डॉ श्रीगोपाल नारसन
भाजपा ने उत्तराखंड में हरिद्वार से मौजूदा सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमेश पोखरियाल निशंक व गढ़वाल से मौजूदा सांसद एवं पूर्व मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का टिकट काटकर सबको हैरत में डाल दिया है।निशंक की जगह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत जो हरिद्वार क्षेत्र में कभी सक्रिय नही रहे ,को टिकट देना भाजपा को भारी पड़ सकता है।हालांकि हरिद्वार सीट पर कांग्रेस ने अभी अपने पत्ते नही खोले है,लेकिन यदि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत या फिर जैसा कि चर्चा चल रही है निर्दलीय खानपुर विधायक उमेश कुमार कांग्रेस में शामिल होकर चुनाव लड़ते है तो दोनो ही स्तिथियों में भाजपा के लिए कड़ी टक्कर होगी।जहां तक गढ़वाल सीट का सवाल है वहां भी कांग्रेस प्रत्याशी गणेश गोदियाल और भाजपा प्रत्याशी अनिल बलूनी के बीच इस कदर कांटे की टक्कर रहेगी कि हार जीत के दावे करना मुश्किल है।कांग्रेस ने अल्मोड़ा सीट पर एक बार फिर भाजपा के अजय टम्टा के सामने प्रदीप टम्टा पर दांव खेला है। भाजपा ने अपने सीटिंग सांसद अजय टम्टा को उम्मीदवार बनाया है, वहीं सन 2019 में कांग्रेस के प्रत्याशी रहे प्रदीप टम्टा को एक बार फिर अपना प्रत्याशी बनाया गया है।
प्रदीप टम्टा राज्य बनने के बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में 2002 से सोमेश्वर सीट से विधायक भी रहे है,साथ ही वे अल्मोड़ा से 15वी लोकसभा के कांग्रेस सांसद रहे है, इसके बाद सन 2016 में उन्हें कांग्रेस ने राज्यसभा भेजा था।
पौड़ी सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार गणेश गोदियाल जो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष रहे है,को अपना प्रत्याशी बनाया है। गणेश गोदियाल सन 2002 में कांग्रेस के टिकट पर थली सेंड से और सन 2012 में श्रीनगर सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचें थे। इसके साथ-साथ पार्टी हाईकमान ने गणेश गोदियाल को जुलाई 2021 से अप्रैल 2022 तक प्रदेश कांग्रेस के मुखिया की जिम्मेदारी भी दी थी। इसीलिए भाजपा ने पौड़ी सीट पर राज्यसभा सांसद व पार्टी प्रवक्ता रहे अनिल बलूनी को उनके सामने चुनाव मैदान में उतारा हैं।\
गढ़वाल से पूर्व विधायक जोत सिंह गुंसोला कांग्रेस के उम्मीदवार है, जहां भाजपा ने अपनी सीटिंग सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह पर एक बार फिर भरोसा जताया है । कांग्रेस ने जोत सिंह गुंसोला को टिकट देकर उनकी पार्टी के प्रति निष्ठा का ईनाम दिया है। जोत सिंह गुंसोला वर्ष1988 और वर्ष 1997 दो बार मसूरी पालिका परिषद के चेयरमैन रहे है, वहीं कांग्रेस की तरफ से 2002 से 2012 तक दो बार मसूरी विधानसभा से विधायक भी रहे है। गुंसोला वर्तमान में क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ उत्तराखंड के अध्यक्ष पद पर विराजमान है।
उत्तराखंड में हर बार की तरह इस बार भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही कड़ी चुनावी टक्कर देखने को मिलेगी।दोनों पार्टियां राज्य की जनता को लुभाने में जुटी हुई हैं। बीजेपी के नेतृत्व वाली एनडीए की सत्तारूढ़ सरकार ने 2014 और 2019 दोनों मेगा चुनावों में सभी 5 लोकसभा सीटें जीतीं थी। बीजेपी लगातार दावा कर रही है कि राज्य की जनता को उनकी पार्टी पर पूरा भरोसा है।वही कांग्रेस ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में वापसी की दिशा में कई छोटे कदम उठाए, जिसने 18वीं लोकसभा चुनावों में उत्तराखंड को राष्ट्रीय दलों के लिए परीक्षण का मैदान बना दिया है। बीजेपी अभी भी राज्य और केंद्र दोनों में मजबूत स्थिति का दावा कर रही है।उत्तराखंड राज्य में आम चुनाव की चुनाव अवधि पहली तिमाही की होती हैं। हर बार की तरह देखा जाए तो उत्तराखंड के लिए लोकसभा चुनाव कार्यक्रम अप्रैल के महीने में मिल सकता है।छोटा राज्य होने के कारण उत्तराखंड के खाते में बहुत कम संख्या में लोकसभा सीटें हैं, इसलिए राज्य में आम चुनाव एक ही चरण में कराए जाते हैं।2024 के लोकसभा चुनाव में भी एक बार में ही चुनाव कराने का परिदृश्य होगा,उत्तराखंड एक ही चरण में मतदान कराने के लिए पूरी तरह तैयार भी है।
उत्तराखंड में लोकसभा की पांच सीटो में से एक सीट अनुसूचित जाति के लिए अल्मोड़ा आरक्षित है। बीजेपी ने 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनावों में सभी पांच सीटें जीती थीं। कांग्रेस अपने नवगठित इंडिया गठबंधन की मदद से आगामी मेगा चुनावों में अपनी किस्मत बदलने का प्रयास करेगी,वही भाजपा फिर से पांचों सीटे जीतने का दावा कर रही है।
लोकसभा चुनाव में उत्तराखंड कांग्रेस भले ही प्रदेश की पांचों लोकसभा सीट जीतने का दावा कर रही हो,लेकिन धरातल पर अभी भी नेताओं के बीच एकता का अभाव है।वही प्रदेश कांग्रेस के सक्रिय नेता चुनाव लड़ने से जहां बचते नजर आ रहे हैं वही लगातार दूसरी बार विधानसभा चुनाव बड़े अंतराल से हारने के बाद इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की साख दांव पर लगी है। ऐसे में इस चुनाव के बाद उत्तराखंड में कांग्रेस के वजूद की स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। फ़िलहाल लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर राजनीतिक पार्टियां दमखम से तैयारी में जुटी हुई है, ताकि प्रदेश की पांचों लोकसभा सीटों पर काबिज हो सके।चुनावी तैयारी के बीच उत्तराखंड की राजनीति में इन दोनों उथल पुथल भी देखा जा रहा है, एक तरफ भाजपा ने पांचों लोकसभा सीटों के लिए प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया है। दूसरी तरफ कांग्रेस के मनीष खंडूड़ी, शैलेंद्र रावत और अशोक वर्मा जैसे कई दिग्गज नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर चुके हैं। कांग्रेस अभी भी हरिद्वार व गढ़वाल लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के नाम का ऐलान नहीं कर पाई है।
कांग्रेस आलाकमान को प्रत्याशियों के चयन में काफी समय लगना कांग्रेसियों की बेचैनी बढ़ा रहा है।नेताओं द्वारा चुनाव न लड़ने की इच्छा जाहिर करने की एक वजह चुनाव का मंहगा होना भी है। मौजूदा समय में एक लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए लगभग 15 करोड़ रुपए की जरूरत पड़ती है, साथ ही प्रदेश की विषम भौगोलिक परिस्थितियों को भी एक चुनोती के रूप में देखा जा रहा है।वही भाजपा के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे की कमी नहीं है। भाजपा के प्रत्याशी आर्थिक रूप से इतने समर्थ हो गए हैं कि वो अपने बलबूते चुनाव लड़ सकते हैं।
सीटिंग पार्टी को आसानी से चुनाव लड़ने के लिए चंदा भी मिल जाता है, जबकि विपक्षी पार्टियों को चुनाव लड़ने के लिए चंदा एकत्र करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।राजनीतिक समीकरणों के सवाल पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करन माहरा ने भाजपा पर तंज कसते हुए कहा कि भाजपा अपनी फिक्र करें,कांग्रेस की फिक्र न करें। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुक्त भारत बनाते-बनाते भाजपा ने खुद को कांग्रेस युक्त भाजपा बना लिया है, वर्तमान समय में आज 9 में से 5 कैबिनेट मंत्री कांग्रेस पृष्टिभूमि से हैं, ऐसे में भाजपा किसी को कांग्रेस से आयात करके मुख्यमंत्री भी बना दे, जो ज्यादा बेहतर होगा।जिसका प्रतिकूल प्रभाव भाजपा के इस लोकसभा चुनाव पर पड़ेगा,क्योंकि दलबदलुओं के कारण निष्ठवान भाजपाई भी उपेक्षित है।
(लेखक राजनीतिक समीक्षक वरिष्ठ पत्रकार है)