*अजय असुर*
जितने गहरे हम एंडीज़ (पेरू) में जाते हैं, जितने अधिक स्वदेशी लोग हमारे सामने आते हैं, जो अपनी ही भूमि में बेघर होते हैं। दक्षिण अमेरिका में घूमते हुए मुझे जितना मैंने सोचा था उससे अधिक बदल गया है। मैं कोई और नहीं हूं। मैं वही नहीं हूं जो मैं था।”
– 1952 में 24 वर्षीय चे ग्वेरा।
बहुत से भारतीय उदारवादी और राजनीतिक लोग हैं जो विश्व क्रांति नायक चे ग्वेरा से घृणा करते हैं, मैं उन्हें तीन पुस्तकों की पढ़ने के लिए सिफारिश करूंगा-
i) जॉन एंडरसन का चे ग्वेरा- एक क्रांतिकारी जीवन
ii) द मोटरसाइकिल डायरीज- चे ग्वेरा
iii) गुरिल्ला युद्ध की नियम- चे ग्वेरा
चे ग्वेरा दक्षिणी अमेरिका के यात्रा के दौरान मोटरसाइकिल डायरीज पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक से चे के परिवर्तन का पता चलता है, जान एंडरसन की पुस्तक चे के जीवन के बारे में, उनके त्याग और बलिदान और उनके सशस्त्र क्रांति को दर्शाती है। न्याय और एकजुटता के लिए उनकी ड्राइव, लेकिन उनके दुश्मनों के खिलाफ ठंडे खून वाली क्रूरता और सैन्य अनुशासन के लिए उनका जुनून। और कैसे वह एक समर्पित अंतर्राष्ट्रीयतावादी क्रांतिकारी बन गया। यह आपको एहसास दिलाएगा कि एक अमीर परिवार का 24 वर्षीय डॉक्टर क्रांतिकारी क्यों बन गया। अपने सुख की जिंदगी को तिलांजलि देकर उन्होंने अपनी नौकरी, परिवार और अपना प्यार और घर-बार छोड़कर दुनिया को पूँजीवाद से मुक्त कराने के लिए कैसे कमर कस लिया।
क्यूबा की क्रांति में मुख्य भूमिका निभाने वाले चे ग्वेरा अर्जेंटीना के मार्क्सवादी क्रन्तिकारी थे जिनका जन्म 14 जून 1928 को अर्जेंटीना के रोज़ारिओ में एक मध्यम वर्ग परिवार में हुआ था। इन्हें एल चे या सिर्फ चे भी बुलाया जाता है। स्पेनिश में चे का मतलब होता है- दोस्त। चे ग्वेरा की जीवनी लिखने वाले अमेरिकी पत्रकार जॉन ली एंडरसन के मुताबिक़ चे ग्वेरा की ख़ुद को मिटाकर क्रांति को जिंदा रखने की ज़िद ने विद्रोहियों के बीच उन्हें सबसे ऊंचा मुक़ाम दिलाया था। ये डॉक्टर, लेखक, गुरिल्ला योद्धा, सामरिक सिद्धांतकार राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ भी थे, जिन्होंने दक्षिणी अमरीका के कई राष्ट्रों में क्रांति लाकर उन्हें स्वतंत्र बनाने का प्रयास किया। इनकी मृत्यु के बाद से इनका चेहरा सारे संसार में सांस्कृतिक विरोध एवं वामपंथी गतिविधियों का प्रतीक बन गया है। दमनकारी नीतियों और शासकों के विरुद्ध विश्व में जब भी कहीं क्रांति होती है तो प्रायः लगभग हर प्रदर्शन में, हर आंदोलन में युवा से लेकर वृद्ध तक एक टी-शर्ट में देखे जा सकते हैं जिस पर एक सितारों वाली टोपी पहने एक दाढ़ी वाले युवा की तस्वीर छपी होती है, वह तस्वीर होती है चे ग्वेरा की। एक महान व्यक्तित्व जिसने समस्त विश्व में पूंजीवादी शक्तियों की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध लड़ाई लड़ी और सिर्फ एक नहीं बल्कि कई देशों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया और क्रांति के प्रतीक बने। जिस व्यक्ति को अमेरिका और पूंजीवादी शक्तियां जड़ से उखाड़ फेंकना चाहती थी वह व्यक्ति आज अपने विचारों के कारण करोड़ों लोगों के ह्रदय में अमर है। क्यूबा के स्कूलों के छात्र अर्नेस्तो चे ग्वेरा को एक देवदूत की तरह सम्मान करते हैं, क्योंकि उन्होंने क्यूबा को अपनी जान पर खेलकर वहाँ के अमेरिकी पिट्ठू, फॉसिस्ट और अत्याचारी तानाशाह बतिस्ता से मुक्ति दिलवाने में अपना अमूल्य योगदान दिया था।
चे ग्वेरा की असल ज़िंदगी दक्षिण अमेरिका से शुरू होती है, जब उन्होंने अपने दोस्त अल्बेर्तो ग्रेनादो के साथ दक्षिण अमेरिका को जानने के लिए तकरीबन दस हज़ार किलोमीटर की यात्रा की। तब उनकी उम्र तकरीबन 23 साल थी। मोटरसाइकल पर की गई यही यात्रा उनकी जिंदगी का वह महत्वपूर्ण पड़ाव थी जिसने उन्हें हमेशा के लिए बदल दिया। इस दौरान उन्होंने दक्षिण अमेरिका के लोगों को जीने के लिए विषम परिस्थितियों से जूझते हुए देखा। उन्होंने देखा कि कैसे पूंजीवाद ने लोगों को अपने अस्तित्व से अलग कर दिया था। कैसे कुष्ठ रोग से मर रहे मरीज़ों को समाज से अलग-थलग दिया गया था। कैसे खदानों में काम करने वाले मजदूरों का शोषण किया जा रहा था। कैसे समाजवादियों को ख़त्म किया जा रहा था। चे ग्वेरा ने इस पूरे वृतांत को मोटरसाइकिल डायरीज नाम से संस्मरण में कलमबद्ध किया है।
1953 में ग्वेरा अपने शहर ब्यूनस आयर्स लौट आए। कुछ ही वक्त में उनकी पढ़ाई पूरी हो गई और वे डॉ अर्नेस्तो ग्वेरा बन गए। लेकिन उनका इरादा डॉक्टरी करने का नहीं था। वे पहले ही दुनिया और समाज को बदलने के लिए कमर कस चुके थे। इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए उन्हें एक बड़ी जंग लड़नी थी। यह क्रांति पूंजीवाद, साम्राज्यवाद के खिलाफ थी जो अमेरिकी समाज का आधार था। चे ग्वेरा चिकित्सीय शिक्षा के दौरान पूरे लैटिन अमरीका में काफी घूमे। इस दौरान पूरे महाद्वीप में व्याप्त गरीबी ने इन्हें हिला कर रख दिया। जब वे पेरू की स्वदेशी आबादी से मिले तो उनका जीवन बदल गया। लैटिन अमेरिकी देशों में वहाँ की जनता की गरीबी देखा, गरीबी देखकर उनके मस्तिष्क में बार-बार यह विचार आ रहा था कि उन सभी देशों में उपस्थित पूंजीवाद, नव उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद से उन देशों को भी मुक्ति मिले। जिनसे छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका था सशस्त्र विश्व क्रांति। इसी निष्कर्ष का अनुसरण करते हुए 1953 में गुआटेमाला चले गए। चे ग्वेरा गुआटेमाला के राष्ट्रपति याकोबो आरबेंज़ गुज़मान के द्वारा किए जा रहे समाज सुधारों में भाग लिया। ग्वाटेमाला में तब समाजवादी सरकार हुआ करती थी और जहां राष्ट्रपति जैकब अर्बेंज गुजमान बड़े पैमाने पर भूमि सुधार कार्यक्रम लागू कर रहे थे। इन कार्यक्रमों का शिकार अमेरिका की एक बड़ी कंपनी यूनाइटेड फ्रूट कंपनी भी हुई, जिसके पास वहां लाखों एकड़ जमीन थी। इन कार्यक्रमों से अमेरिका के और भी कारोबारी हित प्रभावित हो रहे थे तो आखिरकार अमेरिकी सरकार और सीआईए ने 1954 में गुजमान सरकार का तख्ता पलट करवा दिया। ग्वेरा उस समय ग्वाटेमाला में ही थे और गुजमान का समर्थन कर रहे थे। ग्वाटेमाला में सरकार के तख्तापलट ने ग्वेरा के मन में क्रांति की आग और अमेरिका विरोध को और भड़का दिया। लेकिन वे तुरंत कुछ करने की स्थिति में नहीं थे, इसलिए मैक्सिको पहुंचकर उन्होंने एक अस्पताल में नौकरी कर ली। इसी दौरान 27 वर्ष की उम्र में अर्नेस्तो चे ग्वेरा की मुलाकात मेक्सिको सिटी में क्यूबा से निर्वासित फिदेल कास्त्रो और उनके भाई राउल कास्त्रो से हुई। इस मुलाकात के बाद चे ग्वेरा के लिए आगे का रास्ता बिलकुल स्पष्ट हो गया था। उन्होंने तय कर लिया था कि अब उनका लक्ष्य क्यूबा की अमेरिका समर्थित तानाशाही सरकार को हटाना है। इसके बाद वे फिदेल के साथ क्यूबा की क्रांति के अगुवा नेता बन गए। और ये क्यूबा की 26 जुलाई क्रांति में शामिल हो गए। और क्रांति के उद्देश्य की प्राप्ति तक वह क्रांति एक प्रसिद्द चेहरा बन चुके थे। दूसरी तरफ सीआईए क्यूबा की बातिस्ता सरकार के सैनिकों को कास्त्रो के विद्रोह के ख़िलाफ़ हथियार और प्रशिक्षण दे रही थी। इसकी वजह यह थी कि अमेरिकियों का बेहिसाब पैसा क्यूबा के तेल और अन्य व्यवसायों में लगा हुआ था। उनके लिए क्यूबा ड्रग्स, वेश्यावृति और जुए का सबसे मुख्य स्थान भी था। इसके बावजूद कास्त्रो के विद्रोही जीत रहे थे। इस जीत के पीछे स्थानीय मेहनतकश जनता का समर्थन एक वजह थी और इस समर्थन के पीछे चे की प्रेरणा की भी अहम भूमिका थी। धीरे-धीरे यह विद्रोह क्यूबा में प्रांत दर प्रांत फैलता जा रहा था। जनवरी 1959 में मुश्किल से 500 विद्रोहियों ने बतिस्ता सरकार का तख्तापलट कर दिया। क्यूबा की क्रांति के बाद नव निर्वाचित सरकार में चे ग्वेरा को उद्योग मंत्रालय मिला और वे बैंक ऑफ़ क्यूबा के अध्यक्ष भी बनाये गए। चे की नई दुनिया अब आकार लेने लगी थी। बतौर मंत्री उन्होंने कभी भी सत्ता को नहीं जिया। एंडरसन बताते हैं कि उनका परिवार उस समय पर भी बसों से सफ़र किया करता था और वे सप्ताह में एक दिन खुद श्रमदान भी करते थे।
क्यूबा क्रांति के बाद चे ने पूरे लैटिन अमेरिका के राजनैतिक और सामाजिक परिदृश्य को बदलने का संकल्प लिया। इसका मतलब था हर देश में विद्रोह फैलाना। और जाहिर है कि इसके लिए खूंनी क्रांति को ही जरिया बनाया जाना था। ऐसा कहा जाता है कि चे और कास्त्रो ने कई राजनैतिक विद्रोहियों का क़त्ल किया था। चे पर इल्ज़ाम लगा कि उन्होंने कई बेगुनाह भी मारे। यह कोरी बकवास है, यह सिर्फ और सिर्फ चे और कास्त्रो के बहाने कम्युनिज्म को बदनाम करने की कोशिश है और एंडरसन भी बेगुनाहों की हत्या की बात नकारते हैं। चे ने क्यूबा के समाजवाद का विश्व भर में प्रचार किया। इसका यह असर हुवा कि अमेरिका ने क्यूबा पर आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिया जिससे क्यूबा में भुखमरी फ़ैल गयी। मगर चे ने हार नहीं मानी और इससे चे के इरादे और मजबूत होते गए। चे ने पुरे विश्व में घूम कर क्यूबा के समाजवाद के लिए समर्थन जुटाया और विश्वभर के देशों से संबंध बनाने की जिम्मेदारी भी इनके ही ऊपर थी और इसी कारण से चे 30 जून, 1959 को क्यूबा के उद्योग मंत्री के रूप में वे भारत भी आये थे। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु से मिलने के बाद अपने देश वापस लौटने पर चे ने भारत को लेकर अपना नजरिया एक लेख में लिखा जो क्यूबा की साप्ताहिक पत्रिका वरदे ओलियो में विशद विविधताओं का देश भारत के शीर्षक से प्रकाशित हुआ। जिसमें चे ने नेहरू से क्यूबा की चीनी ख़रीदकर अपरोक्ष रूप से समाजवाद को फ़ैलाने का अनुरोध किया था।
चे क्यूबा को रूस के नज़दीक ले गए। सोवियत रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री निकिता ख्रुश्चेव के बेटे सर्गेई एक इंटरव्यू में बताते हैं कि दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है, वाले फ़लसफ़े पर उनके पिता ने क्यूबा को सहयोग देने का फ़ैसला किया था। इसके बाद चे ग्वेरा झुकाव चीन की तरफ होने लगा। इसको देखते हुए चे ने क्यूबा छोड़ कर कांगो में क्रांति लाने का मन बनाया। 1965 में कांगो पहुंचे जहां उन्होंने क्रांति लाने का प्रयास किया। जो कि नाकाम रही। कांगो में रहने के दौरान ही उन्होंने फ़िदेल कास्त्रो को ख़त लिखकर सरकार में अपना मंत्री पद और इस देश की नागरिकता छोड़ने के फैसले से अवगत कराया। हालांकि कांगो में विफल होने पर फ़िदेल ने उन्हें दोबारा क्यूबा लौटने का सुझाव दिया जिसे चे ने ठुकरा दिया और फिर बोलीविया पहुंचे जहां विद्रोह की चिंगारी को मशाल में बदलने का कार्य चे ने किया। अमेरिका की खुफ़िआ संस्थाएं उन्हें ढूंढ रही थी और चे ग्वेरा आम लोगों में क्रांति की चिंगारी पैदा करने में व्यस्त थे। क्यूबा में अमेरिकी परस्त बतिस्ता तानाशाही के उखाड़ फेंकने से अमेरिकी साम्राज्यवादी पहले से ही खार खाए बैठे थे। अर्नेस्तो चे ग्वेरा को बोलिविया के ला इगुएरा नामक स्थान पर अमेरिकी खुफिया एजेंटों ने बोलिवियाई सैनिकों की मदद से 8 अक्टूबर 1967 को गिरफ्तार कर लिया,उसके अगले ही दिन ही, यानी 9 अक्टूबर 1967 को उनको गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस वक़्त चे महज 39 साल के थे। कहा जाता हैं कि गोली मारने से पूर्व नृशंसता पूर्वक उनके दोनों हाथों को काट दिया गया था…. ! चे के बारे में ये भी कहा जाता है कि गोली मारने के बाद चे की कलाई की नस को काटकर देखा गया कि वह वास्तव में मर गए है या नहीं तथा उनके शव को घोर उपेक्षित ढंग से गुमनाम जगह पर दिया था (वैसे वर्षों बाद क्यूबा के राष्ट्रपति फिडेल कास्ट्रो ने उस महामानव के अस्थि अवशेष को पुनः लाकर क्यूबा की धरती पर ससम्मान दफना दिया था), उस क्रांतिवीर व बहादुर योद्धा ने मरने से पूर्व अमेरिकी साम्राज्यवादियों के पिट्ठू हत्यारों से कहा था कि “तुम एक इंसान को मार सकते हो, लेकिन उसके विचारों को कभी नहीं मार सकते !”
ऐसे बहादुर, अप्रतिम योद्धा अर्नेस्तो चे ग्वेरा सिर्फ 39 साल की उम्र में सर्वहारा की मुक्ति के लिए, गरीबों के साथ न्याय के लिए, शोषणमुक्त समाज के लिए, भूख से कोई न मरे इसके लिए, पूंजीवादी विद्रूप क्रूर व्यवस्था को समाप्त करने के लिए, अपने प्राणों को कुर्बान कर दिया! उस बहादुर योद्धा के सम्मान में उसी साम्राज्यवादी अमेरिका की एक पत्रिका टाइम पत्रिका ने अर्नेस्तो चे ग्वेरा को बीसवी शताब्दी के 100 सबसे महत्वपूर्ण हस्तियों में उनको भी सम्मिलित किया। फ्रांस के महान दार्शनिक और अस्तित्ववाद के दर्शन के प्रणेता ज्यां-पॉल सार्त्र ने चे ग्वेरा को अपने समय का सबसे “पूर्ण पुरुष” जैसी उपाधि दी थी। उस गरीबों के मसीहा क्रांतिवीर के एक फोटो वीर गुरिल्ला (स्पेनिश भाषा में गेरिलेरो एरोइको) को विश्व का सबसे लोकप्रिय तस्वीर माना गया है। इससे ज्यादे अमरत्व क्या हो सकता है? विश्वभर का युवा आज चे के चेहरे के तस्वीर वाली टी-शर्ट पहनना फैशन समझता है। हाथ में बड़ा सा सिगार, बिखरे हुए बाल, सिर पर टोपी, फौजी वर्दी सबको लुभाती है। जिस तरह से वे जिए और जैसे मरे उसने उन्हें पूरी दुनिया में सत्ताविरोधी संघर्ष का प्रतीक बना दिया है। वे साम्राज्यवादी फॉसिस्ट जो चे की निर्मम हत्या किए, वे सदियों तक सदा के लिए खलनायक ही रहेंगे! क्यूबा के राष्ट्रपति फिडेल कास्ट्रो ने एक बार चे ग्वेरा को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि कई लोग समाजवाद की आलोचना करते हैं, पर मुझे कोई उस देश का नाम बताए, जहाँ पूंजीवाद सफल रहा है! उस अदम्य साहस के शीर्ष महामानव अर्नेस्तो चे ग्वेरा को उनके अदम्य साहस व मानवता के लिए उनके किए गए आत्मोत्सर्ग के लिए उनके चरणों में कोटिशः नमन….।
अर्नेस्तो चे ग्वेरा के कुछ शब्द-
यदि आप हर अन्याय पर आक्रोश के साथ कांपते हैं, तो आप मेरे साथी हैं।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
मुझे पता है तुम मुझे मारने के लिए यहां हो। गोली मारो, कायर, आप केवल एक आदमी को मारने जा रहे हैं।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
सच्चा क्रांतिकारी प्यार की एक महान भावना द्वारा निर्देशित होता है। इस गुण के अभाव में एक वास्तविक क्रांतिकारी के बारे में सोचना असंभव है।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
क्रांति कोई सेब नहीं है जो पके होने पर खुद गिर जाता है। आपको इसे गिराना पड़ता है।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
जब तक हम इसके (क्रांति) लिए मरने के लिए तैयार नहीं हैं, तब तक हम कुछ भी निश्चित नहीं रह सकते।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
कई लोग मुझे एक साहसी व्यक्ति कहेंगे– और मैं वह हूं, जो केवल एक अलग प्रकार का है: उन लोगों में से जो अपनी पलटन को साबित करने के लिए अपनी जान को जोखिम में डालते हैं।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
मैं मुक्तिदाता नहीं हूँ. मुक्तिदाता मौजूद नहीं हैं। जनता खुद को आजाद करती है।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
मुझे परवाह नहीं है अगर मैं गिरता हूँ जब तक कोई और मेरी बंदूक उठाता है और शूटिंग करता रहता है।- अर्नेस्तो चे ग्वेरा
*कामरेड चे के शहादत दिवस पर क्रन्तिकारी सलाम*
*अजय असुर*