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सिंधिया समर्थित मंत्रियों के विभागों को मिला प्रदेश में भ्रष्टाचार का तमगा

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भ्रष्टाचार में स्‍वास्‍थ्‍य, राजस्व और पंचायत विभाग अव्वल*
स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने पैसा न देने वाले अस्‍पतालों को अपने बेटे को बना दिया पार्टनर
सिंधिया के कारण अपमान का घूंट पी रहे सांसद केपी यादव
विजया पाठक,
संपादक, जगत विजन
कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामने वाले बागी केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक मंत्रियों के बीच प्रदेश में भ्रष्टाचार करने की होड़ लगी हुई है। खास बात यह है कि इस होड़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी माने जाने वाले प्रदेश के राजस्व और परिवहन मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत सबसे आगे हैं। राजपूत और उनके समर्थक मिलकर न सिर्फ परिवहन विभाग में बल्कि राजस्व विभाग में भी जमकर धांधली करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। जानकारों की मानें तो सिर्फ गोविन्द सिंह राजपूत ही नहीं बल्कि ग्रामीण पंचायत मंत्री महेंद्र सिंह सिसोदिया और स्वास्थ्य मंत्री डॉ. प्रभु राम चौधरी भी इस दौड़ में शामिल हैं।
प्रदेश में सिंधिया समर्थित मंत्रियों ने किस तरह का भ्रष्टाचार मचा रखा है, यह किसी से भी नहीं छुपा है। हाल ही में लोकायुक्त और आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने कोरोनाकाल 2021 में 341 भ्रष्ट अफसरों के नकाब उतारे। कोई रंगे हाथ धराया तो किसी के घर से अकूत संपत्ति का भांडाफोड़ किया। इसमें बड़ा खुलासा हुआ कि सबसे ज्यादा भ्रष्ट अफसर राजस्व विभाग के पकड़ाए हैं। पंचायत विभाग के अफसर घूसखोरी और काली कमाई में अव्वल है। 2021 के दौरान मप्र में भ्रष्टाचार के मामले भी चार साल की तुलना में ज्यादा हुए हैं। लोकायुक्त पुलिस और ईओडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार लोकायुक्त ने 250 और ईओडब्ल्यू ने 91 केस रजिस्टर्ड किए। 2020 में सिर्फ 118 मामले सामने आए थे। आय से अधिक संपत्ति के मामले में की गई कार्रवाई में 60 करोड़ 71 लाख से ज्यादा की जब्ती की गई। इसमें राजस्व विभाग से जुड़े पटवारी, बाबू, नायब तहसीलदार, तहसीलदार से लेकर एसडीएम को ट्रैप किया गया। वहीं, पंचायत विभाग में ट्रैप के दौरान सचिव, सरपंच रंगे हाथ पकड़ाए तो नगरीय निकाय में बाबू से लेकर जनपद के सीईओ तक रहे। यही नहीं इन मंत्रियों द्वारा अपने-अपने विभागों के उच्चाधिकारियों को समय-समय पर मोटी रकम पहुंचाने का भी दबाव बनाया जा रहा है। मंत्री यह सब अपने आका श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया के इशारे पर कर रहे हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि सिंधिया और उनके समर्थित मंत्री अभी से ही आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनाव के लिए फंड जुटाने की व्यवस्था में लग गए है।
कोरोना की आपदा को प्रदेश के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने भ्रष्‍टाचार का अवसर बना दिया- स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री का पूरा परिवार ही इस काम में लगा रहता है। बल्कि सूत्रों के अनुसार मंत्री जी के घर में लेनदेन के लिए बकायदा एक कमरा बना है। कोरोना काल के इन्‍होंने अस्‍पतालों से उगाही का काम किया और जो अस्‍पताल पैसा न दे सके उनको पार्टनर बना दिया गया। ऐसे तीन-चार अवैध अस्‍पताल में यह पार्टनरशिप इनके बड़े बेटे पर्व यह वाला काम संभालता है।
केपी यादव और सिंधिया आमने सामने- गुना के महाराज कहे जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को उनकी जीती हुई सीट से बीते लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद से ही ज्योतिरादित्य सिंधिया बुरी तरह से बौखलाए हुए हैं। यही वजह है कि पहले तो उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा की गाड़ी में बैठने का फैसला किया। उसके बाद अब भाजपा की सीट से गुना लोकसभा चुनाव जीत चुके सांसद केपी यादव द्वारा जिले में किये जा रहे विकास कार्यों में सिंधिया और उनके समर्थक बाधक बने हुए हैं। लोकसभा चुनाव के लगभग तीन साल बीत जाने के बाद भी ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी हार का गम भुला नहीं सके हैं और लगातार केपी यादव को परेशान करने के तरीके अपना रहे हैं।
यादव पर लगाए जा रहे झूठे आरोप- पहले से ही गुना सीट से मिली करारी शिकस्त से बौखलाए सिंधिया ने सांसद केपी यादव के खिलाफ भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर गंभीर आरोप लगाना शुरू कर दिये है। बीजेपी के कार्यकर्ताओं ने सांसद केपी यादव पर गुंडागर्दी करने और जमीन हड़पने के आरोप लगाए हैं। जिसको लेकर गुना जिले से बीजेपी के कई कार्यकर्ता राजधानी भोपाल स्थित प्रदेश मुख्यालय पहुंचे थे। इसके अलावा उन पर कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह के इशारे पर काम करने का आरोप भी लगाया गया है। गुना जिले के स्थानीय बीजेपी नेता प्रेम नारायण वर्मा ने ज्योतिरादित्य सिंधिया के इशारे पर सांसद केपी यादव पर गुंडागर्दी और जमीनों के हड़पने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सांसद के समर्थकों ने उनसे 5 लाख की फसल छीन ली और उनके परिवार के साथ मारपीट भी की।
केपी यादव ने राष्ट्रीय अध्यक्ष को लिखा था पत्र- कुछ दिन पहले ही बीजेपी सांसद केपी यादव ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सर्मथक मंत्रियों पर बड़ा आरोप लगाया। जिसके बाद से सिंधिया समर्थक नेताओं ने भी केपी यादव पर निशाना साधा। जिसके बाद यह मामला प्रदेश की राजनीति में गरमाया हुआ है। केपी यादव ने लिखा कि मेरे लोकसभा क्षेत्र में सिंधिया समर्थक मंत्रियों और नेताओं द्वारा आयोजित किए जाने वाले सरकारी कार्यक्रमों में उन्हें आमंत्रित नहीं किया जाता है। यदि इस विकट समस्या का समाधान नहीं किया गया तो पार्टी से निष्ठा खत्म होकर व्यक्तिनिष्ठा बढ़ जाएगी। केपी यादव ने लिखा कि उन्हें और उनके समर्थकों को सिंधिया समर्थकों द्वारा दरकिनार किया जा रहा है।
इसलिए भी बढ़ रहा मुद्दा- बीजेपी सांसद केपी यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सामने आई इस सियासी तकरार के मायने इसलिए भी हैं क्योंकि केपी यादव एक जमाने में ज्योतिरादित्य सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि हुआ करते थे। लेकिन, 2019 लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी का दामन थाम लिया और बीजेपी ने केपी यादव को ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ मैदान में उतार दिया था। दिलचस्प यह रहा कि केपी यादव ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनाव में शिकस्त दे दी। हालांकि, बाद में बदले सियासी घटनाक्रम में ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी में शामिल हो गए और गुना संसदीय क्षेत्र को लेकर तकरार सामने आने लगी और सिंधिया को एक भय यह भी है कि केपी यादव के आने के बाद उनकी लोकसभा सीट हमेशा के लिए उनके हाथ से जा सकती है। सिंधिया द्वारा ज्‍यादा परेशान किये जाने पर के.पी. यादव कांग्रेस में शामिल हो सकते है।
बैठक में तोमर के साथ अनबन दिखे सिंधिया- मध्यप्रदेश सरकार और भाजपा में ज्योतिरादित्य सिंधिया के दखल के साइड इफेक्ट नजर आने लगे हैं। खासकर ग्वालियर-चंबल में सिंधिया की सक्रियता से सियासी घमासान के संकेत हैं। दरासल कुछ महीने पहले ग्वालियर में क्राइसिस मैनेजमेंट की बैठक मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में हुई। इस दौरान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और सिंधिया भी मौजूद थे। बैठक के बाद दोनों नेताओं ने सोशल मीडिया पर अफसरों को अलग-अलग बयान दिए। पहले सिंधिया ने सोशल मीडिया पर लिखा- कोरोना संक्रमण की समीक्षा बैठक में ग्वालियर संभाग में ऑक्सीजन, दवा व बेड की कमी को लेकर अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं। कुछ घंटे बाद केंद्रीय मंत्री तोमर ने बैठक की फोटो सोशल मीडिया पर शेयर की। उन्होंने भी लिखा- अफसरों को दिशा-निर्देश दिए गए हैं। तोमर ने भी मुख्यमंत्री को टैग किया, लेकिन सिंधिया को नहीं। सूत्रों के अनुसार सिंधिया और तोमर के बीच दूरियां बढ़ने की शुरुआत तो उपचुनाव के दौरान ही हो चली थी और नतीजे आने के बाद यह दूरी साफ नजर आने लगी थी। मुरैना शराब कांड ने साफ कर दिया है कि दोनों नेताओं के रिश्ते वैसे नहीं रहे जैसे पहले हुआ करते थे।

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