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“दौलत की बेटी” फंस गई है “माया के जंजाल” में

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,मुनेश त्यागी

      आज जब मीडिया में यह खबर पढ़ी कि मध्य प्रदेश के चुनाव में बीएसपी नेता मायावती ने कांग्रेस के बजाय बीजेपी को अपना वोट देने का आह्वान किया है तो इस पर विश्वास नहीं हुआ। हमने कई बार बीएसपी की नेता मायावती को इस वीडियो को देखा कि कहीं हम गलत तो नहीं सुन रहे हैं, मगर नहीं, यह वीडियो गलत नहीं थी। इसमें मायावती ने बीएसपी के मतदाताओं का आह्वान किया है कि “कांग्रेस को हराने के लिए हम अपना पूरा जोर लगा देंगे। इसके लिए कांग्रेस के उम्मीदवारों को हराने के लिए बीजेपी उम्मीदवार को अपना वोट देंगे।” 

     अभी भी इस पर विश्वास नहीं हो रहा है कि आखिर बीएसपी की नेता मायावती बीजेपी के उम्मीदवारों को वोट देने के लिए कैसे सोच सकती है? बीजेपी पिछले नो साल से लगातार किसानों मजदूरों नौजवानों के खिलाफ काम कर रही है। उसने इन तबकों के लोगों के लिए शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार या उनके विकास के लिए कोई कार्य नहीं किया है। एससी एसटी ओबीसी के लोग आज हमारे देश में आर्थिक सामाजिक और राजनीतिक रूप से सबसे गरीब और निचले स्तर पर हैं।

     इसी के साथ-साथ मायावती जो अंबेडकर के गुण गाते-गाते नही थकती हैं, उन्हीं अंबेडकर के बनाए संविधान को बीजेपी और हिंदुत्ववादी ताकतें रोजाना मिट्टी में मिला रही हैं। बीजेपी ने जो सबसे गलत काम किया है, वह संविधान के साथ और इस देश के गरीबों के साथ किया है। बीजेपी का रिपोर्ट कार्ड देखे तो उसने पिछले नौ साल में एससी एसटी ओबीसी और दलितों के लिए कुछ भी नहीं किया है। 

      बीजेपी ने पिछले 9 साल में शिक्षा का बजट घटाया है, स्वास्थ्य का बजट घटाया है, गरीबों के स्वास्थ्य के, विकास के लिए कोई काम नहीं किया है। उसकी गलत नीतियों के कारण उनका जीना दूभर हो गया है। महंगाई ने तो जैसे उनकी कमर ही तोड़ दी है। इस सब के बाद भी बीएसपी की नेता मायावती बीजेपी के लिए वोट देने का आह्वान कैसे कर सकती है, यह अभी भी समझ में नहीं आ रहा है।

     बहुत सारे लोग उम्मीद लगाए बैठे थे कि आखिर समय आने पर बीएसपी की नेता मायावती, इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाएगी और उनकी यह उम्मीद बड़ी बलवती होती जा रही थी कि अगले आने वाले चुनाव में बीएसपी इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर बीजेपी को धराशाई कर देगी और भाजपा द्वारा किए जा रहे जनविरोधी, दलित विरोधी, एससी एसटी और ओबीसी विरोधी आंधी को थाम दिया जाएगा और एक बार फिर से संविधान की रक्षा की जाएगी, धर्मनिरपेक्षता की रक्षा की जाएगी, जनता की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक आजादी, शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार का विस्तार किया जाएगा।

        मायावती के इंडिया गठबंधन में शामिल हो जाने की आशा के साथ यह उम्मीद भी बड़ी बलवती होती जा रही थी कि जो लोग 75 साल की आजादी के बाद भी, विकास के मार्ग पर जाने से पिछड गये हैं और जिनके विकास के मार्ग पर आगे बढ़ने के सारे रास्ते अवरुद्ध हो गए हैं, जिनका रास्ता रोक दिया गया है, उन्हें फिर से विकास के मार्ग पर अग्रसारित किया जाएगा। उनके लिए मुफ्त और आधुनिक शिक्षा स्वास्थ्य रोजगार और विकास की सभी सुविधाएं मुहैया कराई जाएगी।

        मायावती के इस अप्रत्याशित कदम के बाद, जब कुछ अनुसूचित जाति और दलित लोगों के साथ बात की गई तो उन्हें पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ, मगर जब उन्हें वीडियो दिखाई गई तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गईं। उन सब ने इस पर विश्वास नहीं किया और उनका कहना था कि मायावती का यह कदम किसी भी हालत में दलित, एससी, एसटी और ओबीसी के हित में नहीं है। मायावती के इस कदम से सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को लाभ मिल सकता है, उस बीजेपी को जो संविधान की मान मर्यादा को नहीं रख रही है, जो दलितों के खिलाफ सबसे ज्यादा जनविरोधी नीतियां इख्तियार कर रही है। उनका कहना था कि अन्य दलित नेताओं की तरह मायावती का यह कदम भी दलित विरोधी कदम है, जिसका किसी भी हालत में समर्थन नहीं किया जा सकता है।

        हमारा यहां पर यह कहना है कि मायावती किस आधार पर भाजपा के का समर्थन कर सकती है। बीजेपी ने पिछले 10 साल में एससी एसटी ओबीसी के लिए क्या किया है? कितने लोगों को शिक्षा मोहिया कराई है? कितने लोगों को ,, मुफ्त स्वास्थ्य की सेवाएं प्रदान की है? कितने लोगों को रोजगार दिया गया है? कितने लोगों को गरीबी के भंवर से निकाला गया है? कितने लोगों को सामंती मानसिकता के लोगों के जुल्मो-सितम से बचाया गया है? इसका कोई रिकॉर्ड मायावती के पास नहीं है।

      मायावती की पार्टी बीएसपी, उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में यहां की एक मुख्य विपक्षी दल है जिससे यहां के तमाम गरीबों एससी एसटी ओबीसी को उम्मीद लगी हुई थी कि मायावती उनके लिए कुछ करेगी। मगर मायावती ने अपने चार बार के मुख्य मुख्यमंत्री काल में इन लोगों के लिए लगभग कुछ भी नहीं किया। मायावती आरक्षण का लाभ उठाकर इन गरीब लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार का मुकम्मल इंतजाम कर सकती थी, गरीब बच्चों के लिए लाइब्रेरी और हॉस्टल खुलवा सकती थी, वहां पर कंप्यूटर जैसी आधुनिक सुख सुविधा उपलब्ध करा सकती थी, मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया।

      बहुत से लोग मायावती की इन नीतियों के कारण उनके कई समर्थक, उन पर दौलत की बेटी होने का आरोप लगाने लगे थे। बहुत सारे लोग उसे माया के जंजाल में फंसा होने की बात भी कहने लगे थे। उनका कहना था कि अपनी इन्हीं कमियों के कारण मायावती इन गरीब लोगों के लिए कुछ नहीं कर पाई और उसने भी वही काम किया जो दूसरे सामंती और सांप्रदायिक दलों के लोग कर रहे थे।

       मायावती के इस अप्रत्याशित कदम से एससी एसटी के बहुत सारे लोग खुश नहीं हैं। उन्हें अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मायावती बीजेपी जैसे एससी, एसटी और संविधान विरोधी दल को चुनाव में समर्थन दे सकती है। मायावती के इस कदम को देखकर अब तो यही लगता है कि मायावती अपने कर्मों के लिए अभिशप्त हो गई है और अब उसने यह ऐसा कदम उठाया है जिसे किसी भी हालत में एससी, एसटी और ओबीसी समर्थक नहीं कहा जा सकता। 

     उसने साबित कर दिया है कि वह सच में “दौलत की बेटी” बनकर ही रह गई है और वह अपने किये गये “माया के जंजाल” में फंस गई है। मायावती का यह कदम एससी, एसटी और ओबीसी के हितों के बिल्कुल खिलाफ है और उनके साथ सबसे बड़ा धोखा है। मायावती तो अब पक्के तौर पर जैसे जनविरोधी मनुवादी ताकतों के साथ ही जा बैठी है। हम तो यहां पर यही कहेंगे,,,,,

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी 

कोई यूं ही बेवफा नहीं होता।

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