अग्नि आलोक

बिना आत्महत्या किये, खुद को मृत मानकर हमें दें : हम लिखेंगे आपको*

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(विश्व आत्महत्या निवारण दिवस : 10 सितंबर पर विशेष)

🔏डॉ. विकास मानव

आत्महत्या एक ऐसी समस्या है जिसका निवारण सामूहिक प्रयासों द्वारा ही किया जा सकता है। इसीलिए यह विशेष नारा दिया गया है और हम सभी जिम्मेदार नागरिकों का यह दायित्व है कि आत्महत्या की घटनाओं में कमी लाने के लिए अपना योगदान प्रदान करें। आत्महत्या एक आत्मघाती व्यवहार है जिसमें व्यक्ति स्वयं को जान से मारने का प्रयास करता है।


पूरे विश्व में लगभग हर वर्ष 10 लाख लोग आत्महत्या करते हैं । विश्व में होने वाले कुल आत्महत्या का 21% आत्महत्या लोग भारत में करते हैं । जापान में प्रति एक लाख में 20 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि भारत में प्रति लाख में 11 व्यक्ति आत्महत्या करते हैं। भारतवर्ष में सबसे अधिक आत्महत्या महाराष्ट्र में होता है उसके बाद तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक एवं मध्य प्रदेश का नंबर आता है।
भारत में होने वाले कुल आत्महत्या का 51% आत्महत्या उपर्युक्त पांच प्रदेशों में होता है। सबसे अधिक दर आत्महत्या का पांडिचेरी में है जहां पर प्रति दस लाख में 432 लोग आत्महत्या करते हैं जबकि सिक्किम में प्रति दस लाख में 375 लोग आत्महत्या करते हैं।
विश्व में उम्रदराज लोगों द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं अधिक हैं जबकि इसके विपरीत भारतवर्ष में युवा लोगों के आत्महत्या करने की घटनाएं अधिक है।

पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में आत्महत्या की दर अधिक पाई गई है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में यह 4 गुना अधिक है उनमें भी विवाहित महिलाएं अधिक आत्महत्या करती हैं। दक्षिण भारत में लिंग भेद भाव कम होने के बावजूद भी वहां पर युवा महिलाओं द्वारा आत्महत्या किए जाने की घटनाएं पुरुषों की अपेक्षा अधिक हैं।
आत्महत्या पूरी दुनिया में मृत्यु का दसवां सबसे बड़ा कारण है।

आत्महत्या प्रेरक लक्षण :
~बार-बार मरने की इच्छा व्यक्त करना.
~निराशावादी सोच प्रकट करना यह कहना कि मैं जी कर क्या करूंगा.
~अपने को समाप्त करने के तरीके ढूंढना.
~अत्यधिक दोष भाव व्यक्त करना यह प्रदर्शित करना कि मेरी समस्या का कोई समाधान नहीं है और ना ही दुनिया में कोई मेरी सहायता करने वाला है.
~अचानक से व्यवहार में अत्यधिक परिवर्तन आना.
~जोखिम भरा कार्य करना जैसे बहुत ज्यादा स्पीड से गाड़ी चलाना.
~परिवार एवं मित्रों से दूर हो जाना.
~नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना इत्यादि.

यदि किसी व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण दिखाई पड़े तो उसे उससे तीन साधारण सा सवाल पूछ कर इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि वह व्यक्ति आत्महत्या करने वाला है या नहीं :
1- आप आत्महत्या कब करेंगे?
यदि इस प्रश्न के जवाब मैं व्यक्ति ऐसा समय बताएं जिस समय उसके आस पास कोई ना हो तो उसके द्वारा आत्महत्या करने की संभावना अधिक होती है यदि वह कहे जब समय आएगा तब देखूंगा इसका मतलब है कि ऐसे व्यक्ति के द्वारा आत्महत्या करने की संभावना कम है।
2- कैसे करेंगे ?
यदि व्यक्ति इस प्रश्न के उत्तर में स्पष्ट साधनों का उल्लेख करें जैसे गोली मार लूंगा, फांसी लगा लूंगा, रेल से कट जाऊंगा या नदी में छलांग लगा दूंगा बोलता है और यह साधन आसानी से उपलब्ध है तो यह समझना चाहिए कि आत्महत्या की संभावना अधिक है।
3- आप आत्महत्या क्यों करना चाहते हैं ?
यदि इस प्रश्न के उत्तर में व्यक्ति जो कहानी बताएं यदि उसमें यह तीन भाव दिखाई पड़े निराशा, जीवन की मूल्य हीनता एवं सहायता का कोई आसरा न दिखना तो उसमें आत्महत्या का जोखिम बहुत अधिक होता है।
यदि इनमें से कोई एक दिखाई पड़े तो थोड़ा जोखिम यदि दो एक साथ दिखाई पड़े तो उससे थोड़ा अधिक जोखिम और यदि तीनों एक साथ दिखाई पड़े तो अत्यधिक जोखिम की संभावना होती है।

आत्महत्या के जोखिमपूर्ण कारक :
●प्रेम में धोखा
●अतृप्ति भरा वैवाहिक जीवन
●मानसिक विकार
●औषधियों का दुरुपयोग
●जुए की लत
●गंभीर बीमारी
●गंभीर संक्रमण
●आत्महत्या के साधनों की उपलब्धता
●सामाजिक आर्थिक स्थिति ●आनुवंशिकता
●मनोवैज्ञानिक कारक
●सोशल मीडिया एवं मीडिया एवं पारिवारिक कलह

इन कारकों का संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित है-⤵️
प्रेम में धोखा :
इस संदर्भ में 0 2 लोगों के सवाल पर आधारित एक विवरण यहां पढ़िए :
◆पहला सवाल :
~प्रेमचंद, प्रसाद, शरतचन्द्र, गोर्की जैसे तमाम साहित्यकारों को पढ़ी थी। जिस बौद्धिक चेतना वाला साथी चाहिए था, नही मिला।
उम्र के 36 पड़ाव पार करने पर मिला तो परिवार को रास नही आया। उसको नही छोड़ी तो परिवार से वहिष्कृत कर दी गयी।
वो मुझे साथ नही रखता। लगता है कई पत्नियां/रखैलें है उसकी।
नौकरी करती हूं, किराए का मकान लेकर रहती हूँ। किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी पाप लगता है।
क्या करूँ : वृंदावन जाकर कृष्ण की सन्त बन जाऊं, ब्रह्मकुमारी बनकर माउंट आबू चली जाऊं या उसको जहर देकर जेल में जिंदगी बिताऊं।
◆दूसरा सवाल :
जिस नारी से प्यार किया उसने बताया था कि~ उसको जिंदगी में मा-बॉप, भाई-बहन तक, यानी किसी का भी प्यार नही मिला। अब भी वो समझौते के बोझ तले ही मर रही है।
मैने उसको प्रेमिका, पत्नी ही नही भगवान तक स्वीकार कर अपनी आस्था, श्रद्धा, पूजा सेवा सब उसको अर्पित किया। यहां तक कहा कि, ”लाइफ सिक्योर करने को चाहे 5- 7 करोड़ एडवांस ले लो लेकिन साथ रहना स्वीकारो।”
लेकिन उसने समझौते वालों को ही जीवन का हर पल दिया। मुझे वो माह में 2 पूरे दिन-रात भी न दे सकी : बार -बार के वादे के बाद भी। जबकि मेरे लिए,मेरी तरफ से सेक्स भी अपेक्षित नहीं था उससे।
उसके नाते मेरा कैरियर, मेरा सारा मैत्री सम्बन्ध तक छिन गया। अब वो खुद को भी मुझसे छीन ली। सारा लगाव, अटेचमेंट वैगेरह खत्म कर ली।
जिनको समझौते का बोझ बताई थी उन्ही के साथ इतराने-इठलाने-डांस तक की मस्ती में मसगूल है।
क्या करूँ : उसको गोली मार दूँ या अपने रसूख- रुतवे का इस्तेमाल कर उसको लंबे समय के लिए जेल की जन्नत में पहुचा दूँ।

ऐसे हालात आज अमूमन सभी के जीवन मे आते हैं, जो शिद्दत से प्यार करते हैं।
दरअसल आज रिस्ते समझौते के कारण ही निभ रहे हैं। ढोए जा रहे हैं, यानी उनमें प्यार नही है। कारण है सम्वेदनशीलता का शून्य होना। आज प्रेम पात्र को देखकर, छूकर हमारे शरीर मे कोई सिहरन नही होती। पत्थर हो गए हैं हम भौतिकतावादी अंधी घुड़ दौड़ में। प्यार अवसरवाद, स्वार्थ आधारित यानी व्यापार का पर्याय बन गया है। सड़क चाप फुटपाथी स्तर पर आ चुका है आज प्यार।
पहले ऐसा प्यार होता है, फिर व्यक्ति का पतन होता है, फिर प्रतिशोध लेने की भावना बलवती होती है और फिर इंसान जीवन से पलायित हो जाता है।
विराट और बहु-आयामी प्रेम को नर- नारी के ज़िस्म तक समेट देना भी इसका मूल कारण है।
आपका पतन होना लाजमी है। आप रोक नही सकते ऐसे हस्र को।
लेकिन प्रतिशोध की भावना से न भरें। आप सच्चा प्यार किये तो उस प्यार का अपमान न करें। _प्यार आक्रमण नहीं, समर्पण है। प्यार प्रतिशोध नही, आत्मशोध है।
पाप से घृणा करें, पापी से नही। पापी को सजा देने की सोचने के बजाए, उसको कुदरत पर छोड दें।
क़ुदरत वो हस्र देती है जो आप सोच भी नही सकते। ईश्वर कोई व्यक्ति नही, सत्ता है जो पूजा-पाठ, मंडल-कमंडल से नही, कर्म के हिसाब से ही फल देता है। अस्तित्व का ऑटोमैटिक विधान कर्मफल के रूप में ही हमारे सामने आता है। हम भोगते हैं, हमारे साथ वाले लोग यानी बच्चे, हमसफर को भोगना पड़ता है, क्योकि जैसी संगति वैसी रंगत। जैसा अन्न वैसा मन्न।
हमारी सेवा लेने वाले, हमारी पाप की कमाई खाने वाले भी हमारे कुकर्मो के फल भोगते है। और उनकी पीड़ा हम भी झेलते है, इस पहलू पर भी हम भोगते हैं।
आप बदला लेंगे तो अपराध के भागी बनेंगे। जेलों में जमकर यौन शोषण होता है। फ़ीमेल को अफसरों, धन्नासेठों तक पहुचाया जाता है। कम से कम 8-10 लोग तो नियमित रौंदते ही है नारी को। अब तो नर भी यौन शोषण के शिकार होते है। आये दिन मीडिया ऐसे सच का पर्दाफाश करता है।
ऐसी दशा से आपका भूतपूर्व साथी गुजरेगा/गुजरेगी तो आपका चेहरा सामने होगा उसके, आप कोसे जाएंगे। ~एक बात।
दूसरी बात ये की~
“हम सच से, खुद से भी भाग लें : लेकिन स्मृतियों से नहीं भाग सकते।”
आपका अपराधी आज कितना भी ऐश कर रहा/रही हो; आपके साथ जो उसकी वजह से हुआ वो उसे भूल नही जाएगा। उसका जमीर धिक्कारता रहेगा उसे। खुद की नज़रों से बार बार, हर बार गिरना पड़ेगा उसको।
तो प्यार में ऐसे धोखे के शिकार जनों से हमारा यही कहना है कि~
कुकर्मी को कुदरत पर छोड़ें। अंतरमुखी बनें। खुद से प्यार करें। ध्यान में उतर कर अन्तरमैथुन का आनंद लें। असहाय जरूरतमंदों को जीवन देकर खुद को अर्थपूर्ण बनाएं।

अतृप्ति भरा वैवाहिक जीवन :
फेक दें ऐसे पार्टनर को। अलग हो जाएं। भौतिक सुविधा की लालच में ऐसे इंसान के साथ जीवन को नरक बनाना, जिंदा लाश बनकर घिसटना बंद करें।
जो काम आपके अंतस को सुहाए वही करें। जो इंसान आपके तन-मन-आत्मा को तृप्त करे उसी को जीयें। : बिना अकारण किसी का नैसर्गिक हक़ छीने।* यही धर्म है। बाकी धर्म, नैतिकता की सारी बातें कचरे में डाल दें।
बच्चों के कारण अयोग्य/कचरा/शोषक इंसान को झेलना है, तो झेल सकते हैं; लेकिन सुपात्र इंसान को खोजकर जीयें उसी को ही। तब ही आप खुद को जी और तृप्त कर पाएंगे।
_धरती बिल्कुल बंजर नही हुई कि कम्प्लीट इंसान ही नहीं रहे।
याद रखें – ये जीवन दोबारा नहीं मिलेगा।

मानसिक विकार :
शोधों में यह पाया गया है कि जो व्यक्ति मानसिक समस्या से ग्रस्त होते हैं उनमें आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक होती है। 8.6% लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। आत्महत्या करने वाले लोगों में आधे लोग अवसाद से ग्रस्त होते हैं। मनोदशा विकार के कारण आत्महत्या का खतरा 20 गुना अधिक बढ़ जाता है। शिजोफ्रेनिया से पीड़ित व्यक्तियों में से 14% लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं।
व्यक्तित्व विकार से ग्रसित व्यक्तियों में से भी 14% लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। जो लोग पहले आत्महत्या का प्रयास कर चुके होते हैं उनमें से 20% लोग पुन:आत्महत्या का प्रयास करते हैं और उनमें से 1% लोग साल भर के भीतर ही पुनः प्रयास के कारण मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। 5% लोग 10 वर्ष के बाद फिर से आत्महत्या का प्रयास करते हैं।

दवाओं का दुरुपयोग :
मानसिक विकार के बाद नशा आत्महत्या का दूसरा सबसे बड़ा कारण है ऐसा पाया गया है कि जो व्यक्ति लंबे समय से अधिक मात्रा में एवं अधिक घातक नशा करता है उसमें आत्महत्या की दर उतनी ही अधिक होती है। देश में शराब की आसानी से उपलब्धता एवं इसका सस्ता होना भी आत्महत्या का एक बड़ा कारण है।
इसके अतिरिक्त हीरोइन एवं अन्य नशाओं का प्रयोग करने वाले लोगों में भी आत्महत्या की प्रवृत्ति अधिक होती है। धूम्रपान करने वाले लोगों में से 65% आत्महत्या के विचार से ग्रसित होते हैं जबकि उनमें से 20% लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं।

जुए की लत :
यह देखा गया है कि जुए के लती लोगों में सामान्य जनसंख्या से आत्महत्या का अधिक खतरा होता है 24% जुआरी जीवन में कभी न कभी आत्महत्या का प्रयास करता है।

गंभीर बीमारी :
ऐसा देखा गया है कि जो लोग गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं तथा जिनका इलाज अधिक जटिल एवं महंगा होता है जैसे- कैंसर, मस्तिष्क का ट्यूमर, मिर्गी, ह्रदय रोग। उन्हें आत्महत्या का विचार अधिक आता है तथा वे आत्महत्या का प्रयास भी अधिक करते हैं।

गंभीर संक्रमण :
ऐसे संक्रमण से ग्रसित व्यक्ति जिनका इलाज जीवन पर्यंत चलता हो और उसे सामाजिक कलंक के रूप में भी देखा जाता हो जैसे- एचआईवी। ऐसी स्थिति में व्यक्तियों में आत्महत्या की संभावना सामान्य जनसंख्या की अपेक्षा कई गुना ज्यादा पाई गई है.

आत्महत्या के साधनों की उपलब्धता :
अधिकांश लोगों द्वारा भारत में कीटनाशकों के प्रयोग, फांसी लगाना, नदी में छलांग लगाना या रेल के आगे कूदकर आत्महत्या का प्रयास करते हैं इन साधनों की उपलब्धता के कारण भी आत्महत्या का जोखिम बढ़ जाता है।

सामाजिक – आर्थिक स्थिति :
ऐसा पाया गया है कि जिन की सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचता है वे आत्महत्या का अधिक प्रयास करते हैं। जिनको आर्थिक क्षति पहुंची हो जैसे- व्यापार में भारी घाटा होना, नौकरी छूट जाना, चोरी में सारा धन चला जाना, शेयर मार्केट में भारी गिरावट भी लोगों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करता है।
एकांकी परिवार का बढ़ता चलन भी व्यक्ति में अकेलापन की भावना को बढ़ाता है तथा सहयोग मिलने की संभावना को भी कम करता है। जिससे विषम परिस्थिति में व्यक्ति आत्महत्या का अधिक प्रयास करता है.

आनुवंशिकता :
यह पाया गया है कि जिन परिवार के लोग पहले आत्महत्या कर चुके होते हैं उन परिवारों में आत्महत्या का प्रयास लोग अधिक करते हैं।

मनोवैज्ञानिक कारण :
निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक स्थितियां आत्महत्या के जोखिम को बढ़ावा देते हैं :
~निराशा का उच्चा स्तर.
~अवसाद.
~जीवन उपयोगी कार्यों में भी अरुचि होना.
~क्षमताओं में कमी आना.
~भावनाओं पर नियंत्रण की क्षमता में कमी.
~सहायता हेतु साधनों की कमी.
~जीवन को मूल्यहीन समझना.
~अत्यधिक अकेलापन महसूस करना.
~यौन शोषण.
~पूरा प्रयास करने के बाद भी लगातार असफल होना.
~प्रेम में असफल होना.
~अतिविश्वासी व्यक्ति से धोखा खाना.
इन दशाओं से खुद को बचाएँ।

सोशल मीडिया एवं मीडिया :
आजकल लोग सोशल मीडिया जैसे- फेसबुक, व्हाट्सएप, टि्वटर, इंस्टाग्राम का प्रयोग अधिक कर रहे हैं जिसमें आत्महत्या के तौर-तरीकों को बढ़ा चढ़ाकर प्रसारित किया जाता है। फिल्मों एवं नाटकों में भी लोगों को आत्महत्या करते दिखाया जाता है जिससे व्यक्ति जब ऐसी परिस्थिति में पड़ता है तो वह सोचता है कि फिल्म में व्यक्ति आत्महत्या कर लिया था यदि मैं भी आत्महत्या कर लूं तो मुझे भी परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा।
मीडिया द्वारा भी आत्महत्या की घटनाओं का कवरेज प्रमुखता से एवं बड़ी मात्रा में किया जाता है तथा उसे रोमानी ढंग से बार-बार दोहराया जाता है जिससे लोगों के मन में आत्महत्या एक विकल्प के रूप में स्थान बना लेती है।

पारिवारिक कलह एवं संबंध विच्छेद :
जिन परिवारों में सदस्यों के बीच वैमनस्यता एवं शत्रुता पूर्ण भावना तथा एक दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति अधिक होती है या उनके बीच संबंध विच्छेद हो गया हो या होने वाला हो जैसे- तलाक इत्यादि का मुकदमा चल रहा हो। ऐसे लोगों द्वारा आत्महत्या का प्रयास अधिक किया जाता है अपेक्षाकृत जहां पर लोगों के बीच आपसी प्रेम सहयोग एवं भाईचारा की भावना होती है।
किसी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार आने या उसके द्वारा आत्महत्या का प्रयास किए जाने में उपयुक्त कारकों में से एक कारक या एक साथ अनेक कारक भी योगदान दे सकते हैं, कारक जितने अधिक और अधिक गंभीर स्तर के होंगे उस व्यक्ति में आत्महत्या के उतने ही तीव्र विचार आएंगे तथा उसके द्वारा आत्महत्या का प्रयास किए जाने की संभावना उतनी अधिक होती है।
बिना सही कारणों की पहचान एवं उसके गंभीरता का आकलन किए यदि आत्महत्या के निवारण के उपायों का प्रयोग किया गया तो उसके सफल होने की संभावना अत्यंत ही कम होती है ।

आत्महत्या निवारण के उपाय :
आत्महत्या निवारण के अनेको उपाय हैं जिन्हें समय पर प्रयोग किया जाए तो आत्महत्या के विचार , आत्महत्या के प्रयासों एवं आत्महत्या से होने वाले असामयिक मौतों में कमी लाई जा सकती है।
आत्महत्या निवारण का सबसे सशक्त साधन जागरूकता है। बच्चों के मन में शुरू से ही यह भाव लाना चाहिए कि दुनिया में कोई भी ऐसी समस्या नहीं है जिसका व्यक्ति समाधान नहीं कर सकता बस जरूरत होती है धैर्य पूर्वक ईमानदारी से प्रयास करने का।

कुछ प्रमुख निवारण के उपाय निम्नलिखित है :

औषधीय उपचार :
दवाओं के प्रयोग से व्यक्ति में नकारात्मक विचारों में कमी लाई जा सकती है जिन व्यक्तियों में आत्महत्या के लक्षण दिखें उन्हें मनोरोग विशेषज्ञ के पास ले जाना चाहिए चिकित्सक उनके मानसिक रोग के अनुसार चिकित्सा प्रदान करते हैं जिससे आत्महत्या की घटनाओं में कमी आती है।
जिनको गंभीर शारीरिक बीमारी या गंभीर संक्रमण हो उन्हें भी समुचित चिकित्सा प्रदान करने से उनमें आशा का संचार होता है तथा उनमें आत्महत्या के विचारों में कमी आती है।

मनोचिकित्सा (Psychotherapy) :
आत्महत्या के विचारों में कमी लाने तथा आत्महत्या के प्रयासों में कमी लाने में प्रशिक्षित एवं अनुभवी परामर्शदाताओं एवं मनोवैज्ञानिकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है।
यदि किसी भी व्यक्ति में आत्महत्या का विचार आए तो उसे तुरंत मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता से संपर्क कर परामर्श लेना चाहिए ताकि आत्महत्या के मनोवैज्ञानिक स्थितियों को समय रहते नियंत्रित किया जा सके।
मनोवैज्ञानिक निम्नलिखित उपायों के द्वारा आत्महत्या के विचारों एवं आत्महत्या के प्रयासों को कम करने का कारगर प्रयास करता है :
परामर्श सेवाएं (Counselling) :
परामर्श में मनोवैज्ञानिक आत्महत्या के कारणों का गहनता से पता लगा कर सेवार्थी को उन परिस्थितियों में समायोजन करने में सहायता प्रदान करता है।
परामर्श के द्वारा मनोवैज्ञानिक सेवार्थी को उनकी शक्तियों से अवगत कराता है जिससे उनमें हौसला एवं आत्मबल बढ़ता है तथा उनके नकारात्मक विचारों में कमी आती है।
आवश्यकता पड़ने पर मनोवैज्ञानिक सेवार्थी के परिवार के सदस्यों एवं मित्रों को भी परामर्श सेवाएं प्रदान करते हैं ताकि वे सेवार्थी के मानसिक स्थिति को समझ सके तथा उन्हें मानसिक सहयोग प्रदान करें ताकि वे अपनी कठिनाइयों से बाहर आ सके।

संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा (Cognitive behaviour therapy) :
इसमें मनोवैज्ञानिक सेवार्थी को तनाव को एवं जीवन के तनावपूर्ण घटनाओं से निपटने के नए तरीके से सिखाता है।
मनोवैज्ञानिक उनके घटनाओं/ परिस्थितियों के देखने समझने एवं उनके बारे में सोचने के ढंग में भी परिवर्तन करता है ताकि वह विषम परिस्थितियों में भी अपनी सोच को धनात्मक बनाए रखने में सक्षम हो सके।
इसमें एक मानकीकृत तरीके का उपयोग किया जाता है और यह आत्महत्या के विचारों में एवं प्रयासों में कमी लाने का एक कारगर तरीका है।

द्वंद्वात्मक व्यवहार चिकित्सा (Dialectical behaviour therapy) :
इसमें नकारात्मक विचारों की पहचान करके उनका व्यवस्थापन किया जाता है।
नकारात्मक विचारों को सकारात्मक विचारों के द्वारा प्रतिस्थापित किया जाता है तथा व्यक्ति के सामाजिक संबंधों में सुधार का प्रयास किया जाता है।
इससे व्यक्ति का तनाव कम होता है और उसके द्वारा आत्महत्या करने की संभावना को कम किया जा सकता है , इसमें मुख्य रूप से सेवार्थी के चार कौशलों का विकास करने का प्रयास किया जाता है :
सचेत रहना, तनाव सहने की क्षमता विकसित करना , अंतर वैयक्तिक संबंधों को बनाने एवं उसे मजबूत करने तथा अपने संवेगो पर नियंत्रण करना सिखाया जाता है।

परिवार का सहयोग :
आत्महत्या निवारण में परिवार के सदस्यों का सहयोग सबसे अधिक महत्व रखता है। परिवार को चाहिए कि ऐसे व्यक्ति को जिसमें आत्महत्या करने के जोखिम कारक एवं लक्षण अधिक हो उन्हें कभी अकेला न छोड़ें।
उन्हें वैचारिक सहयोग प्रदान करें उन्हें बेहतर समायोजन कौशल सीखने में सहयोग दें।
यदि उनका इलाज चल रहा हो तो चिकित्सा निर्देशों का अनुसरण करने में उनका सहयोग करें तथा उन्हें यह विश्वास दिलाने की कोशिश करें कि किसी समस्या के होने पर हम सब आपके साथ हैं इससे उस व्यक्ति में आत्महत्या के विचारों में कमी आएगी।
आत्महत्या के निवारण के उपायों का उपयोग एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में बदलता रहता है कोई विधि एक व्यक्ति के लिए कारगर हो सकता है तो वही विधि दूसरे व्यक्ति के लिए नाकाम भी हो सकता है , हो सकता है कि एक ही व्यक्ति के लिए एक साथ कई उपायों का भी प्रयोग करना पड़ सकता है।
इन उपायों का प्रयोग जितनी जल्दी शुरू किया जाए उतना ही अधिक प्रभावशाली साबित होता है । सबसे बेहतर होता है कि जब व्यक्ति में पहली बार आत्महत्या का विचार है तभी वह प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक से परामर्श लेकर तनाव एवं विषम परिस्थितियों के साथ समायोजन कौशल का विकास कर ले ताकि आगे आत्महत्या की संभावना को कम किया जा सके।

सारांश :
यह कह सकते हैं कि भारत में जितनी तेजी से आत्महत्या की दर बढ़ रही है उसे देखते हुए उसे रोकने के लिए सरकार को एक राष्ट्रीय नीति बनाने की आवश्यकता है जिसमें सभी व्यक्तियों छात्रों सरकारी कर्मचारियों पुलिस कामकाजी महिलाओं एवं कामगार लोगों का नियमित मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाए ताकि उनमें आत्महत्या के लक्षण दिखने पर उचित समय पर परामर्श मनोचिकित्सा एवं अन्य माध्यमों से उसे दूर किया जा सके ताकि वे आत्महत्या ना करें।
आत्महत्या के संसाधनों जैसे कीटनाशकों नींद की दवा जहार अस्त्र शस्त्र की उपलब्धता पर कठोरता से रोक लगाई जाए।
आत्महत्या के बढ़ावा देने वाले कार्य को जैसे नशा, जुआ एवं पर स्त्रीगमन पर रोक लगाया जाए। युवाओं को केवल किताबी ज्ञान न दिया जाए बल्कि उन्हें विषम परिस्थितियों में समायोजन करने का कौशल भी सिखाया जाए ताकि वे ताकि वे आत्महत्या के बारे में सोचने के बजाय उनका सामना करके समायोजन कर सके।
अगर आपकी हीनभावना, गिल्टी, निराशा, पीड़ा, बीमारी, आपके नर्वसनेश और डिप्रेशन में इतना इजाफा हो चुका हो की हर हाल में आप खुद को खत्म करना ही चाहें : तो भी ऐसा नहीं करें. बिना आत्महत्या खुद को मृत मान लें. अपना नवजन्म स्वीकार लें और खुद को मुझे सौंप दें. आपको आपके अनुरूप हम लिखेंगे.

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