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समझौता+सुविधा-संघर्ष=शोषण?

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शशिकांत गुप्ते

पूंजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण राजनैतिक व्यवस्था का केन्द्रीयकरण हो रहा है। यह स्थिति लोकतंत्र को कमजोर करने की साज़िश है। यह साजिश भारत में कभी भी सफल नहीं हो सकती है।
पूंजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण मानव में सुविधाभोगी मानसिकता पनपने से मानव ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना छोड़ दिया और मानव में समझौता करने की प्रवृत्ति जागृत हो गई।
सिद्धांतों से समझौता कर मानव का सुविधाभोगी बनना मतलब स्वयं के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने जैसा ही है।
मानव जब सुविधाभोगी बन जाता है,तब वह अकर्मण्य हो जाता है।
अकर्मण्यता के कारण आमजन का हरतरह से मतलब आमजन के शारीरिक श्रम,योग्यता गुणवत्ता के साथ आर्थिक शोषण होता है।
देश का औसत व्यक्ति अपने परिवार का भरणपोषण भी ठीक से कर नहीं पाता है।
पूंजीकेंद्रित सत्ता आमजन को मुफ्त राशन देकर उसपर अपना एहसान जताती है।
सुविधाभोगी मानसिकता में लिप्त आमजन मुफ्त के राशन को सत्ता द्वारा दी गई सुविधा समझता और सुविधा के भ्रम के कारण वह भूल जाता है कि यह सुविधा नहीं है,यह भिक्षा है।
यह सुविधा तात्कालिक राहत देती है लेकिन परावलम्बी बनाती है।
लोकतंत्र में जनता के द्वारा,जनता के लिए जनता की सरकार होती है। मतलब लोकतंत्र जनता मालिक है।
लोकतंत्र की परीभाषा को समझने से यह स्पष्ट हो जाता है कि, देश की जनता को जो सुविधा दी जा रही वह मालिक को सेवको द्वारा दी जा रही भिक्षा ही है।
जनता को नमकहलाली का पाठ पढ़ाकर उसकी मानसिकता को पूर्णरूप से सुविधाभोगी बनाया जा रहा है।
सुविधाभोगी मानसकिता को पनपाने में धर्म,शिक्षा,सामाजिक, सांकृतिक,साहित्य का क्षेत्र भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रश्रय देता है।
उपर्युक्त मुद्दों पर गहराई से विचारविमर्श होना चाहिए।इन मुद्दों पर देशव्यापी बहस होनी चाहिए। बहस होगी तब उक्त मुद्दों पर व्यापक विचार मंथन होगा।
इसतरह के वैचारिक मंथन को ही वैचारिक क्रांति कह सकतें हैं।
आमजन जब समझने लगेगा,उसका जो शोषण हो रहा है, इसके लिए वह स्वयं दोषी है। तब वह सुविधाभोगी मानसिकता को त्याग कर संघर्ष का रास्ता अपनाएगा। मानव जब सँघर्ष की मानसिकता को आत्मसात कर लेता है,तब वह सिर्फ और सिर्फ संघर्षशील होता है। वह किसी भी तरह समझौता नहीं करता है।
आमजन समझने लगता है कि,
लोकतंत्र विकेंद्रीकरण के कारण मजबूत होता है।
उपर्युक्त सुविधाभोगी मानसिकता का मुख्य कारण है। मानव जैसा स्वार्थी प्राणी,समूचे प्राणिमात्र में कोई अन्य प्राणी नहीं है।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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