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आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022, जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा करने में पूर्णतः असमर्थ

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एड. आराधना भार्गव
सरकार आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022, लाकर देश की जनता के साथ डर का सौदा करना चाहती है ताकि जनता सदा ही भय और दबाव में जीती रहे, और जनता अपने अधिकारों के लिए लड़ने में भयभीत रहे। सरकार यह अच्छे तरीके से समझ चुकी है कि वह शासन चलाने में पूर्णतः असमर्थ है, काॅर्पोरेट के इशारे पर काम कर रही है अपनी असफलता छिपाने के लिए इस तरीके के कानून ला रही है ताकि सरकार के खिलाफ आवाज उठाने तथा अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने पर उन्हें हमेश हमेशा के लिए जेल के सींखचों के अन्दर डाला जा सके, ताकि उनकी आवाज को दबाया जा सकें और जनता के मन में यह भय पैदा किया जा सके की अगर आप सरकार के खिलाफ आवाज उठाओंगे तो तुम्हारा अन्त भी फादर स्टेन स्वामी की तरह कर दिया जायेगा। भारत के संविधान में प्रत्येक आरोपी को अपना बचाव करने तथा सफाई प्रस्तुत करने का अधिकार है, उसी तरह भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अन्तर्गत पुलिस द्वारा की गई कार्यवाही तथा पुलिस द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य के आधार पर किसी आरोपी को सजा नही सुनाई जा सकती का प्रावधान है। आरोपी के भी अपने मौलिक अधिकार हैं। भारत के संविधान के अनुच्छेद 13 में उल्लेख किया गया है कि मौलिक अधिकारों के खिलाफ देश में कोई कानून नही बनाया जा सकता, किन्तु केन्द्र में बैठी सरकार लगातार भारत के संविधान के खिलाफ कानून बनाती नजर आ रही है, इसका मुख्य कारण हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों की उदासीनता मुख्यतौर पर दिखाई देती है। हम भारत के लोग लोकतांत्रिक गणराज्य को मानते हैं जनता अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए अपने सांसद लोकसभा में और विधायक विधान सभा में भेजते है ताकि भारत की जनता के सम्मान पूर्वक जीवन जीने के कानून बनाये जा सकें, तथा कानून का अमल कार्यपालिका के माध्यम से कराया जा सकें, किन्तु हम इसका उल्टा देख रहे हैं। मैं दावे मे साथ कह सकती हूँ कि अपने अपने क्षेत्र के सांसदों से जब आप अपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 के बारे में चर्चा करेंगे तो सांसद महोदय के होश उड़ जायेंगे, क्योंकि कानून बनाने में सांसद महोदय की कोई भूमिका है ही नही, कानून तो कार्यपालिका के अधिकारियों ने कम्पनी के ईशारों पर बनाया है ताकि अधिक से अधिक पाॅवर अधिकारियों के पास हो, इसी कारण तो इस विधेयक में पुलिस ज्यदा ताकतवर स्वरूप में दिखाई दे रही है। हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों को अधिकारियों के ट्रांस्फर और उनकी नियुक्ति करने में विशेष रूचि होती है क्योंकि इसमें उन्हें पैसा मिलता है, कानून बनाने में उनकी कोई रूचि दिखाई नही देती इसलिए लगातार भारत की जनता के मौलिक अधिकारों का हनन होते कानून बनाये जा रहे हैं। जनता के मौलिक अधिकारों की रक्षा तभी हो सकती है जब विपक्ष मजबूत हो। विपक्ष को पूरी तरीके से नेस नाबूत करने में वर्तमान सरकार ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।
देश में बेरोजगारी सुरसा की तरह मुँह फाड़े खड़ी है, हर मिनट में बेरोजगार युवा आत्महत्या करने पर मजबूर है। एम.टेक. बी.टेक. बेटियाँ स्टेशन पर चाय बेचने पर मजबूर हैं, पूरे देश में शिक्षा का स्तर गिर चुका है। आये दिन परीक्षा के पेपर 500-500 रूपये में बिकते नजर आ रहे हैं और परीक्षायें रद्द करके सरकार अपने कर्तव्य की इतिश्री कर रही है। सार्वजनिक सम्पत्ति जो देश की जनता की मेहनत की कमाई से तैयार की गई है उसे बेचने में सरकार अपनी पूरी ऊर्जा लगा रही है। पैसा कानून 1996 में बनने के पश्चात् भी धरातल पर नही उतरा है, संविधान की पांचवी अनुसूची पढ़ने का प्रयास इस देश के राजपाल वा राष्ट्रपति द्वारा नही किया जाता है कारण स्पष्ट है कि सरकार के कृपा पात्र राज्यपाल और राष्ट्रपति अपने पद और गरिमा के अनुकूल काम करना अपना दायित्व नही समझते, अपने कर्तव्य का पालन वे भारत के संविधान को नही बल्कि सरकार के आगे नतमस्तक होने में गर्व महसूस करते हैं वर्ना देश का प्रथम नागरिक राष्ट्रपति राम मंदिर की पूजा में आमंत्रित ना किये जाने पर अपनी आवाज अवश्य बुलंद करते। आप समाज को ना पढ़ पायें पर अखबार तो पढ़ लीजिये आपको स्पष्ट दिखाई देगा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सहायिका, आशा, उषा, सहकारिता कर्मी, मेंहगाई के खिलाफ प्रदर्शन, बैंक कर्मी, श्रम कानून मे परिवर्तन के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करते श्रमिक आपके शहर मे दिखाई देंगे। एक पोस्ट के लिए लाखों आवेदन पत्र मंगाये जाते हैं, परीक्षा के नाम पर बेरोजगारों से भी सरकार अरबों रूपये की कमाई करती दिखाई देती है। पहले तो पद भरने के लिए सरकार नौकरी नही निकालती, अगर निकाले तो परीक्षा नही लेती, अगर परीक्षा ले ली है तो भ्रष्टाचार के नाम पर परीक्षा रद्द करते दिखाई देती है, किन्तु बेरोजगारों को नियुक्ति नही देती और इस पर नवजवान ने अगर आवाज उठाई तो उन्हें धमकाया जायेगा की आन्दोलन करने पर तुम्हारा पूरा भविष्य बिगड़ जायेगा और आन्दोलनकारियों को सरकार नौकरी नही देगी।
हमारे चुने हुए सांसदों को संसदीय और संवैधानिक तरीके से अपनी बात आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 पारित होने के पूर्व संसद में बहस के दौरान तार्किक तरीके से रखना था। अगर हमारे चुने हुए प्रतिनिधि भारतीय साक्ष्य अधिनियम को पढ़े होते तो कतई पुलिस को अंगुली एवं हथेली वा पैरों की छाप, फोटो, आँखों की पुतली/रेटिना, लिखावट के नमूने, हस्ताक्षर, फिजिकल व बायोलाॅजिकल नमूने लेने का अधिकार पुलिस को नही देने देते इसका पुरजोर विरोध करते। हमारे प्रतिनिधि अगर 1861 के पुलिस अधिनियम का अध्ययन करते तो उन्हें यह अवश्य पता होता कि 1861 का पुलिस अधिनियम भारत की जनता की रक्षा के लिए नही बल्कि भारत की जनता को प्रताड़ित करने के लिए बनाया गया है। भारत की पुलिस अपराधियों के साथ जिस बर्बरता का व्यवहार करती है ‘‘जय भीम’’ फिल्म ने इसे बहुत अच्छे तरीके से दर्शाया है। केशवानन्द भारती विरूद्ध केरल राज्य के फैसले में देश की सर्वोच्च अदालत ने संसद को सर्वोपरी नही माना है इसी फैसले में कहा गया है कि मौलिक अधिकारों के खिलाफ कोई कानून नही बनाया जा सकता। हम भारत के लोगों ने भारत के संविधान को बनाया है उसे अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित किया है, हम भारत के लोगों की यह जवाबदारी है कि भारत के संविधान की रक्षा करें आइये हम सब मिलकर मौलिक अधिकारों के खिलाफ बनाये गये आपराधिक प्रक्रिया पहचान विधेयक 2022 का पुरजोर विरोध करें, ताकि किसान विरोधी कानून की तरह इस कानून को भी संसद में रद्द करने करने के लिए सरकार को मजबूर किया जा सकें।
एड. आराधना भार्गव
मोबा. 9425146991 मेल abhargava45@gmil.com

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