सेलम, तमिलनाडु
तमिलनाडु के सेलम को सिल्वर लैंड के रूप में जाना जाता है। देश में बिकने वाली लगभग हर दूसरी चांदी की पायल सेलम में बनी होती है। इस व्यवसाय से यहां डेढ़ लाख से अधिक कारोबारी और कारीगर जुड़े हैं। इनमें से ज्यादातर खुद को सौराष्ट्र (गुजरात) का मूल निवासी मानते हैं। ये लोग एक हजार साल पहले महमूद गजनवी फिर मोहम्मद गौरी के आक्रमणों के चलते पलायन कर दक्षिण में विजयनगर साम्राज्य क्षेत्र में बसे। फिर 20वीं सदी की शुरुआत में वहां से पलायन कर सेलम, मदुरै और दूसरे शहरों में फैल गए।
ये इलाका कभी ग्राहकों और चांदी के पायल बनाने वाले कारीगरों से गुलजार हुआ करता था। लेकिन अब इसकी गलियां विरान हो चली हैं। ज्यादातर लोग यहां से जा चुके हैं।
अभी तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इस चुनावी मौसम में कई व्यवसाय गुलजार हो रहे हैं, लेकिन चांदी के बिजनेस से जुड़े लोगों को अनेक तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पहले जीएसटी, चांदी के बढ़ते दाम, कोरोना और अब चुनाव ने हजारों कारीगरों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा कर दिया है। चुनावी उड़न दस्तों द्वारा की जा रही लगातार चांदी की जब्ती कारीगरों पर नया कहर बनकर सामने आई है। एक अनुमान के मुताबिक पिछले 3 साल में करीब 25 हजार कारीगरों ने यह काम छोड़कर मजदूरी करनी शुरू कर दी है।
सेलम जिले में चांदी के पायल बनाने से जुड़ी लगभग 10 हजार यूनिट्स हैं। जब्ती के डर से ऑर्डर नहीं मिलने के चलते व्यवसायी, कारीगरों को चांदी नहीं दे पा रहे हैं। नतीजतन सेलम सहित जिले के 50 गांवों में कुटीर उद्योग बना यह व्यवसाय धीरे-धीरे ठप होता जा रहा है। कारीगरों का कहना है कि हम न चांदी खरीदते हैं, न बेचते हैं। हम तो सिर्फ जॉब वर्क करते हैं, हर कारीगर अपने काम का बिल कहां से लाएं। जबकि अधिकारियों का कहना है कि हम सिर्फ बिना बिल वाले अंतिम प्रोडक्ट यानी पायल ही जब्त कर रहे हैं।
वोट निर्णायक, पर सुनवाई नहीं
तमिलनाडु में चुनाव हो रहे हैं। इस लिहाज से यहां के वोटरों को साधने की भरसक कोशिश की जा रही है। तस्वीर में AIADMK के प्रत्याशी हैं, जो माला पहने हुए हैं।
सबसे ज्यादा खामियाजा सेलम के सौराष्ट्र बिरादरी के डेढ़ लाख लोगों को उठाना पड़ रहा है। तमिलों के बीच अलग पहचान रखने वाली यह सौराष्ट्र बिरादरी, परंपरागत रूप से अन्नाद्रमुक की वोटर रही है। जिले की 11 में से 10 सीटों पर भाजपा के साथ गठबंधन वाली अन्नाद्रमुक का ही कब्जा है। यह बात अलग है कि यहां के 25 हजार जैन भी, मारवाड़ी व्यवसायियों की तरह कट्टर भाजपा, मोदी समर्थक हैं। हालांकि मौजूदा मुख्यमंत्री के गृह जिले में भाजपा की पकड़ के बावजूद उसे एक भी सीट नहीं दी गई। कांग्रेस से जुड़े स्टेनलेस स्टील व्यवसायी करण सिंह भी कहते हैं कि तीन-चार साल में यहां भाजपा तेजी से बढ़ी है। अब तो यहां अटल जी का जन्मदिन भी मनाया जाता है और दूसरे सर संघचालक गोलवलकर के पोस्टर भी लगते हैं ।
पलायन ही हमारी किस्मत
सेलम लेग चैन एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी जगदीश बताते हैं कि साल 1910-15 में सेलम में 15-20 परिवार ही चांदी की पायल बनाने का काम करते थे। 1982 में यह आंकड़ा 20-25 हजार तक पहुंच गया। एमजी रामचंद्रन ने हमें हर तरह से टैक्स में छूट दी तो धंधा बहुत तेजी से बढ़ा। 2017-18 तक 1.5-2 लाख लोग इससे अपना पेट भरने लगे थे। फिर जीएसटी आ गई। अब तो सवा लाख भी नहीं बचे।
पायल मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के सेक्रेटरी नागराज सिहं हाथ में चांदी के तार लिए हुए। पायल बनाने के पहले चांदी को पिघलाकर तार बनाया जाता है।
वे नाराजगी भर अंदाज में कहते हैं, ‘100 ग्राम चांदी की लाइफ कम से कम 30 साल होती है। यह कुछ दिनों में खत्म होने वाला कंज्यूमेबल आइटम थोड़ी है। 3% टैक्स लेकर सरकार कितना खजाना भर लेगी? लेकिन धंधा बंद होने से हमारी पहचान जरूर खत्म हो जाएगी।’ हालांकि कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे मोहन कुमारमंगलम इसके पीछे पायल व्यवसाय का नई मशीनों के बजाय अभी भी पुराने तरीकों से चिपका रहना बताते हैं।
20 हाथों से गुजरकर बनती है पायल, कहां से लाएं बिल
सेलम पायल एसोसिएशन के सेक्रेटरी नागराज हमें संकरी गलियों में ले जाते हैं। यहां दड़बानुमा कमरों में कहीं चांदी पिघलाई जा रही है, कहीं तार बनाए जा रहे हैं तो कहीं घुंघरु तैयार हो रहे हैं। कहीं डिजाइन को अंतिम रूप दिया जा रहा है, तो कहीं काली नजर आ रही पायल को पॉलिश कर चांदी की असली चमक दी जा रही है। नागराज बताते हैं कि 20-25 कारीगरों के हाथों से गुजर कर एक पायल तैयार होती है। आप खुद ही बताइए कि हर प्रोसेस का बिल बनाना कैसे संभव है।