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वैभव सिंह का दावा “चप्पलें जीतेगी ” ?

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सुसंस्कृति परिहारएक बार फिर हिंडोरिया राज परिवार  सुर्खियों में है यहां से प्रद्युन्न सिंह और राहुल सिंह पहले ही कांग्रेस से विजयी होने के बावजूद भाजपा में जाकर मंत्री पद पर सुशोभित हैं प्रद्युम्न सिंह बड़ा मलहरा से पिछले उपनुनाव में भाजपा से जीत दर्ज करा चुके हैं अब राहुल सिंह की बारी है वे दमोह विधानसभा उपचुनाव से  भाजपा प्रत्याशी हैं जिसका चुनाव 17अप्रेल को होने जा रहा है । लेकिन यह उनके लिए आसान नहीं है क्योंकि दोनों भाइयों को राजनीति का ककहरा सिखाने वाले उनके बड़े भाई निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं।पहले ये माना जा रहा था वैभव सिंह अपने भाईयों के दलबदल से राज परिवार और लोधी समाज की प्रतिष्ठा के लिए मैदान में उतरे हैं लेकिन उनके चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद देश भर के पिछड़े वर्गों के नेताओं का जिस तरह जमावड़ा यहां हो रहा है उससे भाजपा के साथ कांग्रेस भी विचलित है।क्योंकि यदि इन शेष छै दिनों में यदि चप्पल का सघन अभियान विभिन्न पिछड़े वर्गों में चल जाता है तो वह जादुई करिश्मा दिखा सकता है ।जैसा कि वैभव सिंह कह रहे हैं ।    जाहिर है,पिछड़े वर्ग को जनसंख्या के आधार पर आरक्षण की मांग देश भर में उठाने हेतु ,पिछड़े वर्ग को संगठित करने का जो बीड़ा वैभव सिंह ने उठाया था वह  दमोह से अनचीन्हा नहीं है। आंधी-तूफान,वारिश के बावजूद पीली कोठी, सागर और दमोह कलेक्ट्रेट के सामने अनवरत धरना तमाम संगठनों के स्मृति पटल पर अंकित है । दमोह कलेक्टर ने तंबू उखाड़ दिया पर धरना जारी रहा।यह सब यदि पिछड़ा वर्ग सहजता से लेता है तो वैभवसिंह कामयाब भी हो सकते हैं तथा भाजपा तथा कांग्रेस के परम्परागत दमोह दुर्ग ढहाने में सफल भी हो जाएं तो आश्चर्य नहीं होगा।        ज्ञातव्य हो अपने अनुज राहुल सिंह को सबक सिखाने चुनाव मैदान में चप्पलों के सहारे वैभव ने अपना ध्यान आम मतदाता की ओर खींचा तो है इसमें शक नहीं, पर वे कितनी वोट हासिल करने में सफल होते हैं यह दो मई को ही सामने आएगा । पिछड़े वर्ग के उनके तमाम युवा साथियों की कई टीमें घर घर प्रचार के लिए उतरने वाली हैं उनकी मीटिंग हिंडोरिया स्थित गढ़ी में सम्पन्न होती  है जो हटा विधानसभा के अन्तर्गत आता है । दमोह में उनका ठौर ठिकाना नहीं, जबलपुर में रहते हैं । वैभव कोरोना काल का ख्याल रखते हुए हिंडोरिया से ही अपने साथियों  के भाषणों को सोशल मीडिया के ज़रिए गांव गांव पहुंचा रहे हैं वहीं चपप्लों से सजा रथ खड़ा रहता है ।वैभव ने   दमोह में पानी की मांग को भुनाने का प्रयास किया है दमोह वासियों की यह पुरानी मांग है उनका कहना है  यदि वेइस मुद्दे पर जन मत पा जाते हैं तो राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर उसे पूरा करने तब तक संघर्ष करेंगे जब तक ये समस्या ख़त्म नहीं होगी। बेशक पानी की मांग यहां पच्चीस साल पुरानी है पर पूर्ववर्ती मंत्रियों ने आई धनराशि की लीपापोती कर दमोह को अब तलक प्यासा रखा है।वैभव ने जनता की दुखती रग पर हाथ रखा है और जिस सख्त तेवर के साथ बात उठा रहे हैं वह जनता को सम्मोहित कर रही है। दमोह से बड़े पैमाने पर रोजगार के लिए पलायन पर भी उनकी नज़र है। झंडों,बैनर, रैलियों और चीख पुकार के प्रचार से दूर रहकर भी वे आज मीडिया में सबसे आगे हैं। दमोह विधानसभा को पहली बार एक जागरूक सामाजिक और जनसरोकार से जुड़ा उम्मीदवार मिला है ।देखना है, मतदाता के मिज़ाज में परम्परागत पार्टियों के प्रति सम्मोहन बरक़रार रहता है या वे इससे ऊपर उठकर दमोह को एडवोकेट आनंद भैय्या  की तरह जानदार निर्दलीय प्रत्याशी एडवोकेट वैभव सिंह को विजय का सेहरा पहनाते हैं । विदित हो आनंद  श्रीवास्तव दो बार पहले सन् 1962 और  फिर दूसरी बार सन 1972 में शेर छाप पेटी में वोट पाकर, कांग्रेस को पछाड़कर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी रहे ।आज चप्पलें लिए वैभव मैदान में हैं ।उनके बाहर से आए साथी जन जन तक अपनी बात कितनी पहुंचा पाते हैं इस पर मतदान  प्रभावित होगा ?अच्छी बात ये है कि कांग्रेस की तरह सर्वधर्म समभाव को साथ लेकर चल रहे हैं । मतदाता की जाग ही चुनाव को नई दिशा दे सकता है। यहां यह तो साफ़ हो चुका है कि भाजपा की हालत पतली है । बिकाऊ और टिकाऊ के बाद चप्पल की  पकड़ मज़बूत हो रही है ।हाथ फिलहाल आगे है लेकिन लगता है आगे चलकर हाथ और चप्पल में शह और मात का खेला है अब दोनों में से ही मतदाता  को अब चयन करना है।वे हाथ के साथ हैं या चप्पलें उन्हें भाती हैं ।
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