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 दुनिया की पूंजीवादी साम्राज्यवादी ताकतों को समाजवाद की बढ़त पसंद नही

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,मुनेश त्यागी 

      पिछले दिनों अमेरिका की नेशनल इंटेलिजेंस की डायरेक्टर एवरिल हाइंस ने बयान दिया है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। उसने कहा है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए, अर्थनीति के लिए, टेक्नोलॉजी के लिए, राजनीति के लिए और मिलिट्री के लिए पूरी दुनिया में सबसे बड़ी चुनौती और सबसे बड़ा खतरा है। उनके इस बयान के अनुसार अमेरिका, चीन और रूस के बीच बढ़ती हुई दोस्ती से भी सबसे ज्यादा नाखुश है। वह इस दोस्ती को, अपनी वैश्विक प्रभुत्वकारी नीतियों के लिए सबसे बड़ा खतरा मानता है।

     यहीं पर सवाल उठता है कि चीन में कम्युनिस्ट पार्टी ने ऐसा क्या कर दिया है जो अमेरिका के लिए सबसे बड़ी चुनौती और खतरा बन गया है? दरअसल जब हम व्यापक स्तर पर देखते हैं तो आज दुनिया का सबसे बड़ा और मुख्य विरोध पूंजीवाद और समाजवाद के बीच में है। पूंजीपति व्यवस्था और उसके प्रमुख चालक अमरीका और नाटो के देश, अपनी जनविरोधी नीतियों की वजह से भयभीत है और वे दुनिया के लोगों को भटकाने के लिए, इसका आरोप चीन पर लगा रहे हैं। जबकि हकीकत यह है कि अमेरिका के पास आज दुनिया को देने के लिए कुछ भी नहीं है उसकी नीतियों ने स्वयं ही समता समानता और आजादी की धज्जियां उड़ा दी हैं।

       दुनिया की सारी पूंजीवादी ताकतें आज समाजवाद को अपना सबसे बड़ा खतरा मानती है। क्योंकि चीन एक समाजवादी मुल्क है, वहां मजदूरों किसानों का राज्य है और वहां की नीतियों की वजह से चीन की जनता ने आर्थिक रूप से, राजनीतिक रूप से, शैक्षिक रूप से, रोजगार के रूप में और एक मजबूत ताकत के रूप में जन्म लिया है। आज चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेज गति से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था है। चीन की ताकत से पूरी दुनिया के पूंजीपति वर्ग के लोग घबरा गए हैं, विशेष रूप से अमेरिका, इसलिए अमेरिका आज चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को अपने लिए, एक बड़ा खतरा और चुनौती बता रहा है।

     जब हम पूंजीवाद और समाजवाद के इतिहास पर एक सरसरी नजर डालते हैं तो हम देखते हैं कि पूंजीवाद अपने जन्म से ही मजदूर वर्ग का विरोधी रहा है, उसने मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं दिया, उनका शोषण किया है, उनके साथ अन्याय किया है, उनके कार्य दिवस और कार्य के घंटे निश्चित नहीं किए। मजदूर वर्ग तभी से इसका विरोध कर रहा है। इसके बाद 1848 में दुनिया की सबसे पहली क्रांतिकारी किताब “कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो” के माध्यम से मार्क्स और एंगेल्स ने दुनिया के सामने समाजवाद की रूपरेखा प्रस्तुत की। 

     अपनी इस किताब में उन्होंने पूंजीवाद के निर्मम शोषण की पोल खोल दी। इस लुटेरी व्यवस्था को मजदूरों विरोधी बताया और उन्होंने पूरी दुनिया के सामने प्रदर्शित किया कि इस मजदूर विरोधी पूंजीवादी व्यवस्था का विकल्प समाजवाद हो सकता है और अपनी इस किताब में उन्होंने समाज के मूलभूत ढांचे में क्रांतिकारी परिवर्तन करके समाजवाद की रूपरेखा प्रस्तुत की। तभी से पूंजीवादी व्यवस्था के सारे के सारे कर्ताधर्ता, समाजवाद के खिलाफ आग उगलते रहे हैं और दुनिया को इसके बारे में अनाप-शनाप बोल कर गुमराह करते रहे हैं।

     मार्क्स के समाजवादी सिद्धांतों और विचारों पर चलकर, लेनिन ने 1917 में रूस में  समाजवादी क्रांति की और समाजवादी व्यवस्था की स्थापना की‌। समाजवादी व्यवस्था कायम होने के बाद रूस चंद वर्षों में दुनिया की महान शक्ति बन बैठा और उसने पूंजीपति वर्ग को पूरी दुनिया में चुनौती दी। इसके बाद चीन में समाजवादी क्रांति हुई और वहां किसानों मजदूरों की सरकार कायम की, जिसका नेतृत्व चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने किया। इसके बाद यह समाजवादी आंदोलन जारी रहा। 

      इसके बाद वियतनाम, क्यूबा, कोरिया में भी समाजवादी आंदोलन ने ज़ोर पकड़ा और वहां पर भी कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में, किसानों मजदूरों की सरकार कायम हो गई। पूरी दुनिया में समाजवादी व्यवस्था ने पूंजीवादी शोषण के राज खोल दिए और पूंजीवादी व्यवस्था के जन विरोधी, मजदूर विरोधी और किसान विरोधी चरित्र को दुनिया के सामने लाकर रख दिया। पूरी दुनिया समाजवादी विचारों से सराबोर हो गई। दुनिया के अधिकांश लोग समाजवादी उसूलों और सिद्धांतों की और समाजवादी क्रांति करके, समाजवादी व्यवस्था कायम करने की बात करने लगे।

     आज हालात ये हैं कि समाजवादी विचारों के प्रचार प्रसार को रोकने के लिए दुनिया भर के सारे पूंजीपति वर्ग ने अपनी एक फौज खड़ी कर ली है। इनमें नेता, लेखक, कवि, बुद्धिजीवी, वकील, जज, पत्रकार, शिक्षक और प्रोफेसर सभी शामिल हैं। पूंजीपतियों ने समाजवादी व्यवस्था और विचारधारा के प्रचार प्रसार को रोकने के लिए, किसी भी देश समेत दुनिया की तमाम धर्मांध, अंधविश्वासी, जातिवादी, सामंती, और दुनिया भर की सभी प्रतिक्रियावादी ताकतों और लंपट वर्ग से समझौता कर लिया है।

    इसी लुटेरे वर्ग ने पूरी दुनिया में एनजीओ की स्थापना की और अपनी एक बहुत बड़ी सेना खड़ी कर ली है। एनजीओ दुनिया का सबसे बड़ा मकड़जाल है। इन सारे एनजीओ का दिशा निर्देशन और आर्थिक प्रबंधन दुनिया की बड़ी बड़ी मल्टीनेशनल कारपोरेशन और दुनिया के बड़े-बड़े पूंजीपतियों द्वारा किया जाता है। अधिकांश एनजीओ का एक ही मकसद है कि पूरी दुनिया में समाजवाद, साम्यवाद और क्रांतिकारी सोच और परिवर्तन की ओर जाते नौजवानों को रोकना, गुमराह करना और क्रांतिकारी सोच और कार्यवाहियों से उन्हें पतित कर देना, उन्हें शराब और शबाब की विकृतियों में डुबो देना और उन सब को प्रतिक्रांतिकारी और समाजवाद विरोधी कामों में लगा देना है।

     रूसी क्रांति को सरसब्ज होने से रोकने के लिए 1925 में पहला एनजीओ रॉकफेलर फाउंडेशन ने बनाया था। उसके बाद तो पूरी दुनिया में फोर्ड फाउंडेशन, कोका कोला फाउंडेशन, बिल गेट्स फाउंडेशन, टाटा और बिड़ला फाउंडेशन जैसे लाखों एनजीओ की बाढ़ सी आ गई है। दुनियाभर में तमाम एनजीओ मुख्य रूप से समाजवादी विचारधारा के प्रचार प्रसार को रोकने में लगे हुए हैं।

     आखिर यह पूंजीपतियों की दुनिया समाजवादी विचारधारा और समाजवादी व्यवस्था से क्यों डरती है? समाजवाद ने पिछले लगभग 175 वर्षों में दुनिया से पूंजीवादी लूट के साम्राज को खत्म करने का रास्ता प्रशस्त किया है। उसने पूंजीपतियों के द्वारा की जाने वाली लूट और मुनाफे का भंडाफोड़ किया है और दुनिया के देशों में क्रांति और समाजवादी व्यवस्था परिवर्तन का रास्ता दिखाया है।

     समाजवादी व्यवस्था और सरकारों ने अपने अपने देशों की सारी जनता को बुनियादी सुविधाएं दी हैं। सबको रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार मुहैया कराएं हैं। पूंजीपतियों द्वारा देश के संसाधनों की लूट और मुनाफाखोरी पर रोक लगाई है और समाज की व्यवस्था को और पूरे मानवीय और प्राकृतिक संसाधनों का इस्तेमाल, पूरे देश की जनता का कल्याण और विकास करने के लिए किया है। 

       पूंजीवादी व्यवस्था पिछले तीन सौ सालों में किसी भी देश में ऐसा नहीं कर पाई है। वह ऐसा कर भी नहीं सकती है क्योंकि उसका मुख्य उद्देश्य जनता का, किसानों का, मजदूरों का, नौजवानों का, महिलाओं का कल्याण करना नहीं है, बल्कि उसका मुख्य उद्देश मुनाफा कमाना है और देश और दुनिया भर के संसाधनों पर कब्जा करके पूरी दुनिया में अपना लुटेरा नियंत्रण और पूंजीवादी प्रभुत्व कायम करना है, ताकि उसकी लूट रहे और मुनाफाखोरी जारी रह सके।

     अमेरिका और नाटो देशों के संरक्षण में पूरी दुनिया के लुटेरे पूंजीपति, किसी देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से समाजवादी व्यवस्था और सोच को खत्म कर देने पर आमादा है इसलिए पहले यूएसएसआर और अब चीन समेत पूरी दुनिया से समाजवादी व्यवस्था और सोच को खत्म कर देना चाहते हैं। अमेरिका ने क्रांति के बाद क्यूबा की आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है और वहां की समाजवादी सरकार को, समाजवादी कार्यों को आगे बढ़ाने में तरह-तरह की बाधाएं डाल रहा है।

      अमेरिकी पूंजीपति वर्ग, दक्षिणी अमेरिका की वामपंथी समर्थक सरकारों के कामों में लगातार तरह-तरह के विघ्न डालता रहता है, उनको कार्य नहीं करने देता, वहां पर सीआईए द्वारा आंतरिक हस्तक्षेप करता रहता है और यह काम आज भी बदस्तूर जारी है‌। अपनी इन्हीं कार्यनीतियों के तहत, आज अमेरीका चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को सबसे बड़ा खतरा बता रहा है क्योंकि वे समाजवादी चीन की लगातार बढ़ती आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक नीतियों से और लगातार तेज गति के विकास  से भयभीत है और चीन की बढ़ती हुई ताकत को अपने वैश्विक प्रभुत्व के अभियान को खतरा मान रहे हैं। यहां पर हम तो यही कहेंगे,,,,

वो कर रहे हैं तो करें, तिजारत मुनाफों की, 

हमारी तो मंजिल समाजवाद है, मरे या जिएं

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