बी. सिवरामन
1970 के दशक के गुजरे जमाने यह बात पूरी तरह से अकल्पनीय थी कि कोई भी उस समय के क्रिकेट दिग्गजों, जैसे कि सुनील गावस्कर, जीआर विश्वनाथ, बिशन सिंह बेदी या ईएएस प्रसन्ना से यह सवाल पूछने की हिम्मत कर सकता था कि “आपका रेट क्या है?”
इतने नामी-गिरामी क्रिकेटरों के “बिकने” की तब कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। लेकिन मौजूदा दौर में खेल की वास्तविकताओं के साथ-साथ उससे जुड़ी भाषा में भी व्यापक बदलाव देखने को मिल रहा है।
यह कहना कि ऋषभ पंत को टीम लखनऊ सुपर जाइंट्स को 27 करोड़ रुपये में “बेचा” गया है या भुवनेश्वर कुमार को “टीम रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर ने 10.5 करोड़ रुपये में खरीदा है, एक सामान्य बात हो गई है। भाषा में यह बदलाव असल में बदल चुकी वास्तविकताओं को ही संप्रेषित कर रही है।
यह खेलों का किस कदर व्यावसायीकरण हो चुका है, को दर्शाता है – विशेष रूप से क्रिकेट खेल में हो चुके व्यावसायीकरण को। क्या क्रिकेट को अभी भी ‘जेंटलमेंस गेम’ कहा जा सकता है, जबकि खिलाड़ियों को गुलामों की खरीद-फरोख्त की तरह ही फ्रेंचाइजी के द्वारा नीलामी के माध्यम से खरीदा जाता है?
हाल ही में संपन्न हुई आईपीएल की नीलामी में कुल 182 भारतीय खिलाड़ियों और 62 विदेशी खिलाड़ियों को कुल 639.15 करोड़ रुपये में दस फ्रेंचाइजियों के बीच बेचा गया। आईपीएल ने क्रिकेट को भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में एक बड़ा बिजनेस बना दिया है।
आईपीएल का कुल राजस्व करीब 9,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। इसमें से, भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) प्रसारण अधिकार, स्पांसरशिप (विज्ञापन के लिए) और लाइसेंसिंग सौदों के माध्यम से करीब 4,000 करोड़ रुपये की कमाई करता है।
वहीं पिछले आईपीएल सीज़न में 10 टीमों ने टिकट कलेक्शन, बिक्री और लोकल स्तर पर स्पांसरशिप के माध्यम से सामूहिक तौर पर 4,670 करोड़ रुपये की कमाई की थी। उदाहरण के लिए, गुजरात टाइटन्स टोरेंट ग्रुप को प्रमोट करती है और कुछ अन्य आईपीएल टीमें बालकृष्ण इंडस्ट्रीज के स्वामित्व वाले बीकेटी टायर्स का प्रमोशन करती हैं।
स्टार स्पोर्ट्स ने आईपीएल मैचों के प्रसारण के एकाधिकार अधिकार को हासिल करने के लिए 23,575 करोड़ रुपये की हैरतअंगेज राशि का भुगतान किया है, जो प्रति मैच 57.4 करोड़ रुपये बैठता है।
लेकिन कमाई के लिहाज से यह जियो सिनेमा के साथ मिलकर विज्ञापन के माध्यम से अपने राजस्व में मात्र 4,700 करोड़ रुपये की ही कमाई कर पाने में कामयाब रहा, जिसने अपने ग्राहकों के लिए मैचों की लाइव स्ट्रीमिंग की थी।
इसके अलावा, इसने Pay TV सब्सक्रिप्शन के जरिये करीब 1,000 करोड़ रुपये भी कमाए थे। इस लिहाज से कहें तो स्टार स्पोर्ट्स को भारी नुकसान हुआ है। रूपर्ट मर्डोक के वैश्विक मीडिया साम्राज्य के 31 बिलियन डॉलर के कुल वार्षिक राजस्व को देखते हुए, कहा जा सकता है कि स्टार स्पोर्ट्स इस भारतीय घाटे को हल्के में ले सकता है।
इसके बावजूद, यह पूंजी के अपने ही प्रचार का शिकार बनने और अत्यधिक निवेश में संलग्न होने का एक उत्कृष्ट नमूना है। फिलहाल, उसके पास 2027 तक आईपीएल के प्रसारण/लाइव स्ट्रीमिंग के राइट्स बरकरार हैं और यह देखना अभी शेष है वे इस आईपीएल सीजन में कितना राजस्व कमाते हैं।
इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) में स्पोर्टस कैपिटल का प्रतिनिधित्व दरअसल बड़े कॉर्पोरेट घरानों और पूंजीपतियों के द्वारा किया जा रहा है।
बड़े बिजनेस कॉरपोरेट घराने हैं आईपीएल टीमों के मालिकान
उदहारण के लिए मुंबई इंडियंस के मालिक मुकेश और नीता अंबानी और उनकी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज है। आईटी विभाग ने मुकेश अंबानी के खिलाफ कुछ टैक्स चोरी के मामले शुरू किए थे, लेकिन रहस्यमय तरीके से उन मामलों को “सबूतों की कमी” का हवाला देकर कारण बंद कर दिया गया और बाद में उन्होंने इस टैक्स चोरी की कथित राशि का खुलासा करने की भी जहमत नहीं उठाई।
इन मामलों को बंद करने के बावजूद, मुकेश अंबानी को अभी भी अपनी विदेशी आय के बारे में जानकारी छिपाने से संबंधित मामलों का सामना करना पड़ रहा है।
चेन्नई सुपरकिंग्स का स्वामित्व इंडिया सीमेंट्स के पास है, जिसके परिसरों पर फेमा उल्लंघन और आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम वाईएस राममनोहर रेड्डी की सीमेंट कंपनियों में संदिग्ध निवेश करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय की ओर से छापेमारी की गई थी।
इसी तरह, कोलकाता नाइट राइडर्स का स्वामित्व बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख खान के पास है, जो हुरुन इंडिया रिच लिस्ट द्वारा घोषित शीर्ष दस सबसे अमीर भारतीयों की श्रेणी में शामिल हैं और जिनकी संपत्ति 7,300 करोड़ रुपये आंकी गई है।
शाहरुख खान एक अभिनेता से ज्यादा एक बिजनेसमैन हैं। वे एक निवेशक और फाइनेंसर हैं। कोलकाता नाइट राइडर्स में 55% नियंत्रण हिस्सेदारी के अलावा, वे रेड चिलीज़ एंटरटेनमेंट के मालिक हैं, जो उनकी फिल्म निर्माण कंपनी है और जिसमें भारत की अग्रणी विज़ुअल मीडिया कंपनी रेड चिलीज़ वीएफएक्स भी शामिल है।
इसके अलावा, शाहरुख़ खान भारत ही नहीं बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स में एक बड़े निवेशक के तौर पर खुद को स्थापित कर चुके हैं, और साथ ही वे किडज़ानिया के मालिक हैं, जो बच्चों के “एडुटेनमेंट पार्कों” की एक अंतर्राष्ट्रीय श्रृंखला है, जो एजुटेक कंपनी बायजूस की नकल है, जो बच्चों को शिक्षित करने के नाम पर मोटी कमाई कर रही है।
इन सबके अलावा, शाहरुख खान ने कुछ अन्य एडुटेक स्टार्ट-अप को भी प्रमोट किया है। शाहरुख खान की कोलकाता नाइट राइडर्स को अपारदर्शिता और पारदर्शिता में कमी से संबंधित कई विवादों का सामना करना पड़ रहा है।
गुजरात टाइटन्स के प्रबंधन का काम इरेलिया स्पोर्ट्स इंडिया के द्वारा किया जा रहा है, जिसका स्वामित्व सीवीसी कैपिटल पार्टनर्स के पास है, जो दरअसल लक्ज़मबर्ग में मुख्यालय वाली एक बहुराष्ट्रीय इन्वेस्टमेंट फर्म है, और जो 156 बिलियन डॉलर की संपत्ति का प्रबंधन करती है।
संयोगवश, सीवीसी कैपिटल स्पोर्टस सट्टेबाजी में भी है। ऐसे में, हितों के टकराव और संभावित मैच फिक्सिंग के खतरों को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं।
इसी तरह सनराइजर्स हैदराबाद का स्वामित्व कलानिधि मारन और दयानिधि मारन के सन टीवी समूह के पास है, जो सबसे अमीर भारतीयों की शीर्ष 20 समूह में शामिल है। सन टीवी ग्रुप लंबे समय से आयकर विभाग द्वारा दायर कई कर चोरी के मामलों और एयरसेल-मैक्सिस 2जी घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय द्वारा दायर एक आपराधिक मामले का सामना कर रहा है।
दिल्ली कैपिटल्स का स्वामित्व संयुक्त रूप से जीएमआर ग्रुप और जेएसडब्ल्यू स्पोर्ट्स के पास है। जीएमआर समूह के पास कई बिजली संयंत्रों का स्वामित्व है और यह वैश्विक स्तर पर हवाई अड्डों और एक्सप्रेसवे विकसित करने के लिए जाना जाता है, और जिसके पास 2 बिलियन डॉलर के बुनियादी ढांचे का एकाधिकार है।
वहीं पार्टनर जेएसडब्ल्यू स्पोर्ट्स का स्वामित्व सज्जन जिंदल के बहुराष्ट्रीय इस्पात समूह जिंदल स्टील वर्क्स के पास है, जो संयोग से एक फुटबॉल फ्रेंचाइजी बेंगलुरु एफसी के भी मालिक हैं।
लखनऊ सुपर जायंट्स का स्वामित्व उद्योगपति गोयनका के पास है, जिनके स्वामित्व में कई पॉवर प्लांट्स और पॉवर यूटिलिटी है जो ग्रेटर नोएडा में बिजली की आपूर्ति करती है।
पंजाब किंग्स का बाहरी तौर पर स्वामित्व अभिनेत्री प्रीति जिंटा के पास है। लेकिन वास्तव में इसका स्वामित्व नुस्ली वाडिया समूह के उद्योगपति नेस वाडिया और डाबर समूह के मोहित बर्मन के पास है और प्रीति जिंटा इन व्यापारियों के लिए सिर्फ एक मुखौटा भर हैं।
जिस प्रकार से पंजाब किंग्स के लिए प्रीति जिंटा मुखौटे के तौर पर हैं, उसी तरह राजस्थान रॉयल्स के लिए एक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी और उनके पति राज कुंद्रा हुआ करते थे, जिन्हें जुलाई 2021 में अभिनेत्री बनने की इच्छुक कई युवा महिलाओं का अश्लील वीडियो बनाकर शोषण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
इसके बाद शिल्पा शेट्टी और राज कुंद्रा ने राजस्थान रॉयल्स में अपनी हिस्सेदारी बिजनेसमैन मनोज बडाले और लाचियन मर्डोक को हस्तांतरित कर दी थी।
मनोज बडाले ब्रिटेन में एक डिजिटल मीडिया समूह ब्लेनहेल्म चैलकोट के मालिक हैं, जिसके पास 60 आईटी कंपनियों का स्वामित्व है। वहीं लाचियन मर्डोक वैश्विक मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक के परिवार से हैं, जो भारत में स्टार टीवी समूह के मालिक हैं।
रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर का स्वामित्व यूनाइटेड स्पिरिट्स के पास है, जिसका मालिकाना विजय माल्या के पास है, जो भारतीय कानून से विदेश भाग गया था और जिसने भारतीय बैंकों से 9000 करोड़ रुपये का ऋण लेकर उसे चुकता करने में डिफ़ॉल्ट होने के बाद भागकर लंदन में शरण ली हुई है।
आईपीएल में स्पोर्टस कैपिटल सिर्फ इन्हीं व्यवसायियों और कॉर्पोरेट घरानों के स्वामित्व तक सीमित नहीं है। आईपीएल टाइटल के प्रायोजकों में टाटा, स्पोर्ट्स मार्केटिंग कंपनी My11 Circle, एक स्टॉक ब्रोकरेज और एंजेल निवेशक फर्म AngelOne और RuPay शामिल हैं जो कि एक डिजिटल भुगतान कंपनी है।
इस प्रकार, इनमें से अधिकांश स्पोर्ट्स मुगल भारत में निर्ल्लज स्पोर्ट्स कैपिटल का प्रतिनिधित्व करते हैं।
मीडिया, एंटरटेनमेंट कैपिटल और स्पोर्ट्स कैपिटल के बीच की सांठगांठ
हर जगह, मीडिया, जो कि मोटे तौर पर एंटरटेनमेंट कैपिटल का प्रतिनिधित्व करती है, स्पोर्टस कैपिटल के तौर पर यह अपना काम करती है। हाल ही में जब महिला पहलवान विनेश फोगाट को अन्यायपूर्ण तरीके से किसी भी ओलंपिक पदक से वंचित कर दिया गया, तो तमाम मीडिया चैनलों ने इस अन्याय पर घड़ियाली आंसू बहाए।
लेकिन जब इसी विनेश फोगाट ने भाजपा सांसद और कुश्ती संघ अध्यक्ष, बृजभूषण शरण सिंह के ऊपर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ प्रतिरोध की अगुवाई करने का काम किया था, तो इन्हीं टीवी चैनलों ने बृजभूषण का पक्षपोषण किया था या ज्यादा किया तो पूरे मामले से तटस्थता बनाए रखी थी।
इनका सक्सेस मंत्र है, जन भावनाओं का अपने पक्ष में लाभ उठाना चाहिए, लेकिन सत्ताधीशों को परेशान किए बगैर!
यह तो आम लोगों के बीच इस मुद्दे पर लोकप्रिय आक्रोश को श्रेय देना चाहिए, जिसके चलते जब महिला खिलाड़ियों के द्वारा यौन उत्पीड़न के आरोप खुलकर सामने आने लगते हैं, तब जाकर यह एक मीडिया के लिए प्रमुख मुद्दा बन जाता है।
लेकिन बड़े पैमाने पर महिला खिलाड़ियों का वस्तुकरण और उत्पाद के रूप में प्रस्तुत करने का सिलसिला जारी है। इन मुद्दों को मीडिया के द्वारा न तो कभी उठाया जाता है न ही कोई चर्चा की जाती है।
बल्कि, मीडिया ही इस तरह के चित्रण के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार होता है। सोशल मीडिया पर ये सब खूब धड़ल्ले से चल रहा है।
उदाहरण के लिए, मैरी कॉम को जहां उनके लुक के लिए ट्रोल किया गया, वहीं सानिया मिर्जा को छोटी स्कर्ट पहनने के लिए ट्रोलिंग का शिकार होना पड़ा था और एक मुस्लिम मुल्ला ने इसके लिए उनके खिलाफ फतवा भी जारी कर दिया था। सोशल मीडिया के दिग्गजों ने कभी भी इन प्रवृत्तियों पर अंकुश नहीं लगाया।
महिलाओं को कैसे चित्रित किया जाता है, या उनकी गरिमा का सम्मान किया जाता है या नहीं, इस पर पूंजी पूरी तरह से असंवेदनशील बनी रहती है; बल्कि, मीडिया कैपिटल तो महिला खिलाड़ियों की छाती या बिकनी बॉटम्स पर कैमरे को केंद्रित कर दर्शकों की सतही भावनाओं को बढ़ावा देकर अपने लिए मुनाफा कमाने का जतन ढूंढती है!
भारतीय क्षेत्रीय आधिपत्यवाद और अंधराष्ट्रवादी स्पोर्ट्स नेशनलिज्म की चापलूसी
राजनीतिक रूप से, भारतीय क्रिकेट उद्योग के भीतर स्पोर्टस कैपिटल पूरी तरह से भारतीय शासक वर्ग के क्रिकेट अल्ट्रा राष्ट्रवाद का समर्थन करती है, विशेषकर तब, जब भारत ने कमजोर सुरक्षा चिंताओं का हवाला देते हुए पाकिस्तान में आयोजित होने वाली चैंपियंस ट्रॉफी का बहिष्कार किया था।
स्पोर्टस कैपिटल के प्रतिनिधियों की ओर से विरोध की कोई सुगबुगाहट देखने को नहीं मिली। हालांकि चैंपियंस ट्रॉफी का आयोजन मुख्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) के द्वारा किया जाता है, लेकिन वास्तव में इसका आयोजन दुबई के वित्तीय माफिया का हिस्सा डीपी वर्ल्ड, अमीरात एयरलाइंस और सऊदी अरब के आयल मोनोपोली अरामको द्वारा किया जाता है।
इसके अलावा, कोका-कोला और व्हिस्की कंपनी रॉयल स्टैग इसके सह-प्रायोजक थे। यह एक असाधारण और दुर्लभ संयोग था जहां पर उन्होंने स्पोर्टस का दुरुपयोग करते हुए अपने व्यावसायिक हितों को भारत की क्षेत्रीय वर्चस्ववादी मुद्रा के अधीन कर दिया है।
स्पोर्टस कैपिटलिज्म
भारत में क्रिकेट अब एक उद्योग में तब्दील हो चुका है और अब यह महज़ खेल नहीं रह गया है। खिलाड़ी अब स्वतंत्र पेशेवर नहीं रह गए हैं, बल्कि वे अपने खेल में किये जाने वाले श्रम को एक वस्तु के रूप में स्पोर्टस कैपिटल को बेचने वाले दिहाड़ी मजदूर की स्थिति में आ चुके हैं, ताकि वह इससे अपनी पूंजी के लिए अधिशेष मूल्य उत्पन्न कर सके।
आईपीएल वैश्वीकृत और पूंजीकृत खेलों के सबसे प्रमुख प्रतीकों में से एक के रूप में उभरा है। यह पूंजी मास मीडिया पूंजी के साथ सांठगांठ के कारण ही अपनी जीवनी शक्ति हासिल करने में कामयाब रहती है।
स्पोर्ट का क्षेत्र तेजी से एक समृद्ध मध्यम वर्ग का व्यवसाय बनता जा रहा है। सर्वहारा वर्ग का मेहनतकश वर्ग उत्कृष्ट खिलाड़ियों को सामने लाने का काम करता रहता है, लेकिन स्पोर्ट कैपिटल के द्वारा उन्हें हथिया लिया जाता है और उन्हें डी-क्लास कर दिया जाता है।
खेल प्रशिक्षण की लागत सबके बूते में नहीं है और यहां तक कि निम्न मध्यम वर्ग और नव-मध्यम वर्ग की पहुंच से भी परे है। मुंबई और दिल्ली में एक औसत टेनिस कोच का खर्चा 1000 रुपये से 1500 रुपये प्रति घंटे तक होता है और लगभग 12 सत्रों के लिए एक महीने के लिए कोच को नियुक्त करने की लागत 12,000 रुपये से 18,000 रुपये के बीच हो सकती है।
इसी प्रकार, एक टेबल टेनिस कोच की लागत 8000 रुपये से 12,000 रुपये प्रति माह से थोड़ी कम हो सकती है। चेन्नई या हैदराबाद में हॉकी या फुटबॉल कोच की फीस खिलाड़ियों की वर्ग स्थिति के आधार पर 6000 रुपये प्रति माह से लेकर 60,000 रुपये के बीच हो सकती है।
जब खेल एक करियर बन जाता है, तो ऐसे में कोच की नियुक्ति अपरिहार्य हो जाती है। इसलिए कोई भी खेल कोचों के अत्याचार से मुक्त नहीं है, जो खिलाड़ियों को मनोवैज्ञानिक रूप से भी अपने वश में कर लेते हैं।
आजकल खिलाड़ियों का खान-पान बेहद नियंत्रित है। एक उभरते हुए एथलीट को दूध, अंडे और फलों पर रोजाना 100 रुपये खर्च करने पड़ सकते हैं। यदि चिकन या मटन को रोजाना की डाइट में शामिल कर लिया जाए तो इसकी कीमत 200 से 500 रुपये तक जा सकती है।
इस हिसाब से कुल बिल 15,000 रुपये प्रति माह आ सकता है। बेईमान स्पोर्टस मेडिसिन कंसल्टेंट्स डोपिंग जांच से बचने के लिए खेल आयोजनों की पूर्व संध्या को छोड़कर हार्मोनल सप्लीमेंट और टॉनिक तक का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं।
डोपिंग के कारण अयोग्यता के लगातार और अधिकाधिक मामले किसी भी कीमत पर जीतने की बेताबी को दर्शाते हैं। एथलीटों के मामले में, मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने के लिए कंप्यूटर-सहायता प्राप्त त्वरित प्रतिक्रिया प्रशिक्षण और व्यायाम मनुष्यों को स्वचालित मशीनों में तब्दील करती जा रही है।
इसी तरह, स्पोर्टिंग किट्स अब भारी कीमत पर उपलब्ध हैं। मोहल्ले के बच्चे एक साथ मिलकर टीम बनाकर अपने लिए खेल किट्स नहीं खरीद सकते। एक क्रिकेट गेंद की कीमत 150 रुपये से 300 रुपये और एक अच्छे कश्मीरी विलो वाले बल्ले की कीमत 1000 रुपये से लेकर 8,000 रुपये के बीच हो सकती है।
निजी तौर पर किराए पर लिए जाने वाले खेल के मैदान का शुल्क प्रति दिन के हिसाब से 5,000 रुपये से 10,000 रुपये के बीच हो सकता है। खेल एक महंगा शौक बन गया है।
सट्टा और जुआ पूंजी के अविभाज्य सियामीज़ जुड़वा भाई बन चुके हैं। भारत में आईपीएल सट्टेबाजी बाजार का कारोबार ऑनलाइन सट्टेबाजी में $2 बिलियन डॉलर और सड़क किनारे जुए के अड्डों में $2 बिलियन होने का अनुमान है। कुछ रिपोर्टों से इस बात के संकेत मिलते हैं कि सट्टा बाज़ार के ग्राहकों की संख्या करोड़ों में हो सकती है।
भारत में ऑनलाइन सट्टेबाजी के खिलाफ कोई केंद्रीय कानून नहीं है। राज्य स्तर पर, सिर्फ दिल्ली, यूपी और एमपी में ब्रिटिश काल के सार्वजनिक जुआ अधिनियम को कुछ संशोधनों के साथ अपनाकर कुछ नियम बनाए गए हैं।
तमिलनाडु में, राज्यपाल आरएन रवि ने डीएमके सरकार के खिलाफ एक दबंग की तरह अपनी भूमिका अदा की और कार्ड गेम में ऑनलाइन सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगाने वाले राज्य विधानसभा से पारित कानून में बाधा उत्पन्न की।
काफी हो-हल्ला होने पर उन्होंने इसे राष्ट्रपति के विचार हेतु भेज दिया। लेकिन मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकार के कदम को विफल कर दिया और सरकार को ऑनलाइन सट्टेबाजी पर प्रतिबंध लगाने से पीछे हटने पर मजबूर होना पड़ा है।
स्पोर्टस बिजनेस और राजनीतिक गठजोड़
जब खेलों में बड़ा पैसा आने लगता है, तो यह राजनेताओं को भी आकर्षित करता है जो इस पर नियंत्रण कर इससे लाभ उठाने की फ़िराक में लग जाते हैं। काफी अर्से से बीसीसीआई पर शरद पवार और अरुण जेटली का दबदबा बना हुआ था और अब अमित शाह के बेटे जय शाह ने कमान संभाल ली है।
राष्ट्रीय टीम के चयन में महाराष्ट्र और दिल्ली के खिलाड़ियों को प्राथमिकता मिलती है जबकि अन्य क्षेत्रों के अधिक प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उनकी बेहतर प्रतिभा के बावजूद दरकिनार कर दिया जाता है।
जटिल खेल नीति
2023-24 के वित्तीय वर्ष के लिए केंद्रीय खेल मंत्रालय को खर्च करने के लिए 3442.32 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। 2022-23 की तुलना में यह वृद्धि मात्र 45.36 करोड़ रुपये की थी। मोदी सरकार का एकमात्र प्रमुख खेल प्रोत्साहन कार्यक्रम खेलो इंडिया रहा है और सरकार ने मौजूदा बजट में इसके लिए सिर्फ 900 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।
बाकी 3,44 2.32 करोड़ रुपये का बजट नौकरशाही के ओवरहेड्स पर खर्च किया जाना है। एकमात्र अच्छी शुरुआत यदि कोई है, तो वह है देश भर में युवाओं को 32,000 खेल किटों का वितरण।
लेकिन इन किट्स में केवल ट्रैक सूट, टी-शर्ट, शॉर्ट्स, मोज़े और जूते और इन सभी को ले जाने के लिए एक स्पोर्ट्स बैग शामिल है, न कि टेनिस या बैडमिंटन रैकेट, वॉली बॉल और नेट, हॉकी या फुटबॉल किट जैसे खेल उपकरण।
इससे भी बदतर बात यह है कि खेलों के मैदान और एथलेटिक्स ट्रैक की स्थापना और प्रशिक्षण अकादमियों की स्थापना जैसे बुनियादी ढांचे के विकास की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है। खेल महासंघों को बड़ी मात्रा में पैसा प्राप्त होता है जबकि जमीनी स्तर के क्लबों को बहुत कम पैसा मिलता है।
खेल निकायों का प्रबंधन खिलाड़ियों द्वारा स्वयं करने के बजाय, नौकरशाह इन निकायों पर हावी बने रहते हैं और ये संस्थान नौकरशाही गुटों के बीच की राजनीति और खिलाड़ियों और खेल नौकरशाहों के बीच के झगड़ों से त्रस्त हैं।
नौकरशाही के प्रभुत्व वाले कई अन्य क्षेत्रों की तरह, भारत में खेल के विकास में आंतरिक तोड़फोड़ मुख्य बाधा बनी हुई है।
सैद्धांतिक रूप से देखें तो पूंजी को पूर्व-पूंजीवादी समाज में खेल जैसे सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्रों में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाला माना जाता है। भारत में ऐसा सिर्फ समाज में सामंती अवशेषों और अत्यधिक प्रतिगामी जाति पदानुक्रम के चलते संभव नहीं हो पा रहा है, बल्कि इसलिए भी ऐसा हो रहा है क्योंकि नौकरशाही आधे-अधूरे विकृत पूंजीवाद का प्रतीक है।
भारत में स्पोर्टस कैपिटल व्यक्तिगत खिलाड़ियों में केवल बुर्जुआ व्यक्तिवाद पर आधारित ‘किलर इंस्टिंक्ट’ को बढ़ावा देती है, जबकि सामुदायिक अनुकरण की भावना ही सामूहिक खेल संस्कृति एवं खेल भावना को अधिक टिकाऊ तरीके से बनाए रखने में कारगर साबित हो सकती है।
भारत में स्पोर्टस कल्चर गरीबों, ग्रामीण युवाओं, निचली जातियों और महिलाओं के खिलाफ प्रणालीगत भेदभाव से व्याप्त है। इसके बावजूद, इन वर्गों के बीच से अभी भी नैसर्गिक प्रतिभा जीतकर उभरती रहती है और छोटे शहरों और गांवों से उत्कृष्ट खिलाड़ी उभरते रहते हैं।
यहां तक कि पिछड़े झारखंड से आने वाले धोनी ने भी चेन्नई के युवाओं पर अपना जादू बिखेर रखा है। मैरी कॉम, विनेश फोगाट, रवींद्र जडेजा और नवीनतम रॉकस्टार यशस्वी जायसवाल सुदूर पूर्वोत्तर या ग्रामीण हरियाणा के चरखी दादरी या सौराष्ट्र या भदोही जैसे आंतरिक इलाकों से उभरे हैं।
भारतीय खेलों का भविष्य बहुत कुछ ऐसी ही कच्ची प्रतिभाओं को निखारने पर निर्भर करता है।
शीर्ष पर कॉर्पोरेट नियंत्रण और भारतीय जनता के बीच उभरती प्रतिभाओं के बीच का यह विरोधाभास भारतीय खेलों के भविष्य की नियति को तय करेगा।
(बी. सिवरामन स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। sivaramanlb@yahoo.com पर उनसे संपर्क किया जा सकता है।)