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भारत के मजदूरों की लगातार घटती कमाई

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मुनेश त्यागी

 भारत के अधिकांश नियमित मजदूरों और आकस्मिक मजदूरों की मासिक कमाई पिछले 12 सालों से लगातार घटती जा रही है। पिछले 12 सालों में इन मजदूरों की महीने की कमाई 12,100 से घटकर 10,925 पर आ गई है। जिन मजदूरों की मासिक कमाई घटी है उनमें नियमित मजदूर, स्वरोजगार में लगे लोग, खेती बाड़ी से जुड़े नियमित मजदूर और आकस्मिक मजदूर और निर्माण क्षेत्र में लगे नियमित मजदूर और आकस्मिक मजदूर शामिल हैं।

    अंतरराष्ट्रीय संगठन इंटरनेशनल लेबर आर्गेनाइजेशन यानी आईएलओ और मानव विकास संसाधन की नई रिपोर्ट “इंडिया अपॉइंटमेंट रिपोर्ट 2024” के अनुसार भारत में नियमित वेतन पाने वालों और स्व रोजगार में लगे लोगों की वास्तविक कमाई में पिछले एक दशक से ज्यादा समय के दौरान लगातार गिरावट आ रही है। सरकारी आंकड़ों पर आधारित इस रिपोर्ट में वास्तविक कमाई का आकलन महंगाई यानी मुद्रा स्थिति के आधार पर किया गया है।

     इस ताजा रिपोर्ट के अनुसार साल दर साल नियमित कर्मचारीयों की औसत मासिक वास्तविक कमाई में लगातार गिरावट आई जा रही है। 2012 के नियमित मजदूर की औसत मासिक आय 12,100  रुपए थी जबकि 2022 में यह आमदनी घटकर 10,925 मासिक रह गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार कार्य बल का एक बड़ा हिस्सा जो स्व-रोजगार में लगा हुआ है, उसकी मासिक कमाई भी लगातार कम हुई है। इनकी वास्तविक कमाई में सालाना 0.8 प्रतिशत की गिरावट आई है। यह 2019 में करीब 7,017 रुपए प्रति माह से घटकर 2022 में 6,843 रुपए प्रतिमाह रह गई है।

    इसी के साथ-साथ और खुलासा किया गया है। इस खुलासे में रिपोर्ट कहती है कि भारत की खेती बाड़ी यानी कृषि क्षेत्र से जुड़े मजदूरों को भी न्यूनतम महानताना नहीं मिल रहा है। रिपोर्ट के अनुसार भारत में श्रमिकों को उनके कौशल के आधार पर न्यूनतम मेहनताना नहीं मिल रहा है। श्रमिकों के एक बड़े हिस्से विशेष रूप से आकस्मिक श्रमिकों को न्यूनतम वेतन का भुगतान नहीं किया जा रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर विशेष रूप से कृषि क्षेत्र में 41 फ़ीसदी नियमित श्रमिकों और 52 फ़ीसदी आकस्मिक श्रमिकों को उतना पारिश्रमिक नहीं मिल रहा है जितना उस क्षेत्र में किसी एक कुशल श्रमिक के लिए प्रतिदिन के लिहाज से कम से कम तय किया गया है।

      इसके अलावा रिपोर्ट में निर्माण क्षेत्र यानी कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में लगे मजदूरों की कमाई का भी उल्लेख किया गया है। इस क्षेत्र से जुड़े 39 फ़ीसदी नियमित कर्मचारियों और 70 फ़ीसदी आकस्मिक मजदूरों को अकुशल यानी अनस्किल्ड श्रमिकों के लिए प्रतिदिन के हिसाब से निर्धारित किया गया औसतन न्यूनतम वेतन भी नहीं मिल रहा है। ये समस्त आंकड़े 2022 के लिए किए गए पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे पर आधारित हैं।

    इससे पहले दो साल पहले भी यह रिपोर्ट हिंदी के हिंदुस्तान अख़बार में रिपोर्ट हुई थी कि भारत के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। इसे देखकर और सुन पढ़ कर लोगों को विश्वास नहीं हुआ था। अब इस रिपोर्ट आने के बाद, लोगों को यह विश्वास हो गया है कि वाकई में इस देश के मजदूरों की हालत खराब है। उनकी मासिक आय लगातार घट रही है और इस देश में सिर्फ और सिर्फ भाषण बाजी और जुमलेबाजी हो रही है। हकीकत में मजदूरों की हितों की रक्षा करने वाला कोई नहीं है, सरकार तो कतई भी नहीं।

       ये ताजा-तरीन आंकड़े वाकई में हतोत्साहित करने वाले हैं। एक तरफ तो सरकार विश्व गुरु बने की लगातार बात कर रही है, मगर वह सही आंकड़ों को जनता के सामने नहीं लाती। यहां पर यह ध्यान रखने की जरूरत है कि ये आंकड़े भारत सरकार के नहीं बल्कि आईएलओ की रिपोर्ट के हैं। अगर यह रिपोर्ट नहीं आती तो भारत के अधिकांश मजदूरों की इस दयनीय स्थिति के बारे में पता ही नहीं चलता।

      इसी के साथ यहां पर यह जानने की भी जरूरत है कि आखिर भारत के अधिकांश मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं क्यों नहीं मिल रहा है? इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे देश में महंगाई और मुद्रास्फीति लगातार बढ़ती जा रही है। इस कमर तोड़ महंगाई को रोकने के लिए सरकार ने पिछले दस सालों में कोई काम नहीं किया है। उसने तो जैसे जीवनयापन की चीजों को भी मुनाफाखोरी की हवाले कर दिया है और इन मुनाफाखोरों पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। 

    इसके अलावा भारत का जो श्रम विभाग है, उनमें से अधिकांश विभाग, अपनी जिम्मेदारियां और कर्तव्य पूरे नहीं कर रहे हैं। वे मजदूरों को कम वेतन देने वाले मालिकों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं करते, उन्हें मजदूरों को कानूनी वेतन देने के लिए बाध्य नहीं करते और सरकारी श्रम विभाग ने तो जैसे सेवायोजकों को वरदान ही दे दिया है कि आप मजदूरों को न्यूनतम वेतन न देने के लिए आजाद हो।

      सरकार की इसी बेरुखी और मजदूर विरोधी नीतियों का फायदा उठाकर, अधिकांश सेवायोजक अपने मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं दे रहे हैं। सरकार की इस बेरुखी का सबसे ज्यादा नुकसान भारत के मजदूरों और स्वराज स्वरोजगार में लगे लोगों को उठाना पड़ रहा है। इस भयंकर शोषण के लिए केवल और केवल समाज की बेरुखी, मजदूरों की यूनियनों का प्रभावी न होना और सरकार की मजदूर विरोधी नीतियां ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। जब तक सरकार प्रतिबद्ध होकर मजदूरों के हितों की रक्षा नहीं करेगी, तब तक भारत के इन करोड़ों मजदूरों को, इस लगातार जारी शोषण से और अन्याय से नहीं बचाया जा सकता।

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