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मृत्यु भोज समाज के लिए दीमक की तरह है

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भरत गहलोत

मृत्यु भोज एक ऐसी सामाजिक बुराई है जिसका अंदाजा लगाना एक आम इंसान के लिए मुमकिन नही है,
मृत्यु भोज से समाज को भीषण हानि है व आने वाले समय मे भी इसके विकट व दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे,
जैसे किसी व्यक्ति की मृत्यु पर मान लीजिए वो गरीब किसान परिवार से है और वो अपने परिवार का भी पेट बमुश्किल पालता है,
उसको उसके परिवार के मुखिया के जाने के बाद उसके छोटे -छोटे बच्चे होते है उन्हें साहूकार से ऋण लेना पड़ता है , अपनी खेतिहर जमीन साहूकार के पास में गिरवी रखनी पड़ती है,
और हमारे यहा पर एक कहावत है कि बेटे तो रात को भी सोते है पर ब्याज नही सोता है वो दिनों दिन बढ़ता रहता है,
पिता की मृत्यु के बाद इस सामाजिक कुप्रथा को निभाने के लिए बालक कर्ज लेता है व कर्ज की राशि नही चुकाने पर उसे अपनी पुश्तेनी जमीन से हाथ धोना पड़ता है,
व भी इसी प्रकार इस कुप्रथा को निभाते -निभाते मर जाता है तब उसका पुत्र इस प्रथा का निर्वहन करता है,
इस प्रकार कई कर्ज के मारे दब जाती है मर जाती है,
इसलिए समाज के ठेकेदारों को इस कुप्रथा को बन्द कर देना चाहिए ,
समाज के ठेकेदारों को चाहिए कि वे समाज की उन्नति में अपनी भूमिका अदा करे समाज की अवनति में नही,

भरत गहलोत
जालोर राजस्थान

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