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*आव्हान,भ्रांति मिटाओ अभियान*

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी मुझसे मिलने आए। सीतारामजी ने मुझसे कहा हमें 9 अगस्त क्रांति दिवस पर वैचारिक संवाद करना चाहिए।
मैने सीतारामजी से कहा बहुत से लोग और देश की भावी पीढ़ी तो क्रांति दिवस के बारे में अनभिज्ञ ही होगी?
सीतारामजी ने कहा इसीलिए तो हमें वैचारिक संवाद करना है।
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधीजी ने क्रांति दिवस की घोषणा की थी,और 9 अगस्त 1942 को क्रांति दिवस का देशव्यापी आंदोलन शुरू हुआ।
क्रांति दिवस पर ही अपने देश के क्रांतिकारियों ने विदेशी हुकूमत के विरुद्ध अंग्रेजों भारत छोड़ो का नारा (Quit India Movement)
बुलंद किया था।
मैने सीतारामजी से कहा हम साहित्यकार हैं। हमें वैचारिक संवाद देश-काल और परिस्थिति को ध्यान में रख कर करना चाहिए।
सीतारामजी ने कहा हां सच में आज की राजनैतिक,सामाजिक, धार्मिक,आर्थिक और सांस्कृतिक परिस्थिति को देखते हुए विचार करना चाहिए।
उपर्युक्त सभी क्षेत्रों का कमोवेश आज व्यापारिकरण हो गया है।
व्यापारीकरण,पूंजीवाद का पोषक होता है,पूंजीवाद विलासितापूर्ण जीवन यापन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। विलासिता पूर्ण जीवन यापन करने वाले सुविधाभोगी मानसिकता में लिप्त हो जातें हैं।सुविधाभोही मानसिकता,भ्रष्ट आचरण का पर्याय बन जाती है।
भ्रष्ट आचरण यथास्थतिवाद का समर्थक होता हैं। यथास्थितिवादी परिवर्तन के विरोधी होते हैं।
इसीलिए यथास्थितिवादी हर क्षेत्र में भ्रांति बनाए रखने के लिए प्रयास रत रहते हैं। भ्रांति से ग्रस्त लोग हिंसा के समर्थक होने की संभावना होती है।
इसके उपरांत भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि,परिवर्तन संसार का नियम है।
मैने कहा आज हमारा दायित्व है कि, तकरीबन हर एक क्षेत्र में फैल रही भ्रांति मिटाने के लिए सक्रिय होना चाहिए।
भ्रांति मिटाओ अभियान चलाना चाहिए।
हर क्षेत्र फैल में रही भ्रांति मिटाने के लिए हमें अंधविश्वा से लड़ना होगा।
इतिहास पर गौर करें तो पूर्व में भी हमारे सच्चे आध्यात्मिक संत, साहित्यकार,प्रगतिशील विचारक अंध विश्वास के विरुद्ध सक्रिय रहें हैं। उन्हे कट्टर पंथियों की प्रताड़ना का शिकार भी होना पड़ा है।
इस संदर्भ में शहीदे आज़म भगत सिंह का यह कथन प्रासंगिक है।
बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती
क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है
वर्तमान में हमें वैचारिक अभियान में अपनी सक्रियता बनाए रखने के लिए शायर साहिर लुधियानवी का यह शेर “प्रेरणा दायक” है।
हज़ार बर्क़ गिरे लाख आँधियाँ उट्ठें
वो फूल खिल के रहेंगे जो खिलने वाले हैं

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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