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मानवीय गुणों के समुच्चय से बनता है चरित्र

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    राजेंद्र शुक्ला, मुंबई

      चरित्रवान व्यक्तियों की प्रामाणिकता पर हर कोई विश्वास करता है तथा उन्हें सम्मान देता है। यही नहीं उनके प्रति श्रद्धा भी लोगों के हृदय में उमड़ती रहती है। यह श्रद्धा ही उनकी मूल्यवान सामाजिक सम्पत्ति होती है।

       स्वामी विवेकानन्द ने एक स्थान पर कहा है- “संसार का इतिहास उन थोड़े से व्यक्तियों द्वारा बनाया गया है, जिनके पास चरित्रबल का उत्कृष्ट भण्डार था। यों कई योद्धा और विजेता हुए हैं, बड़े-बड़े चक्रवर्ती सम्राट हुए हैं, किन्तु इतिहास ने केवल उन्हीं व्यक्तियों को अपने हृदय में स्थान दिया है, जिनका व्यक्तित्व समाज के लिए एक प्रकाश स्तम्भ का काम कर सका है।

      वस्तुतः इतिहास ने उन महापुरुषों का ही गुणगान किया है, जिन्होंने अपने समाज को नए जीवन मूल्य, चरित्र के नए मानदण्ड दिए और आदर्शों की समयानुकूल परिभाषा अपने व्यक्तित्व तथा कृतित्व के माध्यम से की है।

       चरित्र मानवीय गुणों के उन समुच्चय का नाम है, जो व्यक्ति के समग्र जीवन को आच्छादित करते हैं और जीवन तथा व्यवहार के सभी क्षेत्रों में उसे प्रमाणित सिद्ध करते हैं। इन दिनों अपने देश-समाज में स्वार्थपरता, बेईमानी, बदनीयती और भ्रष्टाचार व्याप्त है, तो उसका मात्र यही कारण है कि जनमानस में चारित्रिक मूल्यों के प्रति आस्था नहीं है और उनकी अवहेलना की जाने लगी है।

       यह अवहेलना-उपेक्षा ही व्यक्तिगत प्रगति और राष्ट्र की उन्नति में दीवार बनकर खड़ी है। जब तक व्यक्ति उस दीवार को तोड़ने का प्रयत्न नहीं करता, हमारे राष्ट्र की प्रगतिधारा मंद और अवरुद्ध ही रहेगी।

      इस दिशा में शुभारम्भ यहाँ से करना चाहिए, कि अगर व्यक्ति महापुरुष नहीं बन सकता तो न बने किन्तु चारित्रिक मूल्यों का अपने जीवन में समावेश करना तो आरम्भ करे। माना कि प्रत्येक व्यक्ति हरिश्चन्द्र की तरह सत्यवादी नहीं बन सकता, किन्तु अकारण बोले जाने वाले झूठ से तो बच सकता है।

       दधीचि की तरह अपनी अस्थियाँ परोपकार में लगाना प्रत्येक व्यक्ति के लिए संभव न हो, परन्तु दूसरों का बुरा करने से तो बचा जा सकता है और भलाई का कोई न कोई छोटा- मोटा काम भी करते रहा जा सकता है। ईमानदारी, कर्त्तव्य पालन, उदारता, सद्व्यवहार, परदुःखकातरता आदि ऐसे गुण हैं, जिनका अभ्यास छोटे रूप में भी आरम्भ किया जा सकता है और चरित्र साधना के क्षेत्र में क्रमशः आगे बढ़ते रहा जा सकता है।

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