Site icon अग्नि आलोक

करिश्माई सियासत और सम्मोहित मीडिया?

Share

शशिकांत गुप्ते

अंतः जमानत हो ही गई।न्यायालय में मुकदमा चल रहा था।सम्भवतः आगे भी चल सकता है?न्यायालय में तो बहस और जिरह चल रही ही थी।सोशल मीडिया पर जमानत तो दूर आरोपी को अपराधी घोषित करने के लिए न्यायालय से ज्यादा ट्रायल चला गया।
सोशल मीडिया पर इस बात की ज्यादा चर्चा हुई कि,जिसकों जमानत मिल रही है,वह किस जमात का है?
सोशल मीडिया क्या होता है?
यह पहली बार सन 2014 के बाद आमजन को समझ में आया है।इसी समय से मुख्य मीडिया भी दो खेमों में बट गया।
एक ओर धनकुबेरों द्वार वातानुकूल सुविधा युक्त सुसज्जित गोदी में बैठ कर स्तुतिगान करने वाला मीडिया।दूसरी ओर मौकाए वारदात पर मुस्तैद होकर निर्भीकता का परिचय देते हुए यथार्थ प्रकट करने वाला मीडिया।
निर्भीकता उसी के पास होती है जो दूसरों पर निर्भर नहीं होता है।
बहरहाल मुद्दा है जमानत का?निष्पक्ष राय रखने वालें कानूनविदों का कहना है कि, जमानत मिली यह महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं है,सवाल तो यह है कि, इतनी देर से क्यों मिली? इतने दिनों में न्यायालय का कीमती समय क्यों जाया हुआ?
मुख्य मीडिया की तरह सोशल मीडिया भी दो खेमों बात गया।एक और वे लोग हैं,जिनकों सावन के अंधों की तरह सब हरा ही हरा दिखता है।दूसरी ओर वह मीडिया है जो स्वविवेक से यथार्थ पर ही विश्वास करता है।
आँखों के अंधे नाम नयनसुख वाले मीडिया में सलग्न लोग
एक अनोखे जादूगर के द्वारा अच्छेदिन की महज घोषणा के प्रलोभन से सम्मोहित होकर उसके हर एक जुमले रूपी करतब पर समर्थन करतें हैं।
अनोखा जादूगर इसलिए कहा जाता है कि ,यह अद्भुत करिश्में दिखाने की क्षमता रखता है?
इस जादूगर के द्वारा सबसे बड़ा चमत्कार तो यह दिखाई गया है कि,सन दो हजार चौदह के पूर्व देश में जो कुछ हुआ ही नहीं था? वही सब कुछ यह जादूगर बेंच रहा है।सच में ऐसा जादूगर न भूतों न भविष्यति वाली सूक्ति को चरितार्थ करता है।
सन दो हजार चौदह के बाद तो सम्मोहित सोशल मीडिया इतना सक्रिय हो गया कि, बहुत से न्यायालयीन मुकदमों में न्यायालय से ज्यादा मीडिया में ट्रायल होने लग गया।
हाल ही में नशली पदार्थ वाले मुकदमें को भक्तिभाव में लीन मीडिया ने मजहबी रंग में रंगने की भरसक किंतु असफल कोशिश की गई?
आम जादूगर जिस तरह दर्शकों को सम्मोहित कर देता है,उसी तरह सन दो हजार चौदह में विराजित सत्ताकेंद्रित राजनीति ने लोगों को प्रलोभनयुक्त जुमलों के माध्यम से सम्मोहित कर रखा है।
सन दो हजार चौदह के पूर्व एलपीजी से भरें सिलेंडर अर्थात Liquefied Petroleum Gas Cylinder.उठाकर नांचते हुए महंगाई का विरोध किया जाता था।अब उसी सिलेंडर को ऊंचे दामों में खरीदने के लिए लोगों मजबूर कर दिया है। महंगाई जैसे आमजन से मुद्दे मुद्दे पर सम्मोहित मीडिया ने तो अपने आप को सत्ताकेंद्रित सियासत के सामने मानो Surrender अर्थात आत्मसमर्पित ही कर रखा है।
अब की बार महंगाई की मार से आमजन को कितना भी पीड़ित होने दो सम्मोहित सोशल मीडिया के कानों में जू नहीं रेंगेगी?
यही व्यक्तिपूजा में लीन सोशल मीडिया,एक अभिनेता के सुपुत्र के साथी के जेब में कुछ ग्राम नशीले पदार्थ के मिलने पर हंगामा मचाता है।
यही मीडिया स्वामिभक्ति का चश्मा पहन लेता है तब इसे तीन हजार किलों नशीला पदार्थ दिखई नहीं देता है।
सक्षम प्रधान सेवक मजबूत गृहमंत्री के हाथों देश की बागडौर होने बाद भी तीन हजार किलों नशीले पदार्थ का Consignment अर्थात प्रेषण माल देश में आ जाता है।
फिल्मी दुनिया के रसूखदार अभिनेता के पुत्र की गिरफ़्तदारी पर जो स्वामिभक्त सोशल मीडिया हाहाकार मचाता है,इसी मीडिया को नशीले पदार्थ के इतने बड़े Consignment पर साँप क्यो सूंघ गया है।
ऐसे अनेक व्यवहारिक प्रश्न उपस्थित होतें हैं।
अद्भुत जादूगर के पास तो वह तिलस्मी जादू है कि पुलवामा में हजारों किलों विस्फोटक सामग्री ही गायब हो जाती है?
जो भी हो कभी कभी कोई ऐसा भी कोई व्यक्ति प्रकट हो सकता है जो अच्छे से अच्छे जादूगर की हाथों की चालाकी और नजरबंदी के खेल को उजागर कर देता है।
देश की सियासत में ऐसा व्यक्ति हुआ भी है।
महात्मा गांधी के बारे में महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन ने भी कहा था -‘आने वाली नस्लें शायद ही यकीन करे कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी इस धरती पर चलता-फिरता था।
ऐसे व्यक्ति ने ही अहिंसक क्रांति कर देश को आजादी दिलाई है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

Exit mobile version