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दिल्ली में कांग्रेस के सामने शून्य से शुरुआत करने की चुनौती

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कृष्णमोहन झा

केंद्रीय चुनाव आयोग ने केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली की विधानसभा के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा कर दी है और इसी के साथ वहां चुनाव में किस्मत आजमाने की मंशा रखने वाले राजनीतिक दलों के चुनाव अभियान में तेजी आ गई है। इन दलों में आम आदमी पार्टी और भाजपा सबसे आगे चल रहे हैं जबकि अतीत में 15 सालों तक सत्ता में रही कांग्रेस पार्टी इन दोनों दलों के मुकाबले बहुत पीछे दिखाई दे खी है। गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी सत्तारूद आम आदमी पार्टी यह मानकर चल रही है कि दिल्ली की जनता तीसरी बार भी उसे ही सत्ता की चाबी सौंपने का मन बना चुकी है जबकि भाजपा को पूरा भरोसा है कि दिल्ली की जनता से किए गए वादों को पूरा करने में बुरी तरह असफल रही आम आदमी पार्टी से दिल्ली के मतदाताओं का अब मोह भंग चुका है और इन चुनावों में जनता उसे सदन के अंदर विपक्ष की भूमिका निभाने के लिए मजबूर कर देगी।” इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा और आम आदमी पार्टी, दोनों ही दलों के कार्यकती उमंग और उत्साह से भरे हुए है, दोनों ही दलों का नेतृत्व अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल उंचा बनाए रखने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। दूसरी ओर अगर दिल्ली में कांग्रेस का नेतृत्व खुद ही यह स्वीकार कर चुका है कि इन चुनावों में उसे शून्य से शुरुआत करनी है। जिस पार्टी के नेताओं का ही मनोबल इतना टूट चुका हो कि ये शून्य से शुरुआत करने की निराशा को सार्वजनिक रूप से व्यक्त करने में भी संकोच न करें उस पार्टी के कार्यकताओं की मनःस्थिति का अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। वैसे हकीकत भी यही है क्योंकि दिल्ली के पिछले दो विधानसभा

चुनावों में कांग्रेस पार्टी को एक भी सीट पर जीत का स्वाद चखने का अवसर नहीं मिला है इसलिए उसे शुरुआत तो शून्य से हो कस्स है। गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा के 2013 में संपन चुनावों में कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था उसके बाद संफा हुए दोनों विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी ने उसके साथ चुनाव समझौता करने से परहेज किया था जिसका खामियाजा कांग्रेस को इस तरह भुगतना पड़ा कि वह एक भी सीट पर जीत दर्ज करने में विफल रही और अब भी जो आसार नजर आ रहे हैं उससे तो यही प्रतीत होता है कि इन चुनावों में भी हताशा की स्थिति से उबरना उसके लिए संभव नहीं हो पाएगा। दरअसल दिल्ली में

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जिस तरह आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल के विरुद्ध बयानबाजी कर रहे हैं वह इंडिया गठबंधन के दूसरे घटक दालों को भी पसंद नहीं आ रहा है। तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी ने तो अरविंद केजरीवाल के समर्थन में बयान भी जारी कर दिया है। इतना ही नहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने ती यह घोषणा भी कर दी है कि वे दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को चुनाव सभाओं में उनके साथ मंच भी साझा करेंगे। जाहिर सी बात है कि इंडिया गठबंधन का प्रमुख घटक होते हुए भी कांग्रेस पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों में अलग थलग पड़ती नजर आ रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं के समक्ष भी ऐसा धर्म संकट पैदा

हो गया है कि वे दिही में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के समर्थन में होने वाली चुनावी रैलियों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने में शिक्षक रहे हैं। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के नेताओं के बयानों से तो यही ध्वनि निकलती है कि कांग्रेस इन विधानसभा चुनावों में आम आदमी पाटी को सत्ता से उखाड़ फेंकना चाहती है भले ही सत्ता की बागडोर भाजपा के पास आ जाए। शायद यही कारण है कि आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पर भाजपा के इशारों पर चलने का आरोप लगाया है । आम आदमी पार्टी की ओर से तो यह धमकी भी दी जा चुकी है कि अगर कांग्रेस का रवैया नहीं बदलता तो कह इंडिया गठबंधन के नेतृत्व से कांग्रेस को बाहर निकालने की मांग करने से परहेज

नहीं करेगी। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि दिल्ली विधानसभा की जिन सीटों पर कांग्रेस पार्टी ने अपने उम्मीदवारों के नामों की घोषणा कर दी है वहां का त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति निर्मित करने के लिए जी-तोड़ कोशिश करेगी। सवाल यह उठता है कि कांग्रेस पार्टी आखिर किसके वोट काटने की रणनीति पर चल यही है। सीधी बात है कि वह जिस तरह आम आदमी पार्टी के उपर जनता से वादा खिलाफी और भ्रष्टाचार को बढ़ाया देने के आरोप लगा सही है उससे आम आदमी पार्टी को नुक्सान होना तय है लेकिन कांग्रेस पार्टी शायद इस हकीकत से अवगत नहीं है कि वह आम आदमी पार्टी का जितना नुकसान करेगी वह उतना ही भाजपा का फायदा होगा

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