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*चंदा मामा पास के और वोट की आस के*

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*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

विरोधियों ने इस बार तो हद ही कर दी। बताइए, मोदी जी पर चोरी का ही इल्जाम लगा दिया। कहते हैं मोदी ने श्रेय चुरा लिया। वैसे मोदी जी पर श्रेय की चोरी का इनका इल्जाम कोई नया नहीं है। कभी नेहरू जी के, तो कभी इंदिरा गांधी के श्रेय की चोरी का इल्जाम तो ये मोदी जी पर शुरू से लगाते ही आए हैं। और यूपीए की तो खैर कोई नीति, कोई योजना नहीं होगी, जिसकी चोरी का इल्जाम इन्होंने मोदी जी पर नहीं लगाया होगा। और तो और ये तो बेचारे मोदी जी पर अटल जी का श्रेय चुराने तक का इल्जाम लगाने से भी बाज नहीं आते हैं। और आडवाणी जी की तो खैर पीएम की कुर्सी की ही चोरी का इल्जाम घुमा-फिराकर, विरोधी तो विरोधी, कई अपने भी मौके-बे-मौके लगा ही देते हैं। पर इस बार तो भाई लोग हद ही टाप गए। मोदी जी पर वैज्ञानिकों के श्रेय की चोरी का इल्जाम लगा दिया।

और चोरी भी कोई दबी-छुपी नहीं, दिन दहाड़े। टीवी पर। सचमुच सारी दुनिया के देखते-देखते। चंद्रयान-3 मिशन की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के ऐन मौके पर, जब सारी दुनिया की नजरें विक्रम लैंडर पर लगी हुई थीं, तब इसरो की नजरें दक्षिण अफ्रीका से देख रहे, मोदी जी पर लगी हुई थीं। जब विक्रम लैंडर ने सचमुच सॉफ्ट लैंडिंग की, उससे ऐन पहले इसरो से आ रही तस्वीरों में मोदी जी की लैंडिंग हुई। और जैसे ही इसरो के मुखिया ने एलान किया कि हम चांद पर पहुंच गए, वैसे ही मोदी जी का बधाई का कॉल कम भाषण पहुंच गया। इसरो के मुखिया के हर्ष के चौतीस सैकेंड, मोदी जी के भाषणनुमा संदेश के चौबीस मिनट। पर इन विरोधियों को कोई बताए कि इसमें चोरी कहां से आ गयी? वैसे भी जो कुछ सब की आंखों के सामने हो, उसे चोरी तो नहीं ही कहेंगे।

वैसे भी मोदी जी पर चंद्रयान-3 की कामयाबी के लिए वैज्ञानिकों के श्रेय की चोरी का इल्जाम लगाने वालों ने इल्जाम लगाने में कुछ ज्यादा ही जल्दी कर दी। काश मोदी जी पर यूं इल्जाम लगाने वाले ज्यादा नहीं, सिर्फ दो दिन रुक जाते। विरोधी अगर मोदी जी की दक्षिण अफ्रीका से वाया ग्रीस वापसी तक रुक जाते, तो हमें यकीन है कि कम-से-कम ऐसा निष्ठुर इल्जाम तो नहीं ही लगाते। और अगर विपक्षी इतना निष्ठुर इल्जाम नहीं लगाते, तो मोदी जी इसरो के कमांड सेंटर में वैज्ञानिकों के सामने मंच पर पहुंचकर, इतने भावुक नहीं हो जाते! नहीं, हम यह नहीं कर रहे हैं कि मोदी जी भावुक नहीं होते। मोदी जी भावुक जरूर होते। मोदी जी भावुक जमकर होते। मोदी जी कैमरे के सामने भावुक होने का जरा-सा भी मौका चूकने वालों में से नहीं हैं, फिर यह तो तगड़ा मौका था। तगड़ा मौका था, तभी तो मोदी जी घर वापसी पर अपने विशेष विमान से दौड़े-दौड़े सबसे पहले बंगलूरु पहुंचे थे, वह भी सुबह तड़के। इतने तड़के कि मुख्यमंत्री, राज्यपाल सब को संदेश दे दिया था कि नींद खराब कर के स्वागत के लिए नहीं पहुंचें, जिसके बाद सब के सब पहुंचकर ही माने। जब सब पहुंच ही गए, तो मोदी जी अपना कर्तव्य पालन करने में कहां जरा भी कोताही करने वाले थे। उतने तड़के लोगों को पूरा भाषण दिया, विज्ञान में विश्वास करने वाली पूरी दुनिया के उत्साहित होने की खबर से लेकर, अपने वैज्ञानिकों से मिलने के लिए उत्सुक होने की खबर तक। पर थोड़ा-बहुत भावुक होना तो फिर भी बनता था — पर इसरो सेंटर में गिरते-गिरते थमे आंसू! विरोधियों को मोदी जी पर चोरी का इल्जाम नहीं लगाना चाहिए था। रुला दिया ना छप्पन इंच की छाती वाले को!

काश! विरोधियों ने चोरी का इल्जाम लगाने से पहले, इसरो के वैज्ञानिकों को मोदी जी की डाइरेक्ट वाली बधाई का वीडियो देख लिया होता। यहां सिर्फ गिरते-गिरते रुके आंसू ही नहीं थे। यहां सिर्फ रुंध गया गला ही नहीं था। यहां भावनाओं के वेग से उखड़े शब्द ही नहीं थे। यहां बाकायदा वैज्ञानिकों के दर्शन थे। यहां वैज्ञानिकों के दर्शन की ऐसी प्रबल उत्सुकता थी कि पल-पल रुकना ऐसा हो गया था, जैसे युगों का इंतजार। और तो और, यहां वैज्ञानिकों से इसकी माफी की मांग भी थी कि उन्हें कष्ट हुआ होगा, क्योंकि उन्हें दर्शन देने के लिए सुबेरे-सुबेरे उठाकर बुला लिया गया! और थे वैज्ञानिकों के लिए सैल्यूट ही सैल्यूट। उनके श्रम को सैल्यूट। उनके धैर्य को सैल्यूट। उनकी लगन को सैल्यूट। उनके जीवटता को सैल्यूट। उनके जज्बे को सैल्यूट। उसके ऊपर से जहां विक्रम लैंडर के पांव पड़े, चांद पर उस जगह का नामकरण — शिव शक्ति! जहां चंद्रयान-2 की क्रैश लैंडिंग हो गयी थी — तिरंगा पाइंट। ऊपर से हर साल 23 अगस्त को, राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस और। यह श्रेय की चोरी है या श्रेय की मूसलाधार बारिश है। वैज्ञानिकों को और कितना श्रेय चाहिए!

मोदी जी ने सच कहा — हम वहां पहुंचे हैं, जहां कोई नहीं पहुंचा है। भारत चांद पर पहुंच गया। और भारत का गर्व चांद पर पहुंच गया। यह पवित्र समय है। वैसे तो पूरा अमृतकाल ही पवित्र है, पर यह विशेष रूप से पवित्र समय है — चांद पर शिवशक्ति के अवतरण का। ऐेसे समय पर सिर्फ मोदी जी को नीचा दिखाने के लिए, रुपए-पैसे की भौतिकवादी बातें छेड़ना, भारतीय संस्कृति के स्वभाव के विरुद्ध है। यह राष्ट्रीय गर्व का अवसर है। इस अवसर पर हिसाब-किताब की बातें कोई न छेड़े। कोई न पूछे कि भाषण और सैल्यूट के अलावा, मोदी जी ने अंतरिक्ष शोध को और इसरो को दिया ही क्या है? मिशन चंद्रयान-3 का लॉन्च पैड बनाने वाले हैवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन के इंजीनियरों को 17 महीने तनख्वाह नहीं मिली थी, हालांकि फिर भी मिशन लॉन्च हुआ। बड़े मिशनों के बजट में 32 फीसद की कटौती कर दी गयी, फिर भी मिशन कामयाब हुआ। पर सचाई यह है कि इस मिशन की कामयाबी के लिए मोदी जी की मेहनत के सामने, ये सब तो कुछ भी नहीं है। मिशन के कामयाब होते ही उन्होंने संस्कृतमय हिंदी में भाषणनुमा संदेश दिया। विदेश में बार-बार मिशन की सफलता का गौरव गान किया। स्वदेश पहुंचते ही, बंगलूरु हवाई अड्डे पर ही मिशन के महत्व पर भाषण दिया। इसरो केंद्र में पहुंचकर भावपूर्ण भाषण भी दिया और चांद पर भारत के प्लाटों का भी नामकरण किया। दिल्ली पहुंचकर हवाई अड्डे पर फिर स्वागत कराने के बाद, मिशन की सफलता का बखान किया यानी फिर भाषण  दिया। और आगे 2024 के चुनाव तक मिशन चंद्रयान-3 की सफलता का बखान करने का वादा है। और क्या बच्चे की जान लोगे! वैज्ञानिकों से कुछ-न-कुछ फालतू की मेहनत कराई है नरेंद्र मोदी जी ने। इसके बाद भी जो मोदी जी अपने हिस्से के श्रेय में से वैज्ञानिकों पर लुटा रहे हैं, उन पर चोरी की तोहमत! विरोधियों तुम्हारे भला नहीं होगा!!

*(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोक लहर’ के संपादक हैं।)*

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