Site icon अग्नि आलोक

*मालाबार : समुद्र मेें चीन चुनौती, इधर आंतरिक दुश्मन भी बाधक*

Share

          ~ सुधा सिंह 

मालाबार केरल राज्य में स्थित पश्चिमी घाट और अरब सागर के बीच भारतीय प्रायद्वीप के पश्चिमी तट के समानांतर एक संकीर्ण तटवर्ती क्षेत्र है। मालाबार इलाक़े में मलावलतम नदी के तट पर परासनी कडायू का प्रसिद्ध मंदिर है, जो केवल हिंदू ही नहीं बल्कि अन्य सभी जातियों के लिए भी समान रूप से खुला है।

      यह मुथप्पन भगवान का मंदिर माना जाता है, जो शिकारियों के देवता हैं। मुथप्पन मंदिर में कुत्तों की कांस्य मूर्तियां हैं। यहां ताड़ी तथा मांस का प्रसाद मिलता है। इस के पुजारी दलित वर्ग के होते हैं। मालाबार में कालीकट से 16 किलोमीटर दूर कापड़ बीच है, जहां 21 मई, 1498 को वास्को दी गामा ने पहला कदम भारत की भूमि पर रखा था।

      ऐसी ऐतिहासिक-सांस्कृतिक विरासत को ध्यान में रखकर एक बहुराष्ट्रीय युद्धाभ्यास का नाम रखा गया, ‘मालाबार एक्सरसाइज‘।

1992 में ’मालाबार एक्सरसाइज’ विधिवत रूप से आरंभ हुआ। 1998 में पोखरण नाभिकीय परीक्षण से पहले अमेरिकी नौसेना भारतीय नेवी के साथ अभ्यास कर चुकी थी। भारत द्वारा नाभिकीय परीक्षण से हैरत में आये अमेरिका ने 2001 तक किसी भी साझा सैनिक अभ्यास को स्थगित कर दिया था।

      2001 के आखि़र में अमेरिका द्वारा आतंकवाद के विरूद्व अभियान में भारत के जुड़ जाने के बाद स्थिति ठीक होने लगी, और साझा सैन्य अभ्यास ‘मालाबार एक्सरसाइज‘ के रूप में अपनी पहचान बनाने लगा। 

      समुद्री व्यूह रचना को और विस्तार देने के लिए भारत, जापान, अमेरिका के बाद, ऑस्ट्रेलिया जैसे चौथे सहकार की ज़रूरत थी, जिस वास्ते 2007 में क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग (क्यू.एस.डी.) की पहल जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने की। इस रणनीति में अमेरिका के तत्कालीन उप राष्ट्रपति डिक चेनी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, और ऑस्ट्रेलिया के पीएम जॉन हावर्ड शामिल थे।

चीन लेकिन अंदर ही अंदर ऑस्ट्रेलिया पर दबाव बनाता रहा कि वह क्वाड से किनारा कर ले। नतीजतन, 2008 में ऑस्ट्रेलिया ने खुद को मालाबार अभ्यास से अलग कर लिया था, और एक दशक से ज्यादा समय तक उससे बाहर रहा। चीन इस ब्यूह रचना को समझ रहा था, और ‘क्यूएसडी’ को तोड़ने की ताक में लगा हुआ था।

      केविन रूड दिसंबर 2007 में ऑस्ट्रेलिया के नये प्रधानमंत्री बने, और लगे हाथ 2008 में ‘क्यूएसडी’ से अलग होने की घोषणा कर दी। चीन, चार देशों की रणनीति को तोड़ पाने में सफल रहा था। 2020 में ऑस्ट्रेलिया दोबारा इस अभ्यास कार्यक्रम में शामिल हुआ। यह भी क़ाबिले तारीफ़ है कि तीन साल बाद, 2023 में ऑस्ट्रेलिया ने मालाबार अभ्यास अपनी समुद्री सीमा में आयोजित करना तय किया। 

मालाबार नौसैनिक अभ्यास पर चीन की आपत्ति कोई नई बात नहीं है। जब भी इसकी शुरूआत होती है, चीन की भृकुटियां तन जाती हैं। शुक्रवार 11 अगस्त 2023 से भारत, जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाएं सिडनी के तट के पास 11 दिवसीय मालाबार सैन्य अभ्यास कर रही हैं।

     11 से 22 अगस्त तक चलने वाले मालाबार नौसैनिक अभ्यास में चार देशों की सेनाएं हवाई युद्ध, पनडुब्बियों गतिविधियों, गन फायरिंग और एंटी-शिप मिसाइल जैसी गतिविधियों का अभ्यास करेंगी। चीन को क्वाड देशों भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका से कष्ट रहता है। उसे लगता है कि यह गठजोड़ हिंद-प्रशांत की नाकेबंदी कर उसका जीना हराम करेगा।

     पिछले साल इस बहुराष्ट्रीय समुद्री अभ्यास 26वें संस्करण का समापन 15 नवंबर, 2022 को जापानी समुद्र में हुआ था। इस संस्करण के माध्यम से अभ्यास की 30वीं वर्षगांठ भी मनाई गई थी। उस अवसर पर जेएमएसडीएफ (जापान मेरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स) द्वारा इसकी मेजबानी की गई थी।

      चीन को तब भी शदीद मिर्ची लगी थी। पिछले साल भारतीय नौसेना का प्रतिनिधित्व पूर्वी बेड़े के जहाजों शिवालिक और कामोर्ता द्वारा किया गया जिसका नेतृत्व फ्लैग ऑफिसर कमांडिंग ईस्टर्न फ्लीट रियर एडमिरल संजय भल्ला कर रहे थे। मालाबार-22 का समुद्री चरण योकोसुका के पास पांच दिन की अवधि में आयोजित किया गया।

     इस आयोजन में लाइव हथियार फायरिंग, सरफेस ड्रिल्स, एंटी-एयर एवं एंटी-सबमरीन युद्धाभ्यास तथा टैक्टिकल प्रक्रियाएं समायोजित थीं। एक अन्य आकर्षण समुद्र में युद्ध था, जिसके माध्यम से सहभागी सभी चार देशों नौसेनाएं अपने सामरिक कौशल को सुधार सकीं।

यह दीगर है कि 2008 में अमेरिका से नाभिकीय समझौते के बाद ’यूपीए-वन’ से वामपंथियों ने नाता तोड़ लिया था। जबतक वे सरकार को बाहर से समर्थन देते रहे ’मालबार एक्सरसाइज’ उनके लिए रस्मी आलोचना के अलावा कोई मुद्दा नहीं था। वामपंथियों द्वारा विरोध की बानगी भी कुछ विचित्र है।

      2004 से 2008 के बीच हर साल ’मालबार एक्सरसाइज’ हुआ है, उस समय वामपंथी नेता विरोध के नाम पर कुछ ‘साउंड बाइट’ दे दिया करते थे, मगर मनमोहन सरकार को समर्थन देना जारी था। 1992 में यह पहला अवसर था, जब अमेरिका ने भारत जैसे ग़ैर नाटो देश से नौसैनिक अभ्यास के लिए हामी भरी थी। उस समय उसे भारतीय समुद्री सीमा की हदों से रूसी असर को कम करना था, यह भी एक उद्देश्य इसके पीछे रहा है। 

      वैसे भी 1990 के आखि़र में हिंद महासागर में रूसी युद्धपोतों, जहाजों की उपस्थिति नहीं के बराबर रह गई थी। यह वो दौर था, जब शीत युद्ध अंतिम सांसें गिन रहा था। 2001 में रूसियों को लग गया था कि अमेरिका, भारत के साथ ’मालबार एक्सरसाइज’ की शुरूआत करने वाला है, उन्हीं दिनों मुंबई के डकयार्ड में रूसी पन्डुब्बियां, जहाज, ‘एंटी सबमेरीन वारफेयर वेसल’ दिखने लगे। मगर, तबतक देर हो चुकी थी। 

      लेकिन भारत, रूस और अमेरिका से सैन्य गठजोड में संतुलन बनाये रखने का प्रयास करता रहा। रूस-भारत के बीच हर दो साल पर ‘इंदिरा’ नामक नौसैनिक अभ्यास भी एक रस्मी तौर पर चल रहा था, जिसका उद्येश्य समुद्री डाकुओं को रोकना, ड्रग तस्करों और आतंकवाद से मुकाबला करना था।

मज़ेदार है कि रूस के साथ ‘इंदिरा’ जैसे साझा अभ्यास से चीन असहज नहीं हुआ। क्योंकि, इस तरह के अभ्यास से भारत की समुद्री मारक क्षमता में कोई क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं होने वाला था। 

     ऑस्ट्रेलिया के प्रतिरक्षा मंत्री रिचर्ड मार्ल्स बोलते हैं कि यह हमारे लिए सम्मान की बात है। मार्ल्स ने कहा कि मौजूदा रणनीतिक हालात में यह पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम अपने पड़ोसियों के साथ साझीदारी करें। हमारे लिये रक्षा सहयोग, आपसी समझ और जानकारी साझा करना अत्यंत जरूरी है। मार्ल्स ने कहा कि मौजूदा रणनीतिक हालात में यह पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है कि हम अपने पड़ोसियों के साथ साझीदारी करें और अपने रक्षा सहयोग और ज्यादा मजबूत करें. सहयोग, आपसी समझ और जानकारी का प्रशिक्षण के साथ गठजोड़ हमारे क्षेत्र की साझी सुरक्षा और उन्नति के लिए जरूरी है।

       अमेरिकी सेवंथ फ्लीट के कमांडर वाइस एडमिरल कार्ल्स थॉमस कहते हैं कि यह अभ्यास किसी एक देश के खिलाफ नहीं है। सिडनी में मीडियाकर्मियों से बातचीत में उन्होंने कहा कि इस अभ्यास से चारों सेनाओं की एक दूसरे के साथ काम करने की क्षमता बढ़ेगी। वाइस एडमिरल थॉमस ने कहा कि क्वॉड के रूप में हम चार देश जो आधारभूत सैन्य उपायों को ढूंढते हैं।

     ऑस्ट्रेलिया के ठीक उत्तर पूर्व में स्थित ओशेनियाई देशों पर अब हम सभी देशों का ध्यान है। वह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इलाक़ा है।

     आमतौर पर चीन क्वॉड देशों के इस गठजोड़ की निंदा यह कहते हुए करता रहा है कि इस तरह की साझेदारियां क्षेत्र की स्थिरता के लिए खतरा हैं।

हालांकि क्वॉड देश चीन का नाम लिये बिना ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता की अहमियत पर बात करते हैं, लेकिन आमतौर पर उनका इशारा इस क्षेत्र में चीन के आधिपत्य को रोकने की कोशिशों की ओर होता है। यों, प्रत्यक्ष रूप से ऑस्ट्रेलिया के सैन्य अधिकारी इस बात से इनकार करते हैं।

      चीन के लिए परेशानी का सबसे बड़ा सबब जापान की सक्रियता रही है। लेकिन भारत की नौसैनिक मज़बूती भी उसकी भृकुटियां तनने का कारण हैं। 29 अप्रैल से 3 मई 2009 को जापान के तट पर मालबार अभ्यास का 13 वां सीरीज संपन्न हुआ था, जिसमें जापान का ‘जेडीएस कुरामा’ और ‘ जेडीएस आसायुकी’ जैसे विध्वंसक पोतों ने हिस्सा लिया था।

     एक साल छोड़कर 2 से 10 अप्रैल 2011 को जापान के ओकीनावा तट पर मालबार का 15वां अभ्यास हुआ था। उस अभ्यास में पहली बार ‘जैपनिज़ मेरीटाइम सेल्फ डिफेंस फोर्स’ की शिरकत के लिए भारत ने सहमति दी थी। उसके बाद 24 जुलाई 2014 को जापान के सासेबो नेवल बेस पर ‘मालबार एक्सरसाइज़’ संपन्न हुआ था। यह बताने का आशय यह है कि 2009, 2011, और 2014 ये तीन ऐसे साल थे, जिसमें मालबार अभ्यास जापान की समुद्री सीमा में हुआ था।  

      इसमें कोई शक नहीं कि आज की तारीख में अमेरिका के बाद, चीन की नौसेना ताकतवर है। कभी समुद्र पर ब्रिटेन और यूरोपीय देशों की बादशाहत हुआ करती थी। मगर, अब तस्वीर बदल चुकी है। प्रतिरक्षा का आकलन करने वाले विश्लेषक उम्मीद कर रहे हैं कि छठे-सातवें स्थान वाली भारतीय नौसेना चीन के मुकाबले 2030 तक खड़ी हो जाएगी। उस समय तक दुनिया की पांच ताकतवर नौसेनाओं की सूची में दक्षिण कोरिया और जापान भी शामिल हों, ऐसा अमरीकी रणनीतिकार चाहते हैं। 

एशिया-प्रशांत में चीन ‘वर्ल्ड क्लास’ तकनीक को विकसित करने की वजह से दबदबा बना पाया है। चीन ने ‘ऑटोनोमस अंडरवाटर व्हीकल’ (एयूवी), छह हज़ार मीटर तक निगरानी करने वाली ‘डीप सबमर्जेंस व्हीकल’ (डीएसवी) को जिस तेज़ी से हासिल की है, भारत उससे पीछे नहीं रहा है। डीआरडीओ की वजह से भारतीय नौसेना को ‘एयूवी’ 2015 में ही हासिल हो चुकी थी। ’सोनार सेंसर सिस्टम’ भी भारत के पास है। 

      समुद्र मेें चीन चुनौती है, तो आंतरिक दुश्मन भी हमारे आड़े आते हैं। भारतीय सुऱक्षा एजेंसियों और नौसेना को 7 हज़ार 516.6 किलोमीटर समुद्री सीमाओं की चौकसी करनी है।

     26/11 मुंबई हमले के बाद से समुद्र के रास्ते आतंकवाद का ख़तरा लगातार बढ़ा है। मगर, एक बात दिलचस्प है कि सी लॉयन, बेलुगा व्हेल, डॉल्फिन जैसी मछलियां भारत की समुद्री सीमाओं में चौकसी कर रही हैं। भारत के ‘मरीन मैमल प्रोग्राम’ में विकसित और प्रशि़िक्षत इन मछलियों के मुंह में लगे कैमरों से समुद्र के भीतर की हैरतअंगेज़ हलचलें हमें प्राप्त हो रही हैं।

Exit mobile version