चंचल पता नही क्यों ‘रोने’ को भावुकता के इर्द गिर्द ही घुमा कर छोड़ दिया गया .पूरी बहस भावुकता के अलग अलग हिस्सों के इर्द गिर्द ही घूमती रही . जो जुमले बोले गए उसमे अनेक रस बहे . एक – रफूगर खंड वाकई व्यथित है ,बेचारा बोलते बोलते रो दिया . दो – विरोध खण्ड लाइट , कैमरा , ऐक्शन अब रोना शुरू तीन – रंगमंच खंड पहली सतर – हमने अपनो को खोया है , यहां लम्बा पॉज इतना लंबा कि दर्शक भी रोने लगे और वह भी नाटक का हिस्सा बन जाय .भारतीय रंगमंच की यह सनातन विधा है, जब दर्शक खुद रंगमंच का हिस्सा बन जाता है .उदाहरण के लिए दशहरा के समय विजय दशमी के अवसर पर, जब राम रावण युद्ध होता है तो जनता खुद सेना बन जाती है .एक हिस्सा राम के साथ एक रावण की ओर .राम नगर की राम लीला देख कर ही ब्रिटिश रंगकर्मी वेन्विट्ज ने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय की रिपेट्री के साथ चेरी का बगीचा तैयार कराया था .लाजवाब प्रस्तुति रही .नायक थे वागीश सिंह . मनोहर सिंह , सुरेखा सीकरी , प्रमोद माउथे , युवराज .बहक रहा हूँ चेरी के बगीचा पर सुलेख नही लिखना है .उस पर लिख चुका हूं सारिका में . रंगमंच और राजनीति मंच में बालिश्त भर की दूरी होती है .एक को दर्शक खुल्लम खुल्ला नाटक मान कर देखता है ,दूसरे में हकीकत और फसाने के बीच देर से भेद कर पाता है .इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण भारतीय सियासत में खुल कर सामने आया जब संसद में एक मंत्री मरहूम अरुण जेटली ने कहा – जनाब मोदी ने पब्लिक में कहा था , सदन में बिल्कुल नही कहा था .यानी जो जनता में कहा गया , वह नाटक था . प्रसंग था चुनावी सभा मे मोदी का एलान – अगर जीते तो देश के हर नागरिक के खाते में पंद्रह लाख रुपये जमा हो जांयगे .मोदी जीत गए .संसद में इसे जेटली ने यह कह कर खारिज कर दिया कि संसद में थोड़े ही बोले थे .दूसरे ने कहा वह तो एक जुमला था .तीसरे ने कहा मोदी को क्या मालूम था कि जीत जांयगे .बहरहाल जनाब प्रधान मंत्री का रोना इसी तरह के चक्रव्यूह में चकरघिन्नी की तरह घूम रहा है .हम इस कोण से अलहदा दूसरी तरफ चलते हैं .( यार ! हम भी परेशान हलाकान में हैं , हमारे अपने भी हमसे छूटे हैं .हम भी आपसे सहमत है , सरकार नाकार ही नही हत्यारी भी है , कह चुका हूं. बोलते बोलते .फिर बोलूंगा .चुप रहना आदत नही है .आओ कुछ देर तो मन आन करो .इस लिए यह बकवास लिख रहा हूँ .मन करे तो पढ़ो नही तो कुछ और पढ़ो .लॉक डाउन का एकाकी काटने के लिए कहीं का ईंट , कहीं का रोड़ा तो खोजना ही पड़ेगा .)कहाँ था ? चार – सनातन खण्ड पहली ही सतर से बिल्बिलायेंगे जब हम यह कहेंगे कि सनातन जिसे कहा जाता है , यह विवादित पुरातन सामाजिक व्यवस्था रही है .इस खंड का सबसे लंबी दूरी तक चला धर्म बौद्ध रहा है .अशोक कार्यकाल तक .बौद्ध और सनातन समेत अनेक मतावलंबियों में अनेक तंत्र , मंत्र , जादू , टोना जैसे मनोवैज्ञानिक विकार रहे हैं.उसे खोजा जाय तो आज भी मिल जाएगा .यह बहुत दिलचस्प विषय है . ‘ वक्त ‘ का विभाजन और उसका फल .इसे मुहूर्त कहते हैं .हमारे एक विदेश मंत्री हुए हैं बिहार के श्याम नंदन मिश्र .घाना जा रहे थे निश्चित अवधि के दो दिन पहले ही ‘ घर से ‘ निकल गए .एयर पोर्ट में रहे .क्यों कि जिस दिन उन्हें घाना पहुचना था उस दिन ‘ घर से ‘ निकलते तो वह यात्रा ‘ दिसा सूल ‘ ( दिग शूल ) में आती और अनिष्ट हो जाता .किस दिशा में किस दिन यात्रा करनी चाहिए इस समाज मे इसका भी विधान है . और उदाहरण देखिये – बिल्ली का सामने आ जाना . कुई जातियों के लिए भी अशुभ संकेत मिलते हैं .आंख का फड़कना .अंग का फड़कना .हथेली का खुजलाना .वगैरह वगैरह ।. और रोना ? निहायत ही अपशगुन है .रात में बिल्ली का रोना .दिन में सियार का रोना .ये सब अपशगुन की पूर्व सूचना देते हैं .कुकुर का मुह ऊपर करके रोना भूचाल आने की सूचना दे देता है .एक मुई पक्षी होती है बहुत कुलक्षणी है .अइया किसी को भी रात में किसी का नाम लेकर बुलाने को मना करती थी मुई नाम सुन लेगी तो वह भी घूम घूम कर यही नाम बोलेगी . मुआफी चाहता हूं इस शैली में राजा के कुलक्षणी चरित्र की भी व्याख्या है .यह चरित्र अपनी ‘ रिआया ‘ के साथ अत्याचारी ही बना रहेगा , उसका लक्षण बहु श्रुत है ।