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बदलाव अवश्यम्भावी है

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शशिकांत गुप्ते

देश-काल-स्थिति के नियमानुसार हरक्षेत्र में बदलाव होता है।
सामाजिक क्षेत्र में वैचारिक बदलाव भलेही ना हुआ हो। लेकिन समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति से लेकर उच्च वर्ग का व्यक्ति भी फैशन की दौड़ में पीछे नहीं है।
सांस्कृतिक क्षेत्र में संस्कृति लापता हो गई है। पश्चात असभ्यता के अंधानुकरण को प्रतिष्ठा का मापदंड कहा जा रहा है।
आर्थिक क्षेत्र में आमदनी आठन्नी खर्चा रुपया वाली कहावत चरितार्थ हो रहा है।
धार्मिक क्षेत्र में उपदेशकों की संख्या में दिन-ब-दिन इज़ाफ़ा हो रहा है। मानवीय आचरण, अनुत्तरित प्रश्न बन गया है?
राजनैतिक क्षेत्र में जो बदलाव हुआ है,वह तारीफेकाबिल है।
पक्ष महबूत और विपक्ष कमजोर हो गया है।
आमजन दो घडों में बंट गया है। समर्थकों और विरोधी।
समर्थक मतलब Supporter और विरोधी मतलब Opponent होतें हैं।
राजनीति में अभूतपूर्व बदलाव हुआ है। आज जो सपोर्टर हैं।
वे पिछले दशक में ओपोनेंट थे।
इनलोगों को पूर्व में महंगाई डायन लगती थी। आज महंगाई महसूस ही नहीं हो रही है। बल्कि महंगाई तो सिर्फ विरोधियों के लिए सिर्फ विरोध करने का एक मुद्दा बनकर रह गई है।
महंगाई से डरना नहीं है,ना लड़ना है। महंगाई को सहना है। कारण
महंगाई का सपोर्ट करना मतलब देश के विकास में सहभागी बनने जैसा है।
इनदिनों महंगाई के पर्यायवाची शब्द प्रगति और विकास बन गएं हैं।
देश-काल-स्थिति के नियमानुसार परिवर्तन अवश्यम्भावी है।
काल के चक्र की निरंतरता को कोई रोक नहीं सकता है।
निम्न शेर की गहराई को समझना जरूरी है।
शायर जलील हैदर लाशारी
ने फरमाया है।
वक़्त की मौज हमें पार लगाती कैसे
हम ने ही जिस्म से बाँधे हुए पत्थर थे बहुत
आमजन को सदा सजग,सतर्क
और सावधान रहना जरूरी है।
आज का वर्तमान ही कल इतिहास बनेगा। जब भावीपीढ़ी इतिहास में पढ़ेगी। तब भवीपीढ़ी के लिए बहस का विषय होगा।
सहिष्णुता की पराकाष्ठा की स्तुति करना या आलोचना करना। सम्भवतः आलोचना के Oppnent ज्यादा होंगे। Supporter के सीमित ही होंगे।
भावीपीढ़ी इक्कीसवी सदी की अत्याधुनिक तकनीक में पलने पढ़ने वाली पीढ़ी है।
तार्किकता से समझने वाली पीढ़ी है। यह शाश्वत सत्य है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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