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चतुर्युग स्वरूपम और कलयुग-लक्षणम 

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          नीलम ज्योति 

  1. सत्य युग (कृत युग)
    आयु : 1728000 साल
    चतुश्पादो धर्म : धर्म 100% मनुष्य निभाते हैं.
    अस्तिगत प्रण : आत्मा का निवास स्थान हड्डियो में होता है जलने के पश्चात् भी.
    सत्यवादि जना : सभी मनुष्य सत्य ही बोलते हैं।
    मनुश्योचता अष्टाविम्शतिहस्ता : सत्य युग के अंत तक मनुष्य की शरीर की लंबाई 28 फीट।
    मनुष्यायुर्मानम् १ लक्शवर्षा : आयु एक लाख वर्ष।
    सप्तवारम् धान्योत्पत्ति : वर्ष में सात बार अनाज उगता है।
    सुवर्न भाण्डानि : धरेलू सामान स्वर्ण से बनता है।
    रत्नमयो व्यापार : व्यापार रत्नो में किया जाता है।
    पुण्य 20
    पाप 0
  2. त्रेता युग :
    आयु : 1296000 वर्ष
    त्रिपदो धर्म : धर्म 75% समाज निभाता है.
    माम्सगत प्राण : आत्मा मनुस्य के मांस में निवास करती है।
    मनौष्योच्चता चतुर्दश हस्ता : तेत्रा युग के अंत तक मनुष्य की लंबाई 40 फीट होती है।
    मनुष्यायुर्मानम् १० सहस्रवर्षा : मनुष्य की उम्र 10000 वर्ष।
    पन्चवारम् धान्योत्पत्ति : वर्ष में 5 बार फसल उगती है।
    रौप्यभान्डानि : घरेलू सामान चांदी से बनाऐ जाते हैं।
    सुवर्नमयो व्यापार : व्यापार आदि स्वर्ण से होता है।
    पुण्य : 15
    पाप : 5
    अवतार : वामन, परशुराम, राम।
  3. द्वापर युग :
    आयु:- 8,64,000 वर्ष.
    द्विपदो धर्म : 50% समाज धर्म का पालन करते हैं।
    रुदिर प्राण : मनुष्य की आत्मा रक्त में।
    मनौष्योच्चता सप्त हस्ता : मनुष्य की लंबाई 7 फीट।
    मनुष्यायुर्मानम् १ सहस्रवर्षा : मनुष्य की आयु 1000 वर्ष।
    त्रिवारम् धान्योत्पत्ति : एक वर्ष में 3 फसल उगती है।
    ताम्रभान्डानि : तांबे के घरेलू सामान उपयोग होते हैं।
    रौप्यमयो व्यापार : चांदी में व्यापार होता होता है।
    पुण्य – 10
    पाप – 10
    मुख्य अवतार : कृष्ण. उनके जाते ही त्रेता युग की समाप्ति।
  4. कलियुग (यंत्र युग)
    आयु : 432000 वर्ष.
    एकपदो धर्म : 25% समाज धर्म की पालना करता है।
    अन्नगतप्राण : मनुष्य की आत्मा उसके भोजन और पानी में।
    व्यापार : व्यापार रूपए- पैसे से।
    मनुष्य की आयु : 100 वर्ष से भी कम।
    मनौष्योच्चता सार्धत्रि हस्ता : कलियुग के अंत तक मनुष्य की लंबाई 3 फीट।
    यंत्रमानव: भावना संवेदना चेतना शून्य मशीनी मनुष्य.
    पुण्य : 1
    पाप : समस्त.

कलियुग के लक्षणों की भविष्यवाणी :
(स्रोत : श्रीमद्भागवत, अंतिम स्कन्ध, अध्याय २ व ३)

 धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, शारीरिक बल तथा स्मरणशक्ति दिन प्रतिदिन क्षीण होते जायेंगे. 
  एकमात्र संपत्ति को ही मनुष्य के उत्तम जन्म, उचित व्यवहार तथा उत्तम गुणों का लक्षण माना जायेगा| कानून तथा न्याय मनुष्य के बल के अनुसार ही लागू होंगे.
  पुरुष तथा स्त्रियाँ केवल उपरी आकर्षण के कारण एकसाथ रहेंगे और व्यापार की सफलता कपट पर निर्भर रहेगी| पुरुषत्व तथा स्त्रीत्व का निर्णय कामशास्त्र में उनकी निपुणता के अनुसार किया जायेगा और ब्राह्मणत्व जन्म पर, जनेऊ पहनने पर निर्भर करेगा.
  मनुष्य एक आश्रम को छोड़ कर दूसरे आश्रम को स्वीकार करेंगे| यदि किसी की जीविका उत्तम नही है तो उस व्यक्ति के औचित्य में सन्देह किया जायेगा| जो चिकनी चुपड़ी बातें बनाने में चतुर होगा वह विद्वान् पंडित माना जायेगा.
 निर्धन व्यक्ति को असाधु माना जायेगा और दिखावे को गुण मान लिया जायेगा | विवाह मौखिक स्वीकृति के द्वारा व्यवस्थित होगा|उदर-भरण जीवन का लक्ष्य बन जायेगा| जो व्यक्ति परिवार का पालन-पोषण कर सकता है, वह दक्ष समझा जायेगा| धर्म का अनुसरण मात्र यश के लिए किया जायेगा. 
   पृथ्वी भ्रष्टजन से भरती जायेगी| समस्त वर्णों में से जो अपने को सबसे बलवान दिखला सकेगा, वह राजनैतिक शक्ति प्राप्त करेगा.
  कलियुग समाप्त होने तक सभी प्राणियों के शरीर आकर में छोटे हों जायेंगें और धार्मिक सिद्धान्त विनिष्ट हो जायेंगे| राजा प्रायः चोर हो जायेंगे; लोगों का पेशा चोरी करना, झूठ बोलना तथा व्यर्थ हिंसा करना हो जायेगा और सारे सामाजिक वर्ण शूद्रों के स्तर तक नीचे गिर जायेंगे| घर पवित्रता से रहित तथा सारे मनुष्य गधों जैसे हो जायेंगे. 
 दुर्गुणों के कारण मनुष्य क्षुद्र दृष्टि वाले, अभागे, पेटू, कामी तथा दरिद्र होंगे| स्त्रियाँ कुलटा होने से एक पुरुष को छोड़ कर बेरोक टोक दूसरे के पास चली जायेंगी. 
 शहरों में चोरों का दबदबा होगा| राजनैतिक नेता प्रजा का भक्षण करेंगे और तथाकथित पुरोहित तथा बुद्धिजीवी अपने पेट व जननांगों के भक्त होंगे.
 ब्रह्मचारी अपने व्रतों को सम्पन्न नही कर सकेंगे और सामान्यता अस्वच्छ रहेंगे| सन्यासी लोग धन के लालची बन जायेंगे. 
व्यापारी लोग क्षुद्र व्यापार में लगे रहेंगे और धोखाधडी से धन कमायेंगे| आपात काल न होने पर भी लोग किसी भी अधम पेशे को अपनाने की सोचेंगे.
 नौकर धन से रहित स्वामी को छोड़ देंगे भले ही वह सन्त सद्रश्य उत्कृष्ट आचरण का क्यों न हो. मालिक भी अक्षम नौकर को त्याग देंगे भले ही वह बहुत काल से उस परिवार में क्यों न रह रहा हो. 
  मनुष्य कंजूस तथा स्त्रियों द्वारा नियंत्रित होंगे | वे अपने पिता, भाई, अन्य सम्बन्धियों तथा मित्रों को त्याग कर साले तथा सालियों की संगति करेंगे.
 शुद्र लोग भगवान् के नाम पर दान लेंगे और तपस्या का दिखावा कर, साधू का वेश धारण कर अपनी जीविका चलायेंगे| धर्म न जानने वाले उच्च आसन पर बैठेंगे और धार्मिक सिद्धांतों पर प्रवचन करने का ढोंग रचेंगे.
  लोग थोड़े से सिक्कों के लिए शत्रुता ठान लेंगे| वे सारे मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों को त्याग कर स्वयं मरने तथा अपने सम्बन्धियों को मार डालने पर उतारू हो जायेंगे.
   लोग अपने बूढ़े माता-पिता, बच्चों व अपनी पत्नी की रक्षा नही कर पायेंगे तथा अपने पेट व जननांगों की तुष्टि में लगे रहेंगे.
 लोगों की बुद्धि नास्तिकता के द्वारा विपथ हो जायेगी| सभी नास्तिक होंगे. आस्तिकता मुर्खतापूर्ण या पाखंडपूर्ण होगी.
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