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पूंजीवादी लोकतंत्र पूंजीपति वर्ग की तानाशाही

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दीपक गौतम

कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी लोकतंत्र को पूंजीपति वर्ग की तानाशाही कहा है क्योंकि पूंजीवादी लोकतंत्र में पूंजीपति वर्ग जो चाहता है वही होता है

वही चुनाव लड़ता है वही चुनाव जीतता है वहीं चुनाव हारता है वही अपनी सरकार बनाता है दिखावे के लिए उसका एक गुट विपक्ष में बैठता है

शेष जनता को सिर्फ कहने के लिए वोट देने की आजादी है सिर्फ कहने के लिए आम जनता को चुनाव लड़ने का अधिकार है मगर दिखावा मात्र है वह लड़ने का नहीं बल्कि पर्चा दाखिल करने का अधिकार है

गरीब आदमी पर्चा दाखिल करने के बाद भी लड़ाई से बाहर रहता है चुनाव में आमने सामने की लड़ाई में दो पूंजीपति होते हैं त्रिकोणीय लड़ाई में तीन पूंजीपति होते हैं

अथवा चतुष्कोणीय मुकाबले में 4 पूंजीपति होते हैं गरीब प्रत्याशी  वोट कटवा के रूप में बदनाम होकर हमेशा मुकाबले से बाहर रहता है

पूंजी पतियों के रहमो करम पर इक्का-दुक्का गरीब आदमी भी चुनाव जीत जाते हैं मगर वह वास्तव में जनता के प्रतिनिधि नहीं होते पूंजी पतियों के चमचे होते हैं

अपवाद स्वरूप इक्का-दुक्का स्वतंत्र जनप्रतिनिधि चुन भी लिए गए तो उनकी आवाज दबी रहती है वह सर उठाने की कोशिश करते हैं तो सांप की तरह उनका सर कुचल दिया जाता

अतः कार्ल मार्क्स के अनुसार भारत में जो लोकतंत्र है वह पूंजीपति वर्ग की तानाशाही है यहा पर दलालों की ताना साही चलती है

*दीपक गौतम*

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