सलमान सोज और अमिताभ दुबे
कांग्रेस पार्टी के घोषणापत्र ने भारत में बढ़ती जा रही गैर-बराबरी पर एक महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। चूंकि भाजपा कांग्रेस पर धन का पुनर्वितरण करने और विरासत कर लगाने की योजनाओं के निराधार आरोप लगा रही है, उसने अनजाने में ही गैर-बराबरी के मुद्दे को उजागर कर दिया है। गैर-बराबरी को थॉमस पिकेटी जैसे अर्थशास्त्रियों ने “महामारी” कहा है। कांग्रेस पार्टी का तर्क है कि इस गैर-बराबरी की जड़ें बेरोजगारी, स्थिर मजदूरी, कमजोर निवेश, छोटे उद्यमियों के लिए प्रतिकूल माहौल और असंतुलित कर व्यवस्था जैसी मूलभूत चुनौतियों तक फैली हुई हैं। हमारा घोषणापत्र स्पष्ट शब्दों में बताता है कि हमने इस केंद्रीय चुनौती से निपटने की योजना कैसे बनायी है। भाजपा की योजना हमारी बातों को विकृत करके पेश करने और ध्यान भटकाने तक ही सीमित है।
अपने शोधपत्र ‘भारत में आय और धन की गैर-बराबरी, 1922-2023: अरबपति राज का उदय’ में नितिन कुमार भारती, लुकास चांसल, थॉमस पिकेटी और अनमोल सोमांची के अनुसार भारत में आज ब्रिटिश राज की तुलना में ज्यादा गैर-बराबरी है। आज भारत के शीर्ष 1 प्रतिशत लोगों के पास देश की संपत्ति का 40 प्रतिशत हिस्सा है। ऑक्सफैम के अनुसार, इक्कीस अरबपतियों के पास 70 करोड़ भारतीयों के बराबर संपत्ति है। 2014 और 2023 के बीच गैर-बराबरी बढ़ी है और इस स्पष्ट वृद्धि के लिए भाजपा की नीतियां सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। कांग्रेस भाजपा की सबसे बुरी ज्यादतियों को खत्म करने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है।
बड़े पैमाने पर नौकरियों की व्यापक कमी गैर-बराबरी की बुनियाद है। गैर-बराबरी को बढ़ाने में बेरोजगारी की बड़ी भूमिका है और नरेंद्र मोदी सरकार के तहत बेरोजगारी की स्थिति और भी खराब हो गयी है। अर्थशास्त्री सन्तोष मेहरोत्रा ने पीएलएफएस (पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे) के आंकड़ों का उपयोग करते हुए अनुमान लगाया है कि बेरोजगारों की कुल संख्या 1 करोड़ (2012) से बढ़कर 4 करोड़ (2022) हो गयी है। ‘स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया रिपोर्ट 2023’ के अनुसार 25 वर्ष से कम उम्र के बयालीस प्रतिशत स्नातक बेरोजगार हैं। श्रम बाज़ार में महिलाओं की उपस्थिति निराशाजनक रूप से कम है।
कांग्रेस के घोषणापत्र में रोजगार बढ़ाने के लिए कई प्रस्ताव हैं, जैसे 30 लाख स्वीकृत सरकारी पदों को भरना, स्नातकों और डिप्लोमा धारकों के लिए प्रशिक्षुता (अप्रेंटिसशिप) का अधिकार, भारत के हर जिले में स्टार्टअप में निवेश करने के लिए 5,000 करोड़ रुपये का ‘युवा रोशनी’ फंड और कंपनियों द्वारा नियुक्तियों को प्रोत्साहित करने के लिए एक रोजगार-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना।
वेतन असमानताएं गैर-बराबरी बढ़ाने का एक अन्य बड़ा कारण हैं। एनएसएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस) के आंकड़ों से पता चलता है कि वेतनभोगी कामगारों और मजदूरों की मजदूरी 2004-05 और 2011-12 के बीच तेजी से बढ़ी, जबकि 2011-12 और 2017-18 के बीच वह स्थिर हो गयी, या यहां तक कि मजदूरी में गिरावट भी आयी। हाल के सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) के आंकड़ों से पता चलता है कि जहां यूपीए सरकार के तहत वेतन तेजी से बढ़ा था, वहीं हाल के वर्षों में वेतन में स्थिरता बनी रही। कम आय वाले परिवारों में महिलाओं के लिए हमारी 1 लाख रुपये की ‘महालक्ष्मी योजना’ और 400 रुपये न्यूनतम दैनिक वेतन उनकी क्रय शक्ति को बढ़ाने में मददगार साबित होगा।
शायद सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक भारत की प्रतिगामी कर प्रणाली है। भाजपा के कार्यकाल में कॉर्पोरेट करों की हिस्सेदारी में कमी देखी गयी है और आयकर की हिस्सेदारी बढ़ गयी है, जिसका भुगतान मध्यम वर्ग का एक बड़ा हिस्सा करता है। इससे भी बुरी बात यह है कि अप्रत्यक्ष कर संग्रह तेजी से बढ़ा है, जिसमें जीएसटी एक बड़ा हिस्सा है। जीएसटी का 64 प्रतिशत भुगतान भारतीय समाज के निचले आधे हिस्से द्वारा किया जाता है, जबकि 2022-23 में एकत्र किये गये कुल करों में जीएसटी का हिस्सा ही सबसे बड़ा (28%) रहा है।
कांग्रेस पार्टी एक प्रगतिशील कर सुधार का प्रस्ताव करती है जो “व्यक्तिगत आयकर दरों को स्थिर बनाये रखने” का वादा करती है ताकि “यह सुनिश्चित किया जा सके कि वेतनभोगी वर्ग बढ़ती कर दरों के अधीन न हो और उनके पास अपने वित्त की योजना बनाने में कोई दुविधा न हो”। हमारे प्रस्तावों से एमएसएमई (माइक्रो, स्माल एंड मीडियम एंटरप्राइजेस) पर कर का बोझ भी कम होगा जो वर्तमान में बड़े निगमों की तुलना में अधिक प्रत्यक्ष कर का भुगतान करते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जीएसटी में सुधार करेंगे और गरीबों और मध्यम वर्ग पर पड़ने वाले बेहिसाब बोझ को कम करेंगे।
दुनिया भर में, एमएसएमई सबसे अधिक नौकरियां पैदा करते हैं। जबकि मोदी सरकार की नीतियों ने अनौपचारिक अर्थव्यवस्था की उपेक्षा करते हुए कर कटौती, ऋण माफ़ी और फायदा पहुंचाने वाले अनुबंधों और नियमों के माध्यम से अपने कॉर्पोरेट साथियों को लगातार मदद की है। नोटबंदी और जीएसटी के कार्यान्वयन ने एमएसएमई क्षेत्र को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।
कोविड से बुरा समय और क्या हो सकता था। लेकिन बड़ी कंपनियों को महामारी-पूर्व प्रोत्साहन के हिस्से के रूप में 1.5 ट्रिलियन रुपये का कर बोनस मिला, जबकि एमएसएमई को ऐसा कोई इनाम नहीं दिया गया। कांग्रेस पार्टी एक समर्थनपूर्ण कर और विनियामक वातावरण बनाएगी, जिसमें हमारी प्रशिक्षुता (अप्रेंटिसशिप) और रोजगार से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाओं के लिए प्रोत्साहन शामिल होगा।
अधिक निवेश के बिना, रोजगार सृजन प्रभावित होगा। हलांकि, तथ्य यह है कि जहां यूपीए सरकार के कार्यकाल में निवेश 33.4 प्रतिशत की औसत दर से हुआ था, वहीं मोदी सरकार के तहत औसत निवेश मात्र 28.7 प्रतिशत की दर से हुआ है। ‘हेनले ग्लोबल सिटिजन्स रिपोर्ट’ के अनुसार, मोदी सरकार के तहत भय का माहौल निवेश के लिए एक बड़ी बाधा रहा है। हर साल 8,000 अरबपति देश छोड़ रहे हैं। कांग्रेस ने वादा किया है कि हमारे व्यापारियों और महिलाओं को अपना काम करने के अनुकूल माहौल और स्वतंत्रता उपलब्ध कराने के लिए, जांच एजेंसियों द्वारा धमकी देने और दुर्व्यवहार करने की प्रवृत्ति को समाप्त किया जाएगा। वास्तव में प्रधानमंत्री की यही एक उपलब्धि है कि उन्होंने अपने करीबियों को इतना अधिक समर्थन दिया है कि व्यापक व्यापारिक समुदाय देश से भागने के लिए अपने को मजबूर महसूस कर रहा है।
गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए अधिक न्यायपूर्ण समाज की कल्पना करने वाले हमारे घोषणापत्र पर उन लोगों द्वारा हमला किया गया है, जिन्हें अरबपतियों को बड़े पैमाने पर मदद देने से कभी कोई दिक्कत नहीं होती है। मोदी सरकार ने 16 लाख करोड़ रुपये से अधिक का कॉर्पोरेट ऋण माफ कर दिया है। लेकिन समाज के जिन वर्गों -किसानों, महिलाओं, श्रमिकों, युवाओं और गरीबों- को पीछे छोड़ दिया गया है, अगर कांग्रेस उन्हें आगे बढ़ाने और प्रोत्साहन देने की बात करती है तो आज सरकार में बैठे लोगों की छाती फटने लगती है।
(‘द इंडियन एक्सप्रेस’ से साभार। सलमान सोज़ कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और अमिताभ दुबे कांग्रेस घोषणापत्र समिति के सदस्य हैं)
-अनुवाद : शैलेश