राजेंद्र शुक्ला,मुंबई
अपनत्व आपसी तालमेल के बिना संभव नहीं है. अंतरविरोधी वातावरण तालमेल का शत्रु सावित होता है. खर्चीली सजधज किसी का मान बढ़ाती नहीं, वरन उसे धारण करने वाले को अधिक बचकाना एवं नट, अभिनेता स्तर का उपहासास्पद ही बनाती है। स्वच्छता और सादगी किसी का बड़प्पन प्रकट करने के लिए पर्याप्त है।
दूसरों पर रौब जमाने के लिए अपना बड़प्पन प्रदर्शित करने की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए कई लोग अपनी सजधज, ऐंठ, अकड़, दूसरों की उपेक्षा, अपनी व्यस्तता आदि को अनावश्यक ओढ़ते हैं और आशा करते है, कि अन्य लोग अपने प्रभाव में आकर दब जाय और जैसा कहेंगे वैसा करने लगेगे।
यह मान्यता आदि से अन्त तक गलत है। कारण कि अहंकार में दूसरों का अपमान जुड़ा होता है, जिसकी गंध किसी भी विचारशील मनःस्थिति वाले को सहज लग जाती है और उसकी प्रतिक्रिया विरोध, तिरस्कार में होती है। फलतः प्रतिष्ठा बढ़ने की अपेक्षा तो पूरी नहीं होती, उलटे सहानुभूति की मात्रा घटती चली जाती है।
अन्तर्विरोध बढ़ जाने या बने रहने पर खिंचाई बढ़ती है, खाई चौड़ी होती है और संघर्ष जैसी मनःस्थिति बन जाती है। ऐसे वातावरण में तालमेल बैठ नहीं पाता और दिशा भिन्नता बन पड़ने से कटुता, प्रतिद्वन्द्विता, प्रतिशोध जैसे तत्व उभर पड़ते हैं। गड़बड़ी के कारणों को समझना और समझाना कठिन हो जाता है। काम बनता नहीं बिगड़ता है। इसलिए अपनी मुद्रा परिधान से लेकर व्यवहार तक में नम्रता ही रहनी चाहिए।
सादगी और सज्जनता यह दो गुण ऐसे हैं, जिन्हें अपनाकर कोई प्रबंधक लाभ में ही नहीं रहता, वरन् उलझनों को हँसते-हँसाते, भाई-चारे के वातावरण में ही सम्पन्न कर लेता है। अच्छा होता इस स्तर का स्वभाव ही बन जाता और अभ्यास में उतर जाता, पर यदि ऐसा स्तर इसके पूर्व नहीं बन पड़ा है तो समय की आवश्यकता और कार्य की सुव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए उसे प्रयत्नपूर्वक अर्जित कर लेना चाहिए।
स्मरण रहे कि बड़प्पन का रौब जमा कर जितना काम कराया जा सकता है, उसकी तुलना में समता और सद्भाव का परिचय देकर कहीं अधिक और कहीं अच्छी तरह बात बनाई जा सकती है।