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जब गुस्से में  प्रधानमंत्री गुजराल ने अटल को टोका तो तमतमा गए थे चंद्रशेखर

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उनको गुजरे हुए 5 साल हो गए गए। देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से विभूषित अटल ने 16 अगस्त 2018 को आखिरी सांस ली थी। भारतीय राजनीति के ‘अजातशत्रु’ अटल का उनके राजनीतिक विरोधी भी बहुत सम्मान करते थे। उनकी पहचान एक प्रखर वक्ता की थी। लोग पॉज लेकर बोलने की उनकी खास शैली के दीवाने थे। वाकपटु ऐसे कि हमले करने वाला उनके पलटवार से निरूत्तर हो जाया करता था। उनकी पुण्यतिथि पर हम बताते हैं वो किस्सा जब अटलजी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थे। केंद्र में इंद्रकुमार गुजराल की अगुआई में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी। कश्मीर मुद्दे पर तत्कालीन पीएम गुजराल के विरोधाभासी बयानों पर अटल सदन में उन्हें घेर रहे थे। इस दौरान गुजराल गुस्से में लाल हो गए। दोनों नेताओं में तीखी नोक-झोंक भी देखने को मिली। गुजराल साहब ने अटल जी को यहां तक कह दिया कि आप देशभक्ति मुझे मत सिखाइए। वाजपेयी पर पीएम गुजराल को भड़कते देख पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर तमतमा गए और सदन में खड़े होकर पीएम को गुस्सा नहीं करने की नसीहत दे डाली।

गुजराल के कश्मीर में आतंकियों से बिनाशर्त बातचीत के बयान का था मुद्दा
तारीख 28 जुलाई 1997, लोकसभा में शून्य काल का समय। नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी पीएम गुजराल को कश्मीर पर दिए उनके विरोधाभासी बयान के लिए घेर रहे हैं। गुजराल कुछ दिन पहले ही कश्मीर दौरे पर गए थे और मीडिया में उनके विरोधाभासी बयान चल रहे थे। पहले बयान में उन्होंने कथित तौर पर आतंकियों के साथ बिना शर्त बातचीत की पेशकश की थी। बाद में उन्होंने सफाई दी थी कि बातचीत तभी संभव है जब आतंकी हथियार छोड़ें। गुजराल ने सदन में सफाई दी कि बातचीत की उनकी पेशकश सिर्फ भारत के लड़कों के लिए था, न कि सीमापार के लोगों के साथ। उन्होंने कहा कि बातचीत तभी शुरू होगी जब मिलिटेंट हथियार छोड़ें, ठीक वैसे ही जैसे नगालैंड के एएससीएन बातचीत के लिए हथियार छोड़ने पर राजी हुआ।

गुजराल ने अटल पर ’13 दिन वाली सरकार’ का कसा तंज
कश्मीर मुद्दे पर अपने दिए बयान पर सफाई देते वक्त प्रधानमंत्री गुजराल ने बड़ी चतुराई से अटल बिहारी वाजपेयी पर तंज भी कस दिया। उन्होंने कहा कि कश्मीर मसले पर बातचीत को लेकर उनका रुख वही है जो भारत की वर्षों से चिरपरिचित पॉलिसी रही है, वही पॉलिसी जो वाजपेयी की 13 दिन प्रधानमंत्री रहने के दौरान भी रही थी। दरअसल, 1996 में अटल ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी लेकिन तब उनकी सरकार महज 13 दिन ही चल पाई थी।

…गुजराल को आया गुस्सा
पीएम गुजराल के इतना कहते ही अटल बिहारी वाजपेयी अपनी सीट से उठ खड़े हुए और प्रधानमंत्री को दूरदर्शन पर प्रसारित उनके उस बयान की याद दिलाने लगे जिसमें उन्होंने बिना शर्त बातचीत की पेशकश की थी और अगले ही क्षण उससे उलट बयान दिया था। अटल ने पीएम से पूछा कि दोनों बयानों में से उनका कौन सा बयान सही है? इस पर गुजरात गुस्से में आ गए। वह भी अपनी सीट से उठे और कहा, ‘दूरदर्शन मैं नहीं पढ़ता, आप लोग पढ़ते हैं।’ दरअसल, वह दूरदर्शन देखने की बात कर रहे थे।

अटल और गुजराल में नोक-झोंक, बात देशभक्ति तक आ गई
गुजराल को गुस्से में देख अटल ने कहा, ‘प्रधानमंत्री अकारण उत्तेजित हो रहे हैं…अगर पहले बयान में और आखिरी बयान में अंतर है तब लोगों के मन में भ्रम पैदा होना स्वाभाविक है।’

इस पर गुजराल फिर अपनी सीट से उठे और वाजपेयी को टोका, ‘लेकिन ये भ्रम आप जैसे लोगों के मन में नहीं होना चाहिए, आप समझदार व्यक्ति हैं।’

इस पर अटल थोड़ा सा रुके और फिर कहा, ‘मैं प्रधानमंत्री का आभारी हूं कि वह कह रहे हैं कि मेरे मन में कोई भ्रम नहीं होना चाहिए। लेकिन ऐसी बात होनी ही नहीं चाहिए जो किसी के मन में भ्रम पैदा करे।’ इस पर सदन में ठहाके गूंजने लगते हैं।

गुजराल गुस्से में थे और बार-बार वाजपेयी के भाषण के दौरान खड़े होकर उन्हें टोक रहे थे। एक बार फिर वह सीट से खड़े हुए और कहा, ‘और इसीलिए आपको बयान देते वक्त इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए।’ अटल भी कहां पीछे रहने वाले थे। उन्होंने भी तुरंत गुजराल की चुटकी लेते हुए कहा, ‘अब अगर सारा ध्यान हमें ही रखना है तो प्रधानमंत्री क्या करेंगे?’ उनकी इस चुटकी पर गुजराल पहले तो सीट पर बैठे-बैठे मुस्कुराने लगे लेकिन अगले ही पल अचानक गुस्से में सीट से उठे। वह वाजपेयी से मुखातिब होकर बोले, ‘आप देशभक्ति हमें मत सिखाइए, देशभक्ति का हमें पूरा ज्ञान है।’

प्रधानमंत्रीजी, खुद पर गुस्सा करना सीखिए…तमतमाए चंद्रशेखर ने दी गुजराल को नसीहत
प्रधानमंत्री गुजराल के इस व्यवहार पर पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर तमतमा गए। अचानक वह अपनी सीट से उठे और आसन को संबोधित करते हुए बोले, ‘उपाध्यक्ष जी, मैं बहुत विनम्र निवेदन करूंगा प्रधानमंत्रीजी से कि जरा गुस्सा कम करें। क्योंकि ये शोभा नहीं देता उनके लिए…देश को तोड़ने के लिए जो बाहर से बयान आते हैं, उस पर प्रधानमंत्री जी आपका एक दिन भी गुस्सा मैंने नहीं देखा। पिछले 2 महीनों में कितने बयान आए हैं, क्या प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी नहीं है कि उन बयानों का खंडन करें? गुस्सा यहां अटल बिहारी वाजपेयी पर उतारने से पहले, श्रीमान प्रधानमंत्री जी, थोड़ा अपने पर गुस्सा करना सीखिए। बाहर की पार्टी भारत के बारे में अनाप-शनाप बयान देती है और आपकी सरकार मौन रह जाती है तो देश में ही नहीं, दुनिया में भी आपके बारे में भ्रम पैदा होता है। इस गुस्से से भ्रम नहीं मिटने वाला।’

अटल ने पीएम गुजराल को घेरना जारी रखा
इसके बाद गुजराल फिर सीट से उठते हैं और कहते हैं कि वह चंद्रशेखर का आदर करते हैं लेकिन उन्होंने देश के खिलाफ आने वाले हर बयान का जवाब दिया है। अब बारी अटल की थी। वह फिर बोलना शुरू करते हैं, ‘प्रधानमंत्री को यह स्वीकार करना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में उनके अलग-अलग तरह के बयानों से भ्रम पैदा होता है और अगर ये मामला सदन में उठाया जा रहा है तो ये उन्हें अवसर देता है कि वह सदन में इस पर स्थिति स्पष्ट करें। स्पष्टीकरण करने के बजाय आप आरोप लगा रहे हैं हम पर देश के नाम पर धर्म को तोड़ने का। ये आरोप निराधार हैं, शरारतपूर्ण है।’

आप बैठे रहिए, टोकिए मत ज्यादा…अटल ने गुस्से में गुजराल को सुनाया
वाजपेयी के इतना कहते ही गुजराल फिर गुस्से में सीट से उठते हैं और टोकते हैं, ‘बाबरी मस्जिद ऐसे ही टूट गई?’ पीएम के इस बयान पर अटल एक लंबा पॉज लेते हैं और उन्हें बाबरी पर चर्चा कराने की चुनौती दे डालते हैं। वाजपेयी ने कहा, ‘अभी प्रधानमंत्री देश को तोड़ने की बात कर रहे थे, अब बाबरी तोड़ने पर आ गए। अब अगर ये बहस और आगे चलेगी तो मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री सारा संयम खोकर कुछ ऐसा बोल जाएंगे जो उनके मुंह से शोभा नहीं देती है। अगर आपको बाबरी मस्जिद पर बहस करानी है तो हम तैयार हैं।’ इसके बाद अटल फिर कश्मीर पर गुजराल के बयान का जिक्र कर अपनी बात रखने लगते हैं। बार-बार प्रधानमंत्री की तरफ से टोका-टाकी पर वाजपेयी कहते हैं, ‘आप बैठे रहिए। टोकिए मत ज्यादा। क्योंकि अगर आप इस तरह टोकेंगे तो हम भी टोकेंगे, फिर सदन नहीं चलेगा। आपको सुनने का भी धैर्य रखना चाहिए।’

…तो इतनी गर्मी पैदा नहीं होती, अटल ने गुजराल को दी सीख
वाजपेयी ने आगे कहा, ‘आपका जो बाद का बयान आया, वो ठीक आया। लेकिन इससे बात साबित हो गई कि जो पहले का बयान था वो गलत था। आखिर उन लोगों के साथ बिना साथ वार्ता कैसे हो सकती है जो हथियार के बल पर अपनी बात मनवाना चाहते हैं। जो कश्मीर को भारत से बाहर ले जाना चाह रहे हैं। जो विदेशियों से हाथ मिला रहे हैं उनके साथ तो बिना शर्त बातचीत करने का प्रश्न ही पैदा नहीं होना चाहिए। अगर प्रधानमंत्री इतनी ही बात कहते और इधर-उधर की बातें नहीं करते तो इतनी गर्मी पैदा नहीं होती।’

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