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सुधारों के नाम पर बैकडोर से तीनों कृषि कानूनों के एंट्री की साजिश

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जगदीप सिंह सिंधु

कृषि क्षेत्र देश की आर्थिक स्थिरता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत में कृषि को शोषण से बचाने के लिए सरकारी मंडी व्यवस्था लागू की गई थी। देश के विभिन्न प्रदेशों में कृषि उपज विपणन विनियमन अधिनियम 1956 (एपीएमआर)  के अंतर्गत राज्य सरकारों को स्वायत्तशासी कृषि उपज विपणन मंडी समिति (एपीएमसी) द्वारा सरकारी प्राथमिक और सब मंडियां स्थापित करने के लिए प्रावधान दिए गए हैं। यह अधिनियम क्षेत्र में उत्पादित कृषि खाद्यान्नों और अन्य उत्पादों दाल, तिलहन, चीनी, फल, सब्जी, दूध, डेयरी उत्पाद मीट, मछली, पोल्ट्री चिकन, भेड़, बकरी, पटसन, नारियल, मूंगफली को अधिसूचित करता है। इसका उद्देश्य किसानों की कृषि उपज को बिक्री और भंडारण के लिए उचित व्यवस्था देना है। इन उत्पादों की पहली बिक्री अधिनियम के अंतर्गत गठित एपीएमसी के संरक्षण में मंडी में होगी।  

किसान संगठनों का कहना है कि हालांकि एपी एमसी अधिनियम के अंतर्गत मंडी व्यवस्था में ढांचागत सुधारों की आवश्यकता है लेकिन जो संरक्षण किसानों को इस अधिनियम के अंतर्गत मिल रहा है उसको भी सुधारों के नाम पर वर्तमान सरकार ख़त्म करने की नीतियों को बढ़ा रही है। किसानों को कृषि के उत्पादन में होने वाली कठिनाइयों के समाधान करने की बजाय सरकार ऐसी नीतियों को लागब कर रही है जो सीधे पूंजीपतियों को लाभ पहुंचने के लिए हैं।  

2020 में लाये गए तीन कृषि कानूनों को रद्द करवाने के लिए एक लम्बा आंदोलन किसानों ने किया था। अब फिर से उन कानूनों को नए प्रारूप में सरकार राज्यों के द्वारा आगे बढ़ा रही है। नेशनल पालिसी ड्राफ्ट फ्रेमवर्क ऑन एग्रीकल्चर मार्केटिंग का मसौदा इसका सबूत है। 4 जनवरी को हरियाणा के टोहाना में हुई महापंचायत में किसान संगठन के नेताओं ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि सरकार के द्वारा लाये जा रहे इस नए मसौदे का पूरे देश में विरोध किया जायेगा। किसान नेताओं और पंजाब सरकार ने इस नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि यह 2020 में पेश किये गए तीन कृषि कानून और किसान के विरोध के बाद 2021 निरस्त किये गए कानूनों से ज्यादा घातक है।

तीन कृषि कानून 2020 में भारत की संसद में पास किये गए थे जिन्हें किसान संगठनों के विरोध के बाद दिसंबर, 2021 में निरस्त कर दिया गया था। उनमें पहला कानून किसान उपज व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा ) अधिनियम 2020 था। इस कानून में किसानों को अधिसूचित मंडियों के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति दी गई थी।

इसका उद्देश्य किसानों को अधिक विकल्प और बेहतर मूल्य प्रदान करना बताया गया था। लेकिन किसानों की आशंका थी कि ऐसा करने से स्थापित मंडी व्यवस्था टूट जाएगी और किसानों को अपनी फसल बड़े व्यापारियों द्वारा बनाई गई प्राइवेट मंडियों में औने पौने दामों में बेचने के लिए विवश होना पड़ेगा। किसान फिर से शोषण के कुचक्र में फंस जाने को बाध्य होगा। 

नए नेशनल पालिसी फ्रेमवर्क ड्राफ्ट ऑन एग्रीकल्चर मार्केटिंग का मसौदा एपीएमसी के तहत बनाई गई किसान पारम्परिक मंडियों के समानांतर निजी खरीददारों व अन्य उपभोक्ताओं को प्रत्यक्ष रूप में कृषि उपज खरीदने के लिए प्राइवेट मंडी बनाने पर प्रावधान करता है। यह गोदामों और शीत भंडारण सुविधाओं जैसे स्थायी बुनियादी ढांचे में निजी पूंजी के प्रवेश को प्रोत्साहित करता है। कृषि क्षेत्र में दक्षता और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए डिजिटल ट्रेडिंग और इ मार्केटिंग को बढ़ावा देता है जिस का सीधा प्रभाव किसानों के सीमित कार्यप्रणाली पर पड़ेगा और किसानों के शोषण को निजी बड़े कॉर्पोरेट्स के हवाले करने की कवायद बन सकता है।  

दूसरा कानून मूल्य आश्वासन और कृषि सेवाओं पर किसान ( सशक्तिकरण और संरक्षण) अधिनियम 2020 था जिसमें अनुबंध खेती के लिए ढांचा प्रदान किया गया था। किसानों को कृषि व्यवसाय फर्मों प्रसंस्करणकर्ता थोक विक्रेताओं निर्यातकों या बड़े खुर्द व्यापारियों के साथ पूर्व सहमत मूल्य पर भविष्य के कृषि उपज बिक्री के लिए अनुबंध करने के लिए सक्षम बनाया गया था।  

मसौदा नीति निजी निवेश और बुनियादी ढांचे के विकास मे पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को बढ़ावा देता है जो की निरस्त किये गए दूसरे कानून कृषक मूल्य आश्वासन समझौता के अनुरूप ही है। किसानों की चिंताएं हैं कि सरकार निरस्त किये गए कानूनों के कुछ प्रावधानों को इस में शामिल कर रही है। इसके अलावा  मसौदे में न्यूनतम समर्थन मूल्य ( एमएसपी ) पद्धति को सुनिश्चित और सुदृढ़ करने के कोई सुझाव नहीं जिससे आशंका बढ़ती है कि किसी अन्य वैकल्पिक व्यवस्था के नाम पर न्यूनतम समर्थन मूल्य को कमजोर किया जा सकता है।  

इस नई नीति में  GST पर राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त परिषद के समरूप राज्य कृषि मंत्रियों की अधिकार प्राप्त कृषि विपणन सुधार परिषद के गठन का प्रस्ताव है जो कि संघीय ढांचे में निहित राज्यों के कृषि क्षेत्र पर अधिकार को सीमित करता है। इस नीति में एग्री ट्रेड को सुगम बनाने के प्रस्ताव भी हैं। कृषि के जानकारों का मानना है कि यह सीधे-सीधे बड़े कॉर्पोरेट्स के लिए एग्री ट्रेड में निवेश का रास्ता बनाया गया है। 

इसमें फसल बीमा योजना के आधार पर फसल मूल्य बीमा योजना को शामिल किया गया है। किसान संगठनों का कहना है कि फसल बीमा योजना की खामियों को अभी तक दूर किया नहीं गया जिसमें सबसे बड़ी कमी समय पर मुआवजे देने को लेकर है जिसके लिए बार-बार जिला स्तर पर किसानों को संघर्ष करना पड़ रहा है।   

आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम,2020  अनाज, दालें, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया, जिसका उद्देश्य इन वस्तुओं के उत्पादन, भंडारण और बिक्री को नियंत्रण मुक्त करना था। इसके बारे में नए मसौदे कोई स्पष्टता नहीं दी गई है। 

किसान संगठनों ने टोहाना में फैसला किया है कि इस नयी नीति के विरोध फिर से आंदोलन करना होगा जो पूरे देश में सभी संगठन मिलकर करेंगे। वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन पर राष्ट्रीय संयुक्त किसान मोर्चा के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि सरकार खनौरी और शम्भू मोर्चों पर चल रहे आंदोलन को समर्थन कर रही है और  इससे किसानों सीहोन और पंजाब सरकार की बदनामी हो रही है।(

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