अग्नि आलोक

पकौड़ा के बाद अब चीता रोजगार

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(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*

अब क्या ये हद्द ही नहीं हो गयी। बताइए, मोदी जी के जन्म दिन पर भाई लोग रोजगार दिवस ट्रेन्ड करा रहे हैं। वह भी उस ट्विटर पर, जिसके अपने मोदी जी एक तरह से राजा ही हैं। आप को मोदी जी पसंद नहीं है, तो पसंद मत करो। जन्म दिन की बधाई नहीं देनी है, तो बधाई भी मत दो। हम तो कहते हैं कि जन्म दिन का जिक्र तक मत करो। मोदी जी ने तो खुद बताया कि वह तो खुद भी अपने जन्म दिन को खास याद-वाद नहीं रखते हैं। पूतिन टाइप दूसरे जरूर अक्सर याद दिला देते हैं। पर किसी के जन्म दिन पर रोजगार दिवस ट्रेन्ड कराना, यह तो शरीफों का चलन नहीं है। फिर भी मोदी जी के जन्म दिन का विरोध करने का इतना ही शौक था, तो कर लेते जन्म दिन का भी विरोध। पर मोदी जी का जन्म दिन मनाने वालों का मजा किरकिरा करने के चक्कर में ये लोग जो मां भारती की धरती पर, वापस लौटने पर चीते का अनादर कर बैठे, उसका क्या?

चीतों की वापसी का मां भारती ने जो सत्तर साल तक इंतजार किया, उसकी भावनाओं का अनादर! सात समंदर पार, हजारों किलोमीटर का सफर तय कर के अफ्रीकी देश नामीबिया से आए, मेहमान चीतों का अनादर!! अतिथि देवो भव: वाली हमारी संस्कृति का अनादर!!! जो सत्तर साल में नहीं हुआ, मोदी जी के वह कर के दिखाने का भी तिरस्कार!!!! और यह सब सिर्फ इसलिए कि चीते, संयोग से मोदी जी के जन्म दिन पर आए थे और जन्म दिन पर ही मोदी जी ने खुद अपने हाथों से खटका उठाकर, कुना चीता पार्क में छुड़वाए थे। जन्म दिन के जश्न का विरोध करते-करते, चीतों की वापसी का विरोध करने तक चले गए — मोदी जी के विरोधी और कितना गिरेंगे?

खैर! जन्म दिन पर छोडऩा हो या किसी और दिन पर, मोदी जी इन कमजोर दिल वाले विरोधियों की खुशी को लिए, अब कबूतर तो नहीं छोडऩे लग जाएंगे। टीवी पर देखा नहीं, कैसे छप्पन इंंच की छाती के साथ तो मोदी जी को जंगल में चीता छोडऩा ही सूट करता है। वैसे भी कबूतर हवा में छोडऩा नेहरू-गांधी काल में बहुत हुआ। इसी चक्कर में तो हम पीछे रह गए। पर अब और नहीं। अमृतकाल में तो शेर-चीते ही छोड़े जाएंगे। मेक इन इंडिया वाले शेर के बाद, अब मेड इन नामीबिया वाले चीते का टाइम है। और ये मोदी जी के विरोधी, मोदी जी के राज में कुछ भी हो, उसका श्रेय चुराने की कोशिश करना कब बंद करेंगे। बताइए, अब कांग्रेसी आ गए कि प्रोजैक्ट चीता तो मनमोहन सिंह के टैम में शुरू हुआ था, 2009 में। बाहर से चीते मंगाने की बात भी हो गयी थी। बाद में अदालत ने टांग अड़ा दी और मामला अटका रह गया। पर शिलापट्ट पर नाम किस का दर्ज होता है, शुरू करने वाले का या खत्म करने वाले का! जयराम रमेश कितना ही जोर लगा लेते, चीते तो कूनो पार्क में मोदी जी के कर कमलों से ही छोड़े जाने थे और वह भी बर्थ डे पर।

और रोजगार-रोजगार का शोर मचाने वालेे यह क्यों भूलते हैं कि मोदी जी ने चीतों की ही वापसी नहीं करायी है। चीता आ रहा है, तो उसके साथ-साथ चीता रोजगार भी तो वापस आ रहा है। पकौड़ा रोजगार वगैरह के बाद, अब एकदम नया चीता रोजगार। मोदी जी नित नये-नये रोजगार जुटा रहे हैं, पता नहीं क्यों विरोधियों के बहकाए, बेरोजगार ही ये नये रोजगार देख नहीं पा रहे हैं।                       

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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