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भ्रष्टाचार बन गया है जनविरोधी व्यवस्था का ब्रह्मास्त्र

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मुनेश त्यागी 

      पीआईएल संगठनों, व्यक्तिगत प्रयासों, कुछ पॉलिटिकल पार्टियों की पहल पर और कुछ जागरूक और जनप्रतिबद्ध वकीलों के सहयोग की बदौलत सुप्रीम कोर्ट ने भारत में इलेक्टरल बॉन्ड का रहस्य पूरे देश और जनता के सामने खोल दिया है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्राप्त हुई जानकारी से इलेक्टोरल बांड द्वारा कुछ राजनीतिक पार्टियों द्वारा हासिल किया चंदे की हकीकत पूरी जनता के सामने आ गई है।

   इलेक्टरल बॉन्ड के माध्यम से लिए गए चंदे के रुझान बता रहे हैं कि इसका बहुत बड़ा हिस्सा वर्तमान शासक पार्टी बीजेपी के हिस्से में आया है। इलेक्टोरल बांड द्वारा प्राप्त किए गए चदों का विवरण बता रहा है कि सरकार की इस नीति के भयंकर परिणाम सामने आए हैं। इसके परिणाम बता रहे हैं कि जो पूंजीपत्तियों से चंदा लेगा, वह पूंजीपतियों की धन दौलत बढ़ाने का ही काम करेगा, वह जनता को सिर्फ धोखा देगा, जुमलों और गारंटीयों से बहकाएगा। वह जनता के हितों को आगे बढ़ाने और उनकी सुरक्षा और कल्याण के लिए कोई काम नहीं करेगा। मोदी सरकार के पिछले दस सालों का शासन यही बता रहा है।

     कमाल की बात है कि घाटे में चल रही कंपनियां भी बीजेपी को चंदा दे रही है और उसके बाद उनके मुनाफे बढ़ते चले जाते हैं। पहले सरकार ने पूंजीपतियों से अनाप-शनाप ढंग से चंदे लिए और फिर इन पूंजीपतियों ने चंदा देकर, देश और जनता को लूटना आरंभ कर दिया। इन्हीं चंदों की बदौलत सरकार ने अधिकांश सरकारी संस्थान उनके नाम कर दिए और सरकार और इन चंदा देने वाले पूंजीपतियों ने पूरे देश को लूटने का अभियान चला दिया। यह लूट का अभियान आज भी जारी है।

      इन इलेक्टरल बॉन्ड द्वारा की गई लूट ने भारत के लोकतंत्र को खोखला कर दिया है। यह भारतीय लुटेरी राजनीति की सबसे बड़ी हार है और इसका असर यह हुआ है कि इलेक्टोरल बांड की नीतियां देश और जनता को लूटने का हथियार बनकर रह गई हैं। इलेक्टोरल बोंड्स से लिए गए चंदे का परिणाम यह हुआ है कि इलेक्टोरल बॉन्ड दो और उसके बदले में प्रोजेक्ट को इनाम के रूप में पाओ। इलेक्टरल बॉन्ड भारत में चंद पूंजीपतियों के मुनाफे बढ़ाने का सबसे बड़ा स्रोत बन गए हैं।

     इलेक्ट्रोल बंद मिलते ही इन दानदाताओं के प्रोजेक्ट और मुनाफे बढ़ने लगे जिस कारण भारतीय समाज में ब्लैक मनी बढ़ गई। कर्ज लेकर भागने वाली कंपनियां भी मालामाल हो गईं। इलेक्टरल बॉन्ड की यह नीति बता रही है की इस पूंजीवादी समाज ने भ्रष्टाचार को एक्सेप्टेबल बना दिया है जिस कारण वर्तमान सरकारी पार्टी पूंजीपत्तियों से चंदा लेकर, पूंजीपतियों के अधिकांश लोग ही एमपी, एमएलए, मंत्री और सरकारी अधिकारी बन रहे हैं।

     इस जन विरोधी अभियान ने भारत के संविधान को धराशाई कर दिया है। इसी का परिणाम हुआ है कि गाय को माता बताने वाली ताकतों ने बीफ कंपनियों से ढाई सौ करोड रुपए का चंदा ले लिया। यह चंदे का धंधा आजाद भारत का सबसे बड़ा घोटाला है। इसी का परिणाम हुआ है कि बीजेपी को चंदा देने पर सारे अपराध और पाप कर्म धुल जाते हैं।

      इस इलेक्टरल बॉन्ड के धंधे ने जांच एजेंसियों का डर दिखाकर मोदी सरकार और बीजेपी ने अमीर लोगों से अरबों रुपए वसूल लिए हैं। इलेक्टरल बॉन्ड के खुलासे ने यह जग जाहिर कर दिया है कि भाजपा ने सट्टेबाजी और जुए आदि का काम करने वाली कंपनियों तक से चंदा लिया है। चंदा उघाने की इस मुहिम में भाजपा के चाल, चरित्र और ईमानदारी का भंडाफोड़ कर दिया है। उसके दिखावे की पोल खोल दी है। इलेक्टोरल बोंड का यह मामला भारत के पिछले 77 साल का सबसे बड़ा घोटाला है और इसने साबित कर दिया है कि भाजपा भारत की सबसे बड़ी घोटाला पार्टी हो गई है।

     इलेक्टोरल बोंड्स के खुलासे ने यह साबित कर दिया है कि आज चंदा उसूल का काम, सबसे बड़ा धंधा बन गया है। इसी की बदौलत कॉर्पोरेट से चंदा लेकर सरकारी संस्थान, उनके हवाले कर दिए गए। इसने मोदी के नारे की पोल खोल दी है जो पहले कहते थे कि “ना खाऊंगा ना खाने दूंगा” और अब यह मामला अब “पूरा खाऊंगा और सूचना भी नहीं दूंगा” में बदल कर रह गया है। 

     यह खुलासा बता रहा है कि भारत की वर्तमान सत्ता पूरी तरह से बेईमानी और लूट पर उतर आई है। यह देश का सबसे बड़ा घोटाला और सबसे बड़ा घोटाला कांड बनकर देश के सामने है। अब सरकार चुनावी बोंड से आए चंदे की सूची को छुपा रही है। इससे लगता है कि सरकार फंस गई है, उसकी इमेज धाराशाई हो होने जा रही है, इसलिए वह विस्तृत जानकारी देने से भाग रही है और अब सरकारी बैंक एसबीआई भी यही काम कर रहा है।

     यहीं पर एक सबसे बड़ा सवाल और बदतरीन हकीकत पूरी देश की जनता के सामने आ रही है, वह यह है कि अधिकांश टेलीविजन, रेडियो और अखबार मीडिया ने जैसे इस बड़ी मुहिम को छुपाने की और जनता से दूर रखने की कसम खाली है। आज इस बड़े घोटाले पर ये अधिकांश संस्थान कोई विस्तृत और कारगर चर्चा नहीं कर रहा है। वे जनता को सबसे बड़े भ्रष्टाचार की सच्चाई जानने से रोक रहे हैं और इसे लेकर वे जनता को गुमराह भी कर रहे हैं ।यह सच्चे लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा उभर कर हमारे सामने है।

       भारत का संविधान कहता है और सरकार और मोदी के नारे कहते हैं कि वे इस देश की जनता के लिए काम कर रहे हैं, पूरा देश उनका परिवार है तो आज पूरे देश की जनता को इस पूरे खुलासे की पूरी हकीकत जानने का पूरा हक है। फिर सरकार और मीडिया दोनों मिलकर इस सच्चाई को जनता के सामने आने से क्यों रोक रहे हैं? आज यह सबसे बड़ा सवाल है। सच्चाई यह भी है कि इतने बड़े खुलासों के बाद भी मीडिया आज भी सरकार का ही गुणगान कर रहा है। उसके इस व्यवहार ने तो जैसे भारत के लोकतंत्र की हत्या ही कर दी है।

     इस पूरे मामले के खुलासे के बाद सरकारी संस्था ईडी की भी पूरी पोल खुल गई है। इससे यह सिद्ध हो रहा है कि ईडी का छापा मारने पर पूंजी दिन रात बढ़ती ही जा रही है। जैसे ही ईडी के छापे पड़े वैसे ही चंदा कुलांचे मार कर आगे बढ़ने लगा। ईडी की इस कार्रवाई से ब्लैक मनी राजनीति की मां बन गई है और इस पर अब कोई रोक-टोक लगाना लगभग नामुमकिन हो गया है।

       इस खुलासे ने साबित कर दिया है कि जैसे एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट आज सरकार की सबसे बड़ी “वसूली और आतंकवादी डायरेक्टरेट” बन गई है और उसका मुख्य काम कॉर्पोरेट से पैसा लेना और विपक्षी नेताओं का मुंह बंद करना ही रह गया है। इस खुलासे ने पुरे पूरे देश और दुनिया के सामने जग जाहिर कर दिया है कि ये चुनावी इलेक्टरल बॉन्ड के नाम पर पैसे देने वाले अधिकतर लोग पूंजीपति हैं और इनका लाभ लेने वाले भी तमाम पूंजिपति और उनकी सरकार के लोग ही हैं। 

    यह सारा का सारा मामला पूंजुपतियों के मुनाफे का खेल है। इन्होंने तो सारी सरकार और सरकारी एजेंसियों को भ्रष्ट और बेईमान बना दिया है, सारी राजनीतिक सत्ता को भ्रष्ट कर दिया है और सारी सरकार को अपने कब्जे में ले लिया है और अब ये सरकार से सिर्फ और सिर्फ जनविरोधी काम करा रहे हैं और सारे के सारे काम अपने मुनाफों को बड़ा बढ़ाने के लिए करवा रही है और सरकार ने उनके सामने पूर्ण रूप से सरेंडर कर दिया है बल्कि सरकार भ्रष्टाचारी कदम उठाकर, मुनाफा कमाने में उनकी सबसे बड़ी सहायक बन गई है और भ्रष्टाचार इस जनविरोधी व्यवस्था का ब्रह्मास्त्र बन गया है।

     यहीं पर यह बात भी नोट करने वाली है कि चुनावी बांड लेने के बाद इन अधिकांश औद्योगिक घरानों ने अपनी सभी वस्तुओं के दाम जैसे दुगने कर दिए हैं जैसे मोटरसाइकिल जो पहले 62000 रुपए में मिलती थी, वह अब 120000 रुपए से ज्यादा में मिल रही है, जो स्कूटी पहले 32000 रुपए में मिलती थी वह आप 64000र रुपए से भी ज्यादा रुपए में मिल रही है, जो कारें पहले पांच-छः लाख रुपए में मिलती थीं, वे अब 10-15 लाख रुपए में मिल रही हैं। 

      यही हाल अधिकांश दवाइयां का भी है। दवाइयों पर तो जैसे सरकार ने कोई रोक लगना ही बंद कर दिया है और जनता को इन दवा कंपनियों के हाथों लूटने के लिए छोड़ दिया है। यही हाल आम जनता द्वारा उपयोग में लाने लाई जा रही चीजों का है, जहां पर बेकाबू महंगाई ने आम जनता की कमर तोड़ दी है और उसका जीना मुहाल कर दिया है।

    यहीं पर सबसे बड़ी नोट करने वाली बात है कि इस इलेक्टोरल बॉन्ड के चंदा के धंधे से हमारे देश की वामपंथी पार्टियां बिल्कुल बाहर हैं। हमारे देश की वामपंथी पार्टियों ने इलेक्टोरल बोंड्स से कोई चंदा नहीं लिया है। यह एक बहुत बड़े मार्के की बात है। जहां एक ओर तमाम पूंजीवादी पार्टियां पूंजीपतियों की गुलाम और दलाल होकर, उनके मुनाफों और लूट को बढ़ा रही हैं, वहीं वामपंथी पार्टियां अपने सदस्यों की आर्थिक मदद के बल पर, अपनी राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों को आगे बढ़ा रही हैं और जनता के बुनियादी हक अधिकारों की सुरक्षा के लिए लड़ रही हैं। हमारे देश की आम जनता के लिए यह बहुत ही उत्साहवर्धक बात है।

     देश की आजादी के बाद के अब तक के सबसे बड़े इस चुनावी बोंड के धंधे के खेल को देखकर पूरी जनता और जनता की समर्थक पार्टियों के लिए यह जरूरी हो गया है कि वे अब इस विनाश काल में चुपचाप होकर तमाशा नहीं देख सकती और वे अब चुपचाप नहीं रह सकते। अगर जनता और इन जनसमर्थक पार्टियों ने इन भ्रष्टाचारी ताकतों की सत्ता को उखाड़कर नही फैंका, तो ये सब इस देश के और ज्यादा होने जा रहे विनाश के लिए सबसे बड़े जिम्मेदार होंगे।

       ऐसी हालातों में इस देश के जनतंत्र, संविधान, नैतिकता, मर्यादा और कानून के शासन को बचाने के लिए इस सबसे जरूरी रणक्षेत्र में आना होगा और अपने तमाम मतभेदों को बुलाकर, इन तमाम भ्रष्टाचारी पूंजीपतियों की इस जनविरोधी और देशविरोधी सरकार को धराशाई करना होगा। 

    अब देश के समस्त जन समर्थक पत्रकारों, जनवादियों, प्रगतिशील, धर्मनिरपेक्ष, समाजवादियों और वामपंथी ताकतों, बुद्धिजीवियों, लेखकों और कवियों का सबसे बड़ा काम यह हो गया है कि वे चुनावी बोंड द्वारा किए गए भ्रष्टाचार के धंधे का समूल विनाश करने के लिए और इस देश, संविधान और जनतंत्र को बचाने के लिए मैदान में उतरें और देश के तमाम किसानों, मजदूरों और मेहनतकशों को जागृत करें उनके बीच में जाएं, उनके संगठित होने का आह्वान करें और देश बचाने के इस अभियान में पूरी जनता का जन जागरण करें।

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