3 दिसंबर 1984 की रात में भोपाल की हवा में मौत बह रही थी। भोपाल के बैरसिया इलाके के पास बने यूनियन कार्बाइड के कारखाने से जहरीली गैस MIC रिसकर हवा में घुलने लगी। आसपास के लोग सोते-सोते ही मौत के आगोश में चले गए। कुछ घबराकर भागे और हांफते-हांफते मर गए। मुख्य आरोपी वॉरेन एंडरसन किसने भगाया और पीड़ितों को क्या मिला जानिए सब कुछ…
काली रात क्या होती है, यह भोपाल के उन लोगों से पूछो-जिन्होंने अपनों को खोया। सपनों को चकनाचूर होते देखा। जिनकी रौशन जिंदगी में हमेशा के लिए अंधेरा छा गया। उस रात मौत तांडव कर रही थी। चीख-पुकार मची थी। उस रात भोपाल में सिर्फ लोग नहीं मरे थे, इंसानियत और ममता भी मर गई थी। मां बच्चों को और बच्चे बूढ़े मां-बाप को छोड़कर भाग रहे थे।
1984 में 2 दिसंबर और 3 दिसंबर की मध्यरात्रि भोपाल वालों के लिए दुनिया की सबसे स्याह काली रात थी। 40 साल बीत गए, लेकिन भोपाल गैस त्रासदी वाली रात को याद कर लोग अब भी सिहर जाते हैं। बात करते हुए फफक-फफक कर रो पड़ते हैं।
साल 1984 देश के लिए बड़ा ही मनहूस रहा था। इस साल अक्टूबर के आखिरी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई। उसके अगले दिन यानी नवंबर के पहले हफ्ते में हजारों सिखों को जिंदा जला दिया गया।
2 दिसंबर की रात भोपाल में जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिसने हजारों लोगों को मौत की नींद सुला दिया। तीनों ही घटनाएं तीन अलग कारणों से हुई थीं। पहली में धोखे की, दूसरी में क्रूरता की और तीसरी में लापरवाही की पराकाष्ठा देखने को मिली थी।
घटना के ढाई साल पहले ही दी थी चेतावनी
…लापरवाही? दरअसल, भोपाल में गैस त्रासदी हो सकती है, इसको लेकर पत्रकार राजकुमार केसवानी ने घटना के करीब ढाई साल पहले से ही शासन-प्रशासन और कंपनी को आगाह किया था। केसवानी ने 26 सितंबर 1982 को ‘बचाइए हुजूर इस शहर को बचाइए’ शीर्षक से एक खबर लिखी थी, जिसमें चेतावनी देते हुए यूनियन कार्बाइड प्लांट में रखरखाव और सुरक्षा मानकों की अवहेलना के चलते एमआईसी लीक होने की आशंका जताई गई थी।
जब इस रिपोर्ट पर किसी ने गौर नहीं किया तो केसवानी ने ‘ज्वालामुखी के मुहाने बैठा भोपाल’ और ‘ना समझोगे तो आखिर मिट ही जाओगे’ शीर्षक से दो फॉलोअप लेख भी लिखे थे।
इतना ही नहीं, उन्होंने मध्यप्रदेश के उस वक्त के मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह को एक पत्र लिखकर भी यूनियन कार्बाइड प्लांट से होने वाली तबाही के बारे में आगाह भी किया। केसवानी का यूनियन कार्बाइड प्लांट के खतरों पर आखिरी लेख ‘आपदा के कगार पर भोपाल’ शीर्षक से जहरीली गैस रिसाव होने से 4 महीने पहले छपा था।
एमआईसी गैस को लेकर बार-बार दी गई चेतावनी को मध्यप्रदेश सरकार और यूनियन कार्बाइड मैनेजमेंट दोनों ने अनसुना और अनदेखा कर दिया था। केसवानी की चेतावनी सच साबित हुई।
2 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड पेस्टिसाइड प्लांट से जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइट (MIC) का रिसाव हुआ। कुल 5 लाख से अधिक लोग एमआईसी के संपर्क में आए।
सरकारी आंकड़ों की मानें तो भोपाल गैस त्रासदी में मरने वालों की संख्या 3,787 थी, जबकि सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई एक रिपोर्ट में यह संख्या 15,724 से ज्यादा बताई गई है। जबकि सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि मरने वालों की संख्या 33 हजार से ज्यादा थी। यह दुनिया की सबसे बड़ी त्रासदी थी।
सुषमा स्वराज घटना को लापरवाही की पराकाष्ठा करार दिया
11 अगस्त को 2010 को लोकसभा में उस वक्त की विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भोपाल गैस कांड को लापरवाही की पराकाष्ठा करार दिया था।
सुषमा स्वराज ने कहा-
भोपाल में यह मौत अचानक नहीं बरसी थी। ना ही ऊपर से आकर टपक पड़ी थी। इस मौत ने तीन साल तक दरवाजा खटका-खटका कर शासन-प्रशासन को आगाह किया था। फैक्टरी वालों को दस्तक देकर कहा था कि तुम्हारे द्वार पर खड़ी हूं, अगर मुझे लौटा सकते हो तो लौटा दो। अगर अंदर प्रवेश कर गई तो मैं हजारों को लील जाऊंगी। मौत घंटे बजा-बजाकर अपने आने का शोर मचा रही थी।
अफसोस यह आवाज बस्ती वालों ने, श्रमिक संगठनों और प्लांट में काम करने वाले कर्मचारियों ने सुनी। पत्रकारों ने सुनी और बार-बार सियासतदानों व फैक्टरी आला-अधिकारियों को सुनाने की कोशिश की, लेकिन मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि प्रशासन ने पैसे के लालच में, राजनेताओं ने सत्ता के मद मौत की आवाज को अनसुना कर दिया। लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया।
जनता को मरता छोड़ चले गए थे मुख्यमंत्री
3 दिसंबर की सुबह जहरीली गैस लीक होने से हजारों की संख्या में मरने वालों की खबर फैली, तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। अर्जुन सिंह मुख्यमंत्री थे। जब जहरीली गैस के रिसाव और लोगों के मरने की जानकारी अर्जुन सिंह को मिली तो वे तुरंत परिवार को लेकर सरकारी विमान से इलाहाबाद (मौजूदा प्रयागराज) चले गए।
इसको लेकर अर्जुन सिंह की खूब आलोचना हुई कि वे जनता को मरता छोड़ अपनी और अपने परिवार की जान बचाने के लिए भाग गए।
आत्मकथा में दी अर्जुन सिंह ने सफाई
अर्जुन सिंह ने बाद में अपनी आत्मकथा ‘द ग्रेन ऑफ सैंड इन दि ऑवरलैस ऑफ टाइम’ (A Grain Of Sand In The Hourglass of Time) में इसका जिक्र करते हुए लिखा कि वे इलाहाबाद के गिरजाघर में प्रार्थना करने गए थे और उसी शाम भोपाल लौट आए थे। फिर अपनी मौजूदगी में ‘ऑपरेशन फेथ’ चलवाया था।
भोपाल के दोषी को मिला था VIP ट्रीटमेंट
जहरीली गैस के रिसाव से हजारों लोग मर गए और लाखों लोग अपंग हो गए। कानूनी कार्रवाई के नाम पर सिर्फ दिखावे का ड्रामा हुआ। घटना के बाद 7 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड का सीईओ वॉरेन एंडरसन भोपाल पहुंचा, जहां उसकी गिरफ्तारी की गई। गिरफ्तारी ऐसी कि जिसमें आरोपी की भरपूर मेहमाननवाजी की गई थी।
तत्कालीन एसपी स्वराज पुरी और डीएम मोती सिंह मुख्य आरोपी एंडरसन को रिसीव करने गए। फिर सफेद रंग एंबेसडर में बिठाकर यूनियन कार्बाइड के गेस्ट हाउस ले गए। यहां उसके ठहरने की व्यवस्था की गई।
यूनियन कार्बाइड का गेस्ट हाउस सीएम हाउस के एकदम करीब थी। यह गेस्ट हाउस भोपाल की उन जगहों में शामिल था, जहां वीआईपी लोग रुकना पसंद करते थे, क्योंकि उस वक्त भोपाल में अब की तरह फॉर और फाइव स्टार होटल नहीं हुआ करते थे। वह आलीशान गेस्ट हाउस खंडहर अवस्था में श्यामला हिल्स के एक छोर पर आज भी देखा जा सकता है।
हत्यारे एंडरसन को किसने भगाया?
गिरफ्तारी के अगले दिन तत्कालीन कलेक्टर मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक (एसपी) स्वराज पुरी एंडरसन को सरकारी कार में एयरपोर्ट पहुंचाया। वहां राज्य सरकार का विमान तैयार खड़ा था, जिसमें बिठाकर एंडरसन को दिल्ली भेज दिया गया।
दिल्ली से उसी शाम वह अमेरिका के लिए रवाना हो गया। भोपाल से रवाना होते वक्त एंडरसन ने 25000 रुपये का एक मुचलका भरा था और सुनवाई के दौरान कोर्ट में पेश होने का वादा भी किया था, लेकिन यहां से जाने के बाद एंडरसन कभी भारत नहीं आया।
एंडरसन को भगाने के आरोप पर क्या बोले अधिकारी?
भोपाल गैस कांड के समय मुख्य आरोपी एंडरसन को भोपाल से सुरक्षित निकाल दिल्ली पहुंचाने वालों में शामिल उस वक्त के कलेक्टर मोती सिंह ने 2008 में एक किताब ‘अनफोल्डिंग द बिट्रेयल ऑफ भोपाल गैस ट्रेजेडी’ लिखी।
किताब में मोती सिंह ने अपने ऊपर लगे आरोपों का जिक्र करते हुए लिखा- वॉरेन एंडरसन को तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह के आदेश पर छोड़ा गया था। किसी को इसकी भनक न लगे, इसलिए न पायलट वाहन था और न कोई सुरक्षा गार्ड। मेरी कार की फ्रंट सीट पर उस वक्त के एसपी स्वराज पुरी थे और पीछे की सीट पर मैं एंडरसन के साथ बैठा था। हम सीधे एयरपोर्ट गए। एंडरसन राज्य के विमान से भोपाल से दिल्ली रवाना हुआ और रात में वहां से अमेरिका निकल गया।
मोती सिंह ने अपनी गलती मानते हुए लिखा- ”एंडरसन को जिस कमरे में रखा गया था, वहां को फोन चालू रहना एक बहुत बड़ी चूक थी। समय की कमी चलते पुलिस ठीक से कमरे की जांच नहीं कर सकी थी और टेलीफोन चालू था। डिस्कनेक्ट नहीं किया गया था। एंडरसन ने टेलीफोन का उपयोग कर पूरा मामला पलट दिया।”
अर्जुन सिंह ने एंडरसन को बचाने के आरोप पर क्या कहा?
अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘अ ग्रेन ऑफ सैंड इन द ऑवरग्लास ऑफ टाइम’ में एंडरसन को भगाने के आरोपों का बचाव करते हुए लिखा- ”उनको 4 दिसंबर को सूचना मिली कि एंडरसन भोपाल आ रहा है तो उन्होंने उसे गिरफ्तार करने का फैसला लिया। मैंने मोती सिंह और स्वराज पुरी को अपने आवास बुलाया।’’
अर्जुन सिंह ने लिखा, ”पुरी को लिखित में एंडरसन को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। आमतौर पर सीएम लिखित निर्देश नहीं देते हैं, लेकिन मामले की गंभीरता को देखते हुए मैंने लिखित आदेश देना उचित समझा, क्योंकि मुझे पता था कि एसपी और कलेक्टर अपने कर्तव्य का पालन करते समय भारी दबाव में होंगे।”
किसके कहने पर एंडरसन को बचाया गया था?
गैस कांड के मुख्य आरोपी एंडरसन की गिरफ्तारी के बाद अर्जुन सिंह मध्यप्रदेश के हरदा जिले में चुनाव प्रचार करने गए, जहां राजीव गांधी भी आए हुए थे।
अर्जुन सिंह लिखा, ” जब राजीव गांधी को एंडरसन की गिरफ्तारी की सूचना दी तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, सिर्फ सुन लिया। तभी हमारी सरकार में मुख्य सचिव ब्रह्म स्वरूप का एक वायरलेस संदेश मिला, जिसमें बताया कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी बार-बार दिल्ली से कॉल कर रहे हैं। उन्होंने एंडरसन को जमानत देने और उसे राज्य विमान से दिल्ली भेजने का निर्देश दिया।’’
अर्जुन सिंह ने अपनी आत्मकथा में आगे लिखा, ‘’ बाद में पता चला कि दिल्ली से फोन करने वाले गृह सचिव आरडी प्रधान थे, उन्होंने उस वक्त के केंद्रीय गृह मंत्री पीवी नरसिम्हा राव के निर्देश पर ब्रह्म स्वरूप को फोन किया था।”
भोपाल गैस त्रासदी में कितने लोगों को हुई जेल?
भोपाल गैस कांड की जांच तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने सीबीआई से कराई। CBI ने घटना की तीन साल तक जांच करने के बाद एंडरसन समेत यूनियन कार्बाइड के 11 अधिकारियों के खिलाफ कोर्ट में चार्जशीट दायर की थी। हालांकि, एंडरसन को कभी भी भारत नहीं लाया जा सका। उसकी अनुपस्थिति में ही सुनवाई हुई।
अदालत ने जून, 2010 में फैसला सुनाया। इसमें यूनियन कार्बाइड की भारतीय सहायक कंपनी और उसके जिम्मेदार अधिकारियों को दोषी ठहराया। यूनियन कार्बाइड के सात अधिकारियों को दो साल जेल की सजा सुनाई और जुर्माना लगाया। दोषी जुर्माना भरकर 14 दिन बाद ही जमानत पर रिहा हो गए। यानी भोपाल के दोषियों ने ज्यादा से ज्यादा 14 दिन ही जेल में काटे। जबकि हजारों पीड़ित आज तक तिल तिल मर रहे हैं। पीड़ितों की कानूनी लड़ाई अब भी जारी है।
मुआवजे पर था सरकार का फोकस, पीड़ितों को कितना पैसा मिला?
भोपाल गैस त्रासदी के आरोपियों को दिलाने बजाय भारत सरकार और मध्य प्रदेश सरकार क पूरा ध्यान कार्बाइड कंपनी से हर्जाना वसूल कर पीड़ितों को मुआवजा देने रहा। जब भी भोपाल में आरोपियों को कानून से बचाने का मुद्दा उठा तो सरकार ने बचाव करते हुए कहा कि वह पीड़ितों के लिए कंपनी से ज्यादा से ज्यादा मुआवजा वसूलने के काम में लगी है।
अगस्त, 2010 में लोकसभा में विपक्ष की नेता रहीं सुषमा स्वराज ने 1989 में यूनियन कार्बाइड के साथ हुए समझौते पर सवाल उठाए थे।
सुषमा स्वराज ने कहा था,
615 करोड़ रुपये भारतीय सरकार को देकर यूनियन कार्बाइड के लोगों ने गैस पीड़ितों से कहा – ये पकड़ो 615 करोड़ और गायब हो जाओ। खबरदार अगर कल से दीखे, किसी कोर्ट, कचहरी, अदालत में मत दीखना। आज से हमारी भूत, भविष्य और वर्तमान की सारी देनदारियां खत्म, आज से हमारे खिलाफ चल रहे दीवानी और फौजदारी के सारे मुकदमे खारिज।
आज से हम स्वतंत्र हैं। अब हमारे किसी भी वर्तमान या भावी कर्मचारी या अधिकारी के खिलाफ तुम कोई मुकदमा नहीं डाल सकते, तुम उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते, क्योंकि तुम्हारे रहनुमाओं के साथ हमारा समझौता हो गया है।
दरअसल, यूनियन कार्बाइड ने पीड़ितों के लिए भारत सरकार को 615 करोड़ रुपये दिए थे। भोपाल गैस त्रासदी में मुआवजे के लिए 10 लाख 29 हजार 517 पीड़ितों ने दावा किया था। भोपाल के कल्याण आयुक्त, वेलफेयर कमिश्नर ने 5,74,376 दावों को वैध पाया। ऐसे में मृतक के परिवार को 25 हजार तो प्रभावितों को दो, पांच और 10 हजार रुपये मिले।
भोपाल में कैसे लगा MIC का प्लांट?
भोपाल के जिस प्लांट से जहरीली गैस का रिसाव हुआ, उसे यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने साल 1979 में लगाया था। यूनियन कार्बाइड ऑफ इंडिया लिमिटेड में कीटनाशक दवाइयां बनती थीं, जिसमें एमआईसी गैस का यूज किया जाता था। गैस अमेरिका से इंडिया लाई जाती थी।
यूनियन कार्बाइड को MIC भोपाल में बनाने का लाइसेंस कैसे मिला?
1970 में यूनियन कार्बाइड कॉरपोरेशन ने भोपाल स्थित प्लांट में ही MIC का उत्पादन करने के लिए लाइसेंस की मांग करते हुए आवेदन दिया था। आवेदन पांच साल पड़ा रहा। इमरजेंसी के दौरान अक्टूबर, 1975 कंपनी को लाइसेंस दे दिया गया था।
यह गैस कोई साधारण अथवा छोटी-मोटी जहरीली गैस नहीं थी, यह वही गैस थी, जिसका इस्तेमाल द्वितीय विश्वयुद्ध में हुआ था। जिसका इस्तेमाल हिटलर ने गैस चैंबरों में किया था। यह जिनेवा कन्वेंशन से प्रतिबंधित थी।
इस तरह के प्लांट लगाने के नियम
- -जहरीली गैस या कीटनाशक दवाएं बनाने वाली फैक्टरी शहर की सीमा से 20 से 25 किलोमीटर बाहर लगाई जानी चाहिए।
- -यह गैस बड़े-बड़े टैंकों में नहीं, छोटे-छोटे टैंकों में रखी जाती है। छोटे टैंक को भी आधा खाली रखा जाता है ताकि कभी गैस उफनने लगे तो बाहर न छलके।
- छोटे टैंकों के साथ भी खाली टैंक रखे जाते हैं ताकि अगर गैस उफनने लगे तो गैस बराबर के टैंक में डाल दी जाए।जहां एमआईसी गैस के टैंक रखे जाते हैं, वहां टेंपरेचर जीरो डिग्री से 15 डिग्री रखा जाता है।
- भोपाल गैस कांड में CBI को जांच में क्या मिला?
भोपाल गैस त्रासदी की जांच के दौरान सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इस कंपनी को लगाने से लेकर गैस स्टोर करने तक कहीं भी सावधानी नहीं बरती गई। प्लांट जहां लगाया गया, वहां बहुत घनी आबादी थी। इसके आसपास बड़ी-बड़ी बस्ती और कॉलोनी थीं। स्टोरेज टैंक के मैटेरियल, क्वालिटी और साइज कुछ भी मानक के मुताबिक नहीं थे।
कंपनी को लगाने से लेकर गैस स्टोर करने तक कहीं भी सावधानी नहीं बरती गई। प्लांट जहां लगाया गया, वहां बहुत घनी आबादी थी। इसके आसपास बड़ी-बड़ी बस्ती और कॉलोनी थीं। स्टोरेज टैंक के मैटेरियल, क्वालिटी और साइज कुछ भी मानक के मुताबिक नहीं थे।
भोपाल गैस त्रासदी पर कौन-कौन सी फिल्में बनी?
भोपाल गैस त्रासदी पर कई फिल्में, डॉक्यूमेंट्री और वेब सीरीज भी बनाई गईं, जिनमें हादसे के मानवीय, सामाजिक, कानूनी और पर्यावरणीय प्रभावों को दिखाया गया।
(Source: पुरानी खबरें, सुषमा स्वराज का संसद में दिया गया भाषण, मप्र के पूर्व सीएम अर्जुन सिंह की आत्मकथा ‘द ग्रेन ऑफ सैंड इन दि ऑवरलैस ऑफ टाइम’, भोपाल गैस कांड के वक्त कलेक्टर मोती सिंह की आत्मकथा ‘अनफोल्डिंग द बिट्रेयल ऑफ भोपाल गैस ट्रेजेडी और वरिष्ठ पत्रकार दीपक तिवारी की किताब राजनीतिनामा )