि जैसे पूरी दुनिया में पूंजीवादी व्यवस्था समता समानता न्याय और भाईचारे के विचारों को रौंद रही है। उसी तरह से हमारे देश में भी पूंजीवादी व्यवस्था और उसकी सरकार जनतंत्र, न्याय, संविधान और कानून के शासन की हत्या करने तक पहुंच गई है। वह भारत के सर्वोच्च न्यायालय को भी येन-केन प्रकारेण धोखा देने में जुटी हुई है। वह अपनी पूंजी के साम्राज्य को बढ़ाने के लिए कुछ भी कर सकती है और अब इलेक्टोरल बांड के भ्रष्टाचार से पूरी दुनिया के सामने यह जग जाहिर हो गया है कि आज भारत की पूंजीवादी व्यवस्था अपने पतन के सबसे बड़े गर्त में पहुंच गई है। हमारा कहना है कि देखिए गजब का अर्थशास्त्र ,,,,,,
हम तो पैसों से कपड़े
खाना किताब खरीद लेते हैं
और वे पैसों से एमएलए
और एमपी खरीद लेते हैं।