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पापों का भी बाप है स्त्री को आर्गेज्म से महरूम रखना

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           बबिता यादव 

मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार 99% नर सेक्स में 10 मिनट भी नहीं चलते। हैंडप्रैक्टिस, नशे के उत्पाद, कई फीमेल को यूज करने, टेंशन आदि के कारण वे नाकाम बन जाते हैं. अब वे दवा लेते हैं और दवा बची-खुची नेचुरल पावर भी नष्ट कर देती है. 

   स्त्री को गरम होने में ही 20-25 मिनट लगता है. पिघलने – निचुड़ने में तो और समय लगता है. स्त्री जब तक प्रेमपूर्ण सुदीर्घ सेक्स पाकर बेसुध नहीं होती, तब तक वह तृप्त नहीं होती. 

      योनी में पेनिस के अलावा कुछ भी डालना अन नेचुरल है. जो अन नेचुरल है, वह घातक है – रोगकारक है. प्रेम भी ज़रूरी है. बिना प्रेम का सेक्स तो रंडियाँ भी लेती हैं, कितनों का भी लेती हैं. तब तो उनको सबसे ज्यादा सुखी रहना चाहिए. लेकिन उनका सच बताने की जरूरत नहीं.

अगर आप किसी नारी से ‘समग्रतः’ प्रेम करते हैं और वह भी आपसे ‘इसी लेबल पर’ अटेच है लेकिन आप उसे बेसुध कर देने वाली ओर्गास्मिक तृप्ति नहीं दे पाते  यानी  5 से 10 मिनट में ही नामर्द सावित हो जाते हैं : तो ये नारी के लिए जिंदा लाश बनकर बे-मौत मरते रहने जैसा होता है।

      अतृप्त स्त्री कुढ़न-टूटन से गुज़रकर मनोरोगों और मनोरोगों के कारण दैहिक रोगों की शिकार बनती है। सेक्स से घिन आने के कारण वह इससे बचती है : मना नहीं करती तो बस रिश्ते का बोझ ढोने के लिए। 

      सन्तान भी मनोविकृति वाली पैदा होकर समाज के लिए नुकसानदायक ही सावित होती है। इसीलिए धर्म ने काम (संभोग) को चार पुरुषार्थों में से एक बताया है।

     आप ‘दोनों’ (कपल) हमारे मिशन से मेडिटेशन-तंत्र आधारित संभोग की विद्या/ टेक्निक ग्रहण कर सकते हैं। हम कोई शुल्क नहीं लेते.

    अनावश्यक मैसेजबाजी नहीँ करें। वास्तव में योग्यता- पात्रता की अभीप्सा हो तो युगल अपने परिचय के साथ, अपनी id भेजते हुए संपर्क कर सकते हैं।

     कोई कैम्प जॉइन करना होगा या कम से कम 15 दिन हमारे सानिध्य में रहना होगा। आप अपने घर पर भी हमारी सेवा ले सकते हैं, लेकिन होम सर्विस निःशुल्क नहीं है.

    अक्सर नामर्द खुद को नामर्द नहीं एक्सेप्ट करता. उसका दम्भ उसे सच स्वीकार नहीं करने देता. ऐसे में वह स्त्री को ही हवसी करार देता है. अगर आप इस ट्रेज़ड़ी की शिकार हैं तो हमारे मिशन के डायरेक्टर सर से खुद को धन्य करती रह सकती हैं. बिना किसी भी दुराचार से गुज़रे, बिना कुछ भी खोए.

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