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लोकतंत्र और चेतना

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शशिकांत गुप्ते

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय इंग्लैंड के प्रधान मंत्री रहे,राजनीतिज्ञ,प्रसिद्ध इतिहासकार,लेखक और कूटनीतिज्ञ विन्सटन चर्चिल से किसी ने पूछा कि निपुण राजनीतिज्ञ कौन होता है?
चर्चिल ने कहा था कि, जो इतिहास का ज्ञाता हो,वर्तमान के प्रति सजग हो और जो भविष्य का सटीक आकलन कर सकता हो।
यही बात आचार्य चाणक्य ने अपने तरीके से कही है।
वर्तमान राजनीति में इतिहास को तोडमरोड कर प्रस्तुत करने की साज़िश चल रही है जो कभी भी सफल नहीं होगी। एक आत्म विश्वास का प्रतीक लेकिन शरीर से कृशकाय व्यक्ति जिसे क्रांतिकारी सुभाषचंद्र बोस ने सर्वप्रथम राष्ट्रपिता कहा ऐसे महान व्यक्ति की हत्या को जायज़ ठहराना कितनी गिरी हुई सोच का प्रमाण है।
वर्तमान में कोरे वादे और दावे किए जा रहे है। विज्ञापनों में उपलब्धियों को दिखाया जा रहा है। भविष्य के लिए सिर्फ स्वप्नलोक के दीदार करवाएं जा रहें हैं। स्वप्नलोक का मतलब सिर्फ और सिर्फ कल्पनाओं की उड़ान होती है।
परिवर्तन संसार का नियम है।
भारत में हमेशा क्रांति अहिंसक ही होती है। परिवर्तनकारियों की चेतना सदैव जागृत ही रहती है।
आमजन में जागृत होती चेतना दिखाई नहीं देती है।
बहुत सी बार अंदर ही अंदर क्रांति की चेतना जागृत होते रहती है। समय आने पर एकसाथ प्रकट होती है। इसतरह की जागृति पर सुभद्राकुमारी चौहान रचित एहतिहासिक कविता झांसी की रानी की निम्न पँक्तियों का स्मरण होता है।
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी, यह स्वतंत्रता की चिंगारी अंतरतम से आई थी। झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी, मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी। जबलपुर, कोल्हापुर, में भी कुछ हलचल उकसानी थी, बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी। खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी॥11
जागृत चेतना की वैचारिक ज्वाला, इसीतरह सर्वत्र फैलती है।
भारत में वैचारिक क्रांति ही होती है। वैचारिक क्रांति के सैलाब रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है।
भारत का सजग व्यक्ति सहिष्णु है लेकिन चेतनाहीन नहीं है।
वैचारिक रूप से चैतन्य व्यक्ति कभी भी व्यक्ति पूजक हो ही नहीं सकता है। जन्म है तो मृत्यु भी अटल है। कलयुग में कोई अमृतपान करके नहीं आया है।
देश तो देश ही रहता है। व्यक्ति आतें जातें रहतें हैं। अमुक व्यक्ति के बाद कौन? यह प्रश्न ही मानसिक गुलामी के साथ व्यक्तिपूजा का द्योतक है।
राष्ट्र से बड़ा कोई भी व्यक्ति हो नहीं सकता है।
विज्ञापनों के माध्यम से लोकप्रियता दर्शाना और वास्तविक रूप से लोकप्रिय होने में अंतर है। सिर्फ लोकप्रिय होना और ऐसे व्यक्ति में नेतृत्व की क्षमता होने भी अंतर है।
जिस किसी व्यक्ति में सम्पूर्ण देश पर नेतृत्व करने की क्षमता होगी वह सभी देशवासियों के हित में निर्णय लेगा। ऐसा व्यक्ति कभी भी किसी से भी भेदभाव की मानसिकता नहीं रखता है।
चैतन्य लोग सदा व्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्षरत रहतें है, सत्ता परिवर्तन के लिए कदापि नही।
सत्ता को साधन हो सकती है साध्य नहीं।
अंत में प्रसिद्ध शायर शकील आजमीजी यह शेर प्रस्तुत है।
हार तब हो जाती है जब मान लिया जाता है
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है

क्रांतिकारी सदैव ठान कर ही कदम उठाते हैं।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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