अग्नि आलोक

कल्चरल नेशनलिज्म V/S साइंटिफिक टेम्पर

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पुष्पा गुप्ता

  _दिल्ली स्थित तीनमूर्ति भवन के नेहरू मेमोरियल को हमारे प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री मेमोरियल में बदल डाला और गुजरात के किसी कोने में उनके कर कमलों द्वारा हनुमान की 108 फुट ऊँची मूर्ति का अनावरण किया गया है._
  उधर आम्बेडकर की जयंती थी और अगले दिन महावीर हनुमान की जयंती. इस सबके बहाने जो हुआ वह था प्रधानमंत्री और उनके दल के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का तय एजेंडा.

साहित्यकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने एक एकांकी नाटक ‘ उत्तर नेहरूचरितं’ में भूल नहीं रही हूँ तो– नेहरू के छह रूप रखे हैं . वह एकांकी नेहरू के चरित्र को बहुत अच्छी तरह परिभाषित करता है.
रेणु समाजवादी राजनीति से जुड़े थे ,लेकिन उनका नेहरूप्रेम जगजाहिर था . उनके पटना स्थित आवास के बैठके में केवल दो लोगों के फोटो लगे थे – एक नेहरू और दूसरे विधानचंद्र राय थे.
अनेक लोगों से नेहरू के कुछ मतभेद थे ,लेकिन नेहरू का महत्व अपने समय की अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में कुछ वैसा ही था ,जैसे कभी लेनिन का था .
जैसे लेनिन की तुलना स्टालिन , ख्रुश्चेव या ब्रेझनेव -गोर्बाचेव से नहीं की जा सकती, वैसे ही जवाहरलाल की तुलना किसी दूसरे प्रधानमंत्री से नहीं की जा सकती . इसलिए कि वह केवल प्रधानमंत्री नहीं थे ,बल्कि प्रधानमंत्री होना उनके व्यक्तित्व का सबसे छोटा पहलु था .

जबतक वह प्रधानमंत्री नहीं थे, तबतक उनके व्यक्तित्व का आकर्षण अधिक था . यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री के रूप में उनकी जो चुनौतियाँ थीं ,उसका भी उन्होंने कुशलतापूर्वक संपादन किया .
लेकिन एक लेखक ,चिंतक , राष्ट्रीय आंदोलन के प्रतिनिधि सेनानी और राष्ट्रनिर्माता इत्यादि के रूप में उनका जो व्यक्तित्व उभरता है वह अप्रतिम है .
सभी महान लोगों में अंतर्विरोध के तत्व होते हैं . नेहरू में भी थे . लेकिन उससे नेहरू का व्यक्तित्व उपेक्षणीय नहीं हो जाता .

नरेंद्र मोदी ने नेहरू मेमोरियल को जिस तरह से विनष्ट किया उसके लिए आलोचना नहीं, निंदा के शब्द मेरे मन में उभरते हैं .
कुछ लोग नया बना कर नहीं ,बने हुए को बिगाड़ कर महान बनना चाहते हैं .
गजनी के महमूद ने कुछ नया बनाया नहीं, बने हुए भव्य सोमनाथ मंदिर को ध्वस्त कर दिया. उसे भी तो याद किया ही जाता है.
नरेंद्र मोदी ने नेहरू को एक प्रधानमंत्री भर समझा और शायद यह भी कि मैं भी उनकी औकात का हो गया हूँ .

किसी भी समाज में मूर्खों की भीड़ होती है और यह भी सही है कि मोदी आज उस भीड़ के चहेते हैं . लेकिन यह कौन सी भीड़ है ?
यही भीड़ है जो मेलों -तमाशों में और गंगा -स्नान में जुटती है . वह केवल संख्या होती है . इसी भीड़ को कुचलते हुए कभी गजनी का महमूद और मुहम्मद घोरी ने भारत की अस्मिता कुचल दी थी.
इसी भीड़ को निर्विरोध भेदते हुए बाबर ने एक छोर से दूसरे छोर तक भारत को अपने कब्जे में कर लिया था . अंग्रेजों ने इसी भीड़ को बड़े आराम से गुलाम बनाया था .

नेहरू ने अपनी किताब ‘ डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया ‘ में इस भारत को देखा -समझा . उन्हें एक ऐसा भारत बनाने की जिद थी जो चेतनशील हो .
वह भारत जिसमें बुद्ध हों , पाणिनि हों , कालिदास हों , आर्यभटटा और वरः मिहिर हों ,कबीर हो ,तानसेन हों ,गांधी -रवीन्द्र हों. इस भारत को कोई महमूद, कोई घोरी ,कोई क्लाइब कुचल नहीं सकता .
यही कारण था कि उन्होंने साइंटिफिक टेम्पर यानी वैज्ञानिक चेतना पर जोर दिया . इसी के बूते इस जम्बूद्वीप को भारत बनाया जा सकता था .
ऐसा भारत जिसकी सीमाओं पर सिकंदर की सेना ठहर -सहम जाय और जिसके बुद्ध -कबीर की वाणी दुनियाभर में मानवता का परचम फहरा सके. इस भारत को तक्षशिला , नालंदा ,विक्रमशिला से मंडित करना था.

उनकी देखरेख में बने भारतीय संविधान ने वर्णाश्रम आधारित सामाजिक व्यवस्था से चुपचाप इंकार कर दिया और एक लोकतान्त्रिक -धर्मनिरपेक्ष समाज की प्रस्तावना की . प्राथमिक शिक्षा को निचले स्तर से सुदृढ़ किया , तकनीकी शिक्षा पर जोर देने केलिए अनेक आईआईटी संस्थान स्थापित करवाए . स्कूल – कॉलेज – यूनिवर्सिटियां बनवाईं.
उन्हें एक राष्ट्र बनाना था . वह अडानी और अम्बानी के साथ नहीं, आइंस्टीन और भाभा के साथ बैठते थे . उनका राष्ट्र वैज्ञानिकों , शिक्षाविदों,लेखकों ,कवियों और हुनरमंद लोगों के बूते गढ़ा जाना था . बुद्ध और गांधी ,मार्क्स और लेनिन से वह सीखते थे. वह बहुरुपिए -विदूषक नहीं ,वास्तविक नायक थे.
उन्हें भी गंगा से प्यार था ,लेकिन वह उनकी मैय्या नहीं ,एक खूबसूरत -सांस्कृतिक नदी थी जिसने इतिहास के बदलते जमानों को देखा था, और सचमुच में राष्ट्र की प्रतीक थी ,जैसे नील और वांगहो अपने -अपने मुल्कों में है .

भारत की जहालत को बदलने के लिए ,उसे ज्ञानकेन्द्रित राष्ट्र बनाने केलिए उन्होंने बहुत कुछ किया . उनके समाजवादी साथियों को लगता था कि उन्हें और अधिक करना चाहिए था . यह सही है कि उन्होंने उतना कुछ नहीं किया . लेकिन उन्हें यह भी लगता था कि वह स्टालिन और माओ नहीं ,नेहरू हैं .
उन्हें लोकतंत्र को साथ लेकर चलना था . इसलिए प्रतिपक्ष को भी उन्होंने पाला पोसा . सावरकर को वह सजा नहीं दिला सके ,जो मिलनी चाहिए थी. लोकतंत्र में उन्हें कुछ ज्यादा ही यकीन था. इसी के बूते वह विश्व राजनीति भी करना चाहते थे . लड़ाई और हिंसा पर टिकी राजनीति उन्हें नापसंद थी .
इसे वह पुरानी दुनिया की चीज मानते थे . पुराने ज़माने में अशोक ने हिंसा और युद्ध से क्षुब्ध होकर एक नई राजनीति अपनायी थी . उसे वह आधुनिक सन्दर्भों के साथ आत्मसात करना चाहते थे .
उनके पंचशील की अंतर्राष्ट्रीय नीति के साथ कम्युनिस्ट चीन ने विश्वासघात किया. भारत की प्रतिक्रियावादी ताकतों केलिए एक मौका मिल गया . गांधी के हत्यारे और बुद्ध के विरोधी एकसाथ हुए और नेहरू पर हमले बढ़ गए. इसी बीच 1964 में नेहरू मर गए .
उन्ही नेहरू की स्मृति में वह तीनमूर्ति स्मारक था . दुनिया भर के लोग आते थे और देखते थे कि नेहरू कैसे काम करते थे , उनका दफ्तर ,उनकी मेज -कुर्सी ,उनका शयन -कक्ष ,उनकी किताबें सब कुछ यथावत रखी थीं . उनके विरोधी उनसे चिढ़ते थे . उन्ही में से एक मौजूदा प्रधानमंत्री मोदी भी हैं.
नेहरू का घोसला उजाड़ कर उन्हें चैन मिला होगा. अच्छी नींद आई होगी . बड़ी मुराद पूरी हुई उनकी . इसीलिए वह सीधे हनुमान मूर्ति के अनावरण केलिए गुजरात पहुंचे.
संघ के इतिहास में उनका नाम पुष्यमित्र और शशांक के साथ जुड़ गया होगा. नेहरू के बाद बाबासाहब का ही नंबर आना है . ऐसे ही ध्वसात्मक कार्य सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के बुनियाद रचेंगे.

भाजपा और मोदी का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद हनुमानजी ,गणेश जी ,रामजी और पण्डे -पुरोहितों द्वारा ही गढ़ा -रचा जाएगा . रामराज गौ -द्विज -हितकारी था . हनुमान जैसे वनवासी वहां पूंछ डुलाने और झाल बजाने केलिए थे . शम्बूक का कत्ल और सीता का निर्वासन रामराज की बुनियाद थी .
रामराज का एक ही सन्देश है पूंछ डुलाने वालों केलिए लड्डुओं का इंतजाम हो और ज्ञान की बात करने वालों का कत्लेआम हो . एक दलित और एक ओबीसी ( राष्ट्रपति कोविद और प्रधानमंत्री मोदी ) आधुनिक रामराज के हनुमान हो चुके हैं .इनके लिए लड्डुओं की व्यवस्था हो चुकी है . छोटे -छोटे और वानर होंगे ,जो हनुमान के संगी साथी हैं .
सिर कलम करवाने केलिए तो शम्बूकों की कतारें होंगी ,जिन्हें अर्बन नक्सली कहकर ग्रीनहंट में मार गिराया जाएगा या जेलों में ठूंस दिया जाएगा . इसी तरह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की बुनियाद रखी जाएगी .
आज नेहरू मेमोरियल विनष्ट किया गया . कल राजघाट पर सावरकर -गोलवरकर की समाधी बनाई जाएगी . राष्ट्रीय आंदोलन की पूरी विरासत को विनष्ट कर देना इनके अजेंडे में है . देखते रहिए चुपचाप आगे -आगे होता है क्या .
{चेतना विकास मिशन)

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