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ऋग्वैदिक दर्शन का तिथि निर्धारण

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डॉ. विकास मानव

   _प्राचीन भारतीय इतिहास में ऋग्वैदिक संस्कृति का तिथि निर्धारण एक मुश्किल और अतिविवादित कार्य रहा है। ऋग्वेद की तिथि को हड़प्पा सभ्यता जो आंशिक रूप से 1900 ई0 पू0 के लगभग पतन की ओर अग्रसर हुई उसके पहले का नहीं माना जा सकता, क्योंकि जिस सप्तसैंधव प्रदेश का विस्तृत वर्णन ऋग्वेद में एक ग्रामीण परिवेश के रूप में है, उसी प्रदेश में 1900 ई0पू0 के लगभग हड़प्पा जैसी नगरीय सभ्यता के भरपूर पुरातात्विक साक्ष्य उपलब्ध हैं।_
       ईण्डो-यूरोपीय भाषा (ऋग्वेदिय भाषा इण्डो-यूरोपीय भाषा के अंतर्गत है) का का सबसे पुरा नमूना इराक में एक 2200 ई0पू0 के अभिलेख से मिला है।
    _मध्य एशिया के बोगाजकोई (सीरिया) से प्राप्त एक अभिलेख (कीलाक्षर लिपि) और मिस्र के एल अमरना से मिट्टी की एक टेबलेट पर उत्कीर्ण लेखों की भाषा ऋग्वेदिय भाषा से प्राचीन व अविकसित है। इन लेखों की भाषा ईरानी जींद-अवेस्ता से भी प्राचीन है।_
      अतः हम यह मान सकते हैं कि इण्डो-ईरानी भाषा (इण्डो-यूरोपीय का पूर्वी रूप) का विकास 1400 ई0 पू0 के बाद ही हुआ होगा। बोगाजकोई अभिलेख(1380 ई0पू0) से हिट्टाइट और मितानी शासक के बीच हुए एक सन्धि का जिक्र है जिसमें इन्द्र, मित्र, नासीत्य (अथवा अश्विन), उरुवनास (वरुण) आदि देवताओं का उल्लेख है जो ऋग्वेद के प्रमुख देवता हैं (ऐतिहासिक छठी ई0पू0 के काल में इन देवताओं का महत्व लगभग समाप्त हो गया था )।

अधिकाँश मितानी जनसंख्या हुर्रियन भाषा बोलती थी फिर भी देवताओं के नाम इण्डो आर्य जैसे हैं। लगभग इसी समय के एक हिटाइट ग्रन्थ में भी अश्व प्रशिक्षण तथा रथ से जुड़े बातों की चर्चा की गई है जिसकी रचना किकुली नाम के एक मितानी ने की थी।
इस ग्रन्थ में बहुत सारे तकनीकी शब्दावलियों का प्रयोग हुआ है जो इण्डो-आर्य भाषाओं से सम्बंध रखते हैं।
ऋग्वेद की भाषा और संस्कृति का बहुत ही स्पष्ट सम्बन्ध प्राचीन ईरान के ग्रन्थ अवेस्ता से है। अवेस्ता के प्रारंभिक हिस्से 1500 ई0पू0 के आसपास लिखे गए थे (1000 ई0पू0 तक अवेस्ता का पूर्ण रूप)।
इसके बाद आने वाले हखमानी राजाओं (600ई0पू0) ने जो अभिलेख ईरान से उत्कीर्ण कराए वो अवेस्ता की भाषा का ही विकसित रूप था। चूँकि 400 साल इन भाषाओं के विकास के लिए पर्याप्त होगा इसलिए अवेस्ता का रचना-काल 1000 ई0पू0 के आसपास माना जा सकता है। ऋग्वेद और अवेस्ता प्रायः समकालीन हैं।
ऋग्वेद विवरण में मिलने वाली सभ्यता-संस्कृति का सम्बंध भारतीय ताम्र पाषाणिक संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करती हैं तथा प्रारम्भिक लौहयुगीन संस्कृति का आभास भी इसमें दिखता जिसका काल मोटे तौर पे 1500 से 1000 ई0पू0 माना गया है ( कार्बन-14 के आधार पर)।

ऋग्वेद में वर्णित भौगोलिक- सामाजिक ज्ञान भी इसे एक प्राचीन ग्रन्थ साबित करता है।
ऋग्वेद की तिथि पर अन्य मतों के विवाद को देखते हुए इसका काल 2000 ई0पू0 से 1000 ई0पू0 के मध्य कहीं भी होने को नकारा नहीं जा सकता बाकी इसपे अभी और साक्ष्य तथा शोध की आवश्यकता है।
{चेतना विकास मिशन)

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