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उत्तर भारत में 300 साल में ऐसा मंदिर नहीं बना-चंपत राय

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धीरेंद्र सिंह 

अयोध्या: प्रभु श्रीराम की नगरी अयोध्या की दिव्यता, भव्यता और नव्यता की झलक दिखने लगी है। न केवल नगर में हो रहे विकास कार्यों में, बल्कि भगवान राम के भव्य मंदिर और यहां तक कि उनकी मूर्ति में भी अलौकिकता के दर्शन होंगे। मंदिर ट्रस्ट की ओर से भी इस पर अपनी मुहर लगा दी गई है। ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया है कि प्रभु श्रीराम की मूर्ति इस प्रकार से बनाई गई है कि प्रत्येक वर्ष रामनवमी पर भगवान सूर्य स्वयं अपनी किरणों से श्रीराम का अभिषेक करेंगे। भारत के प्रख्यात अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की सलाह पर मूर्ति की लंबाई और उसे स्थापित करने की ऊंचाई इस प्रकार से रखी गई है कि हर साल चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर दोपहर 12 बजे सूर्य की किरणें प्रभु श्रीराम के ललाट पर पड़ेंगी।

चंपत राय के मुताबिक तीनों शिल्पकारों ने प्रभु श्रीराम की खूबसूरत मूर्तियां बनाई हैं। चंपत राय ने चुनी गई मूर्ति की सौम्यता का बखान करते हुए कहा कि श्यामल रंग के पत्थर से निर्मित मूर्ति में न केवल भगवान विष्णु की दिव्यता है बल्कि 5 वर्ष के बालक की मासूमियत भी है। चेहरे की कोमलता, आंखों की दृष्टि, मुस्कान, शरीर को ध्यान में रखते हुए मूर्ति का चयन किया गया है। 51 इंच ऊंची मूर्ति के ऊपर मस्तक, मुकुट और आभामंडल को बारीकी से तैयार किया गया है।

जरूरत हुई तो रात 12 बजे तक होंगे दर्शन

ट्रस्ट की ओर से कहा गया है कि 22 जनवरी को दिन में देशभर के पांच लाख मंदिरों में उल्लास मनाया जाएगा। चंपत राय ने लोगों से अपील की कि 26 जनवरी के बाद ही लोग मंदिर में दर्शन के लिए आएं। ट्रस्ट के महासचिव ने आश्वस्त किया कि जब तक सभी लोग दर्शन नहीं कर लेंगे तब तक मंदिर के कपाट खुले रहेंगे। जरूरत पड़ी तो रात 12 बजे तक दर्शन खुले रखे जाएंगे।

16 जनवरी से प्रारंभ हो जाएगी पूजा विधि

ट्रस्ट के अनुसार मूर्ति की प्रतिष्ठा पूजा विधि को 16 जनवरी से प्रारंभ कर दिया जाएगा। इसके अलावा 18 जनवरी को गर्भगृह में प्रभु श्रीराम को आसन पर स्थापित कर दिया जाएगा। राममंदिर परिसर में ही महर्षि वाल्मीकि, महर्षि वशिष्ठ, महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, निषाद राज, माता शबरी और देवी अहिल्या का भी मंदिर बनाया जाएगा। जटायु की प्रतिमा पहले से ही स्थापित कर दी गई है।

अद्भुत होगा श्रीराम मंदिर

चंपत राय ने बताया कि राम मंदिर अद्भुत होगा। दक्षिण भारत में ऐसे कई मंदिर हैं, मगर उत्तर भारत में बीते 300 साल में ऐसा कोई मंदिर निर्मित नहीं हुआ है। इसका निर्माण करने वाले इंजीनियरों के मुताबिक पत्थरों धूप, हवा और पानी का प्रभाव ज्यादा नहीं पड़ता है। जमीन के संपर्क में होने के कारण पत्थर नमी सोखता है, लेकिन यहां पत्थर नमी नहीं सोख पाएगा। क्योंकि नीचे ग्रेनाइट लगाया गया है।

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