दिल्ली सरकार और उसके मंत्री हर साल कहते हैं कि वो प्रदूषण कंट्रोल करने के लिए प्रयास कर रहे हैं और जल्द स्थिति बेहतर होगी… लेकिन हकीकत यह है कि अगर प्रयास वाकई हो रहे होते तो पिछले 10 वर्षों में AQI का ग्राफ लगातार बढ़ नहीं रहा होता और न दिल्ली के हालात इतने गंभीर होते।
AQI.IN साइट के अनुसार दिल्ली में 4 नवंबर की सुबह दिल्ली का AQI 400 पार था और खबर लिखने तक प्रदूषण मामले में सबसे खराब स्थिति वाले शहरों में दिल्ली नंबर 1 पर आ गया है
ऐसे गंभीर हालातों में दिल्ली सरकार एक्शन लेने के नाम पर दीवाली में पटाखों पर बैन लगाने जैसी कार्रवाई कर रही है या फिर दूसरे राज्य की सरकारों पर सारे प्रदूषण का ठीकरा फोड़ रही है। मगर इसका स्थायी निवारण क्या है इस पर कोई बात नहीं हो रही। अगर दीवाली पर फूटे पटाखों को दिल्ली के बढ़े प्रूषण का कारण मानते हैं तो फिर आपको 28 अक्तूबर (जब देश में दीवाली नहीं मनाई गई थी) का रिकॉर्ड देखना चाहिए। 28 अक्तूबर 2024 को दिल्ली का औसत एक्यूआई 356 रिकॉर्ड किया गया था जबकि दीवाली के अगले दिन औसत AQI 351 था।
इन दो आँकड़ों से ये बात तो स्पष्ट है कि पटाखे फोड़ने से वायु प्रदूषण होता जरूर है मगर इसका सीधा असर दिल्ली में बढ़ते AQI से बिलकुल नहीं है। क्योंकि अगर ऐसा होता तो दिल्ली में सामान्य दिन की आबो हवा से दीवाली की अगली सुबह में फर्क होता।
खैर! हर वर्ष दीवाली से पहले शायद पटाखे बैन करके आम आदमी पार्टी को ऐसा लगता हो कि वो युद्ध स्तर पर AQI कंट्रोल करने में लगे हुए हैं। जबकि रिजल्ट देख लगता है कि सरकार दिल्ली की हालत को सुधारने की जगह उसमें ढिलाई दिखाने में लगी हैं।
कभी इसी सरकार ने स्वच्छता के मायनों में दिल्ली को लंदन जैसा बनाने की बात कही थी, मगर लापरवाही देख यह लगता है कि दिल्ली को लंदन-पेरिस बनाने के सपने देखने वाली सरकार ने लंदन को देख कुछ नहीं सीखा। अगर सीखा होता तो आज दिल्ली में दमघोंटू हवा नहीं चल रही होती।
1952 में लंदन में ऐसे ही प्रदूषण से इकट्ठा हुआ स्मॉग दिखाई दिया था। 4 दिन में इस कोहरे ने 2 लाख से ज्यादा लोगों को प्रभावित किया था और 12000 से ज्यादा लोगों की जान गई थी। उस घटना ने लंदन को उनके पर्यावरण को लेकर सतर्क कर दिया और उसके बाद कभी वैसा धुआँ या कोहरा लंदन पर नहीं देखा गया। वहाँ ‘राइट टू क्लीन एयर’ कानून बना और लंदन समेत सभी यूरोपीय देशों ने वाकये से सीख ली।
वहीं दिल्ली में हालात साल दर साल बदतर हो रहे हैं। शोध के नजरिए से देखें तो इसके कई कारण हैं जैसे जनसंख्या वृद्धि के कारण दिल्ली में बढ़ते वाहन और उनसे निकलने वाला धुआँ, औद्योगिक गतिविधियाँ, निर्माण कार्य, जलवायु परिवर्तन, पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने की संख्या आदि। अब दिल्ली सरकार इस स्थिति से निपटने के लिए क्या कर रही है? इस पर कहीं कुछ स्पष्टता से नहीं बताया जा रहा है। लेकिन राजनैतिक आरोप-प्रत्यारोप लगातार जारी हैं। एक तरफ खबरों में आता है कि पराली जलाने का 93% प्रदूषण पंजाब से आता है तो सीएम आतिशी प्रेस के सामने दावा करती हैं कि उनकी सरकार आने के बाद पंजाब में पराली जलाने की संख्या कम हुई है।
ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी के लिए दिल्ली की आबो-हवा सुधारने से ज्यादा बड़ा मुद्दा अपनी पार्टी की छवि सुधारने का है। हर बार एक्शन पर बात करने की जगह किसी अन्य राज्य पर सारा ठीकरा फोड़ना AAP की आदत हो गई है।
ये बात सभी जानते हैं कि अगर प्रदूषण इतना बढ़ा है और हवा इतनी खराब हुई है तो प्रशासन शांति से नहीं बैठेगा। मगर सवाल यहाँ ये है कि जो कार्य दिल्ली सरकार प्रदूषण रोकने के लिए कर रही है… क्या वे काफी हैं या इसमें सख्ती की जरूरत और है। अगर जवाब ‘हाँ’ है तो सवाल उठता है कि अगर अभी तक उठाए कदम पर्याप्त हैं तो फिर बीते सालों में ठंड आते ही बढ़ने वाले प्रदूषण में फर्क क्यों नहीं दिखा और अगर जवाब ‘नहीं’ है तो फिर सवाल ये है कि बावजूद ये जानने के कि इनसे दिल्ली की हवाल नहीं सुधर रही या आगे कदम क्यों नहीं उठाए जा रहे। क्या सिर्फ दूसरे राज्यों पर प्रदूषण का ठीकरा फोड़ने से दिल्ली की हालत सुधर जाएगी।
गौरतलब है कि मीडिया में अलग-अलग जगह से जानकारियाँ इकट्ठा करने पर पता चलता है प्रदूषण रोकने के लिए दिल्ली में GRAP-1 को लागू किया गया है। इसके अलावा प्रदूषण करने वाले वाहनों पर कार्रवाई हो रही है और साथ ही धूल को नियंत्रित करने के लिए मैकेनिकल रोड स्विपिंग मशीनें, पानी छिड़कने वाली मशीनें और एंटी स्मॉग गन का उपयोग किया जा रहा है।