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दिवास्वप्न !देश के 23 राज्यों में जो हुआ, क्या वो भी एक ‘इवेंट’ था ? 

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चंद्रशेखर शर्मा

नुपूर शर्मा के विवादित और कहें तो भड़काऊ बयान के बाद देश के तेईस राज्यों में कानून व्यवस्था की स्थिति हमारे सामने है। हजारों लोगों की भीड़ द्वारा बिना अनुमति प्रदर्शन, पथराव, आगजनी, गोलीबारी के बाद कई शहरों में धारा 144 से लेकर कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। विदित हो कि बहुत लोगों को हर मामले को इवेंट बनाने की कला सिर्फ नरेंद्र मोदी में मिली है ! अलबत्ता एक विशेष ट्रेंड के तहत, एक विशेष दिन, देश के 23 राज्यों में ये सब जो हुआ, क्या वो भी एक ‘इवेंट’ था ? 

जवाब जो भी हो। पूरे देश ने उसे देखा है, उसका संज्ञान लिया है और सब जान लें कि इस पूरे घटनाक्रम की अनदेखी करना देश के साथ बहुत गंभीर अपराध होगा। नुपूर शर्मा के पक्ष में दलील है कि उसने वही कहा, जो हदीस में दर्ज है। बेजा दलील है यह। कोई भी किसी एक धार्मिक समूह की आस्था को कैसे चोट पहुंचा सकता है ? हां, कोई आपकी आस्था को चोट पहुंचाए और आपको उतना बुरा न लगे तो यह आपकी निजी अथवा सामूहिक समस्या है, उनकी नहीं जिन्होंने पिछले दिनों देश में हिंसा का तांडव किया ! अब यहां एक अहम सवाल है।

सवाल यह है कि जब आपके आराध्यों के बारे में कोई विवादित और भड़काऊ टिप्पणी या हरकत की जाती है तो आप भी उनकी तरह और वैसा क्यों नहीं भड़कते ? इसके कई जवाब हैं। असल बात यह है कि समझ का लोचा है ! देश के इस बड़े तबके को लगता है कि देश संविधान से और कानून से चलता है। इसके बरख़िलाफ़ एक तबके को लगता है कि वो अपनी आस्था से चलते हैं और देश के संविधान और कानून को भी उसी के मुताबिक चलना होगा, कम से कम उनके आराध्य के मामले में तो जरूर। नहीं तो फिर जो देश के कई राज्यों में हुआ, वो होगा। बेशक अपने आराध्य अथवा ईश्वर के प्रति आस्था सर्वोपरि होती है और उसे पर्याप्त आदर मिलना ही चाहिए। 

यहां सवाल यह है कि वही सब आदर और उस आदर की सुरक्षा सब धर्मों और उनके आराध्यों को क्यों न मिले ? क्या वो इसलिए जरूरी नहीं कि ये बड़ा तबका अपने आराध्यों के अपमान का इतना बुरा नहीं मानता ? या दूसरे समूह जैसा नहीं भड़कता, सड़कों पर नहीं उतरता, बिना अनुमति प्रदर्शन, पथराव, आगजनी, गोलीबारी आदि नहीं करता ? उलटे रजाई ओढ़कर पड़े रहता है। तो क्या अपने आराध्यों के आदर और सुरक्षा के लिए उसे भी वही सब करना पड़ेगा, जो दूसरे समूह ने अभी करके दिखाया है ? यदि ऐसा होगा तो सोचिए देश की क्या हालत होगी ? क्या केंद्र और राज्य सरकारें उसी का इंतजार कर रही हैं ?

यदि ऐसा है तो कहने दीजिये कि फिर राज्य सरकारें और केंद्र सरकार महामूर्ख हाथों में हैं ! सो बेहतर होगा कि संबंधित जिम्मेदार लोग अविलम्ब पहल करें और सिर्फ एक समूह नहीं, बल्कि देश के सभी धार्मिक समूहों के तमाम आराध्यों के आदर और उस आदर की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कानून बनाए। केंद्र सरकार का कहना है कि वो सभी धर्मों को समान सम्मान देती है। यदि ऐसा है तो उसे इन सभी धर्मों के अनुयायियों की आस्था की सुरक्षा के लिए भी उचित बंदोबस्त करना ही होंगे। 

नोट-यदि किसी अहमक या समझदार को लगता है कि वर्तमान संविधान और कानूनों के चलते यह देश सेकुलर भी रहे, लोकतांत्रिक भी रहे, शांत भी रहे, मजबूत भी रहे, यह हिन्दू राष्ट्र या इस्लामिक मुल्क न बने और तेजी से तरक्की भी करे तो यह हथेली पर सरसों उगाने जैसा है और उस अहमक या समझदार का दिवास्वप्न है !

चंद्रशेखर शर्मा

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