शशिकांत गुप्ते इंदौर
किसी अज्ञात शायर का ये शेर याद आ गया।
छा जाती है चुप्पी अगर गुनाह अपने हों
बात दूजे की हो तो शोर बहुत होता है
यह सच है कि व्यवस्था में बहुत बदलाव हुआ है। शोक संवेदनाएं प्रषित करने के पूर्व सम्बंधित स्थान को सजाना सवारना अनिवार्य हो गया है। स्वच्छ भारत के स्लोगन को व्यवहारिकजामा पहनाना जरूरी है।
देशी फिल्मों में देखा है। हरएक मौके पर पहरावे और मेकअप बदलता है। शोक प्रकट करने के मौके पर सभी कलाकार साफ स्वच्छ सफेद कपड़े ही पहनते हैं।
मेकअप करने वाला या वाली हाथों मे ग्रीसीलिन लिए तैयार रहतें हैं। कलाकारों को रोने का अभिनय करना हो तो नकली आँसू जरूरी है।
बहरहाल दर्दनाक हादसे की गहन जाँच होगी। किसी को बक्शा नहीं जाएगा। परिणाम क्या होगा?
शायर मौज रामपुरी का ये शेर मौजु है।
जंग में क़त्ल सिपाही होंगे
सुर्खरू ज़िल्ले इलाही होंगे
(सुर्खरू = प्रतिष्ठित,सम्मानित)
जो भी हुआ वह बहुत दुःखद है।
एक समाचार माध्यम के समाचार वाचक का उवाच इस तरह का है,पुल की कुल क्षमता से अधिक लोगों को जाना ही नहीं था?
एक समाचार माध्यम की एंकर ने पीड़ितों के जख्मों पर शाब्दिक मरहम लगाने वाले की चुस्ती फुर्ती नजर आई?
एक ओर यह नज़ारा है। दूसरी ओर मातम छाया है।
धीमी आवाज में गीत बज रहा है।
कल जहाँ बस्ती थी खुशियाँ
आज है मातम वहाँ
वक्त लाया था बहारें
वक्त लाया है खिज़ा
दुनिया कभी रुकती नहीं है।
हम तो तब भी जीते थे हम पुनः जीतेंगे।
किसी का दिल जीते या ना जीते
हम पुनः चुनाव जरूर जीतेंगे?
शशिकांत गुप्ते इंदौर